17-Sep-2016 07:40 AM
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सितंबर 2013 से पहले देश के सबसे ताकतवर मुख्यमंत्रियों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहले दो स्थानों पर रहते थे। जबकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी टॉप टेन की सूची में हुआ करते थे। लेकिन आज स्थिति यह है कि देश के सर्वाधिक राज्यों में राज करने वाली भाजपा के केवल दो मुख्यमंत्री ही टॉप टेन मुख्यमंत्रियों में शामिल हो सके हैं। हैरानी की बात है कि सूची में आठ वे मुख्यमंत्री हैं जो क्षेत्रीय दलों से आते हैं। यही नहीं टॉप थ्री में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने जगह बनाई है। मप्र के मुख्यमंत्री भले ही चौथे स्थान पर हैं लेकिन अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों में वे अभी भी सबसे दमदार हैं। विसंगति यह सामने आई है कि देश के सर्वाधिक राज्यों में राज करने वाली भाजपा के कुछ मुख्यमंत्रियों का प्रदर्शन विकास और गवर्नेंस के पैमाने पर अच्छा दिखा। इनमें से राज्य से बाहर असर और गठबंधन की राजनीति में स्वीकार्यता के पैमाने पर शिवराज सिंह चौहान और डॉ. रमन सिंह जैसे मुख्यमंत्री अच्छी स्थिति में दिखाई दिए। लेकिन पार्टी के अंदर हैसियत और प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं के पैमाने पर भाजपा के मुख्यमंत्रियों के प्रदर्शन ने उन्हें ताकतवर मुख्यमंत्रियों की सूची में नीचे धकेल दिया। जब भाजपा के मुख्यमंत्री इन दो पैमानों पर मजबूत नहीं दिख रहे हैं और कांग्रेस में कोई ताकतवर मुख्यमंत्री है। ऐसे में दूसरे दलों के मुख्यमंत्री इस दौड़ में आगे आए हैं।
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जिस तरह की दुर्दशा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाले जद यू की थी, उससे एक बारगी ऐसा लगा था कि उनकी सियासी हैसियत खत्म होने की ओर है। लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव के साथ में मिलकर उन्होंने बिहार में भाजपा को वैसा ही झटका दिया। इस नतीजे ने उन लोगों को गलत साबित कर दिया जो मान रहे थे कि नीतीश कुमार चुक गए हैं और ढलान पर हैं। अपने कार्य बल के दम पर उन्होंने टॉप टेन मुख्यमंत्रियों में पहला स्थान पाया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अनिश्चितता का पर्याय होने के बावजूद उम्मीदें जगाते हैं। चोटी के जो दस मुख्यमंत्री हैं, उनमें से केजरीवाल को छोड़कर कोई ऐसा नहीं जो अपने-अपने प्रदेश से बाहर इतनी मजबूत स्थिति में दिखता हो। विकास के पैमाने पर बात करें तो ढांचागत विकास के अलावा उन्होंने मोहल्ला क्लीनिक जैसे अपेक्षाकृत छोटे कहे जाने वाले प्रयोगों पर अधिक बल दिया है। इस कारण वे दूसरे पायदान पर हैं। सूची में तीसरे स्थान आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू हैं। दस साल बाद यानी 2014 में चंद्रबाबू नायडू वापसी कर आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर उन्होंने विकास का ऐसा समावेशी मॉडल दिखाया जिससे उन्होंने कईयों को पीछे छोड़ दिया। कुल मिलाकर देखा जाए तो विकास और गवर्नेंस के पैमाने पर वे बेहद मजबूत स्थित में दिखते हैं।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस सर्वेक्षण में छठे स्थान पर हैं। वे लंबे समय से ओडिशा की सत्ता पर काबिज हैं। पहले वे भाजपा के साथ गठबंधन में ओडिशा के मुख्यमंत्री थे। 2008 में भाजपा से गठबंधन टूटने के बावजूद उनमें ओडिशा के लोगों ने अपना विश्वास बनाए रखा। एक तरह से देखा जाए तो ओडिशा में उन्हें हराना बेहद मुश्किल लगता है। विकास और गवर्नेंस के मामले में उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं तो अच्छा तो माना ही जा सकता है। पार्टी के अंदर हैसियत के मामले में उन्हें पूरे नंबर मिलेंगे। जहां तक राज्य के बाहर असर की बात है तो इस मामले में वे औसत से नीचे दिखते हैं। उन्हें देश का सियासी और पढ़ा-लिखा वर्ग तो जानता है लेकिन आम लोगों में राजनीतिक पहचान के मामले में वे कम पड़ जाते हैं। हालांकि खास लोगों में पहचान की वजह से गठबंधन राजनीति में वे स्वीकार्य दिखते हैं।
सर्वेक्षण में वे सातवें स्थान पर हैं। जयललिता ने भी तमाम चुनावी सर्वेक्षणों को पीछे छोड़ते हुए इस साल सत्ता में वापसी की है। विकास, गवर्नेंस और पार्टी में हैसियत के मामले में उनकी स्थिति बिल्कुल नवीन पटनायक जैसी है। राज्य से बाहर असर के मामले में भी दोनों की स्थिति एक जैसी है। पटनायक के मुकाबले जयललिता एक जगह पीछे दिखती हैं। वह है गठबंधन राजनीति में स्वीकार्यता। महामुख्यमंत्री सर्वेक्षण में आठवें स्थान पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव हैं। आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद वे नए राज्य को अपने हिसाब से एक दिशा में ले जाते दिखते हैं। विकास और गवर्नेंस के मोर्चे पर उनकी एक सोच है और वे उस सोच के आधार पर आगे बढ़ रहे हैं। राज्य से बाहर उनके असर को उनकी पहचान के जरिए समझा जा सकता है जो एक ऐसे नेता की है जिसने तेलंगाना के लिए संघर्ष किया। लेकिन दूसरे राज्यों में इस वजह से उन्हें समर्थन मिलता नहीं दिखता। हालांकि गठबंधन राजनीति में वे किसी के लिए अछूत नहीं हैं।
