हेडली के बम में कितना है दम
16-Feb-2016 08:15 AM 1234863

आतंकी डेविड कोलमैन हेडली ने भारत के खिलाफ पाकिस्तानी साजिश का खुलासा कर दिया है। लेकिन आज भारत एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां से वह कुछ भी करने की स्थिति में नजर नहीं आ रहा है। हमारे नेता इतने नासमझ होंगे यह कोई नहीं जानता था। क्योंकि पाकिस्तान बराबर भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियां चला रहा है और अमेरिका उसे आर्थिक मदद देकर और सुलगा रहा है। लेकिन हम दोनों देशों से दोस्ती करने की ठान चुके हैं। भले ही इसके लिए हमें रोजाना अपनी आवाम और सेना के जवानों का कत्लेआम होता क्यों न देखना पड़े? हमारी इसी कायरतापूर्ण नीति का फायदा उठाकर पाकिस्तान लगातार आतंकी हमले करवा रहा है और अमेरिका तमाशा देख रहा है।
पांच दिन...30 घंटे...750 प्रश्न और 56 प्रति-प्रश्न...और जवाब में पाकिस्तान, आईएसआई और वहां के आतंकी संगठनों की भारत के खिलाफ आतंकी हमले और साजिश का पर्दाफाश...यह है पूरी कहानी सरकारी गवाह बन चुके पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी आतंकवादी 55 वर्षीय दाऊद गिलानी उर्फ डेविड कोलमैन हेडली की गवाही के। एक अज्ञात जगह पर आठ फरवरी की सुबह से शुरू हुई हेडली की गवाही का सिलसिला 13 फरवरी तक चला। इस दौरान उसने पाकिस्तान के खिलाफ बयानों के इतने बम फेंके की पूरी दुनिया के सामने एक बार फिर पाकिस्तान बेनकाब हुआ है। हालांकि छब्बीस नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की साजिश रचने वाले कौन थे, उसे अंजाम देने वाल कौन थे, उसमें मदद किसने की, यह सब कोई रहस्य नहीं था। यह भारत पर हुआ सबसे बड़ा आतंकवादी हमला था और हर तरह से इसकी विस्तृत जांच चली। लिहाजा, हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा का हाथ होने, हमले की योजना पाकिस्तान में बनने और उसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के मददगार होने के तथ्य पहले से ही मालूम थे। डेविड हेडली की गवाही से लाभ यह हुआ है कि उन तथ्यों की फिर से पुष्टि हुई है। फिर, यह गवाही ऐसे व्यक्ति की है जो उस हमले की तैयारी में शामिल था। यानी भारत को पाकिस्तान के खिलाफ एक ऐसा सबूत मिल गया है जिससे भारत के खिलाफ उसकी मानसिकता को उजागर करता है।
हेडली द्वारा किए जा रहे खुलासे के दौरान जिस तरह पाकिस्तान बेनकाब हो रहा था और उसके द्वारा पोषित आतंकवाद की पोल खुल रही थी तो सबको आस लगी थी कि पूरा विश्व समुदाय पाकिस्तान के खिलाफ कोई कठोर कदम उठाएगा। लेकिन गवाही के दौरान ही अमेरिका की दोहरी नीति की पोल एक बार फिर से दुनिया के सामने आ गई जब उसने पाकिस्तान को 86 करोड़ डॉलर रुपए  की मदद देने की घोषणा कर दी। दुनिया के बदलते भू-राजनीतिक समीकरण में एक तरफ तो अमेरिका किसी भी तरह से भारत को अपने खेमे में रखने की कोशिश करता है वहीं वह पाकिस्तान को लेकर भी अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं करना चाहता। जानकार कहते हैं कि न तो अमेरिका भारत और पाकिस्तान के संबंधों को सुधरने देना चाहता है और न ही वह दिल से यह चाहता है कि पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों पर नकेल कसे। विशेषज्ञ कहते हैं कि अमेरिका बस यही चाहता है कि दोनों देशों के बीच जारी गतिरोध के बीच इस इलाके में उसका वर्चस्व कायम रहे। साथ ही उसके सैन्य उपकरणों का एक बाजार भी फलता-फूलता रहा। यही वजह है कि वह दोनों पक्षों को अपने हित साधने के लिए सालों से इस्तेमाल करता आ रहा है। अमेरिका भले ही पाक को आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगार बताकर फटकार लगाता रहा हो लेकिन उसे सैन्य मदद देना लगातार जारी है।
