19-Mar-2013 09:00 AM
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मुलायम, माया, आडवाणी ममता से लेकर कई राजनीतिज्ञ इस साल चुनावों की भविष्य वाणी कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने तो उत्तर प्रदेश से 55 उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर दी है। तमिलनाडु में सत्तारूढ़ अन्ना द्रमुक की प्रमुख जयललिता तत्काल चुनावी समर में कूदने को आतुर हैं। उधर, भ्रष्टाचार के आरोपी से घिरी एम करुणानिधि की द्रमुक अस्त व्यस्त है। ज्योतिषी भला कहाँ चुप बैठने वाले हैं उन्होंने भी समय पहले चुनाव के आसार बताएं हैं। बज़ट को लेकर जो खींचतान चली है उसके चलते भी चुनाव अब जायदा दूर नजर नहीं आ रहे हैं। ज्योतिषाचार्य पं. अनुज के शुक्ल के अनुसार 2013 ई. में कुण्डली में मुन्था प्रथम भाव में स्थित है तथा मुन्थेश मित्र राशि में होकर अष्टम भाव में स्थित है। अत: सुविचारित योजनाओं व नीतियों के क्रियान्वयन में धन का व्यय अधिक होगा लेकिन अन्ततोगत्वा असफलता ही हाथ लगेगी। लग्न का स्वामी बुध अपने मित्र के साथ अष्टमेश भाव पर कब्जा जमाये हुये है, जिस कारण देश के युवाओं का क्रोध व उत्साह एक नये अन्दोलन का जन्म ले सकता है। ऐसी स्थिति में सरकार को कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। तृतीय भाव का अधिपति अपनी शत्रु राशि में होकर अष्टम भाव में बैठा है। अत: शासक वर्ग को भारी विरोध व विसंगतियों का सामना करना पड़ेगा। धनेश स्वराशि का होकर धन भाव में स्थित है एंव जिसकी सप्तम दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ रही है, जिसके कारण भारत को अन्तर्राष्टीय सम्बन्धों से लाभ होगा और विदेशी मुद्रा में वृद्धि होगी।
इसी साल हो सकते हैं लोकसभा चुनाव: सप्तम स्थान का अधिपति 12 वें भाव पर कब्जा किये हुये है। अत: महिला सुरक्षा के लिए कानून व कल्याण योजनाओं पर धन तो अधिक व्यय होगा किन्तु सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आयेंगे। नवमेश शनि उच्च का होकर पंचम भाव में राहु के साथ संग्रस्थ है। राहु व शनि का पंचम भाव में एक साथ स्थित होना इस बात का संकेत है कि आगामी लोकसभा चुनावों में जनता एक ऐसा इतिहास रच सकती है, जो राजनैतिक पार्टियों के लिए अकल्पित होगा।
गणतंत्र की मूल कुण्डली में लग्न एवं दशमभाव के अधिपति नीच के गुरू की महादशा में गुरू का ही अन्तर चल रहा है, जो 20 सितम्बर 2013 तक चलेगा तत्पश्चात शनि का अन्तर प्रारम्भ होगा। शनि लाभेश एंव द्वादशे होकर शत्रु राशि का होकर छठें भाव में बैठा है, जिसकी तृतीय व सप्तम दृष्टि क्रमश: आठवें व 12वें भाव पर पड़ रही है। ये दोनों भाव परिवर्तन एंव विपत्तियों के सूचक हैं। शनि न्याय और अनुशासन का संकेतक है लेकिन भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का सख्त विरोधी है। ये सभी योग इस बात का संदेश दे रहे हैं कि भ्रष्टाचारियों का बड़े पैमाने पर खुलासा होगा और किसी सामाजिक मुद्दे पर सरकार अचानक अल्पमत में आ सकती है। जिस कारण सितम्बर 2013 से लेकर दिसम्बर 2013 के मध्य चुनाव होने की सम्भावना नजर आ रही है। ज्योतिष का यह अनुमान गलत नहीं है। चुनाव की डुगडुगी बजने से पहले ही भागदौड़ करके पार्टियों ने पहले की परंपरा को तोड़ते हुए जिस तरह की दूरदर्शिता दिखाई है, वह वाकई हर किसी को चौंका देने वाली है। कांग्रेस के मामले में भी ऐसा पहली बार हुआ है, जब समय से 16 महीने पहले चुनाव तैयारी की समन्वय समिति