20-Apr-2015 04:53 AM
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जनता परिवार के 6 बिछड़े हुए सदस्य एक बार फिर मिल गए हैं। जिस तरह कुंभ के मेले में खोने के बाद कई बार भाई या रिश्तेदार मिल जाते हैं। उसी तर्ज पर जनता दल का एकीकरण हो गया है। खास बात यह है कि यह एकीकरण भारतीय राजनीति की सर्वाधिक विभाजनकारी ताकत अर्थात नरेंद्र मोदी के भय से हुआ है। मोदी प्रभाव जनता परिवार के रहनुमाओं के मनोमस्तिष्क पर कुछ इस तरह हावी है कि वे येन-केन-प्रकारेण एक होना चाहते थे। इस एकता के पीछे न कोई सिद्धांत है, न कोई विचार और न ही कोई दिशा। लक्ष्य अवश्य है- वह है बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सत्ता पाना और अन्य राज्यों सहित केंद्र में राजनीतिक तौर पर मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना। राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण की ये राजनीतिक संतानें अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा के चलते अलग-अलग दिशाओं में भटक गई थीं। अब प्रश्न यह है कि इन बीत-रीत चुके राजनीतिज्ञों की इस नई पहल को जनता किस रूप में देखेगी।
दिल्ली में जिस वक्त जनता परिवार आपस में घुल मिल रहा था, धर्मांतरण को लेकर माहौल गर्माया हुआ था। आजम खान के खिलाफ बाहर नारे लगाए जा रहे थे और अंदर लालू यादव मुलायम सिंह यादव का आलिंगन कर रहे थे। सबके चेहरे पर खुशी तो थी लेकिन आशंका भी थी। महत्वाकांक्षा और अलगाव जनता परिवार की अनुवांशिक बीमारियां हैं। नेतृत्व का सवाल तो मुलायम सिंह यादव को मुखिया बनाकर हल कर लिया गया है,लेकिन इसके बाद सत्ता से जुड़ी अन्य भूमिकाओं को तय करने में क्या दिक्कतें आएंगी इसका अनुमान फिलहाल नहीं लगाया जा सकता। वर्तमान में तो जो जितना वजनी है उसे उसके वजन के अनुपात में जनता परिवार में महत्व दिया जा रहा है। मुलायम सिंह देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी पर राज करने वाली सपा के मुखिया हैं इसलिए उन्हें जनता परिवार में भी महत्व मिला। लालू और नीतिश के कब्जे में दूसरा बड़ा राज्य बिहार है इसलिए उनकी भी पूछ परख थोड़ी बहुत है, लेकिन जनता दल सेक्युलर के एचडी देवेगौड़ा और समाजवादी जनता पार्टी के कमल मोरारका की कोई महत्वपूर्ण भूमिका दिखाई नहीं दे रही है। आरालोद का भी यही हश्र है। फिर भी एक प्लेटफार्म पर आए हैं तो कुछ न कुछ फर्क पड़ेगा। आगामी समय में बिहार और उत्तर प्रदेश के चुनाव हैं। लोकसभा चुनाव में जिस तरह इन दोनों प्रदेशों में जनता परिवार की दुर्गति हुई है वैसी दुर्गति पुन: विधानसभा में न हो इसके प्रयास इस विलय के साथ ही शुरू हो गए हैं।
जनता परिवार यह जानता है कि भाजपा को मिलने वाले वोट बैंक में सेंध लगाना आसान नहीं है। इस वक्त कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टियां सुप्तास्था में हैं। इन दोनों दलों के समर्पित मतदाता भयभीत और भ्रमित हैं। राहुल गांधी के आंशिक अज्ञातवास ने कांग्रेस के बचे खुचे मतदाताओं को भी मायूस किया है। उधर मायावती दूसरी पंक्ति के प्रभावी नेताओं की कमी के चलते एकदम शांत हो चुकी हैं। ऐसी स्थिति में इस बड़े वोट बैंक पर जनता परिवार, भाजपा और आम आदमी पार्टी की नजरें हैं। जनता परिवार के लिए जितनी बड़ी चुनौती है भाजपा सहित लगभग वैसी ही चुनौती आम आदमी पार्टी जैसे दलों से भी है। जनता परिवार को मुस्लिम वोट का बहुत बड़ा सहारा है। लेकिन दिल्ली में जिस तरह मुसलमानों ने आम आदमी पार्टी में भरोसा दिखाया है उससे यह साफ हो चुका है कि मुस्लिम मौका पडऩे पर आम आदमी पार्टी को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। यदि ऐसा हुआ तो दिल्ली की तरह बिहार और उत्तर प्रदेश में जनता परिवार का गणित गड़बड़ा सकता है। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस उस बच्चे के समान हो गई है जो बड़े लोगों की उंगली पकड़कर मेला देखने जाता है। इसलिए कांग्रेस को इन दोनों राज्यों में जनता परिवार के रहमोकरम पर ही निर्भर रहना पड़ेगा।
ज्ञात रहे कि लोहिया के इन बिगड़े वंशजों का जन्म कांग्रेस के विरोध की राजनीति के फलस्वरूप ही हुआ था, लेकिन आज समय की बिडंबना देखिए कि कांग्रेस को इन्हीं दलों का सहारा मिला है। जुमला वही घिसा-पिटा दिया जा रहा है कि सांप्रदायिक ताकतों को दूर रखने के लिए। लेकिन सांप्रदायिक ताकतों को दर रखते-रखते यह दल अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं और वे सांप्रदायिक ताकतें अब इनके सर पर सवार हैं। बहरहाल नीतिश कुमार के जनता दल यूनाइटेड, लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल, देवेगौड़ा की जनता दल सेक्युलर, भारतीय राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी जनता दल के साथ-साथ सबसे बड़े दल के रूप में समाजवादी पार्टी का तालमेल बिहार में भाजपा के लिए सरदर्द अवश्य बनेगा। कांग्रेस इन दलों के साथ तालमेल से चुनाव लड़ती है तो निश्चित रूप से ये एक बड़ी ताकत बनकर उभरेंगे। दलित, मुस्लिम और पिछड़े वर्ग की राजनीति इस नए संगठन के केंद्र में होगी। अभी फिलहाल जनता परिवार के सदस्यों ने नए दल का नाम तय नहीं किया है। सुनने में आया है कि इसे समाजवादी जनता पार्टी या समाजवादी जनता दल का नाम दिया जा सकता है। पार्टी का निशान साइकिल हो सकती है। क्योंकि साइकिल पुरानी जनता पार्टी के चुनावी निशान के बहुत करीब है। शरद यादव का कहना है कि फिलहाल नाम और निशान पर कोई चर्चा नहीं हुई है। लेकिन चेयरमैन मुलायम सिंह यादव को बनाया गया है जो कि संसद में भी जनता परिवार की अगुवाई करेंगे।
शरद यादव जनता परिवार से दोबारा जुडऩे से उत्साहित अवश्य हैं लेकिन नीतिश की खामोशी कुछ और ही बोलती है। नीतिश की मजबूरी है कि वे इस कदम का समर्थन करें। हालांकि सभी पार्टियों को इस निर्णय के बाद टूटने का भय भी सता रहा है। बिहार में पप्पू यादव ने लालू यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। नीतिश की पार्टी के भी कुछ नेता भाजपा से जुड़ सकते हैं। कुल मिलाकर यह एक सुखद मिलन नहीं है।