03-Apr-2013 10:18 AM
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नारी शक्ति स्वरूप साधना की सशक्त अवधारणा है। जहाँ प्रजनन एवं विकास दोनों ही समाहित हैं। नारी देवी है, देवी की शक्ति से सभी भली-भांति परिचित हैं। फिर ही आज नारी ही सबसे ज्यादा प्रताडि़त है। इस प्रताडऩा में नारी की सहजता समाई है, पर जब उसकी सीमा समाप्त हो जाती है, तब उसके प्रचण्ड रूप को भी देखा जा सकता है, जहाँ विनाश की अवधारणा स्वत: जनित हो जाती है। पूजा योग्य नारी ही आज सबसे ज्यादा उपेक्षित एवं कुंठित है। कन्या-भ्रूण हत्या से लेकर दहेज की बलिवेदी की शिकार महिलायें आज हर तरह के शोषण की गिरफ्त में देखी जा सकती हैं। जिसे देवी स्वरूप मानकर पूजे जाने की बात हर कौम एवं हर धर्म में कही है।
उसे आज उसी सभ्य समाज से आस्तित्व के लिए लडऩा पड़ रहा है, जिसे वो देवी के रूप में पूजता है। घर समाज में होने वाले आडंबरों में सर्वप्रथम कन्या देवी का पूजन करने वाला आडंबरी समाज अपनी इन कन्या देवियों को जन्म से पहले ही उखाड़ फैंक देना चाहता है। कहा जाता है जहां नारी का सम्मान होता है, वहीं देवता वास करते हैं। भारतवासी जहां धन की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती, शक्ति रूपा माँ भवानी, शील धैर्य की देवी माँ गायत्री की पूजा करते हैं, नवरात्रों में माँ दुर्गा के रूप में कन्याओं का पूजन करने में अपना सौभाग्य मानते हैं। वहीं कन्या के जन्म लेते ही घर में मातम का माहौल बन जाता है। बेटी के नाम पर सौ-सौ कसमें खाने वाला समाज बेटी को उसकी मां की कोख में ही दफनाने में गुर्रेज नहीं करता। यह संकीर्ण विचारधारा, एक जाति, एक प्रांत की नहीं अपितु समस्त भारत वर्ष सहित पूरे विश्व की है। पितृ सत्तात्मक समाज में पुत्र कामना को व्यापार जगत ने खूब भुनाया और व्यापारिक सोच वाले डॉक्टरों ने इसका खूब फायदा उठाते हुए अल्ट्रासाउंड के माध्यम से लिंग चयन कर मां की कोख को नंगा कर दिया। पुत्रेच्छा के चलते धड़ाधड़ देवियों का कत्ल आज के असुरों द्वारा होता गया। जो देवियां इस कत्लेआम से बच गई, उनकों भी तरह-तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ता है। घरेलू हिंसा, यौन उत्पीडऩ, बलात्कार, आदि घटनाओं से पीडि़त रहती है महिलाएँ। इतना ही नहीं मां-बाप द्वारा बचपन से जवानी तक भेदभाव करना तथा वंदिशों की जंजीरों में जकड़ (शादी)कर किसी भी युवक के खूंटे से बंधना ही उनकी तकदीर बन जाती है।
हमारे समाज में माँ लक्ष्मी की पूजा होती है धन की देवी के रूप में, वहीं देवीरूपा नारी पैसे-पैसे को मोहताज है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक नारी को पैसे के लिए पुरुष की तरफ ताकना पड़ता है। बचपन में बेटे को भरपूर जेबखर्च और बेटी को केवल टिफिन से ही संतोष करना पड़ता है। इतना ही नहीं जवानी में पति से और बुढापे में बेटों से रोजमर्रा की जरूञ्रत पूरी करने की मांग रखते हुए जीवन गुजारती है। अधिकांश कामकाजी महिलाएँ भी वेतन मिलते ही सारा वेतन अपने पति की झोली में डाल देती हैं। समाज की अजब माया, माया (लक्ष्मी) पर माया-पति का राज।
