मलेरिया बाबू को मच्छरों का सलाम!
17-Oct-2015 08:49 AM 1235106

हमारा देश वीरों-बलिदानियों, दानियों और दयावानों की भूमि रही है। आज के दौर में वीर, बलिदानी और दानी तो ढंूढे भी नहीं मिलते हैं लेकिन दयावान तो मिल ही जाते हैं। ऐसे ही एक दयावान इनदिनों हमारे प्रदेश में खूब चर्चा में हैं। वो हैं मलेरिया बाबू। जी, यह इनका नाम नहीं हैं, बल्कि ये तो मलेरिया विभाग में काम करते हैं और इनकी दया से मच्छरों का कुनबा दिन दुना और रात चौगुना बढ़ रहा है, इस लिए मच्छरों की बिरादरी इन्हें खुब पसंद करती है और इन्हें मलेरिया बाबू कह कर पुकारती है। मलेरिया बाबू को भी मच्छरों से खासा लगाव है। क्योंकि इस दुनिया में मच्छर सबसे अधिक स्वतंत्र प्राणी है। न कहीं आने, न कहीं जाने, न किसी पर बैठने, न किसी को काटने किसी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं। एकदम स्वतंत्र और बिंदास।
इंसान का इंसान के प्रति डर खत्म हुए बरसों हुए। अब इंसान को भगवान का भी डर न रहा। जिन्हें भगवान का जरा-बहुत डर सताता भी है, तो वे उसे जप-तप के बहाने बहला लेते हैं। और, भगवान मान भी जाता है। समय और बदलते परिवेश के साथ भगवान ने खुद को भी बदल डाला है। मगर, एक प्राणी से इंसान इन दिनों बहुत डरा-सहमा हुआ है। उस प्राणी ने इंसान की नाक में दम कर रखा है। न जागते चैन लेने दे रहा है, न सोते। ऊपर से खरचा तो करवा ही रहा है, साथ-साथ ऊपर का टिकट भी कटवा दे रहा है। दरअसल, यह प्राणी कोई और नहीं एक साधारण-सा मच्छर है, वो भी डेंगू का मच्छर। डेंगू के डर के मारे क्या इंसान, क्या शैतान, क्या अमीर, क्या गरीब, क्या भक्त, क्या संत सबकी सिट्टी-पिट्टी गुम है। डेंगू के मच्छर के डंक ने ऐसा कहर बरपाया है कि हर रोज दो-चार के निपटने की खबरें आ ही जाती हैं।
हालांकि डॉक्टर लोग डेंगू से बचने के उपाय निरंतर बतला रहे हैं लेकिन बचाव फिर भी नहीं हो पा रहा। गंदगी डेंगू के मच्छर को भी पसंद है और हमें भी। तो फिर बचाव हो तो कैसे? अब तो भीड़ में जाते, लोगों से मेल-मुलाकात करते हुए भी डर-सा लगता है। क्या पता डेंगू का डंक कहीं हमला न बोल दे। डेंगू के मच्छर का लार्वा इंसान से भी कहीं ज्यादा ढीठ है। तगड़े से तगड़े कीटनाशक का उस पर कोई असर नहीं होता। चाहे क्वॉइल जला लो या हिट छिड़क लो मगर डेंगू का मच्छर न मरता है न ही दूर भागता। और, कब में आकर डंक मारकर भाग लेता है, यह भी पता नहीं चल पाता। ससुरा डंक भी ऐसा मारता है अगर समय पर डाइग्नोस न हो तो अगला खर्च ही हो ले।
कहिए कुछ भी मगर डेंगू के मच्छर ने इंसान की सारी की सारी हेकड़ी निकालकर उसके हाथ में रख दी है। अपने ही घर में डेंगू के मच्छर से ऐसा डरा-डरा घुमता है मानो कोई भूत-प्रेत हो। मजबूरी है, डेंगू के मच्छर को डांट-फटकार भी तो नहीं सकता। मच्छर का क्या भरोसा कब में बुरा मान पीछे से डंक भोंक दे। और, काम तमाम कर जाए।
कोशिशें तो खूब की जा रही हैं, डेंगू के डंक से निपटने की पर मुझे नहीं लगता डेंगू से निपटता इत्ता आसान होगा। आखिर पी तो वो इंसान का खून ही रहा है न। अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि इंसान के खून में कित्ता जहर घुला हुआ है। एक साधारण से मच्छर ने इंसान को चारों खाने चित्त कर दिया है। बताइए, इत्ता बड़ा इंसान पिद्दी भरे मच्छर से पनाह मांग रहा है। मच्छारों का दु:शाहस इसलिए बढ़ रहा है कि मलेरिया बाबू को उनका भरपूर समर्थन जो मिल रहा है। सुनने में आया है कि डेंगू के मच्छर की विल-पॉवर इत्ती मजबूत है कि उस पर किसी भी तगड़े से तगड़े कीटनाशक का कोई असर नहीं होता। अब आप समझ सकते हैं कि मच्छर जिस खून को चूसता है, वो कित्ता जहरीला है। शायद इसीलिए इंसान धरती का सबसे जहरीला प्राणी बनने की ओर अग्रसर है। तब ही तो उस पर किसी की वेदना-संवेदना का कोई असर नहीं होता।
मुझे बड़ा बुरा-सा लगता है, जब लोग डेंगू के लिए बिचारे मच्छर को दोष देते हैं। इसमें बिचारे मच्छर का क्या दोष? उसे जहां अपना पेट भरने का सामान नजर आएगा, वो वहीं जाएगा न। अब इंसान को काटने से उसका पेट भरता है, तो इसमें गलत ही क्या है पियारे। इंसान से लेकर जानवर तक को अपनी सुविधानुसार अपना पेट भरने का हक है।
आपकी तो खैर नहीं जानता लेकिन जब कोई मच्छर मेरा खून चूसने का प्रयास करता है, तो मैं उसे चूसने देता हूं। इस बहाने मेरा गंदा खून कम से कम बाहर तो निकल जाता है। पांच-दस बूंद खून चूस जाने से मैं भला कौन सा दुबला हुआ जा रहा हूं। मच्छर का पेट भरना हमेशा मेरी प्राथमिकता में रहा है। जियो और जीने दो का सिद्धांत मुझे बेहद प्रिय है। मैं तो चाहता हूं, इंसान को डेंगू का डर हमेशा बना रहे। किसी से नहीं डरता, इस बहाने, मच्छर से तो डरेगा ही। डर बहुत जरूर है, चाहे मच्छर का हो या बिच्छू का। डंक लगने के बाद तो डर और भी मारक हो जाता है। फिर बंदा न घर का रह पाता है न घाट का।
यह कहावत- देखन में छोटे लागें, घाव करें गंभीर शायद मच्छरों के लिए ही बनाई गई होगी! इसमें कोई शक नहीं मच्छर का काटा सिर्फ बिस्तर और डॉक्टर की पनाह मांगता है। अगर मच्छर डेंगू का हो तो सोने पर सुहागा। इंसान की सारी हेकड़ी मच्छर दो मिनट में निकालकर रख देता है। चाहे कोई कित्ती ही बड़ी तोप क्यों न हो मच्छर के डंक के आगे हर तोप सील जाती है। पता नहीं क्यों लेकिन हां मुझे डरा-सहमा इंसान बहुत अच्छा लगता है। दिल को बहुत तसल्ली-सी मिलती यह देखकर कि इंसान किसी से डरता भी है। वरना तो इंसान अब न शैतान से डरता है न भगवान से। हर डर का तोड़ निकाल लिया है उसने।
-विनोद बक्सरी

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