56 पर भारी पड़े जंबो
06-Jul-2016 08:05 AM 1234792
टीम इंडिया के लिए कोई नियुक्ति हो और उस पर चर्चा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता है। अब जब 16 साल बाद पहली बार किसी भारतीय की टीम इंडिया के कोच पद पर नियुक्ति हुई है तो सुर्खियां तो बननी ही हैं। अनिल कुंबले के टीम इंडिया का नया कोच नियुक्त किए जाने का हर तरफ स्वागत हुआ है। आखिर एक क्रिकेटर के तौर पर कुंबले के भारतीय क्रिकेट में बेहतरीन योगदान के बारे में शायद ही किसी को कुछ बताने की जरूरत हो। लेकिन कोच पद की दौड़ में शामिल 56 लोगों को पीछे छोड़कर जिस तरह कुंबले ने बाजी मारी, उसकी चर्चा अब भी जारी है। सवाल ये उठ रहा है कि क्या कुंबले को कोच पद सिर्फ उनकी योग्यता के कारण मिल गया? आखिर कैसे इस दौड़ में सबसे आगे चल रहे रवि शास्त्री आखिरी समय में कुंबले से पिछड़ गए? कैसे बीसीसीआई द्वारा कोच बनने के लिए जरूरी योग्यता न पूरी करने के बावजूद कुंबले टीम इंडिया के कोच बन गए? तो मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक कुंबले के कोच बनने में एक क्रिकेटर के तौर पर उनकी काबिलियत के साथ-साथ एक और शख्स ने सबसे अहम भूमिका निभाई, शायद इसी शख्स की वजह से रवि शास्त्री का पत्ता साफ हुआ। आइए जानें कुंबले के कोच बनने की कहानी। 18 महीने तक टीम इंडिया के डायरेक्टर रहे रवि शास्त्री कोच पद की दौड़ में तब तक सबसे आगे थे जब तक इस दौड़ में अनिल कुंबले नहीं शामिल हुए थे। लेकिन कुंबले के आते ही मुकाबला शास्त्री बनाम कुंबले का हो गया और बाजी अखिरकार कुंबले के नाम रही। दरअसल जब बीसीसीआई की सलाहकार समिति ने टीम इंडिया के कोच पद के लिए फाइनल राउंड के इंटरव्यू लिए तब भी शास्त्री कुंबले को कड़ी टक्कर दे रहे थे। लेकिन फिर भी अगर बाजी कुंबले के हाथ रही तो इसका सबसे बड़ा श्रेय टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और बंगाल क्रिकेट असोसिएशन के अध्यक्ष सौरव गांगुली को जाता है। जी हां, गांगुली ने ही पर्दे के पीछे से कुंबले के कोच बनने में सबसे बड़ा रोल निभाया। कुंबले तो कोच पद के लिए बीसीसीआई द्वारा दी गई योग्यताएं भी पूरी नहीं कर पाए थे, जिसके मुताबिक कोच पद के आवेदक के लिए किसी राज्य या राष्ट्रीय टीम को कोचिंग का अनुभव होना जरूरी था, लेकिन कुंबले के पास किसी टीम की कोचिंग का अनुभव नहीं था। इसीलिए जब बीसीसीआई ने कोच पद के लिए आए कुल 57 आवेदनों में से 21 लोगों को शॉर्टलिस्ट किया तो उसमें कुंबले का नाम नहीं था। लेकिन गांगुली ने इस बात पर जोर दिया कि कुंबले का नाम अंतिम-21 में शामिल किया जाए। इसके बाद भी जब मामला कुछ आवेदकों तक आकर पहुंचा तो फाइनल इंटरव्यू के बाद भी कुंबले के लिए बैटिंग करने में गागंली ने फिर से अहम भूमिका निभाई। सलाहकार समिति के सामने कोच पद के लिए जिन आवेदकों का इंटरव्यू हुआ उनमें कुंबले और शास्त्री के अलावा लालचंद राजपूत, प्रवीण आमरे और टॉम मूडी शामिल थे। इन आवेदकों का इंटरव्यू सलाकार समिति में शामिल सचिन तेंडुलकर, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली ने लिया। लेकिन चौंकाने वाली बात ये रही कि जब शास्त्री का इंटरव्यू हुआ तो सौरव गांगुली वहां मौजूद नहीं थे। बीसीसीआई के एक अधिकारी के मुताबिक उस समय सौरव को उनकी एक किताब के लॉन्चिंग में जाना था, इसलिए सौरव उस समय मौजूद नहीं थे। लेकिन शास्त्री के इंटरव्यू के समय सौरव की गैरमौजूदगी इसलिए भी हैरान करती है क्योंकि सौरव के कहने पर ही इंटरव्यू की जगह मुंबई से बदलकर कोलकाता रखी गई थी। शास्त्री इस इंटरव्यू में थाईलैंड से वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए जुड़े थे जबकि सचिन भी लंदन से स्काइप के जरिए इसमें शामिल हुए थे। गांगुली की गैरमौजूदगी में शास्त्री का इंटरव्यू सलहाकार समिति के दो अन्य सदस्यों सचिन और वीवीएस लक्ष्मण ने बीसीसीआई सचिव संजय जगदले के साथ लिया। शास्त्री और कुंबले के मुद्दे पर सलाहकार समिति एकमत नहीं थी। गांगुली को छोड़कर बाकी सदस्यों को लग रहा था कि 18 महीने तक टीम इंडिया के डायरेक्टर पद पर अच्छा काम करने वाले शास्त्री को कोच पद के लिए न चुनने की मजबूत वजह चाहिए। लेकिन गांगुली हमेशा से अनिल कुंबले के पक्ष में रहे और आखिरकार कुंबले ही टीम इंडिया के नए कोच चुने गए। दरसअल गांगुली और शास्त्री के बीच कभी भी बहुत अच्छी दोस्ती नहीं रही। पिछले साल वर्ल्ड कप के बाद टीम इंडिया के खाली हुए कोच पद के लिए गांगुली भी इच्छुक थे लेकिन शास्त्री के आने से गांगुली को ये मौका नहीं मिल पाया, जिसके बाद तो दोनों के बीच दूरियां और बढ़ गई। इसलिए जब टीम इंडिया के लिए नया कोच चुनने की बारी आई तो गांगुली ने कुंबले को कोच बनाने के लिए जीजान ला दी, गांगुली नहीं चाहते थे कि शास्त्री इस पद के लिए फिर से चुने जाए। तो इस तरह प्रिंस ऑफ कोलकाता सौरव गांगुली ने कुंबले को टीम इंडिया का नया कोच बनाने में अहम भूमिका अदा की। हालांकि कुंबले का खुद का क्रिकेट का ज्ञान और इस खेल की समझ ने भी उन्हें बाकी के आवेदकों से मीलों आगे कर दिया था और आखिरकार कुंबले ही टीम इंडिया के कोच बने। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि 2000 में कपिल देव के इस्तीफा देने के बाद पहले भारतीय कोच बने टीम इंडिया को किन ऊंचाइयों पर ले जाते हैं।
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