परिवार भरोसे
03-Sep-2020 12:00 AM 475

 

पिछले दिनों राजस्थान में अपनी सरकार जैसे-तैसे बचा पाने में सफल हुई कांग्रेस पार्टी उत्साहित जरूर है लेकिन अपनी 'लीडरशिपÓ को लेकर पार्टी में चिंता की लकीरें देखी जा सकती हैं। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दहाड़ के आगे बौनी नजर आ रही राष्ट्रीय कांग्रेस पिछले 6 वर्षों से सिमटती जा रही है। वैसे तो कई महीनों से पार्टी के अंदर बागडोर संभालने को लेकर महामंथन चल रहा है। लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी में कोई फैसला नहीं हो पाया। इस कारण सोनिया गांधी पुन: अंतरिम अध्यक्ष चुनी गईं।

कांग्रेस पार्टी को न जाने क्या रोग लग गया है कि उसके समाधान के लिए जितनी दवा की जा रही है उसका रोग उतना ही बढ़ता जा रहा है। पार्टी को सबसे बड़ा रोग यह लगा है कि वह नेहरू-गांधी परिवार के आगोश से निकल नहीं पा रही है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक से पहले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हवाले से खबर फैलाई गई कि अबकी बार किसी बाहरी को अध्यक्ष बनाया जाए। लेकिन मामला सोनिया बनाम राहुल बना दिया गया।

पिछले कुछ वर्षों से सबसे खराब दौर से गुजर और बिखर रही कांग्रेस को लेकर उम्मीद की जा रही थी कि वर्किंग कमेटी की बैठक में पार्टी कुछ उभर पाएगी। पार्टी के वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता इस बैठक में पिछले कई दिनों से निगाहें लगाए बैठे थे। कुछ दिनों पहले तक जो खबरें आ रही थीं, उसके अनुसार वर्किंग कमेटी में कांग्रेस के नए अध्यक्ष पद की ताजपोशी ही सबसे महत्वपूर्ण फैसला बना हुआ था। लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी की पटकथा कई दिनों पहले लिखी गई थी। वीडियो कॉन्फे्रंसिंग के माध्यम से वर्किंग कमेटी की बैठक जैसे ही शुरू हुई कांग्रेस पूरी तरह दो फाड़ में नजर आई। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक ऐसे वक्त में हुई जब पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने नेतृत्व पर सवाल खड़े किए। बैठक में सख्त तेवर और तिमिलाहट के साथ जुड़े पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल सहित उन तमाम 23 नेताओं पर भाजपा के साथ मिलीभगत के खुलेआम आरोप लगाए, जिन्होंने नेतृत्व परिवर्तन को लेकर सोनिया गांधी को पत्र लिखा। यही नहीं राहुल गांधी ने यहां तक कह दिया कि कांग्रेस की बैठक में भाजपा ने अपने 'वजीरÓ फिट कर रखे हैं।

राहुल के इस आक्रामक अंदाज को कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद सहन नहीं कर सके, इन दोनों ने भी अपनी-अपनी आस्तीन चढ़ा लीं। फिर क्या था दोनों ओर से जबरदस्त 'तू-तू, मैं-मैंÓ होती रही। सबसे महत्वपूर्ण यह था कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का भाजपा लाइव प्रसारण भी देख रही थी (आज भाजपा अपने मिशन कांग्रेस के सफाए को लेकर एक कदम और आगे बढ़ गई)। अभी तक कहा जाता है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की अधिकांश बातें सूत्रों के हवाले से ही बाहर आती हैं लेकिन आज पार्टी का महाभारत अपने आप ही बाहर निकलने को बेताब दिखाई दिया। राहुल के आरोपों के बाद गुस्साए गुलाम नबी आजाद बोले कि, भारतीय जनता पार्टी से मिलीभगत साबित हुई तो इस्तीफा दे दूंगा। बैठक की शुरुआत में वरिष्ठ कांग्रेसियों की चिट्ठी सार्वजनिक होने का मामला गरमाया रहा। सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की, साथ में उस चिट्ठी का जवाब भी दिया, जिसमें नेतृत्व पर सवाल उठाए गए थे। इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने इस चिट्ठी की जबरदस्त आलोचना की।

