जीएसटी करों व कानूनों का जंजाल
02-May-2017 07:01 AM 1234853
130 करोड़ की आबादी वाले भारत में एक जुलाई से एक देश एक टैक्स एक बाजार का सपना साकार होने जा रहा है। भारत एक विकासशील देश है। इसे और अधिक विकसित बनाने के लिए देश के टेक्सेशन और फाइनेंस सिस्टम में बदलाव जरूरी है। इसलिए गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) देश में लागू होने वाला है, लेकिन उससे पहले यह जानना जरुरी है कि जीएसटी क्या है, जीएसटी की जरुरत क्या है, जीएसटी से रोजमर्रा की जिंदगी में क्या बदलाव आएगा, जीएसटी का क्या फायदा होगा। साधारण शब्दों में कहा जाए तो जीएसटी करों और कानूनों का ऐसा जंजाल है जिसके लागू होने के बाद लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं होता तो यह मामला पिछले 17 साल से लटका नहीं रहता। आजादी के बाद हमारे देश का संविधान चार साल (1946-50) में तैयार होकर लागू हो गया, जबकि उसके तहत पूरे देश का ढांचा तैयार करना था। वही केवल कर निर्धारण के लिए जीएसटी पर आम सहमति बनाने में 17 साल लग गए। कहीं न कहीं इसमें कई तरह की कठिनाईयां और विसंगतियां थीं और हंै भी। देश के अंदर वर्तमान में करीब 60 से भी अधिक अप्रत्यक्ष कर लागू हैं। सभी राज्यों का अपना वैट एक्ट है और केंद्रीय सरकार का भी अपना वैट एक्ट है। इसके अलावा कई केंद्रीय कानून जैसे कि सर्विस टैक्स, एक्साइज ड्यूटी और विभिन्न सेस लागू हैं। वहीं राज्य में वैट, एन्ट्री टैक्स, मनोरंजन डयूटी, स्टाम्प और कई तरह के टैक्स लागू है। इस तरह से कोई भी एक टैक्स पूरे देश में लागू नहीं होने के कारण टैक्स के फायदे सभी नहीं ले पाते हैं और इसी कारण आम आदमी को टैक्स के ऊपर टैक्स देना होता है, जिसे केसकेडिंग इफेक्ट भी कहा जाता है। इसके परिणाम से इन्फ्लेशन रेट ज्यादा हो जाता है, जिसका नुकसान आम आदमी को भुगतना पड़ता है। इन्हीं सभी परेशानियों को खत्म करने के लिए जीएसटी की जरुरत देश में पड़ी। जीएसटी सभी तरह के वस्तु और सेवाओं पर लागू होगा, क्योंकि एक टैक्स एक देश नियम लागू होगा, जिससे आम आदमी को टैक्स में बहुत फायदा होगा। जीएसटी लागू होने के बाद सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, एडीशनल एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडीशनल कस्टम ड्यूटी (सीवीडी), स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑफ कस्टम (एसएडी), वैट/सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, मनोरंजन टैक्स, ऑक्ट्रॉय एंडी एंट्री टैक्स, परचेज टैक्स, लक्जरी टैक्स खत्म हो जाएंगे। जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं एवं सेवाओं पर केवल तीन टैक्स वसूले जाएंगे पहला सीजीएसटी यानी सेंट्रल जीएसटी जो केंद्र सरकार वसूलेगी। दूसरा एसजीएसटी यानी स्टेट जीएसटी जो राज्य सरकार अपने यहां होने वाले कारोबार पर वसूलेगी। कोई कारोबार अगर दो राज्यों के बीच होगा तो उस पर आईजीएसटी यानी इंटीग्रेटेड जीएसटी वसूला जाएगा। इसे केंद्र सरकार वसूल करेगी और उसे दोनों राज्यों में समान अनुपात में बांट दिया जाएगा। आज एक ही चीज अलग-अलग राज्य