16-Feb-2017 06:43 AM
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मनुष्य को मानवता सिखाने वाली सब धर्मों का सारभूत ग्रंथ, सभी समस्याओं का समाधान, अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की साधना है गीता। जीवन जीने की कला है गीता, साक्षात ईश्वर के मुख से निकली अमृत वाणी है श्रीमद् भगवत गीता।
ये तो सब जानते है, कि भगवद् गीता हिन्दुओं का प्रमुख ग्रंथ है। गौरतलब है, कि आज से लभगभ 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने यह ज्ञान अपने प्रिय सखा अर्जुन को दिया था। साथ ही गीता में कर्म, अर्थ, और जीवन जीने का अद्भुत ज्ञान है। वही गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें बहुत सी सीखें भी देते हैं और साथ ही हमें हमारी कमिया भी बताते हैं। दरअसल गीता को द्वापर युग के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने ही सुनाया था, पर तब उन्होंने कलियुग के लिए भी कुछ बाते कहीं थी, और उनकी यह अद्भुत बाते आज सौ प्रतिशत सच भी हो रही हैं। तो यहां जानिए आखिर ऐसी कौन सी दुर्लभ बातें है, जो देवेश्वर कृष्ण ने बताई थी।
ततश्चानुदिनं धर्म: सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन् नक्ष यत्यायुर्बलं स्मृति: ॥
इस श्लोक के मुताबिक कलियुग में अर्थ धर्म, सत्यवादिता, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवन की अवधि, शारीरिक शक्ति और स्मृति सभी दिन पर दिन घटती जाएगी।
वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदय: ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां कारणं बलमेव हि ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि कलियुग में जिस व्यक्ति के पास जितना धन होगा, वो उतना ही गुणी माना जाएगा और कानून, न्याय केवल एक शक्ति के आधार पर ही लागू किया जाएगा।
दाम्पत्येऽभिरुचिर्हेतु:
मायैव व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रति:
विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥
इस श्लोक के अनुसार इस युग में पुरुष स्त्री बिना विवाह के ही एक दूसरे में रूचि के अनुसार साथ रहेंगे। वही व्यापार की सफलता छल पर निर्भर करेगी। कलयुग में ब्राह्मण सिर्फ एक धागा पहनकर ब्राह्मण होने का दावा करेंगे।
लिङ्गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं पाण्डित्ये चापलं वच: ॥
इसके अनुसार जो मनुष्य घूस देने या धन खर्च करने में असमर्थ होगा। उसे अदालतों से सही न्याय नहीं मिल सकेगा। साथ ही जो व्यक्ति बहुत चालाक और स्वार्थी होगा वो ही इस युग में बहुत विद्वान माना जाएगा।
क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।
त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायु: कलौ नृणाम्।।
इसका अर्थ ये है, कि इस युग में लोग भूख प्यास और कई तरह की चिंताओं से दुखी रहेंगे। कई तरह की बीमारियां उन्हें हर समय घेरे रहेगी। साथ ही कलियुग में मनुष्य की उम्र केवल बीस या तीस वर्ष की ही होगी।
दूरे वार्ययनं तीर्थं लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थ: सत्यत्वे धाष्ट्र्यमेव हि ॥
इस श्लोक के अनुसार लोग दूर के नदी और तालाबों को तो तीर्थ मानेंगे, लेकिन अपने पास रह रहे माता पिता की निंदा करेंगे। इसके इलावा सिर पर बड़े-बड़े बाल रखना ही सुंदरता मानी जायेगी और केवल पेट भरना ही लोगों का लक्ष्य होगा।
अनावृष्ट्या विनङ्क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिता:
शीतवातातपप्रावृड्
हिमैरन्योन्यत: प्रजा: ॥
इसके अनुसार कलयुग में कभी बारिश नहीं होगी जिससे सूखा पड़ जाएगा। साथ ही कभी कड़ाके की सर्दी पड़ेगी तो कभी भीषण गर्मी हो जायेगी। तो कभी आंधी आएगी तो कभी बाढ़ आ जाएगी। इन परिस्तिथियों से लोग परेशान होंगे और नष्ट होते जाएंगे।
अनाढ्यतैव असाधुत्वे
साधुत्वे दंभ एवं तु ।
स्वीकार एवं चोद्वाहे
स्नानमेव प्रसाधनम् ॥
इस युग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा वो अधर्मी, अपवित्र और बेकार माना जाएगा। वही इस युग में विवाह दो लोगों के बीच बस एक समझौता होगा और लोग बस स्नान करके समझेंगे कि वो अंतरात्मा से शुद्ध हो गए हैं।
दाक्ष्यं कुटुंबभरणं
यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ।
एवं प्रजाभिर्दुष्टाभि:
आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥
इस श्लोक के अनुसार धर्म कर्म के काम केवल लोगों के सामने अच्छा दिखने और दिखावे के लिए ही किए जाएगे। पृथ्वी भ्रष्ट लोगों से भर जाएगी और लोग सत्ता हासिल करने के लिए एक दूसरे को मारेंगे।
आच्छिन्नदारद्रविणा
यास्यन्ति गिरिकाननम् ।
शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजना: ॥
इस श्लोक के मुताबिक अकाल और अत्याधिक करों के कारण परेशान लोग घर छोड़ कर सड़कों और पहाड़ों पर रहने को मजबूर हो जाएंगे। साथ ही पत्ते, जड़, मांस, जंगली शहद, फूल और बीज तक खाने को मजबूर हो जाएंगे।
श्रीमद भगवत गीता दुनिया के चंद ग्रंथों में से एक है जो आज भी सबसे ज्यादा पढ़ी जाती हैं और जीवन पथ पर कर्मों और नियमों पर चलने की प्रेरणा देती हैं। गीता हिन्दुओं में सर्वोच्च मानी जाती है, वहीं विदेशियों के लिए आज भी यह शोध का विषय है। इसके 18 अध्यायों के करीब 700 श्लोकों में हर उस समस्या का समाधान मिल जाता है जो कभी न कभी हर इंसान के सामने खड़ी हो जाती है। यदि हम इसके श्लोकों का अध्ययन रोज करें तो हम आने वाली हर समस्या का हल बगैर किसी मदद के निकाल सकते हैं।
-ओम