02-Oct-2015 09:23 AM
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मप्र के स्वास्थ्य विभाग को काजल की कोठरी कहा जाता है। यानी इस विभाग में कोई कितनी भी ईमानदारी से काम क्यों न करें उस पर काला धब्बा लगना ही है। ऐसा ही एक धब्बा विभाग के पूर्व

प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण पर लगा है। उन पर आरोप है कि डीएफआईडी समर्थित मध्यप्रदेश हेल्थ सेक्टर रिफार्म प्रोग्राम के तहत प्रदेश में मातृ मृत्युदर एवं शिशु मृत्युदर में गिरावट लाने के उद्देश्य से प्रचार-प्रसार करने के लिए दो करोड़ रुपए (200.00 लाख) दिए गए थे। लेकिन विभाग ने प्रचार-प्रसार पर छह करोड़ (601.72 लाख) से अधिक की राशि खर्च कर दी। जब यह पूरा मामला वित्त विभाग को पता चला तो विभाग के प्रमुख सचिव ने 19.06.2014 के कार्यवाही विवरण के बिन्दु क्रमांक 7 के परिपालन में विशेष अंकेक्षण किए जाने का अनुरोध किया गया था। मामला वर्ष 2013-14 का है। बताया जाता है कि योजनांतर्गत मातृ एवं शिशु मृत्युदर रोकने के लिए प्रचार-प्रसार हेतु वित्तीय वर्ष में दो करोड़ रुपए मिले थे, लेकिन यह रकम अपर्याप्त लगी तो तत्कालीन प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण ने उक्त बजट को बढ़ाने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के पास कई पत्र लिखे। यही नहीं उन्होंने मुख्य सचिव का दरवाजा भी खटखटाया लेकिन अतिरिक्त बजट उपलब्ध नहीं कराया गया। ऐसे में उन्होंने 498.41 लाख का व्यय अधिक कर लिया है। यह मामला सामने आते ही इसकी जांच के आदेश दे दिए गए। अपनी जांच रिपोर्ट दिनांक 06 दिसंबर 2014 को विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण को डीओ लेटर लिखकर डीएफआईडी समर्पित गतिविधियों के संबंध में अपर प्रमुख सचिव वित्त की अध्यक्षता में आयोजित बैठक के कार्यवाही विवरण में प्रचार-प्रसार मद हेतु 601.72 लाख का विशेष अंकेक्षण कराया गया। जिसमें निम्न अनियमितताएं पाई गई।
01. प्रकरण में वित्त विभाग के परिपत्र क्रमांक 81/क्र- 1703/चार/ब-1/2011 दिनांक 18.1.2012 में निहित निर्देशानुसार कार्यवाही नहीं की गयी है। इस प्रकार प्रशासकीय अनुमोदन में अनियमितता की गयी है।
02. बजट प्रावधान कराये बिना व्यय किया गया। परिणामत: म.प्र. वित्त संहिता भाग-1 के सहायक नियम-8 एवं 9(2) का उल्लंघन किया गया।
03. राज्य स्वास्थ्य सूचना शिक्षा ब्यूरों की गतिविधियों हेतु रूपये 200 लाख के प्रावधान के विरुद्ध रूपये 601.72 लाख की स्वीकृति दी गयी। उपलब्ध बजट से अधिक राशि की स्वीकृति दिया जाना म.प्र. वित्त संहिता भाग-1, नियम-8 एवं 10 का उल्लंघन है।
04. प्रचार-प्रसार के संबंध में संचालक, राज्य स्वास्थ्य सूचना शिक्षा संचार ब्यूरों द्वारा कार्य योजना का अनुमोदन किये बिना विभिन्न गतिविधियों में रूपये 601.72 लाख के व्यय का अनुमोदन किया गया।
05. नियमानुसार उपलब्ध बजट अनुसार कार्यादेश जारी किया जाना चाहिए। प्रश्नाधीन प्रकरण में बजट आवंटन के कार्योत्तर स्वीकृति की प्रत्याशा में कार्य आदेश जारी किये गये।
06. कार्यादेशों के विरुद्ध कार्य संपादन संबंधी प्रमाणीकरण के अभाव में व्यय मान्य किया जाना संभव नहीं है।
07. बजट के अभाव में रुपये 498.41 लाख के देयक लंबित पाये गये। बजट प्रावधान से अधिक राशि के देयता निर्मित किया जाना म.प्र. वित्त संहिता भाग-1 के नियम-8 एवं 9 का उल्लंघन है।
08. जिलों के विभागीय अधिकारियों द्वारा कराये गये कार्यों के विरुद्ध भुगतान योग्य राशि ज्ञात किये बिना कार्योत्तर स्वीकृति का प्रस्ताव तैयार किया गया है। यह इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि अभिलेख के आधार पर कार्योत्तर स्वीकृति के प्रस्ताव तैयार नहीं कराये गये है।
09. प्रचार-प्रसार गतिविधियों के लंबित देयक राशि रुपये 498.41 लाख में से रुपये 370.44 लाख के व्यय के विवरण लेखा परीक्षण दल को उपलब्ध नहीं कराये गये। जिन व्ययों के विवरण कार्यालयीन अभिलेख में उपलब्ध नहीं है, उन्हें लंबित देयकों की सूची मेंं शामिल करने का आधार स्पष्ट नहीं है।