में अलग-अलग दाम पर बिकती है। इसकी वजह है कि अलग-अलग राज्यों में उस पर लगने वाले टैक्सों की संख्या और दर अलग-अलग होती है। अब ये नहीं होगा। हर चीज पर जहां उसका निर्माण हो रहा है, वहीं जीएसटी वसूल लिया जाएगा और उसके बाद उसके लिए आगे कोई चुंगी पर, बिक्री पर या अन्य कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा। इससे पूरे देश में वो चीज एक ही दाम पर मिलेगी। कई राज्यों में टैक्स की दर बहुत ज्यादा है। ऐसे राज्यों में वो चीजें सस्ती होंगी। केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली का दावा है कि जीएसटी लागू होने से केंद्र सरकार, कारोबारी, दुकानदार व उपभोक्ता सबको तकरीबन फायदा होगा। हालांकि राज्यों को इससे कुछ नुकसान झेलना पड़ सकता है लेकिन उनको जितना नुकसान होगा तीन साल तक उसकी भरपाई केंद्र सरकार करेगी। चौथे साल 75 फीसदी और पांचवें साल 50 फीसदी नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार करेगी। केंद्र सरकार राज्यों को भरपाई की गारंटी देने के लिए  संविधान में भी व्यवस्था तैयार हो गई है। जीएसटी लागू होने के बाद देश की जीडीपी ग्रोथ में तकरीबन दो फीसदी तक का उछाल आने का अनुमान है। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि टैक्स की चोरी रुकेगी क्योंकि अभी टैक्स कई स्तरों पर वसूला जाता है इससे हेराफेरी की, धांधली की गुजाइश ज्यादा रहती है। जीएसटी के चलते टैक्स जमा करना जब सुविधापूर्ण और आसान होगा तो ज्यादा से ज्यादा कारोबारी टैक्स भरने में रुचि दिखाएंगे। इससे सरकार की आय बढ़ेगी। व्यापारियों को भी अब अलग-अलग टैक्सों के झंझट से मुक्ति मिलेगी तो वे भी अपना व्यापार सही से कर पाएंगे। टैक्स को लेकर विवाद भी कम होंगे। अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। जीएसटी की वसूली ऑनलाइन होगी। वस्तु के मैनुफैक्चरिंग के स्तर पर ही इसे वसूल लिया जाएगा। किसी वस्तु का टैक्स जमा होते ही जीएसटी के सभी सेंटरों पर इस बाबत जानकारी पहुंच जाएगी। उसके बाद उस वस्तु पर आपूर्तिकर्ता, दुकानदार या ग्राहक को आगे कोई टैक्स नहीं देना होगा। अगर माल एक राज्य से दूसरे राज्य जा रहा है तो उस पर चुंगी भी नहीं लगेगा। यानी बॉर्डर पर ट्रकों की जो लंबी कतारें अभी दिखती हैं वे गायब हो जाएंगी। देश की जीडीपी बढ़ेगी वर्तमान में दुनिया में 100 से अधिक देश हैं, जहां जीएसटी पहले से ही लागू है और इन देशों के लिए उन्हीं देशों से व्यापार करना फायदेमंद और सुविधाजनक होता है, जहां जीएसटी लागू है। वाणिज्य के एक्सपट्र्स की मानें तो जीएसटी के लागू होने के बाद देश की जीडीपी बढ़ेगी और प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ेगी। जीएसटी टैक्स के सिस्टम को सरल कर देगा, जिससे स्टार्टअप्स को व्यापार में अपने कदम जमाने का आसान तरीका मिलेगा। इन सभी फायदों के फलस्वरूप देश में नौकरियां भी बढ़ेंगी। जीएसटी सिस्टम में रजिस्टर सप्लाई चेन सिस्टम जिसके द्वारा ज्यादातर काम ऑनलाइन ही किया जा सकेगा। इसके फलस्वरूप कम से कम मेन्युअल काम होगा और गल्तियां होने की संभावना भी बहुत कम रह