अपनी मेहनत से महान स्पिनर बने हैं अश्विन
02-Dec-2015 07:11 AM 1234836

रविचंद्रन अश्विन सीमित ओवर क्रिकेट के बाद अब टेस्ट क्रिकेट में भी स्टार बनकर उभरे हैं और भारत की महान स्पिन परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। रविचंद्रन अश्विन की फिरकी में फंसकर साउथ अफ्रीका की ताकतवर बैटिंग लाइनअप ताश के पत्तों की मानिंद जिस तरह ढहती रही उससे यह संकेत मिल गया है अश्विन आने वाले समय में एक महान स्पिनर जरूर बनेंगे। इस 29 वर्षीय ऑफ स्पिनर ने टेस्ट मैचों में अपने 150 विकेट भी पूरे कर लिए। कभी सिर्फ सीमित ओवर क्रिकेट के गेंदबाज करार दिए गए अश्विन ने टेस्ट में मिली इस शानदार सफलता से महान स्पिनर बनने की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। आखिर क्या वजह है अश्विन की इस सफलता की, आइए जानें।
सीमित ओवर के बॉलर का टैग हटाया
अपने करियर के शुरुआती दिनों में अश्विन को सीमित ओवरों की क्रिकेट का गेंदबाज करार दिया गया। लेकिन नवंबर 2011 में टेस्ट क्रिकेट में अपना डेब्यू करने वाले अश्विन ने पिछले चार सालों में खुद से जुड़े इस मिथ को गलत साबित कर दिखाया है। साउथ अफ्रीका के खिलाफ मोहाली टेस्ट की पहली पारी में 5 विकेट झटकते हुए उन्होंने 29 टेस्ट मैचों में ही अपने 150 टेस्ट विकेट पूरे कर लिए। अश्विन सबसे कम मैचों में 150 टेस्ट विकेट लेने वाले भारतीय गेंदबाज बन गए हैं। उन्होंने इरापल्ली प्रसन्ना (34 टेस्ट), अनिल कुंबले (34 टेस्ट) और हरभजन सिंह (35 टेस्ट) जैसे दिग्ग्जों को पीछे छोड़ते हुए यह उपलब्धि हासिल की है। सबसे कम मैचों में 50 और 100 टेस्ट विकेट लेने का भारतीय रिकॉर्ड भी अश्विन के ही नाम है। इस धाकड़ प्रदर्शन से अश्विन ने उन आलोचकों को गलत साबित कर दिखाया जो उन्हें सिर्फ सीमित ओवर का गेंदबाज कह रहे थे।
खुद में सुधार करते रहते हैं अश्विन
अश्विन को करियर के शुरुआत से ही अपने मारक अस्त्र कैरम बॉल की मदद से वनडे और टी-20 में अपनी पहचान बनाने के लिए ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा लेकिन टेस्ट मैचों में उन्हें खुद को साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने अपनी गेंदबाजी में बदलाव लाया और वनडे की तरह ही जल्द से जल्द विकेट झटकने की कोशिश करने के बजाय अपना ध्यान कसी हुई गेंदबाजी करके बल्लेबाज को बांधने में लगाया। जिसके बाद टेस्ट में भी विकेट मिलने की संभावनाएं बढ़ गईं। वह कहते हैं कि मैंने अपनी कमी को जल्द पहचान लिया और उसे दूर कर लिया। हालांकि अभी कुछ और ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें उन्हें सुधार करने की जरूरत है। मसलन टेस्ट मैचों में विदेशी धरती पर उन्हें अपना प्रदर्शन सुधारने की जरूरत है। जहां घर में खेले गए 16 टेस्ट में वह 103 विकेट चटका चुके हैं तो वहीं विदेशी धरती पर 13 मैचों में 50 विकेट ही ले पाए हैं, इसके लिए उनकी आलोचना भी होती है। अश्विन के अब तक के सफर ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि आने वाले दिनों में वह महान स्पिनर बन सकते हैं, बशर्ते वह समय के हिसाब से अपनी गेंदबाजी और अप्रोच में बदलाव करते रहें।
टैलेंट के साथ टेंपरामेंट ने भी बनाया सफल
अश्विन की सफलता के पीछे उनकी शानदार प्रतिभा का हाथ तो है ही। लेकिन उनके टेंपरामेंट की भी इसमें अहम भूमिका रही है। अश्विन विवादों से दूर रहने वाले जेंटलमैन क्रिकेटर रहे हैं। उनके अंदर न विराट कोहली जैसी आक्रामकता दिखती है न ही हरभजन सिंह जैसा गुस्सा। बल्कि वह सचिन की तरह शांत और कुंबले की तरह धैर्यवान दिखते हैं। उनका टेंपरामेंट ही उनके महान बनने की उम्मीद जगाता है क्योंकि कई बार प्रतिभा होने के बावजूद उसे संभाल न पाने पर विनोद कांबली या शाहिद अफरीदी बन जाने का खतरा रहता है। चेन्नई के एक मध्यमवर्गीय तमिल परिवार से आने वाले अश्विन ने बीटेक की पढ़ाई की है। उनकी मध्यमवर्गीय जड़ें ही उन्हें सफलता पाने के बावजूद भी विनम्र रहना सिखाती हैं, जो काफी हद तक टीम इंडिया और चेन्नई सुपरकिंग्स में उनके कप्तान रहे एमएस धोनी की सफलता की कहानी की तरह ही है।
द्यआशीष नेमा

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