17-Sep-2016 07:30 AM
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देश की राजनीति के लिए भी सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश का चुनाव काफी अहम माना जाता है। प्रचलित जुमला है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है। यह धारणा तब और मजबूती से सिद्ध होती है जब हम पाते हैं कि मौजूदा केंद्र सरकार में 73 सांसद यूपी से ही हैं। अब 2017 में उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां युवा मतदाताओं की संख्या अधिक है। इसलिए युवाओं को आकर्षित करने के लिए सभी दल अपने युवा चेहरों को मैदान में उतार रहे हैं। समाजवादी पार्टी में तो पूरा मुलायम कुनबा युवाओं से भरा पड़ा है।
उत्तरप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने का समय बचा है। तो ऐसे में सभी पार्टी के कार्यकर्ता अपने विधानसभा क्षेत्र में चुनाव की तैयारियों को लेकर जुट गये हैं। हाल के दिनों में कई हाई-प्रोफाइल नेताओं की आवाजाही देख चुकी कांग्रेस उत्तरप्रदेश में खुद को आगे रखने में कामयाब रही है। रायबरेली के चर्चित नाम अखिलेश सिंह की बेटी अदिति ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। विदेश से पढ़कर लौटी अदिति विधानसभा चुनावों में रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार होंगी। उनकी उम्मीदवारी पर पिता अखिलेश सिंह ने भी सहमति जता दी है। अदिति को लगता है कि प्रियंका युवाओं को अपील करती हैं और उन्हें राज्य भर में कांग्रेस के लिए प्रचार करना चाहिए। माना जा रहा है कि अदिति की कांग्रेस में वापसी के साथ रायबरेली विधानसभा की सभी सीटों पर क्लीन स्वीप का कांग्रेस का सपना पूरा हो सकेगा। लखनऊ की कैंट सीट से प्रत्याशी घोषित की गईं अपर्णा यादव समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं। अपर्णा यादव का जुड़ाव सामाजिक कार्यों से रहा है। वह महिला सशक्तिकरण के लिए मुहिम चलाती रहीं हैं। इसके साथ ही वह राजनीतिक मुद्दों पर भी बेबाक राय रखने के लिये जानी जाती हैं। राजनीति में कदम रखने की इच्छा के चलते ही अपर्णा को प्रत्याशी बनाया गया है।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र और बीजेपी नेता पंकज सिंह को भाजपा युवा सम्मेलनों का प्रभारी बनाया गया है। उन्हें यह जिम्मेदारी युवाओं को पार्टी के साथ जोडऩे के लिए दी गई है। 2001 में पंकज भारतीय जनता पार्टी में सक्रिय हुए। पार्टी की ओर से आयोजित धरना-प्रदर्शन में जाना शुरू किया। 2004 में उन्हें भाजपा युवा मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया।
वरुण गांधी बीजेपी के युवा चेहरों में बेहद आगे हैं। वरुण गांधी को लेकर प्रदेश में दर्जनों बार पोस्टर वार हो चुका है जिसमें मांग है कि उन्हें बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता इस बात से सहमत नहीं हैं। ध्रुवीकरण में माहिर वरुण गांधी इस समय सुल्तानपुर से सांसद हैं। इससे पहले गांधी 2009 में पीलीभीत से सांसद चुने गए थे। 2009 में ही कथित मुस्लिम विरोधी बयान देकर वरुण दक्षिणपंथियों के लिए हीरो बन गए थे। 33 साल की उम्र में ही बीजेपी के महासचिव बनने वाले वरुण को 2014 में इस पद से हटा दिया गया। हाल के दिनों में राजनीति गलियारों में ये कयास लगाये जा रहे थे कि वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी कांग्रेस में शामिल हो सकती हैं। लेकिन फिलहाल यह खबर हवा हवाई बनकर ही रह गई।
अखिलेश यादव प्रदेश के उस युवा चेहरे के रूप में जाने जाते हैं। जिसने सबसे कम उम्र में प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने नाम की। और यही नहीं चुनाव में नई तकनीकी से सत्ता का रास्ता भी खुद तय किया। इस युवा नेता ने उत्तरप्रदेश में विधानसभा के लिए हुए चुनावों में समाजवादी पार्टी को एक नई सोच के साथ जीत दिलाने में अहम योगदान दिया। समाजवादी पाटी के युवा नेता, पार्टी प्रदेश अध्यक्ष और अब यूपी के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इन चुनावों में एक छुपे रुस्तम की तरह अपनी पार्टी को सत्ता का दावेदार बना दिया। एक जुलाई 1973 को उत्तरप्रदेश के इटावा में जन्में अखिलेश यादव अपने विनम्र स्वभाव के लिए पहचाने जाते हैं। डिम्पल यादव अखिलेश यादव की पत्नी हैं। डिम्पल ने महिलाओं की सुरक्षा और महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधित मुद्दों को लेकर काम करना शुरू किया है। हालांकि उनकी छवि एक अदद स्वतंत्र नेता की कम और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री की पत्नी के रूप में ज्यादा है। डिम्पल यादव यूपी के कन्नौज क्षेत्र से सांसद हैं।