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता ऐसे हैं जो सीधे गोपनीय बातें लीक कर रहे हैं और भाजपा को फायदा पहुंचा रहे हैं। राहुल के बयान के बाद कांग्रेसी नेताओं की ट्विटर पर जंग दिखाई दी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने ट्विटर का सहारा लिया और राहुल गांधी के आरोपों पर पलटवार किया। सिब्बल ने लिखा कि, राहुल गांधी कह रहे हैं हम भारतीय जनता पार्टी से मिले हुए हैं, मैंने राजस्थान हाईकोर्ट में कांग्रेस पार्टी का सही पक्ष रखा, मणिपुर में पार्टी को बचाया, पिछले 30 साल में ऐसा कोई बयान नहीं दिया जो किसी भी मसले पर भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाए, फिर भी कहा जा रहा है कि हम भाजपा के साथ हैं।

कपिल सिब्बल के ट्वीट पर पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पलटवार किया। सुरजेवाला ने सिब्बल के ट्वीट पर जवाब देते हुए कहा कि, 'राहुल गांधी ने इस तरह की कोई भी बात नहीं कही और ना ही इस संबंध में कोई जिक्र किया है, कृपया कोई भी गलत सूचना ना फैलाएं, लेकिन हां हम सब क्रूर मोदी राज से लड़ने के लिए एकजुट हैं ना कि आपस में या कांग्रेस से लड़ने के लिए।Ó

दरअसल राहुल गांधी ने जब चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को भाजपा का मददगार बताया, तो गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो इस्तीफा दे देंगे, चिट्ठी लिखने का फैसला सिर्फ कार्यसमिति का रहा है। करीब 15 दिन पहले पार्टी के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि भाजपा लगातार आगे बढ़ रही है। पिछले चुनावों में युवाओं ने डटकर नरेंद्र मोदी को वोट दिए। कांग्रेस में लीडरशिप फुल टाइम होनी चाहिए और उसका असर भी दिखना चाहिए। कांग्रेस वर्किंग कमेटी में वरिष्ठ नेताओं के बीच हुई आर-पार की लड़ाई में फिलहाल अभी तक भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से कोई बयान नहीं आया है। लेकिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए ट्वीट किया कि कांग्रेस नेताओं ने पत्र लिखा कि पूर्णकालिक अध्यक्ष चाहिए, तो राहुल गांधी कहने लगे कि ये गद्दारी है, सत्य कहने वालों को कांग्रेस में गद्दार कहा जाता है, ऐसी पथभ्रष्ट कांग्रेस को कोई बचा नहीं सकता है। वहीं मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने जरूर कांग्रेस की इस महाभारत पर तंज कसा है। नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि, कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए कई योग्य उम्मीदवार हैं। इनमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, रेहान वाड्रा, मिराया वाड्रा शामिल हैं। कार्यकर्ताओं को समझना चाहिए कि कांग्रेस उस स्कूल की तरह है, जहां सिर्फ हेडमास्टर के बच्चे ही क्लास में टॉप आते हैं। दूसरी ओर राहुल के समर्थन में पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि आंतरिक चुनावों की बजाय सबकी सहमति देखी जानी चाहिए। खुर्शीद ने कहा कि राहुल को कार्यकर्ताओं का पूरा समर्थन है ऐसे ही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कहा कि फिलहाल गांधी परिवार को ही पार्टी की बागडोर संभालनी चाहिए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी राहुल गांधी पर भरोसा जताया है। वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने भी राहुल गांधी के नाम की ही वकालत करते हुए कहा कि राहुल गांधी को आगे आना चाहिए और पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए।

बता दें, कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक शुरू होने से पहले दिल्ली स्थित पार्टी के मुख्यालय के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन भी किया, कहा कि गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष बना तो पार्टी टूट जाएगी। इस तरह आज हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में तड़क-भड़क इतनी बढ़ गई कि कांग्रेेस नए अध्यक्ष पद के मुख्य मुद्दे से ही भटक गई। प्रियंका गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर बड़ा बयान दिया है। प्रियंका ने राहुल गांधी की उस मांग से सहमति जताई है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर के किसी शख्स को बनाने की मांग की गई थी। प्रिंयका गांधी ने ये बातें एक इंटरव्यू में कही हैं। बता दें कि राहुल गांधी ने नेहरू-गांधी परिवार के बाहर के व्यक्ति को अगला कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग की थी। राहुल की इसी मांग को अब प्रियंका का भी समर्थन मिला है। लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में सोनिया गांधी को एक बार फिर से अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया।