जाएगी। इस प्रक्रिया से भ्रष्टाचार और कालेधन की समस्या हमारे देश से दूर हो जाएगी। जीएसटी की अब तक की यात्रा जीएसटी की अब तक की यात्रा आसान नहीं रही है। राजनीतिक दलों की आपसी रस्साकशी से कई बार तो लगा कि इसकी गाड़ी अटक कर रह जाएगी। वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने वर्तमान करों को हटाकर वस्तु एवं सेवा कर कानून (जीएसटी) का मॉडल तैयार करने के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की सशक्त समिति (एम्पावर्ड कमेटी) बनाई। पश्चिम बंगाल के वित्त और एक्साइज मंत्री असीम दासगुप्त उस समिति के अध्यक्ष थे। यूपीए सरकार के वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आर्थिक सुधार की इस मुहिम को आगे बढ़ाया। वर्ष 2006-07 के बजट में उन्होंने घोषणा कि जीएसटी कानून को एक अप्रैल, 2010 से लागू किया जाएगा। फिर राज्यों के वित्त मंत्रियों की एक समिति बनी और उस समिति ने जाने-माने अर्थशास्त्री केलकर की अध्यक्षता में एक संयुक्त कार्य दल बनाया। गहन चर्चा और विचार-विमर्श के बाद जीएसटी कानून का मसौदा तैयार हुआ, पर आर्थिक सुधार की यह बड़ी पहल राजनीतिक भंवर से बाहर न आ सकी। सोलहवीं लोकसभा में इस मुद्दे पर फिर मंथन हुआ। राज्यों की चिंताओं का समाधान यह निकाला गया कि जिन राज्यों को संभावित राजस्व हानि होगी, उन्हें केंद्र सरकार मुआवजा देगी। इससे राज्यों में सहमति बनी। विगत 29 मार्च को लोकसभा और पांच अप्रैल को राज्यसभा ने चार जीएसटी कानून पारित किए। एक कर का मतलब यह नहीं है कि आम जरूरत की वस्तुओं, सेवाओं और विलासिता की वस्तुओं पर टैक्स की एक ही दर होगी। बहरहाल, अब जब जीएसटी जमीन पर उतरने जा रहा है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे देश की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक जीएसटी लागू होने से देश की जीडीपी में एक से पौने दो फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है। दरअसल, विभिन्न राज्यों के बीच जिस तरह करों में असंतुलन आ गया था उसे संभालने के लिए जीएसटी जैसी प्रणाली की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी। इसके लागू होने के बाद उत्पाद शुल्क, सेवा कर, राज्य वैट, मनोरंजन कर, प्रवेश शुल्क, लग्जरी टैक्स जैसे कई सारे टैक्स खत्म हो जाएंगे और इनकी जगह देशभर में एक समान कर प्रणाली लागू हो जाएगी। जीएसटी की चार दरें होंगी गौरतलब है कि जीएसटी की चार दरें होंगी और इसकी अधिकतम सीमा 28 फीसदी होगी। इसके अलावा लग्जरी सामान पर अलग से सेस भी लगेगा। इसके तहत करों के कई स्लैब रखे गए हैं। खाने-पीने की चीजें और पेट्रोलियम पदार्थ 0 फीसदी टैक्स स्लैब में आएंगे। दूसरा टैक्स स्लैब 5 फीसदी का होगा, तीसरा 12-18 फीसदी का होगा जबकि अधिकतम टैक्स स्लैब 28 प्रतिशत का होगा। मकसद यह है कि साधारण आदमी की चीजें सस्ती पड़ें और विलासिता के सामान महंगे हों और उनसे सरकार को ज्यादा राजस्व हासिल हो। बहरहाल, इस नई व्यवस्था को अपनाने में शुरू में कुछ समस्याएं भी आएंगी। नए टैक्स स्ट्रक्चर को समझने में परेशानी आ सकती है। फिर उसके अनुरूप सॉफ्टवेयर