15-Dec-2015 10:22 AM
1234823
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में बार, बेंच और एडवोकेट जनरल कार्यालय के बीच विवाद से न्याय जगत में गतिरोध एवं असमंजस से पक्षकार परेशान हैं। दरअसल, पक्षकारों की जरूरत और परेशानी हो नजर अंदाज कर हाईकोर्ट में बेंच और बार

के बीच अहम की लड़ाई छिड़ गई है। इस कारण करीब 5,000 से अधिक केस अधर में लटके हुए हैं। इस लड़ाई की शुरूआत 24 नवंबर को हुई। इस दिन वकीलों पर हो रहे लगातार हमलों के विरोध और एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग को लेकर प्रदेशभर के वकीलों ने प्रतिवाद दिवस मनाया और अदालतों में पैरवी के लिए नहीं पहुंचे। इस पर जबलपुर हाईकोर्ट में मुख्य न्यायधीश की बेंच समेत अन्य अदालतों ने कड़ा कदम उठाते हुए कोर्ट में गैरहाजिर रहे वकीलों के मुकदमें खारिज कर दिए। इस समस्या से निपटने के लिए 26 नंबवर को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की आपात बैठक बुलाई गई और मुख्य न्यायाधीश के तबादले की मांग की गई। मांग पूरी न होती देख वकीलों ने सीजे कोर्ट का बहिष्कार शुरू कर दिया। बार एसोसिएशन लंबे समय से सीजे कोर्ट का बहिष्कार कर रहा था। लेकिन महाधिवक्ता और शासकीय वकील सीजे कोर्ट में पैरवी कर रहे थे। जिसके विरोध में 8 दिसंबर को वकीलों ने महाधिवक्ता कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया था। इस दौरान तोडफ़ोड़ भी की गई थी। बाद में महाधिवक्ता और चार शासकीय अधिवक्ताओं को बार एसोसिएशन ने निलंबित कर दिया था। इससे विरोध और बढ़ गया।
यह मौलिक अधिकार का हनन: बार
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने आरोप लगाते हुए कहा कि जो भी मामले न्यायालय में लगे थे उनमें सरकारी अधिवक्ताओं के उपस्थित न होने से आगे बढ़ा दिए गए। इनमें धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत और धारा 439 के तहत जमानत के जो आवेदन थे उनमें फरवरी और मार्च की तारीख दी गई है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में बार, बेंच और एडवोकेट जनरल कार्यालय के बीच चल रहे विवाद से न्याय जगत में गतिरोध एवं असमंजस से पक्षकार परेशान हैं। अब आरोप लगने लगा है कि हाईकोर्ट के वकील अपनी मनमानी पर उतर आए हैं। वकीलों की हडताल को महाधिवक्ता रवीशचंद अग्रवाल ने गैर कानूनी बताते हुए कहा है कि वकीलों का काम पैरवी करना है। हजारों लोगों को केस लडऩे का हम आश्वासन देते हैं। जबकि किसी भी कानून में वकीलों की हड़ताल का प्रावधान नहीं है। हमने अपना काम किया और पैरवी करने कोर्ट पहुंचे, लेकिन स्टेट बार एसोसिएशन ने इसे अपराध बताते हुए हमारी सनद रद्द करने की पैरवी की, जिससे ऐसोसिएशन के स्तर का पता चलता है। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदर्श मूनि त्रिवेदी ने वकीलों की गैरहाजिरी पर मुकदमे खारिज करने को न्यायिक इतिहास की अभूतपूर्व घटना बताया। त्रिवेदी का कहना है कि बेंच की ओर से बार के प्रति संवेदनशीलता खत्म हो गई है। साथ ही अब वकीलों के हितों में भी बैंच की ओर से प्रयास खत्म हो रहे हैं। ऐसे हालातों में वकीलों के लिए काम करना बेहद मुश्किल साबित हो सकता है।
विधानसभा में भी गूंजा मामला
सरकारी वकीलों के कोर्ट से बहिष्कार के मुद्दे का मामला विधानसभा में भी सुनाई दिया। जबलपुर पश्चिम से विधायक तरुण भनोत ने पूछा कि क्या सरकार ने ऐसा कोई निर्णय लिया है जिसके कारण महाधिवक्ता और सरकारी वकील कोर्ट में उपस्थित नहीं हो रहे हैं। सुंदरलाल तिवारी ने भी इसे गंभीर विषय बताते हुए कहा कि सरकार हाईकोर्ट में अपना पक्ष नहीं रख रही है। क्या सरकार के कहने पर महाधिवक्ता हड़ताल में हैं। विधानसभा अध्यक्ष डॉ.सीतासरन शर्मा ने सदस्यों का पक्ष जानने के बाद कहा कि इस संबंध में जानकारी बुलाई है। इसके बाद ही कोई निर्णय किया जाएगा। उधर विवेक तन्खा का कहना है कि न्यायिक असहिष्णुता के खिलाफ बार की इस लड़ाई में वे पूरी तरह वकीलों के साथ हैं। महाधिवक्ता कार्यालय की बार से पृथक कोई सत्ता बार-बेंच के मसलों में नहीं हो सकती। मैं स्वयं जब महाधिवक्ता था, तब एजी ऑफिस बार के निर्णयों से सदैव बंधा रहा। महाधिवक्ता को चाहिए था कि वे अपने व्यक्तित्व व वरिष्ठता का प्रयोग कर अपने प्रभाव से बार और बेंच के मध्य सामंजस्य पैदा करें, लेकिन वे खुद बार-बेंच के इस सीधे विवाद में तीसरे पक्षकार बन गए। अब देखना यह है कि यह टकराव कहां तक जाता है।
महाधिवक्ता कार्यालय की मांग
कार्यालय में की गई पत्थरबाजी और गालीगलौज करने वाले अधिवक्ताओं को चिन्हित कर समुचित वैधानिक कार्रवाई हो।
विधि अधिकारियों की निलंबित सदस्यता का बहालीकरण हो।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के तत्काल विधिवत चुनाव संपन्न हों तथा जब तक चुनाव नहीं होते तब तक स्टेट बार कौंसिल को उचित आदेश पारित कर प्रशासक नियुक्ति किया जाए।
नवनिर्वाचित होने वाली कार्यकारिणी द्वारा महाधिवक्ता के प्रतिनिधि को मनोनीत करना।
तालाबंदी करने वाले पदाधिकारियों को तालाबंदी स्थान पर पुन: उपस्थित होकर तालाबंदी समाप्त करने की औपचारिक घोषणा करना और यह भरोसा दिलाया जाना कि भविष्य में विधि अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जाएगा, क्योंकि महाधिवक्ता के स्पष्ट निर्देश हैं कि पुलिस किसी भी प्रकार का बल प्रयोग नहीं करेगी।
-जबलपुर से धर्मेंद्र सिंह कथूरिया