02-Nov-2015 09:35 AM
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फैजाबाद की बीकापुर विधानसभा सीट सपा विधायक मित्रसेन यादव और मुजफ्फरनगर सीट विधायक और अखिलेश सरकार में नगर विकास राज्य मंत्री चितरंजन स्वरूप की मौत के कारण खाली हुई हैं। माना जा रहा है कि

एआईएमआईएम उप्र में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले खुद की ताकत का अंदाजा लगाने के लिए उप-चुनाव में हिस्सा ले रही है। ओवैसी यूपी के उपचुनाव में अपना प्रत्याशी तो उतार रहे हैं लेकिन इसके पीछे उनका तर्क दूसरा है। ओवैसी को इस बात का मलाल है कि अखिलेश सरकार ने कई मौकों पर उनको प्रदेश में जनसभा और अन्य कार्यक्रम करने की इजाजत नहीं दी। वह कहते भी हैं, मैं देखूंगा, उपचुनाव में अखिलेश सरकार मुझे यूपी में आने और जनसभा करने से कैसे रोकती है।Ó
बात उपचुनाव वाली मुजफ्फरनगर नगर विधानसभा सीट की कि जाये तो यहां समाजवादी पार्टी का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है। सपा के खाते में यह सीट सिर्फ दो बार आई। दोनों ही बार सपा नेता चितरंजन स्वरूप की अपनी छवि भी यह सीट सपा की झोली में डालने में काफी काम आई थी। उनकी मौत के बाद सपा के लिये नये प्रत्याशी का चयन करना आसान नहीं होगा। सपा उपचुनाव में यहां से जीत के लिये चितरंजन स्वरूप की मौत का भावनात्मक सहारा भी ले सकती है। 2012 में सपा ने इस सीट पर कब्जा किया था तब यह सीट भाजपा के कब्जे में थी। यहां सपा और भाजपा के बीच जबर्दस्त टक्कर होती रही है। ऐसे में थोड़े वोट भी इधर से उधर होने पर नतीजे प्रभावित हो जाते हैं। अगर ओवैसी ने यहां अपनी दावेदारी पेशकर दी तो समाजवादी पार्टी के लिये अपना यह गढ़ बचाना आसान नहीं होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में स्वरूप ने भाजपा प्रत्याशी अशोक कंछल को करीब 15 हजार वोटों से हराया था जबकि 2007 में इस सीट पर भाजपा के अशोक कंछल जीते थे। इस समय मुजफ्फरनगर की सियासत बदली हुई है। यहां से भाजपा के ही सांसद हैं। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद वोटों का धु्रवीकरण यहां जबर्दस्त तरीके से देखा गया था। अभी भी कमोवेश यही स्थिति है। ग्रेटर नोयडा के दादरी में हुई घटना की तपिश उपचुनाव में भी दिखाई पड़ सकती है। फैजाबाद की बीकापुर विधानसभा सीट सपा के बाहुबली विधायक मित्रसेन यादव की मौक के बाद रिक्त हुई है। 2012 में यहां सपा और बसपा के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला था। 2007 में यह सीट बसपा के कब्जे में गई थी। बसपा ने यहां से रीता बहुगुणा जोशी के मकान पर हमला करने के आरोपी जितेन्द्र कुमार उर्फ बबलू भइया को टिकट दिया था। कहने को तो बीकापुर विधानसभा क्षेत्र भगवान राम की जन्म स्थली वाले जिले फैजाबाद के अंर्तगत आती है। अयोध्या के बल पर भाजपा ने दिल्ली तक पर राज किया, लेकिन 1991 की राम लहर के अलावा भाजपा यहां से कभी जीत नहीं पाई। तब भाजपा के संत राम द्विवेदी ने कांग्रेस के सीताराम निषाद को हरा कर जीत दर्ज की थी। 1991 में भले ही संत राम ने यहां पर भगवा परचम फहराया था, परंतु वह थे पुराने कांग्रेसी ही। 1989 में संत कांग्रेस के टिकट से यह सीट जीते थे।
बात इसी वर्ष के अंत तक संभावित उपचुनाव की कि जाये तो समाजवादी पार्टी जीत का स्वाद तभी चख पाती है जब अल्पसंख्यक उसके साथ आंख मूंद कर खड़ा रहता है। 2012 में अल्पसंख्यकों ने सपा के पक्ष में खुलकर मतदान किया तो सपा की जीत पक्की हो गई, वहीं 2007 में मुस्लिम वोट बंटने और कुछ प्रतिशत वोट बसपा की झोली में जाने के कारण सपा को यहां से हार का सामना करना पड़ा। अबकी यहां सपा के लिये बसपा से बड़ा खतरा ओवैसी साबित हो सकते हैं। ओवैसी अल्पसंख्यकों के दिमाग में यह बात बैठाने की कोशिश कर रहे हैं कि मुसलमानों की दुर्दशा के लिये भाजपा ही नहीं समाजवादी पार्टी जैसे दल और आजम खान जैसे नेता भी जिम्मेदार हैं।
बात बीकापुर विधानसभा सीट की कि जाये तो यहां बसपा वोटरों की भी अच्छी तादाद है। बसपा जैसी की उम्मीद है उपचुनाव से दूरी ही बनाकर रखेगी। ऐसे में बसपा वोटर जिधर भी झुकेगा, उस पार्टी का पलड़ा भारी हो जायेगा। वैसे सच्चाई यह भी है कि बसपा की गैरमौजूदगी में बसपा के वोटर या तो घर से निकलते नहीं हैं और अगर निकलते हैं तो उन्हें समाजवादी पार्टी से अधिक भाजपा रास आती है। 1993 से लेकर 2012 तक मात्र 2007 को छोड़कर समाजवादी पार्टी यहां जीतती रही है। यह विधानसभा क्षेत्र मिश्रित आबादी वाला क्षेत्र है। 2012 में बीकापुर सीट से दो-दो बाहुबलियों ने एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकी थी। सपा ने इस सीट पर कई मामलों के आरोपी मित्रसेन यादव को उतारा है तो उनके सामने बसपा ने जितेंद्र सिंह बबलू को टिकट दिया था जो उस समय फैजाबाद की मिल्कीपुर विधानसभा सीट से सपा विधायक थे। जितेंद्र सिंह बबलू 2007 में यहां से बसपा विधायक थे। मायावती सरकार के समय उनकी पूरी दबंगई थी। बाद में उनकी बसपा से अनबन हो गई। उपचुनाव की आहट शुरू होते ही एक बार फिर से इन क्षेत्रों में बिसात बिछने लगी है और इन्हें सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है।
-लखनऊ से मधु आलोक निगम