नौवें स्थान पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह हैं। चोटी के दस मुख्यमंत्रियों में वे सबसे पुराने मुख्यमंत्रियों में से एक हैं। विकास और गवर्नेंस के मामले में रमन सिंह का प्रदर्शन काफी प्रभावशाली रहा है। उन्होंने इन दोनों मोर्चों पर कई ऐसे प्रयोग किए जिन्हें बाद में न सिर्फ दूसरे राज्यों में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी लागू किया गया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल जिस तरह से उनकी सरकार ने शुरू किया, उसकी तारीफ हर तरफ हुई। दसवें स्थान पर जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हैं। वे इसी साल मुख्यमंत्री बनी हैं। उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद से विरासत में मिली है। पिता के निधन के बाद लंबे समय तक विचार-विमर्श करने के बाद वे मुख्यमंत्री बनीं। विकास और गवर्नेंस के मामले में वे अपने पिता की नीतियों को ही आगे बढ़ाते दिख रही हैं। पार्टी के अंदर उनकी हैसियत सबसे अधिक है। इन मुख्यमंत्रियों के अलावा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर, झारखंड के रघुबर दास अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन अपने राज्य के बाहर इनकी कोई पकड़ नहीं हैं। इसलिए ये मुख्यमंत्री टॉप टेन मुख्यमंत्रियों की सूची में जगह नहीं बना सके।
क्षेत्रीय दलों का दबदबा
राजनीति में ऊंट कब किस करवट बैठ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। इस तथ्य को और पुख्ता किया है विभिन्न एजेंसियों द्वारा तैयार की गई देश के सबसे ताकतवर 10 मुख्यमंत्रियों की सूची ने। इस सूची में क्षेत्रीय दलों का दबदबा है। सूची में भाजपा के दो और क्षेत्रीय दलों के आठ मुख्यमंत्री शामिल हैं। हालांकि अब भी भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्रियों के मुकाबले शिवराज सिंह चौहान मजबूत दिखते हैं और इसीलिए वे चोटी के पांच मुख्यमंत्रियों में भी शामिल हैं। शीर्ष दस में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी हैं। जबकि चोटी के दस मुख्यमंत्रियों में शामिल बिहार के नीतीश कुमार, दिल्ली के अरविंद केजरीवाल, आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी, तमिलनाडु की जयललिता, ओडिशा के नवीन पटनायक, तेलंगाना के चंद्रशेखर राव और जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती क्षेत्रीय दलों से है।
लोकप्रियता में इनका कोई शानी नहीं
2013 के मुकाबले शिवराज सिंह चौहान थोड़ा कमजोर हुए हैं लेकिन भाजपा के मुख्यमंत्रियों में वे सबसे ज्यादा ताकतवर हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक मुख्यमंत्री के तौर पर वे अपने तीनों कार्यकाल में प्रभावी दिखे हैं। विकास के मामले में उन्होंने मध्य प्रदेश में काफी अच्छा काम किया है। कृषि के साथ-साथ उद्योग की तरफ भी उन्होंने जरूरी ध्यान दिया है। उनके कार्यकाल में मध्य प्रदेश को फसलों के उत्पादन में चार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुके हैं। गवर्नेंस के पैमाने पर भी वे प्रभावी दिखते हैं। राज्य में उन्होंने अपनी पहचान जनता के मुख्यमंत्री के तौर पर बनाई है। यही वजह है कि वे पार्टी में भले ही कमजोर हुए हों लेकिन न सिर्फ अपने राज्य में बल्कि मध्य प्रदेश के बाहर भी उनके प्रति लोग अच्छी राय रखते हैं।
ममता का कोई मुकाबला नहीं
2016 में पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करके ममता बनर्जी ने राज्य में अपनी सत्ता बरकरार रखी है। ममता बनर्जी एक ऐसी नेता हैं जिन्हें देश के अधिकांश राज्यों के लोग पहचानते हैं। इसीलिए वे पांचवें स्थान पर हैं। 2011 के मुकाबले 2016 की ममता बनर्जी की कामयाबी एक अलग कहानी कहती है। 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा के पक्ष में एक देशव्यापी लहर बनी थी। इसमें न सिर्फ भाजपा ने अपने बूते केंद्र में सरकार बनाई बल्कि पार्टी को उन राज्यों में भी खाता खोलने में कामयाबी मिली, जहां उसे पहले कार्यकर्ता तक नहीं मिलते थे। हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनावों में भी ममता बनर्जी की पार्टी का जलवा बरकरार था और भाजपा पश्चिम बंगाल में सिर्फ अपनी मौजूदगी ही दर्ज करा पाई थी।
-दिल्ली से रेणु आगाल