अमेरिकी साम्राज्यवादी पूरी दुनिया के पैमाने पर आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध छेडऩे का दावा करते हैं। सच्चाई यह है कि स्वयं अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी देश है। आज जिन इस्लामी कट्टरपन्थियों से लडऩे के नाम पर इराक, अफगानिस्तान और दुनिया के कई देशों में अमेरिका बमबारी, नरसंहार और सैनिक कब्जों का सिलसिला जारी रखे हुए है, वे उसी के पैदा हुए भस्मासुर हैं। अमेरिका आतंकवाद के नाम पर दुनिया की जनता के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए है। वह अपने साम्राज्यवादी वर्चस्व के लिए युद्ध और आतंक का कहर बरपा  रहा है। जो केवल उसकी व्यापारिक नीति का अंश है।
अगर अमेरिका वास्तविक रूप से आतंकवाद के खिलाफ होता तो वह अपनी ही जेल में बंद आतंकी डेविड हेडली के कबूलनामे की अनसूनी करते हुए पाकिस्तान को मदद करने का ऐलान नहीं करता। आतंकवाद से निपटने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को अपने आपात निधि से 86 अरब डॉलर रुपए से ज्यादा की मदद देने का फैसला किया है। जिसमें सैन्य उपकरणों की सहायता शामिल है। सहायता के लिए आपात निधि का सहारा लिया गया है ताकि मदद देने में किसी तरह की अड़चन न आ सके। हाल ही में पाकिस्तान को एफ-16 लडा़कू विमान देने पर अमेरिकी कांग्रेस अड़चन लगा चुकी है। अमेरिकी मदद में 18 अरब रुपए से ज्यादा की रकम सैन्य साजो सामान से संबंधित है। सैन्य सामान की मदद आतंकवाद से लडऩे परमाणु हथियारों की रक्षा के इंतजाम और भारत के साथ मजबूत संबंधों के नाम पर दी जा रही है। लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान इस मदद का इस्तेमाल भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ आतंकवाद फैलाने और उसकी सेना यह रकम डकार जाएगी। अगर मान भी लिया जाए कि अमेरिका ने पाकिस्तान को यह सहायता आतंकवाद के खिलाफ लडऩे के लिए दी है तो उसके लिए उसने यही मौका क्यों चुना जब हेडली पाकिस्तान के खिलाफ लगातार आरोप लगा रहा था। अमेरिका की इस नीति को भारतीय हुक्मरानों को समझने की जरूरत है। दरअसल अमेरिका पूरी तरह से व्यापारिक देश है। ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर की नीति पर वह काम करता है। तभी तो वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा कभी गले, कभी गलबहियां तो कभी चाय की चुस्की लेते हुए आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने की बात करते हैं। वहीं दूसरी तरफ मदद करते हैं।  वाह अमेरिका, वाह बराक ओबामा। आपको मालूम है कि पाकिस्तान में आतंकवाद फलफूल रहा है फिर भी मदद कर रहे हैं, ऐसा क्यों? वह भी यह जानते हुए कि पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद का अधिकांश हिस्सा आतंकवाद को बढ़ावा देने में खर्च हो रहा है। यह दावे के साथ इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि अमेरिका ने स्वयं कई बार यह कहते हुए पाकिस्तानी मदद को रोका है कि वह इन पैसों से अपने यहां आतंकियों को पोषित कर रहा है। फिर ऐसी क्या मजबूरी आ गई कि एक तरफ जब हेडली पाकिस्तान के खिलाफ बयान दे रहा था और अपने ऊपर लगातार हो रहे वार को देखते हुए पाकिस्तान आहत होने लगा था तब अमेरिका ने उसे 86 करोड़ डॉलर रुपए की मदद देकर उसका मनोबल ऊंचा कर दिया। दरअसल यह अमेरिका की भारत के खिलाफ सोची समझी साजिश है।
