02-Nov-2016 08:41 AM
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पाकिस्तान में सेना हमेशा से सरकार पर हावी रहती आई है। जब-जब उसे लगा कि, उसका कंट्रोल ढीला पड़ रहा है, तब-तब उसने बगावत का झण्डा बुलंद किया है। फिर चाहे फौजी सरकार बनी हो या नागरिक, झण्डा ऊंचा सेना का ही रहा है। फिर चाहे बात कैप्टन अय्यूब खान की हो या फिर जनरलों में याह्या खान, जियाउल हक और परवेज मुशर्रफ की। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपने ही बुने जाल में फंसते जा रहे हैं। अफगानिस्तान से लेकर भारत और आतंकवाद से लेकर अमरीका तक वे जितनी भी चालें चल रहे हैं, सब उल्टी पड़ रही हैं।
पाकिस्तान के सारे खेल में, ले-देकर अकेला चीन उनके साथ नजर आता है लेकिन यह कहना मुश्किल है कि वह उनकी चाल में आया होगा। वह तो खुद इतना चालबाज है कि, 1962 में भारत तक को धोखा दे चुका। धोखा भी ऐसा कि, आज 55 साल बाद भी न भारत उस धोखे को भूला है और ना ही भारत की जनता। ऐसे में यही मानना बेहतर होगा कि, चीन ने पाकिस्तान और नवाज को अपने जाल में फंसा लिया है। पिछले कुछ महीनों में नवाज शरीफ को हर मोर्चे पर मार पड़ी है। कश्मीर के मुद्दे पर भारत से और आतंक के मोर्चे पर चीन को छोड़ समूचे विश्व से। अब ताजा मार पड़ती दिख रही है, उनकी अपनी ही सेना से। पाकिस्तान में सेना हमेशा से सरकार पर हावी रहती आई है। जब-जब उसे लगा कि, उसका कंट्रोल ढीला पड़ रहा है, तब-तब उसने बगावत का झण्डा बुलंद किया है। फिर चाहे फौजी सरकार बनी हो या नागरिक, झण्डा ऊंचा सेना का ही रहा है। फिर चाहे बात कैप्टन अय्यूब खान की हो या फिर जनरलों में याह्या खान, जियाउल हक और परवेज मुशर्रफ की।
चीन से नवाज के बजाए उनकी नजदीकी ज्यादा है। बेशक नवाज के भाई शाहनवाज की भी चीनी सरकार से गलबहियां होती रहती हैं लेकिन चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कॉरिडोर के निर्माण को जो मजबूत सुरक्षा राहिल ने दे रखी है, वैसी ही बदले में चीन भी राहिल को दे सकता है। इसी तरह आज की तारीख में नवाज शरीफ का कोई सबसे ज्यादा विरोध कर रहा है तो वह क्रिकेटर से पॉलिटिशियन बने इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ है। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि, उनकी कमजोर पीठ पर मजबूत हाथ किसका है, राहिल शरीफ का। राहिल के तेवरों को पिछले दिनों के पाकिस्तानी घटनाक्रमों से समझा जा सकता है। ताजा उदाहरण प्रधानमंत्री के घर हुई उस बैठक का है जिसमें विदेश सचिव ने सेना पर आतंक को शह देने और आतंकवादियों को बचाने का आरोप लगाया था। इसकी खबर डॉन में छपने, उसके पत्रकार सिरिल अल्मीडा पर देश छोडऩे की पाबंदी लगने और अंतत: पाबंदी हटाने के घटनाक्रम ने भी राहिल को कई घाव दिए हैं।
अब तो सेना यानी बड़े शरीफ ने अपनी ही सरकार पर खबर लीक करने का खुला आरोप लगा दिया है। मतलब साफ है। तलवारें खिंची हुई हैं। राहिल का जाना बहुत आसान नहीं है। वे टिके रह सकते हैं। चाहे तो सेवा विस्तार के साथ या फिर बगावत करके। उधर नवाज की राह दोनों तरह कांटों से भरी है। चाहे वे टर्म बढ़ाएं या न बढ़ाएं। डेमोक्रेसी और भारत से उसके रिश्ते पाकिस्तान में ये दोनों तो हमेशा से चुनौतियां झेलते रहे हैं, खतरे में रहे हैं! इस बीच राहिल शरीफ के बाद अगले सेना प्रमुख पद के लिए चार नाम सामने आए हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के पास भेज दिया गया है। सामरिक मामलों के विशेषज्ञ के अनुसार, पिछले कुछ सालों में नवाज शरीफ की प्रशासन पर पकड़ ढीली पड़ी है। यहां तक कि एक बार जनता के बीच हुई कहासुनी में सेना प्रमुख राहिल शरीफ ने जता दिया था कि असलियत में देश कौन चला रहा है। शरीफ अब किसी ऐसे व्यक्ति को इस पद के लिए चुनेंगे जो कि उन्हें कमतर करके नहीं आंके, जैसा कि राहिल शरीफ ने किया।
सरकार-सेना में खींचतान
कहते हैं नवाज की अब मौजूदा आर्मी चीफ जनरल राहिल शरीफ से ठनी हुई है जिन्हें इन दिनों पाकिस्तान में बड़े या ताकतवर शरीफ के नाम से जाना जाता है। जबसे नवाज शरीफ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, राहिल की आवाज और भारी हो गई है। अब जबकि, जनरल शरीफ की सेवानिवृत्ति में करीब सवा महीने का ही वक्त बचा है, एक बड़ा सवाल पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी गूंज रहा है। सवाल है, राहिल शरीफ रहेंगे या जाएंगे? और रहेंगे तो सेनाध्यक्ष ही रहेंगे या फिर इतिहास अपने आप को दोहराएगा? वैसे ही जैसे सत्रह साल पहले हुआ। तब नवाज ही प्रधानमंत्री थे और जनरल मुशर्रफ ने तख्ता पलट कर कमान अपने हाथ में ले ली थी पाकिस्तान की। राहिल को एक ताकतवर जनरल के रूप में जानने वाले मानते हैं कि, पिछले कुछ महीनों से उनकी बॉडी लेंग्वेज बदली हुई है।
-अजयधीर