जासूसी के जाल में उलझे मंत्री
04-Jul-2015 07:10 AM 1234838

जासूसी के जाल में उलझे मंत्री कभी नीरा राडिया टेप प्रकरण ने भारत की राजनीति को खंगाल दिया था। अब दिल्ली के एंटी करप्शन ब्यूरो की खरीद सूची में जासूसी उपकरणों का उल्लेख होने से खलबली मची हुई है कि कहीं केजरीवाल जासूसी तो नहीं करवा रहे हैं। हालांकि केजरीवाल सरकार ने साफ कर दिया है कि एसीबी को केवल फोटो स्टेट मशीन चाहिए। जासूसी उपकरणों की बात गलतफहमी फैलाने के लिए की जा रही है। कांग्रेस, भाजपा ने तो इस मुद्दे को लेकर केजरीवाल सरकार के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया है। आम आदमी पार्टी जासूसी का जोखिम शायद ही उठाए क्योंकि ऐसा होने पर हमाम में सबसे पहले उसी के कपड़े उतरेंगे। इसलिए केजरीवाल फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। राजनीति के अनुभव उन्हें मंझा हुआ खिलाड़ी बना ही डालेंगे।
लेकिन जासूसी की बात गलत नहीं है। नितिन गडकरी के कार्यालय से जासूसी उपकरण बरामद होने  की अफवाह फैली थी। बाद में सुषमा स्वराज के विषय में भी सुना गया कि उनकी जासूसी की जा रही है। फिर तमाम मंत्रियों और नौकरशाहों की जासूसी की बात सामने आई। एक कैबिनेट मंत्री तो अपने कार्यालय से दोपहर में निकले और किसी निजी काम से जा रहे थे उसी समय उन्हें वापस कार्यालय लौटने का हुक्म मिला। बाद में कार्यालय जाने पर मंत्री को उनके विश्वस्तों ने बताया कि उन्हें वापस बुलाने के लिए जो संदेश आया था, उस संदेश वाहक को उनकी लोकेशन भी पता थी कि वे कहां हैं। मंत्री को यह बड़ा अजीब लगा। बात आई-गई हो गई। जासूसी का यह खेल भाजपा के भीतर प्रमुख रूप से चल रहा है। केंद्र और अधिकांश राज्यों में भाजपा सत्तासीन है। सत्ता की अपनी खासियत होती है। सत्ता में भेद-नीति का भी बहुत महत्व है। प्रधानमंत्री के हाथ में सत्ता के ज्यादातर सूत्र होते हैं। एक जमाने में इंदिरा गांधी के पास अपने मंत्रियों की पल-पल की सूचना रहती थी। उस समय एक जुमला मशहूर था कि अमेरिका से बचना आसान है इंदिरा से बचना असंभव। हाल ही में अमेरिका ने खुलासा किया है कि उसने फ्रांस के तीन राष्ट्रपतियों की जासूसी करवाई थी। भारतीय एजेंसियां विदेशी जासूसी से बहुत पहले से वाकिफ हो चुकी हैं। डीआरडीओ को भी पता है कि भारत में विदेशी कंपनियों और एजेंसियों द्वारा जासूसी की जा रही है। भारत के पास इस जासूसी को रोकने की तकनीक नहीं है। डीआरडीओ के प्रमुख अविनाश चंदर ने उस समय बताया था कि विदेशों से प्राप्त हथियार प्रणाली में मालवेयर या स्नूपिंग वायरस की मौजूदगी पता लगाना भारत के बस की बात नहीं है। इससे साफ होता है कि तकनीक के मामले में हम कितने दयनीय हैं। भारत में जासूसी अत्याधुनिक तरीके से की जा रही है। जिसकी खबर उन लोगों को नहीं है जिनके पल-पल का ब्योरा सुरक्षित रख लिया गया है। स्नूपिंग सॉफ्टवेयर के द्वारा कम्प्यूटर के अलावा टैब, स्मार्ट फोन जैसे तमाम डिवाइज जिनका उपयोग दैनिक जीवन में किया जाता है, जासूसी के काम में लाए जा सकते हैं। अमेरिका में तो अब होम थियेटर से लेेकर इलेक्ट्रिक वॉच को भी सुरक्षित नहीं माना जाता। भारत में राजनेेता इतने निरीह हैं