16-Aug-2015 11:02 AM
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पूर्व मुख्य सचिव और मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग के चेयरमेन रहे राकेश साहनी का एनवीडीए के चेयरमेन के पद पर पुनर्वास विवादों में घिरता नजर आ रहा है। साहनी दिसंबर 2014 तक

मध्यप्रदेश विद्युत सुधार अधिनियम के तहत बनाए गए मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग के चेयरमेन थे। अधिनियम के अनुसाार नियामक आयोग का सदस्य रहे किसी भी व्यक्ति की पद से हटने के बाद सरकार या उसके अधीन किसी भी निकाय में नियुक्ति नहीं की जा सकती है। अब जबकि मामला धीरे-धीरे तूल पकड़़ता जा रहा है तो जहां एक ओर मुख्य सचिव के सामने इधर कुआं उधर खाई की स्थिति है वहीं मुख्यमंत्री सचिवालय के कर्ताधर्ता मुख्यमंत्री के हाथों जाने-अजाने हुई इस विधिक भूल पर जो कल को अपराध के दायरे में भी आ सकती है, पर फिलहाल वेट एंड वॉचÓ की रणनीति अपनाए हुए है। हालांकि जिस तरह से साहनी को चाहने वालीÓ लॉबी सक्रिय हो चुकी है उसके चलते आज नहीं तो कल मुुख्यमंत्री के सामने अप्रिय स्थिति खड़ी होना तय है। एनवीडीए के मुकदमों का क्या होगा एनवीडीए और केंद्र सरकार के संयुक्त उपक्रम एनएचडीसी के कई मामले भी विद्युत नियामक आयोग के सामने सुनवाई के लिए जाते हैं। साहनी के चेयरमेन बनाए जाने के बाद एनवीडीए के सामने दो ही विकल्प हैं या तो वह कम से कम अगले एक साल तक आयोग के समक्ष चल रहे मामलों को पेंडिंग रखें या फिर केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग का दरवाजा खटखटाए। दरअसल, यहां भी विद्युत सुधार अधिनियम का वह प्रावधान (धारा 5(8)) मुश्किलें खड़ी करेगा, जिसमें स्पष्ट तौर पर यह कहा गया है कि नियामक आयोग का सदस्य रहा कोई भी व्यक्ति कम से कम दो साल तक आयोग के समक्ष किसी भी तरह की पैरवी तक नहीं कर सकता। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि नियामक आयोग के समक्ष जाने वाले मामलों में एनवीडीए क्या रुख अपनाता है। क्या कहता है अधिनियम मध्यप्रदेश विद्युत सुधार अधिनियम 2000 में विद्युत नियामक आयोग के सदस्य की पात्रता शर्तों (धारा 5(6,7)) में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जो कोई भी व्यक्ति नियामक आयोग का सदस्य रहा हो उसे किसी भी कारण से पद से मुक्त होने के बाद राज्य सरकार के अधीन किसी भी निकाय में नियुक्ति नहीं दी जा सकती। यही नहीं, विद्युत सुधार अधिनियम में यह भी बंधन लगाया गया है कि यदि शासकीय सेवा के किसी व्यक्ति को आयोग में नियुक्त किया जाता है तो उसे सरकारी नौकरी से त्यागपत्र या वीआरएस लेना पड़ेगा, लेकिन राकेश साहनी के मामले में अधिनियम को ताक पर रख उन्हें 12 जुलाई 2015 को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) का चेयरमेन बना दिया। यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब व्यापमं मामले के चलते पहले से ही बैकफुट पर खड़ी सरकार के सामने साहनी का पुनर्वास एक नई मुश्किल पैदा कर सकता है। पहले मंत्री होता था चेयरमेन पूर्व में परंपरा यह थी कि नर्मदा घाटी मामलों का मंत्री ही चेयरमेन होता था। कन्हैयालाल अग्रवाल के हटने के बाद लंबे समय तक यह पद खाली पड़ा रहा। नतीजतन बोर्ड बैठक के अभाव में नर्मदा घाटी से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय लंबित पड़े रहे। नई सरकार के गठन के बाइ लाल सिंह आर्य की चेयरमेन पद पर नियुक्ति तय मानी जा रही थी, लेकिन मुख्यमंत्री की सहमति नहीं होने पर इसे हरी झंडी नहीं दी गई।
एनवीडीए के मुकदमों का क्या होगा
एनवीडीए और केंद्र सरकार के संयुक्त उपक्रम एनएचडीसी के कई मामले भी विद्युत नियामक आयोग के सामने सुनवाई के लिए जाते हैं। साहनी के चेयरमेन बनाए जाने के बाद एनवीडीए के सामने
दो ही विकल्प हैं या तो वह कम से कम अगले एक साल तक आयोग के समक्ष चल रहे मामलों को पेंडिंग रखें या फिर केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग का दरवाजा खटखटाए। दरअसल, यहां भी विद्युत सुधार अधिनियम का वह प्रावधान (धारा 5(8)) मुश्किलें खड़ी करेगा, जिसमें स्पष्ट तौर पर यह कहा गया है कि नियामक आयोग का सदस्य रहा कोई भी व्यक्ति कम से कम दो साल तक आयोग के समक्ष किसी भी तरह की पैरवी तक नहीं कर सकता। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि नियामक आयोग के समक्ष जाने वाले मामलों में एनवीडीए क्या रुख अपनाता है।
-इंदौर से सुनील सिंह