18-Jun-2015 03:11 PM
1234837
दूध ढाई किलो लेना है, याद करके ले लेना, अच्छा! स्कूल जाने के लिए, तैयार होते हुए, पत्नी ने मुझ से कहा-पतीला धोकर फ्रिज पर रख दिया है।
आज ढाई किलो क्यों? मैंने पूछा, तो पत्नी ने झुँझलाकर उत्तर दिया- क्योंकि आज बच्चे हॉस्टल से घर आ रहे हैं; लेकिन आपको कुछ याद रहे तब न!
केले और सेब निकालकर रख दिए हैं, खुद भी खा लेना और बच्चों को भी खिला देना- तैयार होकर चलते-चलते पत्नी ने कहा।
अच्छा ठीक है, खिला दूँगा। मेरी भाव-भंगिमा देखकर पत्नी आश्वस्त हो गई थी।
लेकिन थोड़ी दूर जाकर वह लौट आई, तो मैंने पूछा-अब क्या रह गया?
मिठाइयों के लिए तो कहना भूल ही गई थी। बच्चों के आने से पहले, बाजार जाकर, उनकी पसन्द की ताजी मिठाइयाँ ले आना। उन्होंने अन्तिम निर्देश दिया था।
मिठाइयाँ भी ले आऊँगा। और कुछ?
मेरे आने तक इतना ही कर लेना, बाकी मैं आकर सँभाल लूँगी। मेरी परीक्षा में ड्यूटी न होती, तो मैं खुद छुट्टी ले लेती, आपको छुट्टी लेने के लिए न कहती। पत्नी के स्वर में स्प8ष्टीकरण के साथ-साथ व्यथा और विवशता भी थी।
और तब, पत्नी के जाने तथा बच्चों के आने के बीच, मैं माँ होने का मतलब खोजता रहा।