02-Sep-2015 06:42 AM
1234989
रुद्राक्ष माला ने खोली तेनाली की पोल
एक बार महाराजा कृष्णदेव राय ने शहर के बाहर एक सुंदर मंदिर बनवाने का ऐलान किया। उन्होंने मंदिर में राधा-कृष्ण का सुंदर मूर्ति स्थापित कराने की सोची। मंदिर बनवाने का काम उन्होंने एक अनुभवी मंत्री को सौंपा। मंत्री ने पास की पहाड़ी पर एक सुंदर जगह को मंदिर के लिए चुना। मंदिर के लिए खुदाई शुरू हो गई। अचानक खुदाई में से राधा-कृष्ण की सुंदर-सी सोने की मूर्ति निकली।
सोने की मूर्ति देखकर मंत्री के मन में लालच आ गया। खुदाई करने वाले मजदूरों से कहा, मूर्ति निकलने की बात किसी से न कहना और रात में चुपके से मूर्ति को मेरे घर पहुंचा देना। इस काम के लिए मजदूरों को एक-एक सोने का सिक्का दिया जाएगा। यह काम कहे अनुसार रात में पूरा हो गया।
बस एक गड़बड़ी हो गई। मजदूरों में से एक तेनालीराम का जाना-पहचाना था। उसने जाकर तेनालीराम को सारी बात बता दी। तेनालीराम लालची मंत्री को सबक सिखाने के लिए सही वक्त का इंतजार करने लगे। मंदिर तेजी से बनने लगा। इसी दौरान एक दिन दरबार में चर्चा होने लगी की राधा-कृष्ण की मूर्ति कैसी हो, किस धातु की हो और किसे बनाने को दी जाए?
तभी दरबार में लंबी दाढ़ी, भगवा कपड़े और गले में रुद्राक्ष की माला पहने एक संन्यासी अलख-निरंजन कहते हुए घुसे। सबका ध्यान उनकी ओर चला गया। संन्यासी ने कहा, महाराज, सुना है आप मंदिर बनवा रहे हैं, लेकिन आपको मूर्ति बनवाने के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। महाराज ने पूछा, क्यों?
संन्यासी ने दरबारियों की तरफ उंगली घुमाई और मूर्ति हड़पने वाले लालची मंत्री पर टिकाकर बोले, क्योंकि कल रात भगवान मेरे सपने में आए और बोले कि इन मंत्री महोदय के पास राधा-कृष्ण की सोने की मूर्ति तैयार है। मंत्री एकदम सकपका गया। सोचा, झूठ बोलूंगा तो महाराज कड़ी सजा देंगे, सो उसने डरते-डरते सच उगल दिया।
बस, मेरा काम हो गया, यह कहकर संन्यासी वहां से चला गया। महाराज ने लालची मंत्री को सजा का ऐलान किया, तभी तेनालीराम दरबार में हाजिर हुए। महाराज ने उन्हें गौर से देखा और कहा, वाह तेनालीराम, दाढ़ी-मंूछ और भगवा कपड़े तो उतार दिए, पर गले में लटकती रुद्राक्ष की माला तो उतारना भूल ही गए! महाराज और तेनालीराम के साथ सारे दरबारी खिलखिलाकर हंस पड़े।
-अनाम