10. अंकेक्षण में यह भी पाया गया कि वित्तीय अधिकार के बिना कार्यदेश जारी किये गये है।
11. प्रश्नाधीन मद में राज्य शासन से प्राप्त राशि एवं डी.एफ.आई.डी. से प्राप्त राशि का लेखांकन पृथक-पृथक नहीं होने के कारण, संभव है कि राज्य शासन से प्राप्त राशि का उपयोग वित्तीय वर्ष की समाप्ति के उपरांत भी की गयी हो। इस प्रकार बजट प्रक्रिया के उद्देश्यों के विपरीत कार्यवाही की गयी प्रतीत होती है।
12. अत: प्राप्त अंकेक्षण प्रतिवेदन की प्रति संलग्न कर दोषी अधिकारियों/कर्मचारियों के विरुद्ध उत्तरदायित्व निर्धारण करने तथा दोषी अधिकारियों/कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का अनुरोध है। की गई कार्यवाही से इस विभाग को भी अवगत कराने का अनुरोध है।
जबकि मध्यप्रदेश शासन वित्त विभाग के परिपत्र क्रमांक 81/आर-1703/चार/ब-1/2011 दिनांक 18.10.2012 द्वारा आयोजना मद की योजना तथा परियोजनाओं के प्रशासकीय अनुमोदन हेतु दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। जिसके अंतर्गत रु. 10.00 करोड़ तक की कार्ययोजनाओं का परीक्षण स्थाई वित्तीय समिति द्वारा किया जाएगा। उक्त समिति के अनुमोदन के बिना कोई भी मद बजट में शामिल नहीं किया जाएगा। जब तक सक्षम समिति का अनुमोदन प्राप्त न हो तब तक व्यय नहीं किया जा सकेगा। समिति के अनुमोदन पश्चात विभागीय मंत्री द्वारा प्रशासकीय अनुमोदन दिया जाएगा। लेकिन इस कार्ययोजना का सक्षम समिति द्वारा अनुमोदन नहीं किया गया तथा विभागीय मंत्री से भी प्रशासकीय अनुमोदन प्राप्त नहीं किया गया। अत: वित्त विभाग के उक्त निर्देशों के परिपेक्ष्य में कार्ययोजना की प्रशासकीय स्वीकृति दी जाना अनियमित है। साथ ही कार्ययोजना हेतु राज्य शासन से बजट प्रावधान नहीं कराया गया। अत: मप्र वित्त संहिता भाग-1 नियम 8 एवं 9(2) का स्पष्ट उल्लंघन किया गया है। जांच रिपोर्ट में पाया गया कि वित्त वर्ष 2013-14 हेतु डीएफआईडी द्वारा राज्य स्वास्थ्य सूचना शिक्षा ब्यूरो की गतिविधियों हेतु 200.00 लाख रुपए (दो करोड़) का प्रावधान उल्लेखित किया गया है। जबकि कार्ययोजना की स्वीकृति विभाग प्रमुख द्वारा रु. 601.72 लाख (छह करोड़ से अधिक) की दी गई है जो कि उपलब्ध प्रावधानित राशि से अधिक है। अत: स्वीकृत आवंटन से अधिक व्यय की स्वीकृति जारी किया जाना मप्र वित्त संहिता भाग-1 नियम 8 एवं 10 का स्पष्ट उल्लंघन है। वहीं मप्र वित्त संहिता भाग-1 खंड-4 नियम 64 के प्रावधान अनुसार व्यय की स्वीकृति के प्रत्येक आदेश में यह स्पष्ट बताना चाहिए कि किस मद में व्यय हेतु कितने बजट की व्यवस्था है। अभिलेखों के परीक्षण में पाया गया कि संचालक, राज्य स्वास्थ्य शिक्षा ब्यूरो द्वारा बिना बजट आवंटन के कार्योत्तर स्वीकृति की प्रत्याशा में कार्य आदेश जारी किए गए जो कि अनियमित है। साथ ही जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्ययोजना में उल्लेखित गतिविधियों के संबंध में कोई अभिलेख संधारित नहीं किए गए। अत: कार्ययोजना ने स्वीकृत कार्य वास्तव में कराए गए हैं अथवा नहीं यह स्पष्ट नहीं हुआ। जिले स्तर पर तथा संभाग स्तर पर कराए गए प्रत्येक कार्य का योजनावार अभिलेख रखा जाना चाहिए। अभिलेखों के अभाव में उक्त कार्यों पर कराया गया व्यय संदिग्ध प्रतीत होता है इसलिए गबन की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। विभाग के प्रमुख सचिव आशीष उपाध्याय ने उक्त मामले से वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव को अवगत करा दिया है। सूत्र बताते हैं कि उक्त घोटाले की शिकायत आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में भी कर दी है। वहीं तत्कालीन प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण से उनके मोबाइल पर बात करने की कोशिश की गई पर उन्होंने सेल फोन नहीं उठाया। इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव से लेकर विभागीय मंत्री तक मौन है।
-सिद्धार्थ पांडे