हर जगह अपलोड करने और दूसरी तैयारियों की भी आवश्यकता होगी। जीएसटी काउंसिल को देखना होगा कि आवश्यक वस्तुओं के दाम न बढ़ें। इसके साथ ही उसे लोगों को सरल रूप में समझाना होगा कि जीएसटी के तहत कौन-कौन सी चीजें कितने में मिल रही हैं। जीएसटी को लेकर मोदी सरकार काफी गंभीर रही है। उम्मीद करें कि वह इसमें कोई अनियमितता नहीं आने देगी। केंद्र सरकार जोरशोर से जीएसटी को अंतिम तौर पर कानून बनवाने में लग गई है जिसे देश के आर्थिक विकास के लिए सपाट रेसट्रैक माना जा रहा है। यह सही है कि बीसियों तरह के सामानों पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों के कारण हर व्यवसायी का काफी समय सेवा, उत्पाद, बिक्री, चुंगी आदि करों को देने में लगता है। ऐसे में जीएसटी कानून का सपना पूरा हो गया तो देश को एक करने में आसानी होगी और सामान इधर से उधर ले जाने में कठिनाइयां काफी कम हो जाएंगी। किसी को लाभ, किसी को हानि जीएसटी का जो सपना दिखाया जा रहा है उस में रिश्वत की गुंजाइश बहुत कम रह जाएगी। हर उत्पाद पर हर स्तर पर जीएसटी लगेगा और आखिरी उपभोक्ता ही असल में इसे देगा। बाकी सबके बीच में उस का क्रैडिट मिलता चला जाएगा यानी उसके पिछले सेवा देने वाले या उत्पादक को जिसने दिया है वह उसे वापस मिलता जाएगा। यह दिखने में चाहे आसान लगे, लेकिन इसे ठोस शक्ल देना आसान नहीं है। पहली बात जो आड़े आ रही है वह यह है कि कुछ राज्यों में केवल उपभोक्ता ही हैं। उन्हें जीएसटी का लाभ मिलेगा। दूसरे राज्यों में उत्पादक ज्यादा हैं। वहां की राज्य सरकारों को कम पैसा मिलेगा अगर उनका बनाया गया सामान दूसरे राज्यों में चला गया। हालांकि, केंद्र सरकार उसकी भरपाई करने की नीति बना रही है। दूसरी समस्या यह है कि किन व्यवसायियों पर जीएसटी लगे। बड़े तो खैर इसे अपना लेंगे और कागजी कार्यवाही कर लेंगे पर छोटों पर नहीं लादा गया तो कैसे होगा। अंतिम कर कौन देगा। 10 लाख या 20 लाख रुपए के टर्नओवर तक का धंधा करने वालों को छोड़ देने की बात हो रही है पर इस पर सभी राज्य एकमत हों, जरूरी नहीं है। एक और समस्या विलासिता की चीजों पर अतिरिक्त कर की है कि शराब, सिगरेट, तंबाकू पर कितना कर लगे। वैसे ही, अधिकतम कर कितना हो, उस पर ही विवाद रहा है। कांगे्रस चाहती थी कि यह सीमा संविधान में दर्ज कर दी जाए और 15-16 प्रतिशत से ज्यादा न हो। पर भाजपा सरकार अपने हाथ बंधने नहीं देना चाहती थी। यह न भूलें कि उसी कांगे्रस की सरकार ने कुछ सेवाओं पर 2 प्रतिशत सेवा कर शुरू किया था जो अब 15 प्रतिशत हो गया है। बहरहाल, जीएसटी इस देश का उद्धार करेगा, यह सपना ही है। देश में उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कामगारों और व्यवसायियों में देश के प्रति जो उत्साह व कर्मठता होनी चाहिए, वह कहीं नहीं दिखती और जीएसटी कोई जादुई छड़ी नहीं, कि वह इसे ला दे। देश उसी तरह से चलता रहेगा। न रिश्वतखोरी कम होगी, न मुनाफाखोरी और न ही करचोरी। नई विदेशी तकनीक के कारण जो उत्पादकता बढ़ेगी, उसका लाभ अवश्य मिलेगा पर उसके लिए विदेशी वैज्ञानिकों को शाबाशी दें, देशी नेताओं और नौकरशाहों को