16-Feb-2016 08:49 AM
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करीब 400,000 लाख करोड़ रूपए के कर्ज में डूबी महाराष्ट्र सरकार की आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपैया के कारण प्रदेश पर लगातार कर्ज बढ़ता जा रहा है। ऐसे दौर में अपना कर्ज कम करने के लिए सरकार को बड़े औद्योगिक घरानों पर
विभिन्न टैक्स और बिजली के बकाया खरबो रूपए वसूलना चाहिए। लेकिन सरकार ने उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए राज्य के हितों को ताक पर रख दिया है और ओपन एक्सेस सिस्टम के तहत बिजली का इस्तेमाल करने वाले उद्योगों से कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं वसूला जा रहा है। इससे सरकारी खजाने को 550 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा है।
राज्य कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा है कि चुनिंदा उद्योगों को बेजा लाभ पहुंचाने के लिए अक्टूबर, 2014 के बाद से यह सिस्टम शुरू किया गया। इसके तहत 1,398 औद्योगिक ईकाइयों का लाइसेंस दिया गया। इन ईकाइयों ने अब तक 6,618 मिलियन यूनिट बिजली की खपत कर ली है। लेकिन सरकार ने कोई शुल्क चार्ज नहीं किया। जबकि मुंबई बिजली शुल्क अधिनियम 1958 के तहत इसका प्रावधान है। सावंत के अनुसार बिजली बोर्ड इस बारे में ऊर्जा विभाग को बार-बार आगाह करता रहा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। इससे अभी तक सरकार को 550 करोड़ की चपत लग चुकी है।
एक तरफ सरकार औद्योगिक घरानों पर मेहरबान है वहीं दूसरी तरफ मध्यम वर्ग पर भार डालने की तैयारी कर ली गई है। इसके तहत महाराष्ट्र में 300 यूनिट से अधिक बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को निकट भविष्य में अधिक शुल्क का भुगतान करना पड़ेगा। राज्य के ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने बताया कि बिजली की बढ़ती मांग के मद्देनजर और उपभोक्ताओं को निरंतर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार ठाणे के दहाणु में दो ताप बिजली इकाइयां स्थापित करना चाहती है। उन्होंने कहा, मुंबई जैसे शहरों में बिना रुकावट के बिजली आपूर्ति की दरकार होती है। शहर में वैकल्पिक बिजली आपूर्ति के लिए ऊर्जा विभाग को 15 दिनों के भीतर योजना सौंपने का निर्देश दिया गया है। मुंबई को 3,416 मेगावॉट बिजली आपूर्ति होती है। महावितरण के अनुमान के अनुसार 2021 तक मुंबई में बिजली की मांग बढ़कर करीब 4,350 मेगावॉट हो जाएगी। उन्होंने कहा, राज्य सरकार पूरी कोशिश करेगी कि 300 यूनिट से कम बिजली खपत करने वालों पर शुल्क का बोझ न बढ़े। अंबानी जैसे लोग अधिक शुल्क वहन कर सकते हैं। बावनकुले ने कहा कि मुंबई को बिजली आपूर्ति करने वाली चार इकाइयों महावितरण, बेस्ट, टाटा और आर-इन्फ्रा को राज्य सरकार के समक्ष 2016-17 के लिए सालाना बिजली शुल्क योजनाएं पेश करने के लिए कहा गया है।
उल्लेखनीय है कि राज्य में बिजली विभाग भ्रष्टाचारियों के अड्डे के यप में जाना जाता है। पिछले दिनों जब महाराष्ट्र में परली बैजनाथ के थर्मल पावर स्टेशन पर कोयले का वजन बढ़ाकर करोड़ों के घोटाले का खुलासा हुआ था तब पूरे देश के सामने यह हकीकत आई थी। यहां महज कोयले की चोरी ही नहीं होती बल्कि कोयले का वजन बढ़ाकर ठेकेदार को फायदा पुहंचाया जाता है और ये सब करते हैं बिजली बनाने वाली कंपनी के अफसर। आरटीआई के तहत दी गई जानकारी के तहत खुद बिजली बिजली विभाग माना है कि उनके अधिकारी करोड़ों का काला खेल कर रहे हैं। सूचना के अधिकार के तहत दी गई जानकारी के मुताबिक खुद महाराष्ट्र सरकार के बिजली विभाग ने ये माना है कि कोयले की धांधली में कई सरकारी अधिकारियों के हाथ काले हैं। कोयले का ये घोटाला चल रहा है परली के बैजनाथ थर्मल पावर स्टेशन में। यहां रोजाना 1 हजार से 1200 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाता है। बिजली को बनाने में रोजाना करीब 5 से 6 हजार मीट्रिक टन कोयला लगता है और इसी कोयले की खरीद फरोख्त में सरकारी अधिकारी कोयले का वजन बढ़ाकर जमकर धांधली करने में जुटे हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य बिजली विभाग ने साफ तौर पर माना है कि परली थर्मल पावर स्टेशन को विदेशी कोयला सप्लाई करने वाली कंपनी मेसर्स नोलेज इन्फ्रास्ट्रक्चर ने वर्ष 2006 से लेकर 2008 तक जितनी बार भी कोयला थर्मल पावर स्टेशन तक भेजा उसमें कई बार कोयले के वजन में भारी फर्क देखने को मिला। कोयला ठेकेदार विदेशों से कोयला बंदरगाह पर मंगवाते हैं और फिर उसे उसे मालगाडी के जरिए हर रोज परली के थर्मल पावर स्टेशन तक पहुंचाया जाता है। मालगाड़ी में भरने से पहले और उतारते वक्त कोयले का वजन चैक किया जाता है। हर मालगाड़ी में कुल 58 डिब्बे होते हैं और हर डिब्बे में अधिकतम 65 मीट्रिक टन विदेशी कोयला भरा जा सकता है। रास्ते में कोयले का नुकसान तो हो सकता है लेकिन इसके वजन बढऩा नामुमकिन है क्योंकि हर डिब्बे सील होता है। ऐसा नहीं है कि परली थर्मल पावर स्टेशन पर काम करने वाले लोग इस घोटाले से अनजान हैं लेकिन जान का खतरा होने के कारण किसी की जुबान नहीं खुलती।
-मुंबई से बिन्दु माथुर