चुनौतियां पहाड़, संभावनाएं अपार
17-Sep-2016 07:18 AM 1234803
उर्जित पटेल को आरबीआई का नया गवर्नर बनाए जाने को दुनिया इस परिप्रेक्ष्य में देख रही है कि इस पद पर पटेल की नियुक्ति करके सरकार देश की मौद्रिक नीति को ज्यों का त्यों बनाए रखने का प्रयास कर रही है। लेकिन आरबीआई और उसके नीति निर्धारण के तौर तरीकों से भली भांति परिचित होने के बावजूद पटेल के लिए चुनौतियां काफी अधिक और काफी भिन्न होंगी जो उनके पूर्ववर्ती रघुराम राजन के लिए थीं। वाणिज्यिक बैंकों को लोन देते समय क्या ब्याज दर रहेगी, यह तय करना राजन के हाथ में होता था, वे ही इस बारे में अंतिम निर्णय लेते थे लेकिन पटेल के लिए स्थिति थोड़ी अलग है। अब यह तय करने का अधिकार छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के पास होगा। इसलिए अगर एमपीसी के सदस्यों का बहुमत कम ब्याज दर के पक्ष में होगा और पटेल उनके मत से सहमत नहीं भी होंगे तो भी उनके लिए निर्णय का विरोध करना मुश्किल होगा। इस छह सदस्यीय समिति में गवर्नर के अलावा उप गवर्नर और अन्य आरबीआई के अधिकारी शामिल होंगे। इस समिति में तीन स्वतंत्र सदस्य होंगे, जिनका चयन सरकार करेगी। इस बात की बहुत अधिक संभावनाएं हैं कि ये ही तीन सदस्य उद्योग और सरकार की मांग को ध्यान में रखते हुए ब्याज दर कम रखने का तर्क रखें जो कि सदा उद्योग जगत और सरकार की मंशा रहती है। भारत में बैंकों के बीच आपस में आंकड़ों की जानकारी का आदान-प्रदान नहीं होने की वजह से बैंकों का संकट होता है। राजन एक बड़ा लोन डेटाबेस तैयार करना चाहते थे ताकि पूरे तंत्र की खामी को दूर करते हुए लोन विवरण को दर्शाती एक बेहतर तस्वीर सामने आ जाए। पटेल के लिए महत्वपूर्ण होगा कि वह राजन के इस खयाल को मूर्त रूप दें और अंतर बैंकीय लोन डेटाबेस तैयार करें, जिसकी सहायता से संकट की शुरुआत में ही किसी भी खामी को तुरंत पकड़ा जा सके और दूर किया जा सके। लोन डिफॉल्ट की समस्या से जूझ रहे ज्यादातर बैंक कम्पनी संस्थापकों द्वारा जमा किए गए व्यावसायिक प्रस्तावों की साख और संभावना को सत्यापित नहीं करते। बैंक लम्बे समय तक अच्छा प्रदर्शन करें, यह सुनिश्चित करने के लिए पटेल को यह आश्वस्त करना होगा कि पैसा ऋण पर देने के लिए बैंक कड़े नियमों का पालन करें। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में गैर निष्पादित संपत्ति (बैड लोन) के कारण देश में कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट की कमी उजागर हुई है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में निजी क्षेत्र में सूचीबद्ध ज्यादातर कम्पनियां बॉन्ड जारी कर पूंजी जुटाती हैं। भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर आर्थिक वृद्धि के लिए उद्योगों को ज्यादा से ज्यादा ऋण देने का दबाब रहता है। राजन एक कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट प्रणाली विकसित करना चाहते थे, अब चूंकि पटेल राजन के उप सहयोगी रह चुके हैं, इसलिए उनके लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि वे ऐसी प्रणाली विकसित करें, जिससे देश में एक निजी क्षेत्र का बॉन्ड मार्केट विकसित किया जा सके। जिस दिन से राजन को आरबीआई गवर्नर नियुक्त किया गया, उनके खिलाफ काफी कुछ बोला गया। इस तरह का नकारात्मक वातावरण झेलना काफी मुश्किल होता है। लेकिन कहते हैं न वक्त का तकाजा यही है कि इतने महत्वपूर्ण पद को संभालने जा रहे पटेल को अभी से यह तय कर लेना चाहिए कि अगर भविष्य में वे इस तरह की विपरीत परिस्थितियों में फंसे तो आक्रामक या उद्वेलित नहीं होंगे। उर्जित पटेल निवर्तमान होने जा रहे रघुराम राजन से इक्कीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं हैं। वे इस समय रिजर्ब बैंक के ही डिप्टी गवर्नर हैं और देश की मौद्रिक नीति, आर्थिक नीति तथा बचत नीतियों के जाने-माने विशेषज्ञ भी हैं। 52  साल के उर्जित पटेल संयोग से उसी गुजरात में जन्मे हैं जहां से प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी आते हैं और मुमकिन है की उनकी नियुक्ति भी मोदी जी की अपनी पसंद हो। राजनीतिक मजबूरी तो नहीं देश के चौबीसवें रिजर्ब बैंक गवर्नर पटेल की नियुक्ति एक प्रक्रिया का अंग भले हो किन्तु इसके दूरगामी परिणाम भी देखे जा रहे हैं। पटेल को ये सम्मानजनक पद देकर प्रधानमंत्री गुजरात में भाजपा से दूर जा रहे पटेलों को भी खुश करना चाहते हैं, ये बात और है की ऐसा होता है या नहीं। पटेल भी शायद इस रहस्य को न जानते हों किन्तु ये एक हकीकत है।  सरकार को आने वाले दो सालों के हिसाब से आर्थिक नीतियों में तब्दीली करना है। पटेल इसमें सहायक हो सकते हैं। उम्मीद है की वे राजन की तरह कठोर नजर नहीं आएंगे और राष्ट्रधर्म के साथ ही राज्यधर्म भी निभाएंगे। पटेल के पास तीन साल का कार्यकाल है। इसी दौरान देश में आम चुनाव होंगे। पटेल भारतीय बैंकिंग प्रणाली और मौद्रिक नीति को जिस दिशा में ले जायेंगे, उसका आगामी आम चुनावों पर भी असर पड़ेगा। अभी दो साल में सरकार के हिस्से में आलोचनाओं के सिवाय कुछ आया नहीं है। सरकार आम जनता को कोई खास राहत दे नहीं पायी है, अब ये पटेल पर है की वे सरकार की कितनी और कैसी सहायता कर पाते हैं। -नवीन रघुवंशी
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