कि उनके विश्वसनीय ही उनकी रिकॉर्डिंग कर लेते हैं। हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भी टेप सामने आ गए हैं जिनमें वे कथित रूप से किसी प्रत्याशी को विधायक से ज्यादा समर्थ और ताकतवरÓ बनाने का आश्वासन देते नजर आते हैं। जाहिर है आपसी बातचीत में इसे रिकॉर्ड किया गया होगा। यह सच है या झूठ, इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। लेकिन अनेक नेताओं पर दबाव बनाने या उनका चरित्र हनन करने के लिए जासूसी का हथियार बहुत कारगर है। दिल्ली में तो यह कहा जाता है कि रामलीला मैदान से लेकर साउथ ब्लॉक और नार्थ ब्लॉक तक जासूसी का जाल बिछा हुआ है। शायद यह सच हो, या न हो। भारत में जासूसी उपकरणों की बिक्री पर कोई कानूनी रोक नहीं है। सिर्फ रात में देखने वाली नाइट विजन दूरबीन और कैमरे आम जनता को उपलब्ध नहीं हैं लेकिन बहुत सी वेबसाइट खुलेआम इन्हें बेच रही हैं। सॉफ्टवेयर के द्वारा स्मार्टफोन और पीसी, लैपटॉप आदि के आईपी एडे्रस में सेंध लगाई जा रही है। इसके अलावा भी कई जासूसी उपकरण बाजार में खुलेआम उपलब्ध हैं। इनमें 2 से 16 जीबी का पेन कैमरा, जासूसी ब्लूटूथ कैमरा जिसमें वीडियो रिकॉर्डिंग हो सकती है, कार की चाबी में फिट होने वाला की चैन कैमरा, शर्ट की बटन में फिट होने वाला स्पाइक बटन कैमरा, जीएसएम वॉइस बग बहुत ही खतरनाक जासूसी उपकरण है, इसे कहीं भी लगाकर इसमें एक सिम इंसर्ट करनी पड़ती है जिसके बाद आस-पास का सारा वार्तालाप सुनाई पड़ता है। दिखने में यह किसी यूएसबी डिवाइज जैसे पेनड्राइव आदि के जैसा दिखता है लेकिन इसकी फ्रीक्वेंसी 1900 तक हो सकती है। यह बिना रुके 24 घंटे चल सकता है। इसके अलावा घर में रखी टेबल घड़ी को जासूसी कैमरे में बदलने की विधि आ गई है। इससे भी ज्यादा खतरनाक है एडाप्टर प्लग स्पाई कैमरा। इस कैमरे को बिजली के बोर्ड में एडाप्टर प्लग जैसे लगा दिया जाता है और आस-पास की रिकॉर्डिंग हो जाती है। अब तो आईडेंटिटी कार्ड, कैल्युलेटर, हाथ घड़ी से लेकर कोकाकोला के कैन में लगे हुए कैमरे आने लगे हैं। पीसी मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर और मोबाइल स्पाईवेयर इस वक्त भारत में धड़ल्ले से प्रयुक्त हो रहा है। किसी का भी स्मार्टफोन सुरक्षित नहीं है। बातचीत कहीं भी सुनी जा सकती है और डाटा भी उड़ाया जा सकता है। यह तो तकनीक की बात है लेकिन दो लोगों की बातचीत जब तीसरे को हू-ब-हू पता लग जाती है, तो लगता है कहीं न कहीं दाल में काला है।
वसुंधरा राजे और सुषमा स्वराज का प्रकरण भाजपा की अंदरूनी कलह और जासूसी का परिणाम है। विपक्ष को इस विषय में कोई भनक नहीं थी। यह बात किसने लीक की और विपक्ष तक सिलसिलेवार सारी जानकारी कैसे पहुंच गई, इस पर जांच करने की मांग भाजपा के ही कुछ नेता कर चुके हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि भाजपा के भीतर एक-दूसरे की जासूसी तो की
ही जा रही है उसके साथ-साथ खबरें भी लीक की जा रही हैं। पिछले दिनों ऐसी कई खबरें उड़ीं, जिनमें बाहर निकली जानकारी अत्यंत गोपनीय थी।

अमेरिका कर रहा है जासूसी
