माओवादी हिंसा में तेजी
01-May-2013 09:56 AM 1234775

पूर्वी महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में जब सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में 7 माओवादी मारे गए तो माओवादी हिंसा का मुद्दा एक बार फिर महाराष्ट्र में गरमा गया है। महाराष्ट्र में जंगली इलाकों में अब पुलिस और सुरक्षा बल भी जाने से कतराने लगे हैं क्योंकि माओवादियों ने यहां मजबूत ठिकाना बना लिया है जिसे तोडऩे में पुलिस नाकाम रही है। माओवादी जिस तरह से हत्या कर रहे हैं और आम आदमी में दहशत फैला रहे हैं उसके चलते आशंका है कि आने वाले दिनों में गढ़चिरौली ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के लगभग आधे जिले माओवादी हिंसा की चपेट में आ जाएंगे। माओवादियों ने शहरी इलाकों में कब्जा जमा लिया है और वहां से अपनी गतिविधियों को संचालित कर रहे हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों के पास खुफिया सूचनाएं हैं पर उनकी लाचारी यह है कि वे लोगों के बीच छुपे इन नक्सलियों को चुन कर मारने में सफल नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि कहीं-कहीं उन्हें जनसमर्थन भी हासिल है और कहीं पर उनकी दहशत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। महाराष्ट्र में माओवाद अब एक वास्तविक खतरा बन गया है और यदि इसका तालमेल सीमा पार के आतंकवाद से हो गया तो खुदा ही मालिक है।
केंद्र सरकार माओवादियों और भगोड़े आतंकियों के परिजन के रक्त के नमूने लेकर उनके डीएनए फिंगर प्रिंट का डाटा बैंक बनाने पर विचार कर रही है। तीन सालों से इस बिल के ड्राफ्ट पर काम चल रहा है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार यह बिल ला सकती है। बिल पास होने के बाद किसी भी अपराधी के रक्त का नमूना लेकर उसका प्रोफाइल तैयार करने की खुली छूट अधिकारियों को रहेगी। अमेरिका समेत कई देशों ने अपराधियों की डीएनए प्रोफाइल तैयार कर रखी है, ताकि उनकी शिनाख्ती सुनिश्चित की जा सके।  दरअसल माओवादियों-आतंकियों द्वारा नाम बदलना और असली पहचान को मरते दम तक गुप्त रखना सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है, इसलिए डीएनए डाटा बैंक बनाने पर विचार किया जा रहा है। सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय वे माओवादी हैं जिनके मुठभेड़ में मारे जाने का दावा सरकार करती है, लेकिन कुछ समय बाद उसी नाम से दूसरा माओवादी पैदा हो जाता है।
नाम न छापने की शर्त पर एनआईए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अब तक इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर के आतंकवादी ही ऐसा करते थे, लेकिन कुछ दिनों से माओवादियों ने भी ये रास्ता अपना लिया है। इससे उन पर कार्रवाई में दिक्कत आती है। ऐसे में अपराधियों की डीएनए प्रोफाइल तैयार करना जरूरी है, हालांकि यह काम राज्यों को करना होगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एकाधिक बार कह चुके हैं कि नक्सलवाद भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। देश के 180 जिलों यानी भारत के भूगोल का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा नक्सलवादियों या माओवादियों के कब्जे में है, जो देश के 10 राज्यों-उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश आदि तक फैला हुआ है। इस इलाके का नाम ही च्रेड कॉरिडोर पड़ गया है। कुल नक्सल प्रभावित इलाका 92 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। एक अनुमान के अनुसार कुल 30 हजार सशस्त्र नक्सली हैं जिसका नियमित कॉडर कम से कम 50 हजार लोगों का है। इनके पास आधुनिक आग्नेयास्त्र हैं और जगह-जगह बारूदी सुरंगों का जाल बिछाकर ये हमारे सुरक्षा बलों को छकाते रहते हैं। अप्रैल 2010 में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा इलाके में दो बड़े हमले किए थे, जिनमें केंद्रीय आरक्षी पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 76 लोग मारे गए थे। इन तमाम जिलों में रहने वाले ग्रामीण और आदिवासी नक्सलवादियों के रहमो-करम पर जीते हैं। उनकी समानांतर व्यवस्था है। नक्सलवादी लोगों से टैक्स वसूलते हैं, तथाकथित वर्ग शत्रुओं का सफाया करते हैं और अपनी अदालतें बैठाकर तथाकथित न्याय करते हैं। वे जंगल-वारफेयर में बार-बार अपनी श्रेष्ठता साबित कर चुके हैं और कई बार जेलों पर हमले करके अपने साथियों को छुड़ा ले गए हैं। इन्हीं नक्सलियों ने 2009 में लालगढ़ में पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार को अपनी ताकत दिखाई थी। कई बार नक्सलियों से हथियार रखने और बातचीत करने की अपीलें की गई हैं, मगर बात प्राय: नहीं बनती। अब तो चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग की विचारधारा से प्रेरणा लेकर नक्सलवादी खुलेआम सशस्त्र क्रांति की बात करने लगे हैं, हालांकि खुद चीन में आज माओ का नाम लेने वाले विलुप्त होते जा रहे हैं। इसे समझा जाना चाहिए। नक्सलवाद 1967 के आसपास पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी जिला दार्जिलिंग नामक स्थान से शुरू हुआ था, जब चारू मजूमदार और कनु सान्याल जैसे मार्क्सवादियों ने भूस्वामियों की जमीन उन्हें जोतने वाले खेतिहर मजदूरों को सौंपने की माँग की। उस समय सीपीएम मुख्यमंत्री अजय मुखर्जी (कांग्रेस) की सरकार में शामिल हो गई थी और ज्योति बसु उप-मुख्यमंत्री बनाए गए थे।
मगर सरकार ने करीब 1500 पुलिसकर्मियों को नक्सलवाड़ी में ड्यूटी पर लगा दिया। कनु सान्याल को उनके समर्थकों के साथ पकड़कर जेल में डाल दिया गया। अनेक समर्थक जंगलों में जा छिपे। यहीं से वंचितों, आदिवासियों, खेतिहर मजदूरों के हक में राज्य के खिलाफ हथियार उठाने का नक्सलवादी आंदोलन शुरू हुआ।
मुंबई से ऋतेन्द्र माथुर

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