मीडिया पर आपातकाल
03-Mar-2017 10:34 AM 1234780
जैसा कि पहले ही कयास लगाए जा रहे थे ठीक उसी तरह अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हरकते कर रहे हैं। पूरी दुनिया को अपने रोज-रोज के बयानों से परेशान करने वाले ट्रंप ने अब अपने ही देश की मीडिया की आवाज पर पाबंदी लगाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। न सिर्फ अमरीका बल्कि पूरी दुनिया के लिए। यही नहीं अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में कई मीडिया ग्रुप के प्रवेश पर रोक लगा दी है। ट्रंप को सत्ता में आए अभी चंद दिन ही हुए हैं और वे अनेक मोर्चों पर विवादों में घिरते जा रहे हैं। ये सही है कि अमरीकी मतदाताओं ने ही ट्रंप को राष्ट्रपति बनाया है लेकिन अगले चार साल तक उन्हें अपने काम और व्यवहार से अपनी छवि बनानी होगी। ट्रंप जिस तरह काम कर रहे हैं उससे लगता नहीं कि वे अमरीका को और मजबूत बनाने में कामयाब हो पाएं। ट्रंप को चाहिए कि वे लोकतंत्र की मर्यादाओं के अनुरूप व्यवहार करें ताकि लोकतंत्र और मजबूत बन सके। दुनिया में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का दावा करने वाले अमरीका में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था। लेकिन इस लोकतांत्रिक देश में ट्रंप तानाशाह की तरह काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने डीएनएन और न्यूयार्क टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित मीडिया ग्रुप पर रोक लगा दी है। इन प्रतिष्ठानों पर रोक लगाने का सीधा अर्थ मीडिया की आवाज को दबाने जैसा है। राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान भी ट्रंप की मीडिया से तनातनी चलती रही थी। ट्रंप का मानना है कि मीडिया का एक वर्ग उनकी छवि को धूमिल करने के लिए फर्जी खबरें चला रहा है। ट्रंप ही नहीं दुनिया के तमाम नेताओं को वही खबरें ठीक लगती हैं, जो उनके हित में हों। कोई मीडिया गु्रप यदि फर्जी खबर दिखा या छाप रहा है तो उसका फैसला दर्शक और पाठक कर देंगे। कोई भी मीडिया ग्रुप फर्जी खबरें चलाकर अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता। आज के दौर में किसी सच खबर को छिपाना जितना कठिन है उतना ही कठिन किसी फर्जी खबर को सच साबित करना भी है। लोकतंत्र में न्यायपालिका और कार्यपालिका के साथ-साथ मीडिया की भी अपनी भूमिका है। ट्रंप या कोई दूसरे नेता मीडिया की खबरें पसंद नहीं करते तो इसका ये मतलब नहीं कि वे मीडिया पर रोक लगा दें। दुनिया के दूसरे अनेक देशों में चुनी हुई सरकारों ने मीडिया की आवाज को कुचलने का प्रयास पहले भी किया है लेकिन कामयाबी नहीं मिली। सरकार और मीडिया साइकिल के दो पहियों की तरह से हैं। जिस तरह दोनों पहियों बिना साइकिल नहीं चल सकती, उसी तरह लोकतंत्र को चलाने के लिए भी दो पहियों की जरूरत है। मीडिया पर आपातकाल लगाने से पहले अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड अपने कई फैसलों से देश-विदेश को चौंका चुके हैं। वे अप्रवासियों को लेकर अपने एजेंडे पर अड़े हुए हैं। ट्रंप के हालिया कदम से लगभग तीन लाख अमरीकी-भारतीयों पर अमरीका निकाले की तलवार लटक गई है। भारतीय कामगारों के अमरीका में बेहतर भविष्य की तलाश के सपने ट्रंप के हालिया आदेश से दु:स्वप्न बन सकते हैं। अमरीका में प्रवासियों पर डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की सख्ती से वहां बिना वैध दस्तावेज के रह रहे करीब सवा करोड़ प्रवासियों के निकाले जाने का खतरा बन गया है जिनमें करीब तीन लाख लोग अमरीकी-भारतीय समुदाय के हैं। डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी ने साफ कहा है कि विभाग के अधिकारियों को उन विदेशियों को गिरफ्तार करने का हक है जिन पर इमिग्रेशन से जुड़े कानूनों का उल्लंघन करने का शक है। यूं कहा जाना चाहिए कि अमरीका ने इस बार अवैध प्रवासियों पर ज्यादा सख्ती की है। सबसे बड़ा संकट उन लोगों पर आने वाला है जो दो साल से कम अवधि से अमरीका में रह रहे हैं। ट्रंप प्रशासन के ऐसे फैसलों से पूरे विश्व में दहशत का माहौल है। हालांकि फरवरी के अंतिम दिन ट्रंप ने भारतीय इंजीनियर की हत्या को लेकर नस्लीय हमलावरों के खिलाफ जिस तरह से बोले हैं उससे वहां रह रहे विदेशियों को थोड़ी बहुत राहत मिली है। मीडिया के बचाव में उतरे बुश इधर अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश मीडिया के बचाव में उतर गए हैं। उन्होंने कहा है कि लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस जरूरी है। बुश का कहना है कि सत्ताधारियों की जिम्मेदारी तय करने के लिए स्वतंत्र प्रेस की जरूरत है। राष्ट्रपति ट्रंप पद संभालने के बाद से कई मीडिया संस्थानों से उलझ चके हैं। उन्होंने अपने बारे में आई नकारात्मक रिपोर्टों को फर्जी कहा है। बुश ने ये भी कहा कि डोनल्ड ट्रंप के सहयोगियों और रूस की सरकार के बीच संबंधों के सवालों का जवाब भी अमरीका के लोगों को मिलना चाहिए। बुश ने कहा, सत्ता की लत लग सकती है और ये बहुत खतरनाक हो सकती है, ऐसे में मीडिया का सत्ता का दुरुपयोग करने वालों को जिम्मेदार ठहराना जरूरी है। राष्ट्रपति ट्रंप ने मीडिया के एक वर्ग को अमरीका के दुश्मन की उपाधि दी है। बुश ने कहा कि उन्होंने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को ये समझाने की कोशिश की थी उन्हें भी स्वतंत्र मीडिया की जरूरत है। -विकास दुबे
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