फ्रांस के राष्ट्रपतियों की जासूसी की बात तो अमेरिका ने खुलेआम स्वीकार कर ली है लेकिन अमेरिका की नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी ने ऐसे सॉफ्टवेयर विकसित किए हैं जिनसे दुनिया के किसी भी कम्प्यूटर और स्मार्टफोन का डाटा चुराया जा सकता है। बातचीत भी सुनी जा सकती है। वर्ष 2013 में जर्मनी की एक समाचार पत्रिका ने खुलासा किया था कि एनएसए ने जर्मन चांसलर ऐंजेला मर्केल की बातचीत सुनी थी। यह बातचीत एक विशेष सोफेस्टिकेटेड इक्विपमेंट के माध्यम से सुनी गई थी जिसका ब्योरा नहीं दिया गया। ई-मेल लीक होने की बात तो गूगल भी स्वीकार चुका है। इससे यह तो साफ हो गया है कि जासूसी कहीं भी और किसी भी व्यक्ति की की जा सकती है।  भारत की राजनीति में जो कुछ चल रहा है, वह जासूसी की आड़ में उठाने और गिराने का खेल ज्यादा नजर आता है।
मप्र में स्पंदन से जासूसी
इसे स्पंदन नाम दिया गया है, दरअसल यह एक विदेशी जासूसी सॉफ्टवेयर है। इसे किसी से खरीदने की आवश्यकता नहीं है। विदेशी वेबसाइटें पैसा जमा करवाने पर मुहैया करा देती हैं। मध्यप्रदेश में पीएचक्यू की इंटेलिजेंस शाखा ने तीन आईपीएस समेत लगभग एक दर्जन अधिकारियों को नोटिस देकर यह पूछा है कि क्या उन्होंने व्हिसिल ब्लोअर प्रशांत पांडे से फोन टेपिंग के लिए कोई सॉफ्टवेयर खरीदा था, या वे स्पंदन सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रहे हैं। पांडे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने के साथ-साथ इस प्रकरण में सीबीआई जांच की मांग भी की है। नीरा राडिया प्रकरण में जो फोन टेपिंग हुई थी, वह इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने 2008-09 में करवाई थी। जो लोग इस मामले में किसी सॉफ्टवेयर की बात कर रहे हैं उन्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को विशेष परिस्थितियों में फोन टेप करवाने का अधिकार गृह मंत्रालय द्वारा दिया जा सकता है। नीरा राडिया मामले मेंं 300 दिन तक फोन टेपिंग चली थी। 5 हजार 800 टेलीफोन टेपिंग का रिकॉर्ड सुप्रीम कोर्ट को सौंपा गया था। उस वक्त कोई सॉफ्टवेयर की बात सामने नहीं आई। अब स्पंदन नामक एक आईटी कंपनी का नाम मध्यप्रदेश में हर एक की जुबान पर है। कहा जा रहा है कि इस कंपनी का मुख्यालय अमेरिका में है और कंपनी को मध्यप्रदेश के कुछ पुलिसकर्मी प्रतिमाह 5 हजार रुपए देते हैं। जिसके एवज में स्पंदन कंपनी सीआरए-1 और सीआरए-2 प्रोग्राम के जरिए लोगों की कॉल डिटेल, फोन टेपिंग फार्म की जानकारी इत्यादि जुटाकर पुलिसवालों को मुहैया करा देती है। इसके लिए पुलिस को किसी विदेशी सॉफ्टवेयर कंपीन की क्या आवश्यकता है? जरूरत पडऩे पर पुलिस स्वयं गृह मंत्रालय की अनुमति से मोबाइल कंपनियों या टेलीफोन ऑपरेटरों से सारी जानकारी ले सकती है। स्पंदन के तार अमेरिका से जुड़े होने के कारण अब इस तथ्य को बल मिल रहा है कि अमेरिका में कुछ कंपनियां जासूसी का काम करती हंै। वहां यह फलता-फूलता व्यवसाय है। लेकिन मध्यप्रदेश की राजनीति में स्पंदन की जासूसी भूचाल ला सकती है। सत्ता के गलियारों में इसका बहुत चर्चा है। इंटेलिजेंस विभाग सबूत जुटाने में लगा हुआ है। क्या आने वाले समय में कुछ भण्डाफोड़ होगा?

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