मुंबई की विशेष टाडा न्यायालय के न्यायाधीश जीए सनाप के समक्ष बीते छह दिनों में पांच दिन तक हेडली ने जो कुछ कहा उससे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी यह साबित हो गया है कि आतंकवाद पाकिस्तान का राष्ट्रीय धंधा है और भारत को निशाना बनाना उसका मिशन है। न जाने कितनी बार पाक की आतंकी साजिशें, सांठगांठ और हरकतें बेपर्दा हुई हैं! शायद अब यह शब्द बौना हो गया है। वह भारत के ही संदर्भ में नहीं, अंतरराष्ट्रीय आतंकी मुहिमों के संदर्भ में भी बेनकाब हुआ है। सही मायनों में 26/11 का परोक्ष गुनहगार पाकिस्तान ही है, क्योंकि तमाम साजिशें उसी की जमीन पर रची गई थीं। पांच दिनों तक चली सुनवाई में हेडली ने उन सब बातों का खुलासा किया कि कैसे वह आईएसआई के माध्यम से हाफिज सईद से मिला, फिर लश्कर के कैंप में उसने कई महीने गुजारे थे। एके-47 चलाने की ट्रेनिंग ली और आईएसआई के निर्देश पर वह आठ बार मुंबई और अन्य जगहों पर आया। उनमें उप राष्ट्रपति का आवास और सीबीआई मुख्यालय भी शामिल थे। उसकी योजना बहुत बड़ी थी। उसका केंद्र बिंदु पाकिस्तान ही था। वह आईएसआई के कुख्यात अफसर अब्दुल रहमान पाशा के संपर्क में भी रहा। सवाल है कि हेडली ने पाकिस्तान के सरपरस्त अमेरिका में रह कर उसके खिलाफ बयानों का जो बम फेंका है उसमें कितना दम है। तो जानकार बताते हैं कि पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ाने और संरक्षित करने के लिए जो अभियान चल रहे हैं उसे पूरा विश्व जानता है।
बेशक अमरीकी एजेंसियों और हमारी एनआईए द्वारा सवाल-जवाब के दौरान हेडली ने इन तमाम सूचनाओं का खुलासा पूर्व में भी किया होगा। हेडली ने 2010 में अपना अपराध कबूल किया था और करीब दो साल बाद 2012 में एनआईए ने शिकागो जेल में जाकर हेडली से पूछताछ की थी। दोनों बार ही खुलासे सार्वजनिक नहीं किए गए। लिहाजा वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हेडली के खुलासे और कबूलनामें इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि बयानों को अदालत के सामने रिकार्ड किया गया है, जिन्हें खारिज नहीं किया जा सकता। अब हेडली के बयान दस्तावेजी प्रमाण हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पेश किया जा सकता है। भारत सरकार को चाहिए कि इन दस्तावेजी प्रमाणों के साथ संयुक्त राष्ट्र में अपना पक्ष रखे। चूंकि सुरक्षा परिषद ने हाफिज सईद और लखवी को आतंकवादीÓ घोषित कर रखा है। उस आधार पर पाकिस्तान को भी आतंकी राष्ट्रÓ घोषित करने का आग्रह किया जा सकता है और यह मांग भी करनी चाहिए कि पाकिस्तान पर विभिन्न पाबंदियां चस्पां की जाएं। आखिर सुरक्षा परिषद के पारित प्रस्ताव का उल्लंघन किया है पाकिस्तान ने। लेकिन गौरतलब यह है कि जब हेडली ने अमरीकी कोर्ट में खुलासे किए थे, तब भी पाकिस्तान विचलित नहीं हुआ था। पाक हुकूमत की दलीलें हैं कि हेडली नशीली दवाओं का कारोबारी और जासूस है। हकीकत है कि अमरीका ने इस काम के लिए हेडली को जासूस बनाया था। इसी काम के लिए हेडली पाकिस्तान आया था और अफगानिस्तान सरहद पर पकड़ा गया था, लेकिन वहीं यह तथ्य उभरा कि उसे भारत के खिलाफ  जासूसी में इस्तेमाल किया जा सकता