06-Jul-2016 08:16 AM
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मप्र में कांग्रेस पिछले 12 साल से एकता का राग अलाप रही है लेकिन आज तक पार्टी ने कहीं एकता नहीं दिखाई। इस कारण न तो पार्टी को सशक्त नेतृत्व मिल पाया और न ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कोई चुनौती दे पाया। सशक्त नेतृत्व के अभाव में कांग्रेस इस वक्त पस्त और हताश है। उसे उत्साहित करने वाले चेहरे और मौके की दरकार है, क्योंकि उसके आंतरिक लोकतंत्र की दशा अच्छी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस को एक ऐसे तारणहार की तलाश है जो पार्टी को इस भंवर से निकाल सके।
प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए तो पार्टी ने आधा दर्जन से अधिक नेता ताल ठोक रहे हैं। लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधने की तर्ज पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनौती कौन दे पाएंगा, इसको लेकर कांग्रेस आलाकमान भी असमंजश में है। फिलहाल पार्टी में दो चेहरे चमकदार दिख रहे हैं। पहला सांसद कमलनाथ और दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया। भावी राजनीतिक हालात को देखते हुए ज्योतिरादित्य पर दोहरा भार है। यानी आगामी दिनों में कांग्रेस पार्टी की जिम्मेवारी अब पूरी तरह राहुल गांधी के कंधों पर आनेवाली है और वर्तमान परिदृश्य में देखा गया है कि राहुल गांधी ज्योतिरादित्य सिंधिया के बिना अधूरे लगते हैं। ऐसे में आलाकमान सिंधिया को एक क्षेत्र में बांधकर नहीं रखना चाहता है।
उधर कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए बेकरार हैं। लेकिन कमलनाथ का प्रभाव क्षेत्र केवल महाकौशल तक सीमित है। उन्होंने कभी भी पूरे मप्र को अपनी राजनीति का क्षेत्र बनाने की कोशिश नहीं की। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की मजबूरी है कि वो प्रतिद्वंदी के खिलाफ मोर्चा बनाने के बजाए आपस में ही ज्यादा जूझती रहती है। भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए मिशन-2018Ó की रणनीति बनाने की जगह कांग्रेस फिर प्रदेश अध्यक्ष पद की जोड़-तोड़ में लग गई! प्रदेश अध्यक्ष को लेकर फिर लॉबिंग शुरू हो गई। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर माहौल बनाया जा रहा है। दोनों नेताओं के समर्थक अपने आकाओं पक्ष में यश-कीर्ति गान में लग गए हैं! ये सब संयोग नहीं है, बल्कि सोच-समझकर हो रहा है। मुखिया के लिए खुद का नाम उछालने के पीछे इन नेताओं की मौन सहमति भी होगी। इन दोनों नेताओं की सक्रियता के बीच ऐसे नजारे भी दिखे, जो इस बात का संकेत था कि नेतृत्व उनके हाथ में हो, तभी प्रदेश में कांग्रेस की वापसी संभव है। हालांकि, राजनीतिक जानकारों के मुताबिक इससे कांग्रेस की गुटबाजी का संदेश मतदाताओं के बीच जा रहा है। ऐसे हालातों की वजह से ही जनता कांग्रेस को नकार भी रही है। यदि कांग्रेस अभी भी नहीं संभली, उसे 2018 में भी उसी दोराहे पर खड़े होने को मजबूर होना होगा!
नामों से नहीं बनेगी सरकार
कांग्रेस पिछले तीन विधानसभा चुनावों में हार की वजह ढूढऩा तो दूर, वह मुद्दे भी नहीं ढूढ़ पाई जिसके जरिए भाजपा को जनता के सामने बौना साबित किया जा सके। सवाल यह है कि कमलनाथ-ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के लिए 2003 से 2016 के बीच हुए छह बड़े चुनावों 2003 विधानसभा, 2004 लोकसभा, 2008 विधानसभा, 2009 लोकसभा, 2013 विधानसभा और 2014 लोकसभा के चुनावों में क्या कांग्रेस के लिए क्या उपलब्धियां हासिल कर पाए? कमलनाथ का प्रभाव क्षेत्र महाकौशल है और सिंधिया का प्रभाव क्षेत्र ग्वालियर-चंबल। इनमें इन नेताओं का परफोर्मेंस क्या रहा जबकि कांग्रेस ने टिकट वितरण में इन नेताओं को पूरी तवज्जो दी और यह कहा जाए कि टिकट वितरण इनके कहने पर ही किया गया।
-भोपाल अरविंद नारद