02-Mar-2013 09:37 AM
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विदिशा के निकट दिन दहाड़े अनियंत्रित भीड़ ने रेलवे स्टेशन जल दिया, एक व्यक्ति झुलस कर मर गया, दो बुरी तरह जलकर गंभीर रूप से घायल हो गए, कई अन्य को भी चोटें आयीं। यह पहली बार नहीं हुआ है दिल्ली से लेकर भोपाल और भोपाल से तेलंगाना तक अनियंत्रित भीड़ की हिंसा आम हो चुकी है। जयादा दिन नहीं बीते जब दो दिनी हड़ताल के समय नोयडा में कर्मचारियों की अनियंत्रित भीड़ ने उस फेक्ट्री को ही आग के हवाले कर दिया जिससे उन्हें रोजी-रोटी मिलती थी। हरियाणा में मारुति प्लांट की हिंसा सभी को ज्ञात है।
भोपाल के निकट गुलाबगंज में दो मासूम बच्चों के कटने के बाद भीड़ का आक्रोश स्वाभाविक था, लोग गुस्सा हो सकते थे, समय रहते उचित व्यवस्था की जानी थी। किन्तु सभी बदहवास थे। जो लोग भीड़ से डरकर केबिन में छिप गए वे यदि बहार आकर जनता को समझाने की कोशिश करते या मदद के लिए पुलिस बुलाते तो शायद जनता उन से मार पीट कर शांत हो जाती लेकिन उन्हें बदहवासी में अपनी जान की पड़ी थी। ऐसे मौकों पर जब भीड़ हिंसक हो उठे आम तौर पर कुछ सूझता नहीं है, जान बचाना ही सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है। यदि विरोध प्रदर्शन नेतृत्वहीन होता है तो यही स्थिति हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों से देश में जब भी कोई अनहोनी घटना होती है। प्राय: उनका विरोध संगठित राजनीतिक पार्टियां और संगठन नहीं करता है। लेकिन हिंसा को माफ नहीं किया जा सकता भले ही वह किसी भी कारण से की गयी हो। आधुनिक समाज में गुस्सा-निराशा, खतरा, उल्लंघन, या हानि के लिए एक अपरिपक्व या असभ्य प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है। इसके विपरीत, शांत प्रदर्शन एक स्वीकार्य प्रतिक्रिया है। उस दिन भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता था यदि कुछ लोग उग्र हो चुके लोगों को समझाते तो बात बन सकती थी पर समाज में ऐसे लोगों की कमी है जो लोगों को संयम बरतने की सलाह देवें। भीड़ के बीच में अनेक असामाजिक तत्व, गुंडे शामिल हो जाते हैं। उनके शामिल होते ही प्रदर्शन हिंसक रूप ले लेता है। प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच झड़पें होने लगती हैं, भीड़ पुलिस पर पत्थर फेंकना प्रारंभ कर देती है। जब भी भीड़ पुलिस से टकराती है। पुलिस अपना नियंत्रण खो देती है।
भोपाल में भीड़ की हिंसा के कारण पुलिस ने जानलेवा हमले झेले हैं। कई बार पुलिसवालों को मौत का सामना भी करना पड़ा है। लेकिन जहाँ पुलिस नहीं हो वहां तो हालत भयानक हो जाते हैं। गुलाबगंज में पुलिस की मौजूदगी न के बराबर थी, जो थे वे इतने समर्थ नहीं थे की भीड़ का मुकाबला कर पाते। उनकी संख्या बहुत कम थी। भारत में वैसे भी पुलिस बल की संख्या बहुत कम है। लेकिन गुलाबगंज की हिंसा का दूसरे कारण की पड़ताल भी करना जरूरी है।
उस स्टेशन पर ओवरब्रिज नहीं है। क्योंकि रेलवे के बजट में ओवरब्रिज का प्रावधान नहीं है। बल्कि रेलवे ट्रेनों में वाई-फाई लगाने की तैयारी कर रहा है। रेल बजट में रेल की छोटी-छोटी बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज करके हमेशा बड़ी चीजों पर खर्च किया जाता रहा है। मौजूदा समय में भी इस तरह की नासमझी आम जनता को महंगी पड़ती है। रेलवे दुर्घटनाओं के पर्याय बन चुके हैं। ऊपर से असंवेदनशीलता के कारण लगातार यात्रियों की जानें जा रही हैं। हाल ही में देहरादून शताब्दी पर एक बुजुर्ग दंपत्ति को बेदर्दी से नीचे फेक दिया गया जिसमें वृद्धा की मृत्यु हो गई। जब ऐसी असंवेदनशीलता बरती जाती है तो भीड़ के हिंसक होने की आशंका और भी बढ़ जाती है। गुलाबगंज की हिंसा के बाद पुलिस ने लगभग 1 दर्जन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। न्यायालय ने कुछ समय पहले सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की घोषणा की थी। न्यायालय ने कहा था कि सार्वजनिक संपत्तियों को हानि पहुंचाने वालों से इनकी कीमत वसूली जानी चाहिए। प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों रुपए की सार्वजनिक संपत्ति आगजनी और हिंसा की भेंट चढ़ जाती हैं। अरबों रुपए का नुकसान हड़ताली हिंसा में होता है। दिल्ली में बलात्कार कांड के बाद हुए आंदोलन से लेकर ट्रेड यूनियनों की हड़तालों और मुंबई में शहीद स्मारक को तहस-नहस करने वालों की मनोवृत्ति एक सी ही हैं। यह सब गुस्से में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान क्यों पहुंचाते हैं। उन लोगों की हत्या क्यों करते हैं जो निर्दोष हैं। गुलाबगंज में जो कुछ हुआ उसमें किसी का दोष नहीं था। किसी भी एक्सप्रेस गाड़ी को मोटरकार की तरह ब्रेक लगाकर नहीं रोका जा सकता है। यदि दोष था तो व्यवस्था का था। व्यवस्था की कमी की वजह से वहां ओवरब्रिज नहीं था। भारत में ऐसे हजारों स्टेशन हैं जहां ओवरब्रिज नहीं है क्योंकि आर्थिक रूप से उन्हें बनाना संभव नहीं है। बनाने के बाद रखरखाव में करोड़ों खर्च हो जाता है और रेलवे के हालात क्या हैं यह किसी से छिपा नहीं है। भारत में इन अव्यवस्थाओं के प्रति विरोध प्रकट करने की व्यवस्था संविधान में है जो सरकारें लापरवाही बरतती हैं उन्हें बदलने के लिए वोट की शक्ति दी गई है। हिंसा और आगजनी किसी समस्या का समाधान नहीं है।
कुमार सुबोध