नहीं। करों और कानूनों का जंजाल इस देश को सदियों से घुन की तरह खा रहा है और यह घुन आसानी से समाप्त नहीं होने वाला। हालांकि संसद के दोनों ही सदनों ने जीएसटी बिल को मंजूरी के बाद अब जीएसटी समिति जीएसटी रेट, टैक्सेज और बाकी कम्पनशेसन बिल और अन्य बातों पर अन्तिम निर्णय ले रही है। इनके फाइनल होने के बाद जीएसटी बिल को दोनों सदनों में वापस पेश किया जाएगा। यहां से पारित होने के बाद यह बिल देश के राष्ट्रपति के समक्ष पेश किया जाएगा और उनके हस्ताक्षर के बाद यह जीएसटी बिल जीएसटी कानून बन जाएगा। सरकार जीएसटी को 1 जुलाई से लागू करने की तैयारियां कर रही है। इसी के चलते सरकार ने सुझावों के लिए जीएसटी ड्राफ्ट, कुछ रजिस्ट्रेशन, रिटर्न, चालान फॉम्स जारी किए हैं। पेट्रोलियम, बिजली और शराब जीएसटी के दायरे से बाहर पेट्रोल-डीजल की कीमतें आज अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं। यही हाल शराब का है। जीएसटी लागू होने के बाद भी फिलहाल ऐसा जारी रहेगा। क्योंकि राज्यों की डिमांड पर केंद्र सरकार शराब को जीएसटी से बाहर रखने पर राजी हो गई है जबकि पेट्रो पदार्थों पर उसने निर्णय लिया है कि ये रहेंगे तो जीएसटी के अंदर लेकिन इन पर राज्य पहले की तरह ही टैक्स वसूलते रहेंगे। यानी पेट्रोल, डीजल और एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में राज्यों में जो अंतर देखने को मिलता है वो मिलता रहेगा। ऐसे में उपभोक्ताओं के लिए यह सुखद नहीं है। क्योंकि मध्यप्रदेश सहित अधिकांश राज्यों में उपभोक्ता पेट्रोलियम पदार्थों और बिजली पर लगने वाले कर से परेशान हैं। ढेर सारे टैक्स के बदले एक टैक्स हम क्यों जीएसटी को कह रहे हैं एक देश एक टैक्स। क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप सामान खरीदते हैं तो कितने प्रकार के टैक्स देने पड़ते हैं और कितने सारे टैक्स देने पड़ते हैं। नहीं ना, लेकिन जब आप ये जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे। मिसाल के तौर पर जब कोई सामान फैक्टरी से बनकर निकलता है तो उस पर सबसे पहले चुकानी पड़ती है एक्साइज ड्यूटी, जो कंपनी आखिरकार आपकी जेब से वसूलती है। वहीं, अगर सामान बनाने के लिए कंपनी ने किसी भी प्रकार की सेवाएं ली हैं तो फिर सर्विस टैक्स भी चुकाना पड़ता है। टैक्स का सिलसिला यही नहीं थमता है। जैसे ही सामान एक राज्य से दूसरे राज्य जाता है तो सबसे पहले आपको देना पड़ता है एंट्री टैक्स। साथ ही जब आप उस राज्य में प्रवेश कर जाएंगे तो वहां चुकाना पड़ता है वैट, जिसे सेल्स टैक्स भी कहा जाता है। इन दोनों टैक्स के अलावा कई मामलों में आपको अलग-अलग तरह के सेस यानि सरचार्ज भी देने पड़ते हैं। टैक्स का भारी भरकम बोझ यही हल्का नहीं होता, अभी आगे और टैक्स देने बाकी हैं। अगर आपके सामान का रिश्ता नाता एंटरटेनमेंट से है, तो फिर आपको एंटरटेनमेंट टैक्स भी चुकाना पड़ता है। कई बार आपको लक्जरी टैक्स भी चुकाना पड़ता है। इसके अलावा कुछ राज्यों में सामान की खरीद पर आपको परचेज टैक्स भी चुकाना पड़ता है। जीएसटी युग में ऑल इंडिया परमिट वाले ट्रांसपोर्टरों को फायदा होगा