05-May-2015 02:49 PM
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उत्तरप्रदेश में वर्ष 2017 में विधानसभा के चुनाव होंगे। लेकिन तब भी मुद्दा जातिवाद और संप्रदायवाद का ही रहेगा। उत्तरप्रदेश की जीवन रेखा मोक्ष दायिनी गंगा को लेकर न तो यूपी सरकार गंभीर है और न ही केंद्र सरकार। मोदी की ड्रीम योजना नमामि गंगे का वर्ष भर बाद भी बुरा हाल है। गंगा जो दूसरों को मोक्ष देती अब खुद मोक्ष मांग रही है। क्योंकि राजनीतिज्ञों ने उसे मोक्ष की कगार पर पहुंचा दिया है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मोदी ने नमामि गंगे अभियान की जोर-शोर से शुरुआत की थी और उसके बाद से अब तक कई दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं लेकिन गंगा की हालत जस की तस है। नमामि गंगे पर मोदी ने पहली उच्च स्तरीय बैठक बीते साल 8 सितंबर को ली थी, जिसमें उन्होंने गंगा में गिरने वाले गंदे पानी पर रोक की बात कही थी। गंगा स्वच्छता को जन आंदोलन बनाने और इसके लिए वालंटियर बनाने की भी बात हुई। गंगा की सफाई के लिए एक विशेष कोष के गठन का भी ऐलान हुआ, जिसमें देश ही नहीं अप्रवासी भारतीयों से भी योगदान करने को कहा गया। पीपीपी के सहारे गंगा किनारे स्थित शहरों में करीब 500 एसटीपी बनाने का लक्ष्य रखा गया। गंगा स्वच्छता अभियान को धार देने के लिए पीएम मोदी ने बीते साल खुद बनारस के अस्सी घाट पर श्रमदान किया। नौ गणमान्य लोगों और संस्थाओं को भी नामित किया। इस साल 6 जनवरी को नमामि गंगे की दूसरी उच्चस्तरीय बैठक हुई। इसमें पीएम ने समयबद्ध कार्ययोजना बनाने और प्रदूषण फैलाने वाले कारणों पर रोक की बात कही। पीएम ने माना कि 764 औद्योगिक यूनिट गंगा में प्रदूषण को बढ़ावा दे रही हैं।
पीएम के अनुसार गंगा प्रदूषण के लिए शहरी कचरा और औद्योगिक कचरा जिम्मेदार है। इसके अलावा मोदी सरकार के आने के बाद से राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण की दो बैठके हुई हैं। पहली बैठक बीते साल 27 अक्टूबर को हुई तो दूसरी इस वर्ष 26 मार्च को संपन्न हुई थी। मार्च की बैठक में मोदी खुद उपस्थित थे। मोदी ने कहा कि गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लक्ष्य से समझौता नहीं होगा।
संसदीय समिति ने सरकार से आग्रह किया है कि वह केंद्रित होकर नमामि गंगे अभियान के कार्य को आगे बढ़ाए। हालांकि गंगा को निर्मल बनाने के लिए खुद प्रधानमंत्री ने पिछले 11 महीने के दौरान अपने स्तर पर कई बैठकें की लेकिन योजना पर इन बैठकों के दौरान चर्चाओं और रूपरेखा से आगे बात नहीं बढ़ सकी। सर्वोच्च अदालत की गंगा की सफाई को लेकर लगाई गई फटकार के बावजूद सरकार के पास अभी कहने और करने को कुछ ठोस नहीं है। नमामि गंगे अभियान के तहत वर्ष 2020 तक गंगा को स्वच्छ करते हुए इसकी निर्मलता और अविरलता को बहाल करने के लिए जल संसाधन मंत्रालय ने जो कार्ययोजना भेजी है, उस पर भी संसदीय समिति ने आश्चर्य जताया है। संसदीय समिति का कहना है कि सरकार को सीवेज के गंदे पानी को गंगा में प्रवेश से रोकने के लिए ठोस कार्ययोजना लाने की जरूरत है। समिति का मानना है कि नमामि गंगे अभियान की सफलता के लिए सरकार को अन्य मंत्रालयों के साथ सहयोग बैठाते हुए लक्ष्य बनाकर समयबद्ध योजना बनाने की भी जरूरत है। मंत्रालय ने समिति को कार्ययोजना की जानकारी देते हुए बताया कि अगले चार-पांच सालों