है। हेडली का इस्तेमाल अमरीका और पाक दोनों ने किया और दोनों के लिए वह डबल जासूसÓ माना जाता रहा, लिहाजा अमरीका ने जेल में डाल दिया, ताकि हेडली तमाम रहस्य न उगल सके। यह इस प्रकरण का एक और पन्ना है। फिलहाल पाकिस्तान दलील देता रहा है कि हेडली कई बार जेल जा चुका है। बुनियादी तौर पर अपराधी रहा है। फिर उसके खुलासों पर यकीन कैसे किया जा सकता है? लिहाजा हेडली के ताजा खुलासों का पाकिस्तान पर कोई असर पड़ेगा, ऐसा लगता नहीं है। यदि 26/11 के मास्टरमाइंडÓ साजिशकार हाफिज सईद और लखवी बंबई कोर्ट में पेश किए जा सकते हैं, तो उसे हेडली के खुलासों की अहमियत मानी जा सकती है।
क्या पाकिस्तान हेडली के बयानों को कबूल करने और मुंबई हमले के आतंकियों को भारत को सौंपने की हिम्मत दिखाएगा?  26/11 के बाद पांच जनवरी, 2009 को भारत सरकार ने पाकिस्तान को जो डोजियर सौंपा था, उसमें भी कई उन नामों का उल्लेख था, जिनका खुलासा अब हेडली ने किया है। भारत सरकार अब नए सिरे से पाक हुकूमत को डोजियर सौंपेगी। आखिर इन डोजियरों का औचित्य क्या है? डोजियर की भाषा तो कमजोर लोग बोलते हैं। यदि ऐसा अमरीका के साथ हुआ होता, तो वह दुश्मन देशÓ को ठोंक देता। हालांकि हेडली के संदर्भ में अमरीका ने भारत के साथ पूरी ईमानदारी नहीं बरती। लेकिन फिर भी अमरीका का आभार है कि हम हेडली के खुलासों के जरिए पाकिस्तान को एक बार फिर दुनिया के सामने बेनकाब कर सके। अब हेडली हमारे लिए वादा माफ  गवाहÓ है। उसका न प्रत्यर्पण संभव है और न ही फांसी। अब देखना यह है कि हमारे हुक्मरान हाथ आए इस मौके को कैसे भुनाते हैं।
अमेरिका की नीति हमेशा दोहरी
पाकिस्तान को वित्तीय मदद का अमेरिकी प्रस्ताव कोई नई बात नहीं है। अमेरिका लगातार पाकिस्तान को आतंकवाद से लडऩे के नाम पर इस तरह की मदद देता रहा है। अमेरिका की नीति हमेशा दोहरी रही है। एक तरफ वो भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश करते हैं तो दूसरी तरफ पाकिस्तान से भी। इसी दोहरी नीति का परिणाम है कि अमेरिका इस क्षेत्र के हर देश से अलग-अलग डील करता रहा है। अमेरिका की इस नीति की वजह से इस क्षेत्र में तनाव बना रहता है। पाकिस्तान को दी जा रही सैन्य मदद कम से कम उनको बंद करनी चाहिए क्योंकि पाकिस्तान आतंकवाद फैलाने का काम न सिर्फ भारत में बल्कि अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों में भी कर रहा है। एक तरफ तो अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद की धुरी बताता है दूसरी तरफ पाकिस्तान को हर तरीके की मदद भी देता है। खास बात यह भी कि अमेरिका के दोनों सदनों में भी इसका विरोध हो रहा है।
अमेरिकी पापों का नतीजा है वैश्विक आतंकवाद
विश्व में आतंकवाद अमेरिकी नीतियों का ही परिणाम है। दरअसल विश्व में अपनी धाक जमाने और अपने यहां उत्पादित हथियारों को खपाने के लिए अमेरिका ने आतंकवाद को हमेशा बढ़ावा दिया है। वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी उसी राह पर चल रहे हैं। ओबामा की पहल पर आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के खिलाफ इन दिनों अभियान चल रहा है तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दुनिया से आतंकवाद का नामोनिशान मिट जाएगा? या इसका हश्र भी अलकायदा और उसके सरगना ओसामा बिन लादेन के खात्मे के लिए अमेरिका द्वारा शुरू की गई आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जैसा ही होगा?
