01-Aug-2016 08:21 AM
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वे लोग जो पारंपरिक भारतीय वातावरण में पले-बढ़े हैं, उन्होंने नर और नारायण के बारे में जरूर सुना होगा। ये वे दो संत थे जिनके अस्तित्व को एक-दूसरे से बाँध दिया गया था, और जिन्होंने कई जन्मों में साझेदारी की। कृष्ण की साधना यही है वे अपने आस-पास के जीवन के साथ पूरी तरह तालमेल में हैं। चाहे अपने बचपन में उन्होंने किसी भी तरह के खेल खेलें हों, वे हमेशा पूरी तरह से तालमेल में थे। उन्होंने कई जन्मों तक अपने रोमांच से भरपूर काम जारी रखे। उनके द्वारा किया गया सभी कुछ संजोया नहीं गया है - उन्होंने अलग-अलग जीवन कालों में जो कुछ किया उसकी थोड़ी बहुत झलकें संजोयी गयी हैं। यहां महाभारत कथा के सन्दर्भ में कृष्ण और अर्जुन, नर और नारायण हैं। अर्जुन नर, और कृष्ण नारायण हैं।
अर्जुन से मित्रता बनाए रखने के लिए कृष्ण ने हद से ज्यादा प्रयत्न किये, क्योंकि वे अस्तित्व के स्तर पर एक-दूसरे से जुड़े थे। बहुत सी बार, अर्जुन, एक राजकुमार होने की वजह से, अर्जुन ये नहीं समझ पाते थे कि उन्हें कोई काम क्यों करना चाहिए। अर्जुन बड़ी बातें करते थे, कि कोई मनुष्य करुणा, प्रेम और उदारता के माध्यम से मुक्ति पा सकता है।
कृष्ण की साधना की बात करें तो किसी भी मनुष्य के लिए हर रोज प्रेम और आनंद में जीना, सुबह जागने से लेकर रात में सोने तक केवल इतना करना, ये ही जबरदस्त साधना है। जब लोग अन्य लोगों से घिरे होते हैं तो वे मुस्कुरा रहे होते हैं। पर आप अगर उन्हें अकेले में देखें, तो वे इतना उदासी भरा चेहरा लेकर बैठते हैं कि उनके बारे सब कुछ पता चल जाता है। लोगों का काफी बड़ा प्रतिशत अकेले रहने पर काफी बुरे हाल में होता है। अगर आप अकेले नहीं रह सकते, तो इसका मतलब है अकेले होने पर आप बहुत बुरी संगत में होते हैं। अगर अच्छी संगत में होते, तो आपके लिए अकेले होना बहुत अच्छा होता। लोगों से मिलना-जुलना एक उत्सव की तरह होता है, पर खुद-में-स्थित-होना हमेशा अकेले में होता है। अगर आप खुद को एक सुंदर प्राणी में रूपांतरित कर लें तो बस बैठना भर ही अद्भुत हो जाए। इसलिए जीवन के हर पल बस आनंदित और प्रेममय होना अपने आप में एक बहुत बड़ी साधना है। पूरे विश्व के लिए माँ बनकर जीने का यही मतलब है। 16 साल की उम्र तक, अपने आस-पास के जीवन के साथ तालमेल में होना, कृष्ण की साधना थी। फिर उनके गुरु ने आकर उन्हें याद दिलाया कि उनका जीवन सिर्फ आनंद-मग्न होने के लिए नहीं है, और इस जीवन का एक विशाल उद्देश्य है।
अपने जीवन के हर पल प्रेममय होना, सिर्फ किसी खास परिस्थिति में ही नहीं। या फिर किसी खास व्यक्ति को देखने पर ही नहीं। अगर आप बिना भेदभाव के हमेशा प्रेममय होते हैं तो आपकी बुद्धि एक बिलकुल अलग तरह से खिल जाएगी। फिलहाल, किसी व्यक्ति या चीज को चुनने में, बुद्धि अपनी तीक्षणता खो देती है। प्रेममय होना किसी और के लिए कोई भेंट नहीं है - ये आपके अपने लिए एक सुंदर चीज है। ये आपके सिस्टम या तंत्र की मिठास है - आपकी भावनाएँ, आपका मन, और आपका शरीर खुद ही मिठास से भर जाते हैं। आज हमारे पास इस बात को सिद्ध करने के पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत मौजूद हैं - कि जब आप आनंदित होते हैं, सिर्फ तभी आपकी बुद्धि सर्वश्रेष्ठ कार्य करती है।
कृष्ण की साधना यही है-वे अपने आस-पास के जीवन के साथ पूरी तरह तालमेल में हैं। चाहे अपने बचपन में उन्होंने किसी भी तरह के खेल-खेलें हों, वे हमेशा पूरी तरह से तालमेल में थे। 22 साल की उम्र तक उन्होंने तीव्र आध्यात्मिक साधना की। उन्होंने शास्त्रों का भी अभ्यास किया और कुश्ती के एक महान योद्धा बन गए। इन सबके बावजूद, उनकी मांसपेशियां अर्जुन और भीम की तरह विशाल नहीं थीं।
कृष्ण की साधना एक
अलग आयाम की थी
कृष्ण हमेशा कोमल और मधुर बने रहे, क्योंकि उनकी साधना एक अलग आयाम और प्रकृति की थी। संदीपनी ने इस साधना को इस तरह रचा था, कि ये मुख्य रूप से भीतरी साधना बन गयी थी। कृष्ण द्वापर युग के प्राणी नहीं थे उनका जीवन और कार्यकलाप सत युग की तरह थे। कृष्ण द्वापर युग के प्राणी के तरह नहीं थे – उनका जीवन और कार्यकलाप सत युग की तरह थे। तो उनके लिए सब कुछ मानसिक स्तर पर घटित हुआ। उन्हें कुछ भी समझाने के लिए संदीपनी को कभी कुछ बोलना नहीं पड़ा सभी कुछ मानसिक रूप से व्यक्त किया गया, मानसिक रूप से समझा गया और मानसिक रूप से ही सिद्ध किया गया। अपनी साधना से बाहर आने पर उनमें और बलराम में फर्क साफ नजर आता था। बलराम शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट और बलवान हो गए पर कृष्ण पहले की तरह ही बने रहे।
-ओम