में 20000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। जबकि गंगा नदी बेसिन प्रबंधन प्लान तैयार करने वाले आईआईटी समूह का कहना है कि गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए जगह-जगह लगने वाले जलशोधन यंत्रों पर 74000 करोड़ और अगले पांच साल तक इनके रखरखाव में 17400 करोड़ रुपये खर्च होंगे। गंगा प्रदूषण के कारणों पर सरकार का मानना है कि गंगा में गंदगी 75 प्रतिशत नगर निकाय के कचरे और 25 प्रतिशत औद्योगिक कचरे से होती है। नगर निकाय के कचरे से छुटकारा पाने के लिए सरकार ने गंगा किनारे के शहरों में जलशोधन यंत्र (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, एसटीपी) लगाने पर जोर देने की बात कही है। गंगा बेसिन के पांच राज्यों से प्रतिदिन 7,300 मिलियन लीटर गंदा पानी गंगा में गिरता है।
इस गंदे पानी को साफ करने के लिए वर्तमान में 2,126 मिलियन लीटर के एसटीपी मौजूद हैं। 1,188 मिलियन लीटर की क्षमता वाले एसटीपी बन रहे हैं या प्रस्तावित हैं। सरकार का कहना है कि 2018-19 तक वह 2,500 मिलियन लीटर के एसटीपी की क्षमता का वह और विस्तार कर लेगी। आईआईटी की रिपोर्ट के अनुसार सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद भी 6,334 मिलियन लीटर गंदा पानी गंगा में गिरता रहेगा। गंगा स्वच्छता की कार्ययोजना को लेकर संसदीय समिति के जरिए पूछे गए सवाल पर जल संसाधन मंत्रालय, गंगा एवं नदी विकास मंत्रालय के सचिव ने कहा है कि कार्ययोजना पर निर्णय को लेकर वह अभी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि कार्ययोजना का पहला पायदान कैबिनेट की मंजूरी होता है। उन्होंने कहा है कि गंगा स्वच्छता के लिए उठाए जाने वाले कदमों को उन्होंने कैबिनेट के पास भेजा है लेकिन कैबिनेट से अभी मंजूरी नहीं मिल सकी है।
कब होगा सपना पूरा?
मोदी सरकार की नमामि गंगे परियोजना से गंगा निर्मलीकरण का सपना कब तक साकार होगा, कहना मुश्किल है। इस योजना के जरिए कोशिश होगी कि ढाई साल में गंगोत्री से गंगासागर तक एक बूंद भी नालों का पानी गंगा में न गिरने पाए लेकिन काशी में 23 नालों का दूषित जल गंगा में गिर रहा है। योजना के तहत अब तक एक भी नाले को रोका नहीं जा सका है। यह जरूर है कि इन नालों को रोकने और गंदे पानी को शोधित करने की योजना कागज पर तैयार कर ली गई है। अभी इस पर अमल होना बाकी है। अफसर बजट की बाट जोह रहे हैं। नमामि गंगा परियोजना को भोले की नगरी में कामयाब बनाने के लिए नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के मिशन डायरेक्टर टीबीएसएन प्रसाद हाल में ही दौरा कर चुके हैं। गंगा निर्मलीकरण के लिए नालों को बंद करना बड़ी चुनौती है। इसके लिए शहर के घरेलू और औद्योगिक डिस्चार्ज को शोधित करने के लिए दो नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाए जाने हैं। रमना में 50 एमएलडी क्षमता का ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के लिए तैयार डीपीआर को मंजूरी मिल गई है। इसी तरह 140 एमएलडी क्षमता का दूसरा एसटीपी दीनापुर में बनाया जाएगा। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के महाप्रबंधक जेबी राय ने बताया कि इन दो नए एसटीपी के अलावा मौजूदा 9.8 एमएलडी क्षमता वाले भगवानपुर, 80 एमएलडी क्षमता के दीनापुर और 12 एमएलडी क्षमता के डीएलडब्ल्यू के ट्रीटमेंट प्लांट को नए मानक के अनुरूप दुरुस्त किया जाएगा। इसके अलावा गंगा में बहने वाले फूलमाला और कचरा साफ करने के लिए विशेष नावें भी चलाई जाएंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर अस्सी घाट से मिट्टी का ढेर हटा दिया गया है। जन सहभागिता से महानिर्वाणी, शिवाला, प्रभु घाट, मणिकर्णिका, हरिश्चंद्र घाट, राजेंद्र प्रसाद और बबुआ पांडेय घाटों की सफाई हुई है। परियोजना के तहत गंगा के किनारे 500 मीटर के दायरे में साफ-सफाई के विशेष बंदोबस्त किए जाने हैं और इस इलाके में गंदगी न फैले इस पर निगरानी के लिए टास्क फोर्स बननी है। यह काम अभी शुरू नहीं हुआ है।
गंगा को लेकर केंद्र और राज्य दोनों जगहों की सरकारें अब तक उदासीन ही रही हैं। कार्यशैली के आधार पर देखा जाए तो नमामी गंगे मिशन भी पूर्व की गंगा एक्शन प्लान की तरह ही सफेद हाथी साबित हो रहा है। गंगा न ही पटना के करीब आई है और न तो स्वच्छ हुई है। पिछले एक साल में गंगा पर बातें बहुत हुई हैं, लेकिन इस दिशा में कोई नीति तैयार नहीं हो पाई है, फंड दूर की बात है। तीन बैठकें हुई हैं और एक पत्राचार भी राज्य और केंद्र के बीच हुआ है, लेकिन इसके बाद गंगा को भुला दिया गया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 20 अप्रैल को गंगा पर आयोजित बैठक में शामिल हुए और बिहार का पक्ष रखा। इससे इतना जरूर हुआ कि फरक्का से इलाहाबाद तक गंगा पर बैराज बनाने की योजना केंद्र ने वापस ले ली। बिहार के विरोध के बाद नीतिन गडकरी ने कहा कि हम अब हल्दिया से इलाहाबाद तक गंगा से बालू साफ (ड्रेजिंग) करेंगे और जलमार्ग विकसित करेंगे। बिहार में गंगा का प्रवेश चौसा में होता है जहां यूपी से चार सौ क्यूमैक जल बिहार में आता है। वहीं कहलगांव में गंगा के माध्यम से पंद्रह सौ क्यूमैक जल बंगाल को जाता है। बिहार की आपत्ति यह है कि बिहार में गोमुख का एक बूंद जल नहीं पहुंचता है, ऐसे में खुद से खुद पानी साफ कर लेने की क्षमता बिहार में बहनेवाली गंगा में नहीं है। ऊपर से बांग्लादेश को दिए जानेवाले गंगाजल में तीन चौथाई पानी तो बिहार की नदियों का है। दरअसल गंगा के अविरल नहीं होने से बिहार में गंगा सूख रही है।
पटना के गायघाट स्थित गंगा के मुख्य केंद्र यानी बीच गंगा में दो से तीन फुट ही पानी है। फरुक्का बैराज की गहराई जो निर्माण काल में 75 फुट के करीब थी वो अब महज 15 फुट रह गई है। केंद्र फरक्का बैराज को इसके लिए जिम्मेदार मानने को तैयार नहीं है। बिहार सरकार ने मुंबई की एक एजेंसी को इसका अध्ययन करने का काम सौंपा है। गंगा मंत्रालय ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया है। पटना में बहने वाली गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा भी कम होती जा रही है। बीते 24 वर्षो में इसमें ऑक्सीजन की मात्रा 25 से 28 फीसदी तक कम हो गई है। इससे नदी में रहने वाले जीवों के जीवन पर संकट उत्पन्न हो रहा है। डॉल्फिन यानी सोंस की संख्या विस्मयकारी ढंग से घटी है। यह घटना गंगा पर संकट का संकेत है। इसके अलावा गंगा के सभी तटवर्ती शहरों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण होना था, लेकिन पटना में ही कोई काम नहीं हुआ। परिणाम यह है कि गंगा न सिर्फ मैली हुई, बल्कि विषैली भी हो गई। राजधानी पटना में कुल छह मुख्य नाले हैं। इनसे होकर ही पूरे पटना का गंदा पानी गंगा में आकर बदस्तूर गिर रहा है।