जब अमेरिका ने 24 दिसंबर 1979 को अफगानिस्तान में सोवियत संघ के हस्तक्षेप के खिलाफ वहां, पाकिस्तान और सऊदी अरब के सहयोग से, अफगान लड़ाकों को तालिबान के नाम से खड़ा किया और नौ साल बाद फरवरी 1989 को वहां से सोवियत सेनाओं की वापसी के बाद ये लड़ाके आतंकवादियों के रूप में गिरोहबंद हो गए। यह कोई रहस्य नहीं है कि आतंकवादियों के इस गिरोह ने कैसे पाकिस्तान के सहयोग से तालिबान का रूप धारण कर 1996 में अफगानिस्तान का शासन हथिया लिया और कैसे सऊदी अरब के समर्थन और सहयोग से सऊदी नागरिक ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में अलकायदा पनपा और पूरी दुनिया को दारुल इस्लाम में तब्दील के नाम पर आतंक का पर्याय बन गया। इतना सब होने पर अमेरिकी नीरो की तरह चैन की बंसी बजाते रहे। लेकिन, जब अलकायदा ने 11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क के वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमला कर उसे तबाह कर दिया तब अमेरिका को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लडऩे की जरूरत महसूस हुई। इस लड़ाई में अमेरिका के यूरोपीय सहयोगियों के साथ-साथ खाड़ी के देश खासकर सऊदी अरब और पाकिस्तान भी साथ में खड़े दिखाई दिए। इस लड़ाई के नाम पर पाकिस्तान ने एक ओर तो अमेरिका से भरपूर आर्थिक मदद व फौजी साजो-सामान हासिल किया वहीं गुपचुप वह अलकायदा की मदद भी करता रहा। यहां तक कि उसने ओसामा बिन लादेन को अमेरिका की नजरों से छुपाने के लिए उसे अपने यहां पनाह भी दी। परन्तु प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान हर बार यही दोहराता रहा कि उसे पता ही नहीं है कि लादेन कहां है। पाकिस्तान का यह सफेद झूठ दुनिया के सामने तब उजागर हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 1 मई, 2011 को वॉशिंगटन में यह घोषणा की कि अमेरिकी सेना के एक खुफिया ऑपरेशन में ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में मार दिया गया है। होना तो यह चाहिए था कि ओसामा बिन लादेन के खात्मे के साथ ही दुनिया से आतंकवाद का खात्मा हो जाना चाहिए था, परन्तु हुआ इसका ठीक उलटा। लादेन के बाद सीरिया में आईएसआईएस के रूप में एक दूसरा व खूंखार आतंकवादी संगठन हुंकारें मार रहा है। गाजा पट्टी पर राज करता हमास, इसराइल के साथ ही अमेरिका को भी आंखें दिखाता रहा है।
अब प्रश्न यह है कि जब दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका तालिबान, अलकायदा, हमास और आईएसआईएस को नेस्तानाबूद करना चाहता है तो वे कौनसी ताकतें हैं जो इनका और इन जैसे दर्जनों आतंकवादी संगठनों का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन करती हैं? इसके साथ ही प्रश्न यह भी है कि जब पूरी दुनिया यह जानती है कि सऊदी अरब ने ही अलकायदा को पाला-पोसा है तब भी अमेरिका क्यों सऊदी अरब का साथ नहीं छोड़ रहा है? और क्यों आतंक के खिलाफ लड़ाई की जुगलबंदी में वह हर बार उसे अपने साथ रखता है? अमेरिका की सऊदी अरब व आतंकवादियों से रिश्तों की कहानी छिपी नहीं है वरन इसे सभी जानते हैं?
डेविड हेडली की गवाही के मायने
वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुई गवाही से नवंबर 2008 में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले की साजिश की पूरी कहानी सामने आ गई है। हेडली खुद उस षड्यंत्र में एक पात्र था। बल्कि वह उस बड़े आतंकवादी नेटवर्क का हिस्सा था, जो पाकिस्तानी खुफिया-सैन्य तंत्र की पनाह में रहते हुए बरसों से भारत के खिलाफ छद्म-युद्ध चला रहा है। हेडली की गवाही के बाद सारे तथ्य पाकिस्तान के खिलाफ हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि जिस तरह अपनी दोस्ती बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक इस्लामाबाद पहुंच जाते हैं और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर जाकर उनकी बेटी की शादी में शरीक होते हैं, क्या उसी तरह, उसी जज्बे के साथ वे पाकिस्तान को हेडली की गवाही के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का दंभ भरेंगे। भारत को पाकिस्तान पर कूटनीतिक तरीके से दबाव डालने का सुनहरा मौका मिला है। प्रधानमंत्री अप्रैल 2015 में पेरिस में हुई आतंकवाद के खिलाफ बैठक में शामिल देशों के नेताओं के सामने यह मुद्दा उठाकर पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव डाल सकते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इसके लिए हमारी सरकार तैयार है?
