03-Mar-2017 11:14 AM
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ब्लास्ट की खबर आई है। न्यूज रूम में अचानक गहमागहमी बढ़ गई है। हत्या और बलात्कार की खबरों के अभाव में आज वैसे ही खबरों का अकाल था। संपादक जूझ रहे थे कि हेडलाइंस क्या हों। माहौल में एक ठंडापन पसरा हुआ। सब शांत। कोई बदन ऐंठ रहा है, कोई अपने फेफड़े फूंकने के लिए नीचे स्मोकिंग जोन में चला गया है। कुछ लोगों को इन दिनों ब्लॉग्स का बुखार चढ़ा हुआ है, वो ब्लॉग चर्चा में मशगूल हैं। लेकिन इस हमले का शुक्रिया। सब अचानक हरकत में आ गए हैं। न्यूजरूम में शोर छा गया है। सब चिल्ला रहे हैं। आउटपुट वाले भी, इनपुट वाले भी, प्रोडक्शन वाले भी। चैनल के स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज की लाल-लाल पट्टियों ने एक चौथाई जगह घेर ली है। रिपीट प्रोग्राम को क्रैश करके एंकर ने मोर्चा संभाल लिया है। गले में कितनी जान है, इसके इम्तहान का वक्त आ गया है। हेडलाइंस का संकट खत्म हो गया है। चार हेडलाइंस इसी धमाके से आ जाएंगी। प्रधानमंत्री ने इस हमले की निंदा कर दी है। सुपर प्रधानमंत्री ने इसे आतंकवादियों की कायराना हरकत करार दया है। कह दिया है कि उनके मंसूबे कामयाब नहीं होने पाएंगे। गृहमंत्री का बुद्धिमत्तापूर्ण बयान भी आ गया है। उन्होंने कह दिया है कि शुरुआती संकेतों के मुताबिक इसके तार सीमा पार से जुड़े हैं। अभी थोड़ी देर में मंत्री-अफसर सब घटना स्थल की ओर कूच कर जाएंगे। मरने वालों के परिवारों के लिए मुआवाजे का एलान भी कुछ ही देर में हो जाएगा। घायलों को भी पचीस-पचास हजार रुपये मिल जाएंगे। हम लोग आतंकवाद पर यों ही हाय-तौबा मचाते रहते हैं। इसे समस्या की तरह नहीं, बल्कि एक वरदान की तरह देखना चाहिए। कहीं कोई धमाका होता है तो लगता है कि देश में सब हरकत में हैं। कहीं कोई काम हो रहा है। देश की चिंता करने वाले लोग अभी जिंदा हैं।
आतंकवाद से सबको फायदा है। न्यूज चैनलों को फायदा है। अखबारों को फायदा है। आज की तारीख में मीडिया के लिए एक बड़े धमाके से बड़ी खबर कोई नहीं हो सकती। आप इस पर घंटों नहीं, कई दिनों तक खेल सकते हैं। घटना स्थल की तस्वीरें, अस्पताल की तस्वीरें, रोते-पीटते परिजनों की तस्वीरें, घायलों की मदद के लिए बढ़े लोगों की तस्वीरें, नेताओं और अफसरों के दौरे की तस्वीरें, तमाम नेताओं के बयान, मुआवजे का एलान- ये सब आपको पूरे दिन का भरपूर मसाला दे देते हैं। दूसरे दिन आप पीडि़त परिवारों की त्रासदी दिखाकर उसके मानवीय पहलुओं पर उंगली रख सकते हैं। इसके बाद मुआवजा मिलने में परेशानी की खबरें हैं। देश भर में आतंकवाद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की खबरें हैं। जैसे-जैसे दिन-महीने बीतेंगे तो जांच में ढिलाई, संदिग्धों से पूछताछ और अदालती कार्यवाहियां खबर बनेंगी। साल बीत जाएगा तो बरसी भी खबर बनेगी। एक धमाके में कितना कुछ है।
...और सिर्फ मीडिया को ही क्यों, इससे नेताओं को फायदा है। अधिकारियों को फायदा है। सत्तारूढ दल को फायदा है। विपक्षी दल को फायदा है। आतंकवाद का चूल्हा गरम हो, तो राजनीति की रोटियों को पकाने के लिए इससे अच्छी आंच नहीं मिल सकती। इससे हिंदू वोटों की राजनीति करने वाले को भी फायदा है। कोई आतंकवादी पकड़ा जाएगा, तो यह हायतौबा मचाने के लिए बड़ा ही उपयुक्त मौका रहता है कि देखो-देखो, कैसे चुन-चुनकर मुसलमानों को पकड़ा जा रहा है और कैसे इस देश के हिंदू तुम्हें हमें शक की निगाह से देखते हैं।
आतंकवाद से भारत की सरकार को फायदा है। आतंकवाद से पाकिस्तान की सरकार को फायदा है। आतंकवाद है तो बाकी सारे मुद्दे गौण हैं। आतंकवाद है तो न भूख है, न गरीबी, न बेरोजगारी। आतंकवाद है तो न कोई बीमार है, न कोई अनपढ़। न बिजली-पानी का संकट है, न सड़कों की हालत खस्ता है। दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ बयान देते रहें। हिंदू-मुसलमान के खिलाफ बोलते रहें, मुसलमान हिंदू के खिलाफ बोलते रहें। देश चलता रहेगा। सरकारें चलती रहेंगी। न बगावत होगी, न आंदोलन होगा।
आतंकवाद है तो अमेरिका को फायदा है। ब्रिटेन को फायदा है। उन्हें लडऩे और लड़ाने की वजहें मिलती हैं। इराक और अफगानिस्तान पर हमला करने की वजहें मिलती हैं। हथियार बेचने की वजहें मिलती हैं। वो तेल मिलता है, जिससे अर्थव्यवस्था के जंग खाए पुरजों में चिकनाई आती है। पूरी दुनिया पर उनकी दादागिरी कायम होती है। आतंकवाद है तो ओसामा बिन लादेन, सद्दाम हुसैन सब हीरो हैं। कोई जीकर हीरो है, कोई मरकर हीरो है। आतंकवाद है तो दुनिया में मानवाधिकारवादियों की भी पौ-बारह हैं। आतंकवादियों पर पुलिस और कानून के जुल्म को उठाने और उनसे हुई मुठभेड़ों पर सवाल खड़े करने से उनकी दुकान धकाधक चलती है। बुद्धिजीवियों का अटेंशन मिलता है। उन पर बड़े-बड़े लेख लिखे जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की झड़ी लग जाती है।
आतंकवाद है तो आतंकवादियों को फायदा है। कितने बेरोजगार नौजवानों के परिवार पलते हैं। बेरोजगारी के आलम में नौकरियाँ मांग रहें आम युवकों पर या अपनी कोई समस्या लेकर आंदोलन कर रहे आम लोगों के लिए सरकारों के पास लाठी-गोलियां हैं, लेकिन आतंकवादियों को बातचीत की मेज पर लाने के लिए बड़े-बड़े देशों की सरकारें तरसती हैं। गुपचुप वार्ताएं होती हैं, खुली वार्ताएं होती हैं। सरकारों से समझौता करके नेता बन जाने का मौका भी रहता है। उनकी इस बात के लिए मन्नत होती है कि हथियार छोड़कर मुख्य धारा में आ जाओ। लोकतंत्र की बयार है। चुनाव लड़ो। जीतो और राज करो।
-अभिरंजन कुमार