राहुल-प्रियंका चाहते हैं बाहरी हो अध्यक्ष

2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस कार्यकारिणी के सामने शर्त रखी कि वो गांधी परिवार से अलग किसी नेता को अध्यक्ष के तौर पर चुनने की तैयारी करे। तैयारियां भी देखने को मिलीं और तब भी राहुल गांधी ने कहा कि नए कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया से गांधी परिवार दूरी बनाए रखेगा। राहुल गांधी ने ही बताया कि नया अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया से सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी भी दूर रहेंगी। अचानक एक दिन बताया गया कि सोनिया गांधी को कांग्रेस कार्यकारिणी ने अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया है। 10 अगस्त को हुई बैठक से पहले भी बाहरी को अध्यक्ष बनाने की हवा चली, लेकिन फिर से सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया।

88 अध्यक्षों में से सिर्फ 6 ही नेहरू-गांधी परिवार से रहे

काबिले-गौर है कि मोतीलाल नेहरू से राहुल गांधी तक नेहरू परिवार के सिर्फ 6 लोग ही कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं। गौरतलब है कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को हुई थी। 1885 में बोमेश चंद्र बनर्जी कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। इसके बाद 1886 में दादाभाई नौरोजी, 1887 में बदरूद्दीन तैय्यबजी, 1888 में जार्ज यूल, 1889 में सर विलियम वेडरबर्न, 1890 में सर फिरोजशाह मेहता, 1891 में पी. आनंद चार्लू, 1892 में बोमेश चन्द्र बनर्जी, 1893 में दादाभाई नौरोजी, 1894 में अलफ्रेड वेब, 1895 में सुरेंद्रनाथ बनर्जी, 1896 में रहीमतुल्ला सयानी, 1897 में सी. शंकरन नायर, 1898 में आनंद मोहन बोस, 1899 में रमेश चंद्र दत्त, 1900 में एनजी चंद्रावरकर, 1901 में दिनशा इदुलजी वाचा, 1902 में एसएन बनर्जी, 1903 में लाल मोहन घोष, 1904 में सर हैनरी कटन, 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले, 1906 में दादाभाई नौरोजी, 1907 में डॉ. रास बिहारी घोष, 1909 में मदन मोहन मालवीय, 1910 में सर विलियम वेडर्बन, 1911 में पंडित बिशन नारायण धर, 1912 में आरएन माधोलकर, 1913 में सैयद मोहम्मद बहादुर, 1914 में भूपेंद्रनाथ बसु, 1915 में सर सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा, 1916 में अम्बिका चरण मज़ूमदार, 1917 में एनी बेसेंट, 1918 में हसन इमाम और मदनमोहन मालवीय, 1919 में  मोतीलाल नेहरू, 1920 में सी. विजया राघवाचारियर, 1921 में सीआर दास, 1923 में लाला लाजपत राय और मुहम्मद अली, 1924 में मोहनदास गांधी, 1925 में सरोजिनी नायडू, 1926 में एस. श्रीनिवास आयंगार, 1927 में डॉ. एमए अंसारी, 1928 में मोतीलाल नेहरू, 1929 में जवाहरलाल नेहरू, 1931 में सरदार वल्लभभाई पटेल, 1932 में आर अमृतलाल, 1933 में नेल्ली सेन गुप्ता, 1934 में बाबू राजेंद्र प्रसाद, 1936 में जवाहरलाल नेहरू, 1938 में सुभाष चंद्र बोस, 1940 में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, 1946 में जवाहरलाल नेहरू और सितंबर 1946 में आचार्य जेबी कृपलानी पार्टी अध्यक्ष बने। आजादी के बाद 1948 में बी. पट्टाभि सीतारमय्या कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। इसके बाद 1950 में पुरुषोत्तम दास टंडन, 1951 में जवाहरलाल नेहरू, 1955 में यूएन ढेबर, 1960 में इंदिरा गांधी, 1961 में एन संजीव रेड्डी, 1962 में डी. संजिवैया, 1964 में के कामराज, 1968 में एस. निजिलिंगप्पा, 1969 में सी सुब्रमण्यम, 1970 में जगजीवन राम, 1971 में डी संजिवैया, 1972 में डॉ. शंकर दयाल शर्मा, 1975 में देवकांत बरूआ, 1976 में ब्रह्मनंदा रेड्डी और 1978 में इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। इंदिरा गांधी की मौत के बाद पंडित कमलापति त्रिपाठी कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए। फिर 1984 में राजीव गांधी को पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई। उनके बाद 1991 में पीवी नरसिम्हा राव, 1996 में सीताराम केसरी और 1998 में सोनिया गांधी को सर्वसम्मति से कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। 2017 में राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाया गया।

- दिल्ली से रेणु आगाल

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