तेजप्रताप यादव सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पोते हैं, और वह मैनपुरी से सांसद भी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी और आजमगढ़ दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था और दोनों जगहों से जीते थे। इसके बाद उन्होंने अपनी पारंपरिक सीट मैनपुरी खाली कर दी थी। इस सीट पर उन्होंने अपने पोते तेज प्रताप यादव को चुनाव लड़ाया। तेजप्रताप ने भी अपने दादा को निराश नहीं किया और बंपर वोटों से चुनाव में जीत हासिल की। साथ ही राजनीति में धमाकेदार एंट्री की। अक्षय यादव मौजूदा समय में फिरोजाबाद से सपा सांसद हैं। अक्षय यादव भी पहली बार चुनाव जीतकर सक्रिय राजनीति में उतरे हैं। यह सीट यादव परिवार की पारंपरिक संसदीय सीट रही है। जब अखिलेश यादव ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद और कन्नौज से चुनाव लड़ा था, उस समय फिरोजाबाद के चुनाव प्रबंधन की कमान अक्षय यादव ने संभाली थी। इसके बाद अखिलेश ने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी और उपचुनाव में पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया। भाभी डिंपल का चुनाव प्रबंधन भी अक्षय ने संभाला था, लेकिन कांग्रेस नेता राज बब्बर ने डिंपल को हरा दिया था।
2004 में मुख्ययमंत्री रहते हुए मुलायम सिंह यादव के समय धर्मेन्द्र ने मैनपुरी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उस वक्त उन्होंने 14वीं लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकॉर्ड बनाया। और यही नहीं धर्मेन्द्र यादव अपने क्षेत्र के साथ-साथ दूसरे क्षेत्र में भी काफी सक्रिय रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि चुनाव के वक्त धर्मेन्द्र यादव खुद आसपास के क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं। जयन्त चौधरी का जन्म 27 दिसम्बर 1978 को हुआ था। जयंत फिलहाल राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के राष्ट्रीय महासचिव हैं। अमेरिका में जन्मे जयंत चौधरी रालोद के अध्यक्ष अजित सिंह के बेटे और चौधरी चरण सिंह के पौत्र हैं। जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तरप्रदेश की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं में शामिल हैं। आने वाले समय में जयंत देश की किसान राजनीति का भी युवा चेहरा बन सकते हैं। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से स्नातक जयंत को उत्तरप्रदेश की राजनीति के संभावनाशील राजनेता के तौर पर देखा जाता है। 2009 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीते जयंत चौधरी 16वीं लोकसभा में मथुरा से चुनाव हार गए थे।
प्रियंका दमदार चेहरा
प्रियंका गांधी पिछले दो दशक से राजनीति में सीमित रूप से सक्रिय रहती हैं। वह चुनाव और चुनाव के बाद भी रायबरेली और अमेठी का दौरा करती हैं। और वहां पर लोगों की समस्या को भी समझती हैं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हमेशा मांग रहती है कि प्रियंका गांधी दो तीन जिलों से निकलकर पूरे प्रदेश की चुनाव की कमान खुद अपने हाथ में लें। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार कांग्रेस पीके और प्रियंका गांधी के भरोसे यूपी में कितना सफल होती है। फिलहाल प्रियंका गांधी चुनाव को लेकर कई बार यूपी का दौरा भी कर चुकी हैं।
भाजपा की राजनीति के दमदार चेहरे
उत्तरप्रदेश में केंद्रीय संस्कृति मंत्री और नोएडा से सांसद महेश शर्मा और गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ दमदार चेहरे हैं। अपने-अपने क्षेत्र में इनका अपना रसूख है। तेजी से उभरते परिदृश्य में आरएसएस के करीबी माने जाने वाले और हिंदूत्ववादी छवि के नेता शर्मा कभी भी प्रदेश के अन्य नेताओं से आगे निकल सकते हैं। माना जा रहा है कि महेश शर्मा यूपी में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री के नामों की रेस में शामिल हैं। वहीं गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ पहली बार 1998 में 26 साल की उम्र में गोरखपुर से सांसद बने और तब से लगातार पांचवी बार सांसद हैं। योगी बीजेपी के लिए हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं और खास बात है कि उनके ऊपर भ्रष्टाचार का कोई मामला दर्ज नहीं है। दक्षिणपंथी सोच और आक्रामक बयानों के कारण ध्रुवीकरण करने में माहिर माने जाते हैं। राजपूत होने के कारण जहां बीजेपी को सवर्णों का साथ मिल सकता है तो वहीं दूसरी तरफ ध्रुवीकरण के जरिए आखिरी वक्त तक ओबीसी वोट को अपनी तरफ खींच सकते हैं।
-रजनीकांत पारे