02-Feb-2017 09:46 AM
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19 जनवरी 1990 पंडितों के लिए सबसे भयानक दिन था, सवाल ये है कि हमारा हक हमसे छीना गया, किसने हमें हमारा हक वापस दिलवाया? आज मैं अपने समाज से ही कुछ सवाल करना चाहती हूं, हाँ!! मुझे आतंकवादियों से डर लगता है, पर असल में आतंक कौन फैला रहा है, ये जानना बहुत जरूरी है।
मेरा जन्म 20 मई 1990 को हुआ, ये बताना इसीलिए आवश्यक हो जाता है ताकि सब ये समझें कि मुझे सिर्फ खुद को अपने तक रखना पसंद नहीं है। मुझे औरों के दुख से दुख होता है इसीलिए शायद चिल्लाती हूं। हम कश्मीर छोड़कर आए हमने कई राजनीतिक संस्थान बना दिए, विस्थापित लोग विभाजित हो गए। कुछ लोग खुद ही नेता बन गए, सारे फैसले सरकार के साथ बैठकर खुद करने लगे और इस बीच
पिसा तो आम कश्मीरी पंडित। कई पंडितों ने ये भी कहा कि इन्होंने कश्मीर वापसी के नाम से हमसे पैसा मांगा पर इसे वह पंडित अब लूट समझते हैं।
पिछले 28 साल से इन संस्थाओं ने जो भी कुछ किया है मैं उसके लिए आभारी हूं पर इनके कार्यक्रमों से एक आम कश्मीरी पंडित को क्या मिलता है?? अगर घर वापसी ही इनका संदेश है तो ये खुद आज तक वहां क्यों नहीं गए? लेकिन इनसे सवाल करना भी गलत हो जाता है। कश्मीरी पंडित समाज हर ओर से मारा ही जा रहा है, जिन नेताओं को हम सम्मानित करते हैं, वो आखिर क्या करते हैं? जिन लोगों को ये संस्थाएं सम्मानित करती हैं उनमें से कितने ऐसे लोगों ने उन लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचाया जिन्होंने नर्स का रेप किया, जिन्होंने एक पंडित औरत को ब्लेड के ऊपर फैंक कर उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जो संस्थाएं पंडितों की सेवा करने का दावा करती है वो तो असली मुद्दा ही भूल गयीं। 28 साल बाद भी यही संस्थाएं है जो च्ढ्ढ श्वङ्गढ्ढस्ञ्जज् का नारा हर 19 जनवरी को लगाती हैं। 14 से 19 तक हम (दुकानें) शोर मचाते हैं फिर सो जाते हैं कश्मीर के एक नामी कवि जो मुस्लिम है, मैंने कहीं सुना कि उन्होंने पंडितों के दर्द पर बहुत अच्छा लिखा है। आदत सवाल पूछने की है तो इनसे भी मैंने एक सवाल किया, मैंने पूछा कि अगर आपको इतना ही दर्द है तो आपने कितने पंडितों को अपने घर में जगह दी। तो इन्होंने मुझे ब्लॉक कर दिया। जो पंडित कश्मीर में अब भी रह रहे हैं उनकी सुरक्षा की कितनी संस्थाओं ने जिम्मेदारी ली?
बेहद दुख होता है कि ये मुद्दा सिर्फ 4 दिन का ही रह जाता है। जो संस्था सरकार से बात करने जाती हैं क्या वो पहले आम कश्मीरी की राय लेती हैं? क्या उस 80 साल की औरत से पूछती हैं कि उसका दर्द क्या है, कई कश्मीरी पंडितों ने बताया कि इन सभी संस्थाओं ने आम कश्मीरियों से भी पैसा लिया है, ये कही सुनी बातें है पर इस पर विचार करना भी आवश्यक है कि आखिर इन संस्थाओं को कार्यक्रम करने का पैसा कहां से आता है, क्योंकि पैसा तो इन्होंने मुझसे भी मांगा था लेकिन किस बात का वो नहीं समझ आता। अपनी ब्रांडिंग करने में लोग इतने व्यस्त हैं कि असली मुद्दा हम भूलते जा रहे हैं। हमने संस्थाएं खोलकर सिर्फ मंदिर और आश्रम बनाये, जो सबसे अच्छा कार्य है।
जिसकी आंखों में आस है वहां
जाने पर उसको क्या मिलेगा?
सवाल ये भी है कि जब बात कश्मीरियत की होती है और कश्मीरी युवा की होती है तो हर समय कश्मीरी मुसलमान की ही बात होती है, कश्मीरी पंडित की क्यों नहीं? सरकार भी मुसलमानों की बात करती है, समाज भी भड़क जाता है और कमाल तो ये है कि कुछ पंडित भी भड़क जाते हैं। सोचिए जिसकी आंखों में आस है वहां जाने पर उसको क्या मिलेगा? क्या गलत किया था इस समाज ने? पर पंडित समाज को ये समझना होगा कि इन दुकानों पर अपना समय बर्बाद कर उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा।
-नवीन रघुवंशी