02-Jan-2015 02:20 PM
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पीके शानदार फिल्म है। इसे साल की सबसे अच्छी फिल्मों में से एक कहना गलत नहीं होगा। निर्देशक राजू हीरानी अपने बेहतरीन स्टाइल पर चलते हुए मनोरंजन भी कर गए और बहुत ख़ूबसूरत संदेश भी दे गए हैं। लगे रहो मुन्नाभाई में गांधीगीरी का संदेश था, तो पीके बताती है कि भगवान तक पहुंचने का रास्ता बेहद सरल और सीधा है। इसके लिए किसी बाबा या धर्मगुरू की जरूरत नहीं है। इस संदेश को देते हुए पीके हंसाती, सोचने पर मजबूर करती है और किसी परी-कथा कि तरह आपको ढाई घंटे तक बांध के रखती है। एक शख्स (आमिर खान) अपने विशेष यान से किसी दूसरे ग्रह से पृथ्वी पर उतरता है। उसका कोई नाम नहीं है, लेकिन उसकी अजीबोगरीब हरकतें देख कर सबको लगता है कि वो शराब पीके आया है, इसलिए उसका नाम पीके पड़ जाता है। पृथ्वी पर उतरते ही एक चोर उसका रिमोट कंट्रोल चुरा लेता है। रिमोट कंट्रोल के बिना वो अपने ग्रह वापस नहीं जा सकता। वो देखता है कि यहां सब लोग अपनी खोई चीज वापस पाने के लिए भगवान का दरवाजा खटखटाते हैं। वो भी अपनी गुहार लेकर मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघर में जाता है, लेकिन यहां उसके दिमाग में कई सवाल उठते हैं। यहीं से भगवान को समझने और उस तक पहुंचने का रास्ता तलाश करने का सफर शुरू होता है। इस सफर में उसका साथ देती है टीवी पत्रकार जगत जननी (अनुष्का)। पीके का सफर बहुत मनोरंजक है, साथ ही सोचने पर मजबूर करने वाला है। फिल्म के एक दृश्य में पीके भगवान की मूरत बनाने वाले से पूछता है- आपने भगवान को बनाया या भगवान ने आपको? अगर भगवान अपने भक्तों की बात सीधे सुनते हैं तो मूर्ति की क्या जरूरत? आमिर खान पीके के किरदार को जी गए हैं। एक एलियन के रोल में आंखे फाड़े, कान बाहर निकाले वो हॉलीवुड वाले मिस्टर बीन्स की तरह, सीधे-सादे अंदाज से बहुत हंसाते हैं। धर्मगुरू से बहस वाले सीन्स में कई सवाल उठाते हैं, फिर आखिर तक आते-आते प्यार में डूबे शख्स के रोल में सबको चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं।
एक सीन में अनुष्का उनसे पूछती हैं, च्तुम्हारे ग्रह पर लोग कपड़े नहीं पहनते, तुम्हे नंगा रहना अजीब नहीं लगता?ज् पीके जवाब देता है- च्सामने जो कौआ बिना कपड़ों के बैठा है क्या वो अजीब लगता है? उसको टाई पहना दो तब अजीब लगेगा.ज् फिल्म में ऐसे कई अच्छे डायलॉग हैं.अनुष्का शर्मा को बड़ा रोल मिला है जिसे वो बढिय़ा ढंग से निभा गई हैं. छोटे से रोल में संजय दत्त ने बहुत अच्छा अभिनय किया है. बाबा के रूप में सौरभ शुक्ला को रोल कमज़ोर लिखा गया है लेकिन वो फिर भी उसे निभा गए हैं. फिल्म के गीत कहानी के साथ जाते हैं और फिल्म में काफ़ी अच्छे लगते हैं. फिल्म की स्क्रिप्ट राजू हीरानी और अभिजात जोशी ने लिखी है. हालांकि इसकी मूल कहानी एक साल पहले आई परेश रावल की कामयाब फिल्म ओ माय गॉड से काफ़ी मेल खाती है. लेकिन समानता सिफऱ् स्टोरी आयडिया पर ही ख़त्म हो जाती है. पीके का ट्रीटमेंट बहुत अलग है. ख़ास तौर पर फिल्म का पहला भाग बहुत अच्छा है. इंटरवल के बाद फिल्म की रफ़्तार थोड़ी सी धीमी होती है लेकिन अंत तक ये फिर ट्रैक पर आ जाती है.