डेविड हेडली की गवाही के मायने
वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुई गवाही से नवंबर 2008 में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले की साजिश की पूरी कहानी सामने आ गई है। हेडली खुद उस षड्यंत्र में एक पात्र था। बल्कि वह उस बड़े आतंकवादी नेटवर्क का हिस्सा था, जो पाकिस्तानी खुफिया-सैन्य तंत्र की पनाह में रहते हुए बरसों से भारत के खिलाफ छद्म-युद्ध चला रहा है। हेडली की गवाही के बाद सारे तथ्य पाकिस्तान के खिलाफ हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि जिस तरह अपनी दोस्ती बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक इस्लामाबाद पहुंच जाते हैं और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर जाकर उनकी बेटी की शादी में शरीक होते हैं, क्या उसी तरह, उसी जज्बे के साथ वे पाकिस्तान को हेडली की गवाही के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का दंभ भरेंगे। भारत को पाकिस्तान पर कूटनीतिक तरीके से दबाव डालने का सुनहरा मौका मिला है। प्रधानमंत्री अप्रैल 2015 में पेरिस में हुई आतंकवाद के खिलाफ बैठक में शामिल देशों के नेताओं के सामने यह मुद्दा उठाकर पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव डाल सकते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इसके लिए हमारी सरकार तैयार है?
अमेरिकी पैसों से आतंकवाद को बढ़ावा
अमेरिका पर सबसे बड़ा आतंकी हमला करने का गुनहगार ओसामा बिन लादेन, भारत पर सबसे बड़ा आतंकी हमले करने का गुनहगार हाफिज सईद और अफगानिस्तान को आतंकी हमलों से थर्राने वाले हक्कानी नेटवर्क के गढ़ के बारे में क्या समानता है? यही कि इन तीनों का गढ़ पाकिस्तान है। जाहिर है, पाकिस्तान और आतंक अब एक ही सिक्के के दो पहलू हो गए हैं। बहुत सालों तक अमेरिका पाकिस्तान को उसकी आतंकी गतिविधियों के लिए बचाता रहा। लेकिन सबसे पहले अमेरिका को पाकिस्तान की हकीकत का पता चला अफगानिस्तान युद्ध के दौरान। युद्ध के दौरान पाकिस्तान अमेरिका के साथ डबल गेम खेल रहा था। किसी तरह जंग खत्म करने के बाद अपने दर्जनों सैनिकों को खोने के बाद अमेरिका ने पहली बार पाकिस्तान की इस दोहरी नीति पर ध्यान देना शुरू किया। आपको बता दें कि 20 साल से पाकिस्तान का औसत रक्षा बजट 5 बिलियन डॉलर का है। इन 20 सालों में उसे औसतन हर साल 2 बिलियन डॉलर की सैन्य मदद मिली है। यानि अगर अमेरिका पाकिस्तान पर डॉलरों की बरसात करना बंद कर दे तो पाक फौज का टिके रहना मुश्किल हो जाएगा। अमेरिकी जानकारों ने जब पाकिस्तान के रवैये की जांच की तो उनके सामने एक और चौंकाने वाला तथ्य आया। 2010 में अमेरिका ने पाकिस्तान की सबसे ज्यादा आर्थिक मदद की थी और इसी साल अमेरिका के अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा 499 सैनिक शहीद हुए थे। साफ है कि अमेरिका से मिले पैसों को पाकिस्तान उसी के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा था। अब छह साल बाद तो हालात और खराब हो चुके हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को कई बार इस संदर्भ में मौखिक जानकारी दे चुके हैं, लेकिन अमेरिका अपनी व्यापारिक लालसा पूरी करने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार है।

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