16-Feb-2016 09:09 AM
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यह कैसी विड़बना है की एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग हर मंच पर गरीब, बेसहारा, विधवा, दिव्यांग और निराश्रित लोगों के लिए खजाना खोलने की बात करते हैं और दूसरी तरफ उन्हें दो दिन के खाने के बराबर भी पेंशन

नहीं दी जा रही है। अपनी पेंशन बढ़ाने और हर महिने दिए जाने की मांग को लेकर ये राजधानी भोपाल की सड़कों पर कभी कटोरा, कभी सूखी रोटी, कभी घास खाते प्रदर्शन करते दिखते रहते हैं लेकिन सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी है। हद तो यह देखिए की पिछले 21 साल से पेंशन बढ़ाने की मांग करते-करते सैकड़ों लोग मौत के मुंह में समा गए, लेकिन सरकार का मन नहीं पसीजा। वहीं सरकार अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ ही माननीयों को सारी सुविधाएं देने के साथ ही वेतन-भत्तों में निरंतर बढ़ोत्तरी करती जा रही है। आलम यह है की जरूरतमंदों के अलावा सरकारी विभागों से रिटायर पेंशनर्स भी सरकार की उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि 23 फरवरी से शुरू होने वाले बजट सत्र में मप्र के विधायकों का वेतन सवा लाख करने का प्रस्ताव आने वाला है। वहीं वर्तमान समय में कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों को छठवां वेतनमान मिल गया। सातवें की तैयारी है। जबकि 40 साल सरकारी नौकरी करने वालों को सरकार भूल गई है। जो अधिकारी वर्षों पूर्व रिटायर हुए हैं उन्हें वर्तमान समय में रिटायर होने वालों की अपेक्षा काफी कम वेतन दिया जा रहा है। पेंशनर्स एसोसिएशन मध्यप्रदेश के अध्यक्ष एचपी उरमलिया ने बताया एक तरफ सांसदों व विधायकों के वेतन में सरकार वृद्धि कर रही है वहीं दूसरी तरफ पेंशनर्स का 32 माह का एरियर भुगतान करने में मप्र शासन ने चुप्पी साध रखी है। अब तो हालात और विकट होने वाले हैं, क्योंकि पुरानी पेंशन नीति समाप्त हो जाने से सरकारी नौकरी में सुरक्षित भविष्य जैसी कोई चीज नहीं रह गई है। कर्मचारियों का कहना है कि नई अंशदायी पेंशन योजना लागू होने के बाद सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरी में कोई अंतर नहीं रह गया है बल्कि तमाम मामलों में निजी क्षेत्र में तैनात कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों से बेहतर सुविधाएं मिल रही हैं।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने निर्णय लिया है कि केंद्रीय विभागों में पहली जनवरी 2004 या उसके बाद और राजकीय विभागों में पहली अप्रैल 2005 या उसके बाद तैनात कर्मचारियों को पुरानी पेंशन नीति का लाभ नहीं दिया जाएगा बल्कि नई अंशदायी पेंशन योजना के तहत उनके वेतन से कटौती की जाएगी। नई पेंशन योजना लागू हो जाने से सरकारी दफ्तरों में इस योजना के तहत आने वाले कर्मचारियों को अब भविष्य निधि का फायदा भी नहीं मिल रहा है। नई पेंशन योजना के तहत कर्मचारियों के वेतन एवं डीए की दस फीसदी धनराशि की कटौती की जा रही है और इतनी ही रकम सरकार की तरफ से अंशदान के रूप में कर्मचारी के पेंशन फंड में जमा की जा रही है। सेवानिवृत्ति के वक्त कर्मचारियों को इसमें से 60 फीसदी रकम ही वापस की जाएगी और बाकी की 40 फीसदी धनराशि पर मिलने वाले ब्याज पेंशन के रूप में दिया जाएगा। ऐसे में कर्मचारियों को उनकी 40 फीसदी रकम कभी वापस नहीं मिलेगी। इससे कर्मचारियों में असंतोष फैला हुआ है। लेकिन विसंगति यह देखिए की अपने पूर्व कर्मचारियों और मप्र में रहने वाले बुजुर्गों, दिव्यांगों, विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं की सुध लेने की बजाय हमारे माननीय अपने वेतन और भत्तों के लिए चिंतित हैं। सरकार विधायकों का वेतन 70 हजार से बढ़ाकर लगभग 1.25 लाख रु. करने करने पर सहमत हो गई है। इससे प्रदेश के 230 विधायकों और 1100 पूर्व विधायकों को फायदा मिलेगा। यही नहीं विधायकों को वेतन पर कर्मचारियों की तरह डीए भी दिए जाने पर की सिफारिश की गई है। इससे जब भी केंद्र सरकार डीए बढ़ाएगी तब विधायकों का वेतन बढ़ जाएगा। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में 2001 में विधायकों का वेतन 25 हजार रुपए था, जो 2007 में बढ़कर 35 हजार रुपए हो गया। इसके बाद भाजपा सरकार के पिछले कार्यकाल में विधायकों को 71 हजार रुपए वेतन कर दिया जो अभी देय है। विधायकों के साथ 1100 पूर्व विधायकों की पेंशन भी बढ़ाई जा रही है। इसमें 10 हजार रुपए की बढ़ोतरी होगी।
हैरानी वाली बात यह भी है कि प्रदेश में वर्तमान सरकार ने अभी तक तीन बार(2007, 2010 और 2012)विधायकों के वेतन-भत्तों में बढोत्तरी कर चुकी और और चौथी बार बढ़ाने की तैयारी है, लेकिन गरीबों, बुजुर्गों, विधवाओं, दिव्यांग और निराश्रितों को मिलने वाली पेंशन की चिंता सरकार को नहीं है। मप्र देश में पहला राज्य है जहां सबसे कम पेंशन 150 रुपए मिलती है। तथ्य चौंकाने वाले हैं। राज्य में इस समय लगभग 25 लाख पेंशनर्स ऐसे हैं जिन्हें रोज 10 रुपए से कम मिलता है। नौ लाख लोगों को तो प्रतिदिन पांच रुपए (150 रुपए मासिक) ही गुजारे के लिए मिलते हैं। यह स्थिति इसलिए है क्योंकि केंद्र सरकार से मिलने वाली पेंशन की धनराशि में राज्य सरकार अपना कोई हिस्सा नहीं मिलाती, जबकि अन्य राज्यों में ऐसा किया जाता है। गैस पीडि़त निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव कहते हैं कि जरूरतमंदों की पेंशन बढ़ाने और उसका नियमित भुगतान करने की मांग हम वर्षों से कर रहे हैं लेकिन न शासन और न ही प्रशासन हमारी बात सुन रहा है। वर्तमान में मप्र शासन द्धारा वृद्धावस्था, विधवा, परित्यक्तता, नि:शक्तजनों एवं केवल कन्या के अभिभावकों हेतु विभिन्न पेंशन योजनाएं संचालित की जा रही हैं। लेकिन इसके तहत हितग्राहियों को इतनी कम राशि(150-500 रूपए) दी जा रही है कि उनका गुजारा होना मुश्किल हो रहा है। लेकिन इन जरूरतमंदों की चिंता छोड़ सरकार मालामाल माननीयों को और मालदार बनाने जा रही है।
-नवीन रघुवंशी