बैकफुट पर क्यों गए राहुल?
19-Mar-2013 08:33 AM 1234770

राहुल गांधी ने अचानक प्रधानमंत्री पद से अपनी दावेदारी को खारिज करके कांग्रेसियों को पशोपेश में डाल दिया है। हालांकि ऐसा वे पहले भी करते आए हैं, लेकिन जयपुर में चिंतन शिविर के बाद यह अनुमान लगाया जा रहा था कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री के रूप में अपनी दावेदारी को ज्यादा प्रमुखता से प्रकट करेंगे और इसका फायदा कांग्रेस को कार्यकर्ताओं के उत्साह के रूप में देखने को मिलेगा। लेकिन लगता है राहुल गांधी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल नहीं होना चाहते। क्योंकि उन्हें आशंका है कि यदि वे इस दौड़ में शामिल होने के बावजूद पार्टी को चुनाव नहीं जिता पाए तो पार्टी की दुगर्ति और ज्यादा दर्दनाक हो जाएगी। राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि वे संगठन को 10 वर्ष में दुरुस्त कर देंगे। राहुल गांधी के इस कथन से जो अर्थ निकल रहा है उसका सार यही है कि फिलहाल अगले एक दशक तक वे प्रधानमंत्री पद से दूर ही रहेंगे। वैसे कांग्रेसी नेताओं का यह मानना है कि राहुल गांधी उसी सूरत में प्रधानमंत्री बनने का जोखिम उठा सकते हैं जब कांग्रेस लगभग 250 सीटें जीते। वर्तमान हालात को देखें तो कांग्रेस की सीटें 200 से कम ही रहने वाली हैं और गांधी परिवार का यह रिकार्ड रहा है कि उसने कभी भी बैसाखियों के दम पर सरकार नहीं चलाई। बल्कि उनके पास सदैव बहुमत ही रहा। यदि राहुल गांधी संप्रग सरकार के प्रधानमंत्री बनते हैं तो वे गांधी परिवार से ऐसे पहले व्यक्ति होंगे जो किसी के समर्थन से चल रही सरकार के बल पर राज करेंगे। जाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में राहुल गांधी खुलकर काम नहीं कर सकते। जबकि गांधी परिवार को खुलकर काम करने की आदत है। इसीलिए राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने से पहले कांग्रेस को इतनी मजबूती देना चाहते हैं कि कम से कम उसे 250 के इर्द-गिर्द सीटें मिलें ताकि वे खुलकर सत्ता चला सकें। यह तो तय है कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं।
राहुल गांधी खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसे हालात में कांग्रेस शायद चुनाव में बगैर प्रधानमंत्री प्रत्याशी की घोषणा किए ही जा सकती है। यदि इस तरह का कोई राजनीतिक परिवर्तन होता है तो भारतीय जनता पार्टी को राहत मिलेगी। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी भी कमोबेश इसी दुविधा में है। बिना प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी की घोषणा के चुनाव का स्वरूप पूरी तरह बदल सकता है। इससे जनता में भ्रम भी फैल सकता है और भ्रम के माहौल में अक्सर उस दल को फायदा मिलता है जो वर्तमान में सत्ता में हो। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का प्रश्न है उससे जनता को यही अपेक्षा है कि वह प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करे। इसी प्रकार राहुल गांधी को जनता कांग्रेस के भावी प्रत्याशी के रूप में देख रही है। यदि ये दोनों स्थितियां नहीं पैदा होती हैं तो फिर चुनाव परिणाम चौकाने वाले भी हो सकते हैं। जहां तक कांगे्रस का प्रश्न है बहुमत न आने की स्थिति में सुशील कुमार शिंदे, चिदंबरम, शीला दीक्षित सहित कई कद्दावर नेता प्रधानमंत्री बनने की कतार में हैं। सोनिया गांधी की नजर में जो उपयुक्त होगा वही प्रधानमंत्री बनेगा। प्रधानमंत्री बनाने में राहुल गांधी की भूमिका विशेष नहीं रहने वाली है। राहुल गांधी की इस हिचकिचाहट का फायदा भाजपा ने उठाना शुरू कर दिया है। भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन का कहना है कि राहुल गांधी पिछले 10 साल से कुछ नहीं कर पाए तो आगे क्या करेंगे। दुविधा यह है कि यदि राहुल खुलकर प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में सामने नहीं आते हैं तो निश्चित रूप से कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि जनता यह जानना चाहेगी कि कांगे्रस जीतने पर प्रधानमंत्री किसे बनाएगी। दूसरी तरफ कांग्रेस के भीतर भी राहुल की ताजपोशी न होने की स्थिति में मतभेद पैदा हो सकता है। खासकर युवा कार्यकर्ताओं को राहुल के इस रुख से भारी निराशा हो सकती है। जहां तक संगठन का प्रश्न है कांग्रेस संगठन को सत्ता में रहते हुए भी दुरुस्त किया जा सकता है। बल्कि संगठन तभी ठीक से कार्य करता है जब सत्ता हाथ में हो। क्योंकि सत्ता में रहने से जो उत्साह निर्मित होता है वह सत्ता से बाहर रहने पर नहीं हो पाता। कांगे्रस की तो यह विशेषता है। विश्वास न हो तो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में देख लीजिए जहां सत्ता से बाहर रहने के कारण कांगे्रस का संगठन पूरी तरह चरमरा गया है। यदि 10 साल राज करने के बाद कांग्रेस विपक्ष में बैठती है तो फिर राहुल गांधी के लिए कांग्रेस को संगठित और अनुशासित रख पाना भारी चुनौतीपूर्ण कार्य हो जाएगा इसीलिए यह जरूरी है कि वे स्वयं आगे बढ़कर कार्यकर्ताओं को बताएं कि अगले प्रधानमंत्री के रूप में वे अपनी दावेदारी से मायूस नहीं हैं।
सवाल ये उठता है कि अगर देश ने राहुल को पीएम के रूप में स्वीकार कर लिया है तो डॉ. मनमोहन सिंह क्या हैं? राहुल को प्रधानमंत्री बना कर कांग्रेस उन्हें हटा क्यों नही देती? क्यों बैठे हैं सिंह अब तक कुर्सी पर? जीते-जी इतनी जलालत के बाद भी कुर्सी पर क्यों चिपके हुए हैं? क्या यह जलालत नहीं है कि एक शख्स, जो कि पिछले आठ साल से पीएम की कुर्सी पर बैठा हो और उसकी पार्टी के जिम्मेदार नेता यह कहें कि जनता की नजर में तो राहुल पीएम हैं? सच ये है कि मनमोहन सिंह ने कभी भी राहुल को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी ऑफर नहीं की है। हां, इतना सच जरूर है कि वे सार्वजनिक रूप से बयान दे कर उन्हें मंत्री बनने की ऑफर दे चुके हैं, मगर राहुल अभी निर्णय नहीं कर पा रहे हैं। और उनकी इसी झिझक की वजह से राहुल के आत्मविश्वास पर संदेह जाहिर किया जाने लगा है। कांग्रेस ने अब तक यह तय नहीं किया है कि आगामी चुनाव किसे प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करते हुए लड़ा जाएगा, जिस प्रकार पिछला चुनाव मनमोहन सिंह को चेहरा आगे करके लड़ा गया था। मीडिया की गप्पबाजी में जरूर राहुल का नाम आता है, मगर कांग्रेस के स्तर पर कभी भी यह तय नहीं हुआ है कि आगामी चुनाव राहुल को पीएम के रूप में प्रोजेक्ट करते हुए लड़ा जाएगा।

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