माँ सरस्वती, विद्या की देवी भी नारी रूपा है। पूरा विश्व वीणावादिनी माँ सरस्वती की अराधना करता है, लेकिन स्वयं नारी के भाग्य में माँ सरस्वती की कृपा कम ही होती है। लड़कियों को शिक्षा से दूर ही रखा जाता रहा है। कुछ वर्ष पहले तक तो लड़की और शिक्षा का कोई नजदीकी संबंध नहीं होता था। यदि कोई लड़की पढऩे की जिद्द करती भी तो यह कहकर चुप करा दिया जाता कि तूने कौनसी नौकरी करनी है। चूल्हा-चौका ही तो करना है। पढ़ लिखकर क्या करेगी? इतना ही नहीं कुछ दशक पहले तो लोग लड़कियों को बिल्कुल भी नहीं पढ़ाते थे। उनका मानना था यदि बेटी थोड़ा बहुत भी पढ़-लिख गई, तो ससुराल में कुछ भी दु:ख-तकलीफ होते ही पत्र डाल देगी और हमें उसकी दु:ख-तकलीफ में शरीक होना पड़ेगा। इस बात को यदि यूं कहे की पराया धन बेटी की शादी के बाद उसकी बलाएँ अपने सिर लेने से बचने के लिए भी लड़कियों को अशिक्षित रखा जाता था, लेकिन अब लड़कियों को शिक्षित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
शक्ति की देवी माँ दुर्गा भी नारी है, लेकिन भारतीय समाज में नारी कितनी शक्तिशाली है। इसका अंदाजा आस-पास देखकर सहजता से लगाया जा सकता है। पति को देवता मानने वाली भारतीय नारी को उसका देवता क्या देता है- लात, घूसें और गाली। सहनशील देवी रूपा नारी सब कुछ सहती है, अबला बन कर। भारतीय संस्कृति में देवी दु:ख में है, नारी रूपा देवी लक्ष्मी धन-धान्य से विहीन हो गई। माँ सरस्वती की कृपा नारी पर नहीं रही। तथा शक्ति रूपा माँ दुर्गा ने अपना शक्ति दुर्ग, नारी जाति के लिए बंद कर दिया। सचमुच देवी दु:ख में है।
नारी अत्याचार रुपी महिषासुर का मर्दन करने के लिए माँ दुर्गा को पुन: अवतरित होना होगा, वर्तमान देवी का दु:ख का हरण करने हेतु।
सर्व शक्तिमान माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वति, माँ भवानी, माँ दुर्गा अधिष्ठस्नत्री देवियों के रूप में कन्याओं को पूजने वाले देश में कन्यावर्ग भला इतना कमजोर कैसे हो गया। स्त्रियों के धैर्य एवं सहनशीलता को पुरुष समाज उनकी कमजोरी समझ बैठा। स्त्री वर्ग को अपनी शक्तियों का धैर्य और संयम से उपयोग करते हुए समाज में अपना स्थान बनाना होगा। सर्वप्रथम नारी को संकुचित एवं संकीर्ण मानसिकता का त्याग कर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा। नारी समाज की उपलब्धियों को समाज के सामने लाना होगा। प्रत्येक महिला को इंदिरा गाँधी, कल्पना चावला, मदर टैरेसा, प्रतिभा पाटिल, लक्ष्मी कांता चावला, किरण बेदी की भांति अनुसरणीय कार्य करते हुए स्वयं को समाज में एक सम्मानजनक स्थान हासिल करना होगा।
वहीं पुरुष समाज को नारियों को सम्मान जनक तरीके से बराबरी का दर्जा देना चाहिए। संसार में जीव स्त्री-पुरुष के संसर्ग से ही उत्पन्न होता है। लड़का-लड़की दोनों ही माँ के गर्भ में नौ माह रहकर जन्म लेते हैं, माँ का दूध व बाप का प्यार पाते हैं। फिर नर-मादा का अंतर क्यों? पुरुषों को अहंकार त्याग स्त्रियों को समानता देनी ही होगी।
राजेंद्र गुप्ता