27-Jan-2013 08:08 AM
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सत्रह नवंबर को दिल्ली के बाहरी क्षेत्र में स्थित एक फार्म हाउस से अचानक गोली चलने की आवाज आने लगी। इस फार्म हाउस में शराब ठेकेदार और छह हजार करोड़ की दौलत का मालिक पोंटी चड्ढा तथा उसका भाई हरदीप चड्ढा मौजूद था। दोनों भाइयों का आना कोई नई बात नहीं थी। वे अक्सर यहां देखे जाते थे दोनों में संबंध भी मधुर थे थोड़ी बहुत कटुता अवश्य थी, लेकिन यह कटुता इतनी अधिक नहीं थी कि दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं। गोली चलने की आवाज जब कुछ लोगों के कानों तक पहुंची तो पुलिस को सूचना दी गई, लेकिन पुलिस जब तक पहुंची तब तक दोनों भाइयों की हत्या हो चुकी थी। पुलिस ने अनुमान लगाया कि दोनों ने एक-दूसरे को गोली मार दी और भगवान को प्यारे हो गए। यह प्रारंभिक अनुमान था सच्चाई क्या थी इससे पुलिस भी वाकिफ नहीं थी। इसीलिए पुलिस के कई बार दौरे हुए और हर एक दौरे में कुछ ऐसे सबूत मिले कि पुलिस को यह आपसी खींचतान से ज्यादा अब हत्या का प्रकरण नजर आने लगा है। सीबीआई भी कमोबेश इस पूरे कांड को अलग नजरों से देख रही थी। पोंटी चड्ढा आज से डेढ़ दशक पहले एक सामान्य सा व्यापारी हुआ करता था, लेकिन उसके बाद राजनीतिक संपर्क बढऩे के साथ-साथ ही पोंटी चड्ढा का आर्थिक साम्राज्य भी बेतहाशा बढ़ गया और बढ़ते-बढ़ते इस स्तर तक पहुंच गया कि उसने राजनीतिज्ञों को प्रभावित करना शुरू कर दिया।
बताया जाता है कि राजनीतिज्ञों का काला धन उसके कारोबार में लगा है। पाक्षिक अक्स ने हाल ही में पोंटी चड्ढा द्वारा मायावती शासनकाल के दौरान खरीदी गई चीनी मिलों पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी, लेकिन यह किसी को भी नहीं पता था कि जो दौलत पोंटी चड्ढा ने येन-केन-प्रकारेण हासिल की है उस दौलत के दीवाने और भी हैं। यह तो तब पता लगा जब पोंटी चड्ढा के शव का दोबारा पोस्टमार्टम किया गया। दूसरे पोस्टमार्टम में चार और गोलियां निकली तो सीबीआई तथा जांच एजेंसियों का दिमाग ठनका कि गोलियों की इतनी बौछार उसका छोटा भाई हरदीप कैसे कर सकता है। बाद में हत्या के सिलसिले में 15 लोगों को पूछताछ के लिए रोका गया। दोनों भाइयों के फोन के रिकार्ड खंगाले गए ताकि पता चल सके कि फार्म हाउस में किसी तीसरे ने तो हत्या को अंजाम नहीं दिया। बताया जाता है कि हत्या से पहले पोंटी ने दोपहर को अपने एक मित्र उत्तरप्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य को फोन लगाया था। पुलिस जांच के सूत्र जुटा ही रही थी तभी अचानक इस प्रकरण में उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के बर्खास्त अध्यक्ष सुखदेव सिंह नामधारी का नाम सामने आ गया। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया है और अब यह एक सनसनीखेज हत्याकांड बन चुका है। सुखदेव सिंह पर आरोप है कि फार्म हाउस पर खड़ी गाड़ी पोंटी चड्ढा की लांस क्रूजर कार के बोनट से बरामद गोली सुखदेव की ही पिस्टल से चली थी, सुखदेव सिंह का कहना था कि घटना के समय वह कार के दाहिने ओर खड़ा था जबकि पोंटी और हरदेव के बीच गोली-बारी की घटना हुई थी। नामधारी ने अपना नाम होने से साफ मना किया है। उसका कहना है कि घटना के समय चड्ढा बंधुओं से उसकी दूरी काफी अधिक थी अब पुलिस इस बात को सुलझाने में लगी है कि आखिर दोनों भाईयों ने एक-दूसरे पर इतना सटीक निशाना कैसे साध लिया। जबकि गोली लगने के तुरंत बाद व्यक्ति बेहोश हो जाता है और वह इस स्थिति