बना दी गई। आम तौर पर यह काम चुनाव से चार-छह महीने पहले होता रहा है। कांग्रेस अपने पक्ष में माहौल बनाने में भी जुट गई है। मकसद, संगठन को मजबूत करना और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना है। दिल्ली के रामलीला मैदान में जनसभा के बाद सूरजकुंड में विचार विमर्श शिविर हुआ। जनवरी के मध्य में चुनाव की रणनीति तय करने के लिए जयपुर में कांग्रेस का चिंतन शिविर हुआ। उत्तर प्रदेश में बीते विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित बहुमत पाकर समाजवादी पार्टी आगामी आम चुनाव को लेकर काफी उत्साहित है। लिहाजा इस चुनाव के लिए उसकी ललक स्वाभाविक है। उसे लगता है कि मौजूदा जनाधार बने रहने और अखिलेश यादव सरकार की चमक फीकी पडऩे से पहले अगर आम चुनाव हो जाते हैं तो उसे काफी फायदा होगा। तभी तो उम्मीदवार चुनने में वह जल्दबाजी कर रही है और भविष्य के गठजोड़ की संभावना पर नजर रखते हुए फिलहाल सोनिया गांधी की रायबरेली और राहुल गांधी की अमेठी संसदीय सीट को खाली रखा हुआ है। वामपंथी पार्टियां पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के चमत्कार के सामने ध्वस्त होकर खासी फीकी हो गई हैं। केरल में उसने फिर भी अपनी साख बचाए रखी, लेकिन ओमान चांडी की कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त लोकतांत्रिक गठबंधन सरकार के सामने में अभी तक लाचार साबित हुई हैं। आम चुनाव में अपनी सीटें बढ़ाने के लिए इस बार पहले की तुलना में वामपंथियों को ज्यादा मशक्कत करनी पड़ सकती है। कॉडर आधारित पार्टी होने के नाते माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य वामपंथी पार्टियों को चुनाव के लिए दुरुस्त होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आंकलन में दुनिया के सौ सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल हो चुके बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही सही मायनों में जनता दल यू के पर्याय हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार में उतरने की सुगबुगाहट पर आपा खोकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से नाता तोडऩे तक पर उतर आए नीतीश प्रधानमंत्री बनने की भी महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं। सुशासन के मामले में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तक उनकी पीठ थपथपा चुका है। विकास का आधार उन्हें लोकप्रियता भी दिला चुका है। अन्य पिछड़े वर्ग में नीतीश ने गहरी पैठ जमा ली है। सवर्ण अनिच्छा से ही सही फिलहाल उनके साथ हैं। कह सकते हैं, प्रादेशिक स्तर पर लगातार मजबूत हो रही पार्टियों की भी चुनाव को लेकर अलग-अलग स्थिति है। पल-पल में बदलते स्वभाव और उग्र तेवर के बावजूद विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी की छप्पर फाड़ लोकप्रियता बनी थी, वह उनकी व्यक्तिगत छवि की वजह से आज भी बरकरार है, भले ही उनकी कार्यशैली को लेकर पिछले कुछ समय से लगातार आलोचना होती रही हो। राज्य में वामपंथी पार्टियां लाचारगी की जिस अवस्था में है, उसे देखते हुए तो ममता बनर्जी यही चाहेंगी कि जल्दी से जल्दी आम चुनाव हो जाएं। यही मानसिकता पंजाब में अकाली दल (बादल) की है। विधानसभा चुनाव में मिली जीत और राज्य की राजनीतिक परंपरा को तोड़ कर दूसरी बार लगातार सत्ता में लौटे प्रकाश सिंह बादल खासे उत्साहित हैं और वे आम चुनाव को लेकर पूरी तरह तैयार हैं और भरोसे में भी हैं।
अक्स ब्यूरो