मप्र के जंगल नक्सलियों की पनाहगार
16-Aug-2015 10:29 AM 1234932

छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के घने जंगल माओवादियों की पनाहगार बनते जा रहे हैं। माओवादियों के लिए ओडिशा, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश सुरक्षित पनाहगार है। छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे आंध्रप्रदेश में पुलिस का नेटवर्क तगड़ा होने के भय से माओवादी वहां जाने से डरते हैं। जिससे मध्यप्रदेश के जंगलों की ओर माओवादी भागते हैं। माओवादियों ने मध्यप्रदेश में सुरक्षित पनाह लेने के लिए राजनांदगांव के रास्ते नया कॉरीडोर बनाया है। वे नारायणपुर, कांकेर के जंगली इलाके से राजनांदगांव के जंगलों से होकर मध्यप्रदेश के सीमावर्ती जिले शहडोल, मंडला, डिंडौरी, बालाघाट पहुंचते हैं। इसके साथ ही उमरिया और अनूपपुर के जंगलों को भी संभावित माना जाता है। बालाघाट में वर्चस्व गंवा चुके नक्सली संगठन पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) ने दोबारा अपना दबदबा बनाने के लिए गोपनीय तरीके से एक बड़ी योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। पुलिस सूत्रों ने बताया कि नक्सलियों ने इस जिले को अपनी दमदार मौजूदगी वाले महाराष्ट्र के गढ़चिरौली डिवीजन में शामिल कर अपने पुराने तीनों दलम मलाज खंड, परसवाड़ा और टांडा की गतिविधियां तेज कर दी है। नक्सलियों की योजना छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र  की सीमा से लगे बालाघाट जिले को अपना डिवीजनल मुख्यालय बनाकर इसे पश्चिम बंगाल के लालगढ़ के अभेद्य दुर्ग की तरह बनाने की तैयारी है। बालाघाट में पिछले कुछ सालों में नक्सलियों के केवल एक दलम मलाजखंड की सक्रियता देखी गई है। इसमें नक्सलियों की संख्या आमतौर पर 14 या 15 ही रही है। जबकि यहां पूर्व में सक्रिय रहे परसवाड़ा और टांडा दलम की यहां मौजूदगी न के बराबर ही बची थी। लेकिन पिछले कुछ माह से यहां नक्सलियों के चार-पांच ग्रुपों के मौजूद होने की खबरें पुलिस को मिल रही हैं। इन ग्रुपों ने लांजी और पझर थाना क्षेत्र के अलावा भरवेली, हट्टा, बैहर, किरनापुर और बालाघाट के ग्रामीण थाना क्षेत्रों में भी मूवमेंट बढ़ा दी है। बालाघाट के पुलिस अधीक्षक गौरव कुमार तिवारी कहते हैं कि नक्सलियों की गतिविधियों को पूरी तरह समाप्त करने की दिशा में पुलिस एक्शन प्लान भी चला रही हैं। इसके साथ ही विशेष बल भी जंगलों में लगातार सर्चिग कर रहा है। हाल ही में हमने नक्सलियों का एक सरगना पकड़ाया है। जिसे रिमांड में लेकर लगातार पूछताछ भी चल रही है। इससे कई अहम सुराग भी सामने आ सकता है।
प्रदेश के आठ जिले बारूद के ढेर पर
गृह मंत्री बाबूलाल गौर कहते हैं कि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में नक्सलवादियों द्वारा की जा रही बड़ी वारदातें मप्र के लिए भी खतरे की घंटी हैं। केंद्र सरकार ने बालाघाट को ही नक्सल प्रभावित माना है जबकि सीधी, सिंगरौली, मंडला, डिंडौरी, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया  आदि जिले भी नक्सल प्रभावित हैं। प्रदेश पुलिस की सतर्कता के कारण अभी यहां नक्सलवाद पूरी तरह सक्रिय नहीं हो पा रहा है। गृहमंत्री के इन दावों के इतर सत्य यह है कि भोपाल सहित करीब एक दर्जन से ज्यादा जिलों में नक्सली अपनी आमद दे चुके हैं। मप्र में घटनाओं, गतिविधियों और भौगोलिक दृष्टि से शासन ने भले ही 8 जिलों को नक्सल प्रभावित माना है। लेकिन इनकी गतिविधियां अन्य जिलों में भी चल रही है। इनमें बालाघाट के बाद सिंगरौली ही सर्वाधिक नक्सल प्रभावित माना गया है। लेकिन केन्द्र सरकार ने एसआरई में केवल बालाघाट को ही नक्सल प्रभावित जिले का दर्जा दिया है। एसआरई के तहत आने वाले जिले में नक्सलवाद को खत्म करने सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर प्रयास किए जाते हैं। इसके लिए केन्द्र सरकार अलग से आर्थिक मदद करता है। मालवा-निमाड़ के आदिवासी जिले धार-बड़वानी में नक्सली से हटकर दूसरे तरह की गतिविधियां सामने आ चुकी हैं। इसलिए सुरक्षा के नाते इन जिलों को भी सतत निगरानी के लिए रखा गया है। फिलहाल, बालाघाट में नक्सल मूवमेंट रोकने और प्रभावित दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में अब सड़क, पुल-पुलिया सहित अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट के काम को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार स्पेशल इंडियन रिजर्व बटालियन (एसआईआरबी) का गठन करेगी। इसमें सात कंपनियां होंगी, जिसमें दो में सिर्फ इंजीनियरिंग वाले अफसर और जवान ही रहेंगे। गृह मंत्रालय की अनुमति के बाद राज्य सरकार ने बटालियन के गठन का प्रस्ताव तैयार किया है। इसे कैबिनेट में लाया जाएगा। दरअसल केन्द्र सरकार इन क्षेत्रों के विकास के लिए भारी भरकम पैकेज तो दे रहा है, लेकिन नक्सली गतिविधियों के चलते सरकारी एजेंसी या निजी ठेकेदार विकास कार्य पूरा नहीं कर पाते। इन परिस्थितियों से निपटने के लिए नक्सल प्रभावित जिलों की कमान अब एसआईआरबी को सौंपी जा रही है। 1070 जवानों वाली बटालियन में पांच कंपनियों में 770 अफसर और जवान होंगे। वहीं इंजीनियरिंग वाली दो कंपनियों में 300 अफसर और जवान रहेंगे। इस बटालियन के लिए केन्द्र सरकार सात वर्ष तक 65 फीसदी राशि देगी शेष 35 फीसदी राज्य सरकार को मिलाना होगी।

टाइगर रिजर्व बने सुरक्षित स्थान
मप्र में पेंच, कान्हा और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व होने के कारण यहां आरक्षित वन हैं। जंगल होने से इनमें मानव एवं सुरक्षाबलों की गतिविधियां कम हैं। इस कारण माओवादियों के लिए यह सुरक्षित स्थान बनते जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार सीमावर्ती जंगलों में माओवादियों की गतिविधियां बढ़ रही हैं। नर्मदा, टांडा और सोन नदी को माओवादी लंबे समय से आवाजाही के लिए उपयोग करते आ रहे हैं। नक्सल प्रभावित माना जाने वाले बालाघाट में माओवादियों के अभी भी कई दलम सक्रिय हैं। टांडा दलम से लेकर मलाजखण्ड, देवरी और परसबाड़ा दलम की एक्टिविटी मिलती है। माओवादी छत्तीसगढ़ में वारदात करने के बाद मप्र को छिपने के लिए उपयोग कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो माओवादी सुरक्षा के दबाव के चलते टांडा और सोन नदी का भी उपयोग करते हैं।
-भोपाल से अजय धीर

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