में नहीं रहता कि गोली चला सके। दोनों में से किसको पहले गोली लगी यह केवल वहां खड़े कथित गवाहों की सूचना के आधार पर जुटाया गया तथ्य है, लेकिन सच्चाई क्या है यह किसी को नहीं मालूम। उधर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों का कहना है कि पोंटी चड्ढा के छोटे भाई हरदीप ने पहले पोंटी के मैनेजर नरेंद्र अहलावत पर बंदूक से हमला किया था जिसकी वजह से गन क्षतिग्रस्त हो गई। नरेंद्र ने भी अपने बयान में पुलिस को यही बताया है कि हरदीप ने पहले गन की बट से उसके ऊपर हमला किया जिसके बाद वे गंभीर रूप से घायल हो गए। प्रश्न यह है कि दोनों भाई ही क्यों मरे। गोलीबारी में कोई अन्य व्यक्ति भी मारा जा सकता था। निशाना चूक सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। निशाने सटीक बैठे इसी कारण इसे आपसी हत्याकांड न मानकर अब एक नए एंगल से इसकी जांच की जा रही है।
उत्तरप्रदेश में गैंगवार सामान्य सी घटना है, जिस तरह का क्राइम रेट इस प्रदेश में है उसे देखते हुए हर दिन कोई न कोई खतरनाक घटना सामने आ ही जाती है। शायद इसीलिए अपने ही छोटे भाई हरदीप के साथ गोलीबारी में मारे गए 59 वर्षीय शराब कारोबारी गुरदीप सिंह पोंटी चड्ढा को सवा साल पहले अपनी मौत का पूर्वानुमान हो गया था। यह शराब ही थी जिसने मुरादाबाद के एक मामूली-से रेहड़ी वाले को इतनी ऊंचाई दी कि उत्तर प्रदेश के 80 फीसदी शराब कारोबार पर उसका कब्जा हो गया। लेकिन 17 नवंबर को दोपहर के वक्त दिल्ली के नंबर 42 सेंट्रल ड्राइव फार्म हाउस में यही शराब पोंटी और उनके भाई हरदीप की मौत का सबब बन गई। दरअसल पोंटी की मां प्रकाश कौर और परिवार के बड़े बुजुर्ग पहले से सोच रहे थे कि किसी दिन सब लोग एक साथ बैठ जाएं और दोनों भाइयों के बीच जायदाद का झगड़ा सुलटा लिया जाए। यहां चीनी मिलों से लेकर डिस्टिलरी, सार्वजनिक परिवहन और रियल एस्टेट को मिलाकर करीब 20,000 करोड़ रु. के समूचे कारोबारी साम्राज्य का बंटवारा होना था। लेकिन इस विवाद के ताबूत में आखिरी कील बना महज तीन एकड़ में फैला छतरपुर का 42 नंबर वाला फार्महाउस। भाइयों के बीच दरारें दो साल पहले दिखनी शुरू हुईं। तब उनके पिता कुलवंत सिंह चड्ढा को अलजाइमर बीमारी हो गई। उसके बाद से तीन भाइयों में सबसे छोटे हरदीप उर्फ सतनाम बेचैन रहने लगे। दोनों बड़े भाई पोंटी और राजू (राजिंदर) की पक्की जोड़ी थी। इसी नवंबर में दीवाली से पहले पोंटी ने राजू की बेटी की शादी इस्तांबुल में करवाई थी। हरदीप उसमें नहीं गए थे।
कारोबारी मामलों में हरदीप के सलाहकार उनके एक मित्र ने बताया, हरदीप के बार-बार तंग करने पर डेढ़ साल पहले कुलवंत सिंह अपने लड़कों को दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारे ले गए और अपनी मौत के बाद संपत्ति के तीन बराबर हिस्सों में बंटवारे पर उन्हें राजी कर लिया। मरते हुए पिता की आखिरी इच्छा का सम्मान करते हुए पोंटी राजी तो हो गए, लेकिन खुश नहीं थे। आखिर पोंटी ही थे जिन्होंने मुरादाबाद में अपने पिता के शराब के दो ठेकों के मूल कारोबार को एक बड़े साम्राज्य में तब्दील किया था। चड्ढा परिवार के पिछले दो दशक से मित्र रहे पंजाब के एक कांग्रेसी सांसद कहते हैं, उन्होंने बहुत मेहनत की थी। वे बताते हैं कि पोंटी का पहला उद्यम 1992 में उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा पर पुल और सड़क के निर्माण का ठेका था। स्थानीय गिरोहों और अपहरण के लिए बदनाम इलाके में कोई नहीं जाना चाहता था।
लखनऊ से मधु आलोक निगम