लेकिन स्टेट परमिट वालों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। नई व्यवस्था के तहत वैसे ट्रांसपोर्टर फायदे में रहेंगे जिनके पास ऑल इंडिया परमिट है। दूसरी तरफ, अगर चुनिंदा स्टेट की परमिट वाले ऑल इंडिया परमिट लेने जाएंगे तो उन्हें भारी भरकम रकम फीस के तौर पर ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट को चुकानी होगी। कारोबार का सालाना टर्नओवर 20 लाख रुपये है तो जीएसटी में रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं है। लेकिन रजिस्ट्रेशन करा लेना ही बेहतर है। वरना सामान का खरीदार मुंह मोड़ सकता है। क्योंकि अगर कोई कंपनी ऐेसे कारोबारी से सामान खरीदती है जो जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड नहीं है तो उसे इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा। यानी आपसे सामान खरीदने वाले पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा। इससे जीएसटी को लेकर व्यापारियों में भी बैचेनी शुरू हो गई है। इसके लिए ट्रेनिंग सेशन आयोजित किए जा रहे हैं। इसके लिए दिल्ली में भी ट्रेडर्स एसोसिएशन ने एक कार्यक्रम रखा ताकि जीएसटी को समझा जा सके। जीएसटी व्यापार करने का नया तरीका है। जिसको लेकर 6 करोड़ व्यापारियों के मन में कई तरह के सवाल खड़े हुए है लेकिन बिना टेक्नोलॉजी के जीएसटी को समझना मुश्किल है। ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि जब जीएसटी पूरी तरह से प्रभावी हो जाएगी तब इसकी न्यूनतम सीमा 12 फीसदी और अधिकतम 22 फीसदी के आस पास होगी। इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि सर्विस टैक्स की सीमा को 22 फीसदी तक बढ़ा दिया जाए। इसी वजह से सरकार अपर लिमिट को घोषित नहीं कर रही है। जब सर्विस टैक्स को 12.36 फीसदी से 14 फीसदी किया गया तब किसी ने आपत्ति नहीं की। बाद में इसे स्वच्छ भारत सेस के नाम पर .5 फीसदी और बढ़ा दिया गया। इस तरह लगातार धीर-धीरे सर्विस टैक्स को बढ़ाकर उसका भार उपभोक्ताओं के ऊपर डाला जा रहा है और उसे इसका अहसास नहीं होने दिया जा रहा। सारा बोझ उपभोक्ता पर ही वित्त मंत्री अरुण जेटली को हमने बार-बार यह कहते हुए सुना है कि प्रस्तावित जीएसटी बिल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक मोड़ सिद्ध होगा। इससे विकास की दर में इजाफा होगा या नहीं यह कहना अभी थोड़ा मुश्किल है लेकिन एक बात जरूर कही जा सकती है कि इससे व्यापार के लिए एक सकारात्मक माहौल बनेगा। इससे व्यापार को राहत तो मिलेगी यह सभी जानते हैं। लेकिन जीएसटी के नाम पर हो रही पूरी टैक्स सुधार की कवायद का बोझ उपभोक्ता को उठाना पड़ेगा। और इसका सबसे बड़ा लाभार्थी भारतीय उद्योग जगत बिना कुछ खर्च किए आसानी से बच निकलेगा। तमाम बड़े देशों, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में जीएसटी लागू करने का नतीजा महंगाई में तेज बढ़ोत्तरी के रूप में देखने को मिला। यह कहना कि कीमतें बाद में कम हो जाएंगी, इन देशों के आधार पर कह सकते हैं कि यह सिर्फ आर्थिक जुमलेबाजी है।
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