नक्सली नासूर
03-Apr-2020 12:00 AM 1047

छत्तीसगढ़ के सुकमा में सुरक्षाबलों पर नक्सली हमले से एक बार फिर इस समस्या से पार पाने की चुनौती रेखांकित हुई है। वहां नक्सली समूह लंबे समय से सक्रिय हैं और उन पर काबू पाने में सरकार के प्रयास प्रश्नांकित होते रहे हैं। अक्सर नक्सली वहां घात लगाकर या फिर सीधे मुठभेड़ में सुरक्षाबलों को चुनौती देते हैं। इससे पार पाने के लिए राज्य सरकार और केंद्र के संयुक्त प्रयास चलते रहे हैं, पर इस दिशा में अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पाई है। अक्सर देखा जाता है कि खुफिया तंत्र और सुरक्षाबलों की तैयारी विफल साबित होती है। सुकमा में ताजा नक्सली हमला इसका एक और उदाहरण है। बीते दिनों जब सुरक्षाबलों को जानकारी मिली कि सुकमा जिले के एलमागुड़ा में नक्सली गतिविधियां सक्रिय हैं, तो विभिन्न बटालियनों के करीब 600 जवान वहां रवाना कर दिए गए। मगर करीब 250 की संख्या में नक्सलियों ने उन पर हमला कर दिया। इसमें 17 जवान मारे गए और करीब 15 गंभीर रूप से घायल हो गए। मारे गए जवानों के शवों को घने जंगल से तलाश कर निकाला जा सका। इस घटना ने एक बार फिर इस चिंता को गाढ़ा किया है कि नक्सली समस्या पर काबू पाने के लिए सुरक्षाबलों की तैयारियों को कैसे अधिक चाक-चौबंद किया जाए।

छत्तीसगढ़ में नक्सली समूह जंगलों पर आदिवासियों के अधिकार के मुद्दे पर लगातार संघर्ष करते रहे हैं। इस संबंध में कई बार सरकार की तरफ से उनसे बातचीत के प्रयास भी हुए। केंद्र ने वनभूमि पर आदिवासियों के मालिकाना हक को लेकर पुराने कानून में संशोधन किया और कंपनियों द्वारा उनकी अधिग्रहीत भूमि वापस लौटाने का अभियान चला। मगर अब भी नक्सली गतिविधियां नहीं रुक रही हैं, तो इस मामले में नए सिरे से रणनीति बनाने की दरकार स्वाभाविक है। पहले आरोप लगता रहा कि छत्तीसगढ़ सरकार नक्सली समूहों से संवाद स्थापित करने में नाकाम रही है। पर अब वहां सरकार बदली है और उसका दावा है कि उसने आदिवासी समूहों के हितों के लिए काफी व्यावहारिक कदम उठाए हैं, इससे उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव भी आया है। मगर यह नक्सली हमला सरकार के ऐसे तमाम दावों और विज्ञापनों आदि के जरिए प्रचारों पर सवाल खड़े करता है। अगर सचमुच सरकार के प्रयासों से आदिवासी समूह और नक्सली संतुष्ट होते तो शायद इस तरह के संघर्ष की नौबत न आती।

छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों पर काबू न पाए जा सकने के पीछे कुछ वजहें स्पष्ट हैं। छिपी बात नहीं है कि वहां नक्सली समूह स्थानीय लोगों के समर्थन के बिना लंबे समय तक नहीं टिक सकते। स्थानीय लोगों का प्रशासन पर विश्वास बहुत जरूरी है। इसी से सूचना तंत्र को पुख्ता बनाया जा सकता है। अगर स्थानीय स्तर पर खुफिया एजेंसियों और सुरक्षाबलों का सूचना तंत्र कारगर होता, तो नक्सलियों की साजिशों का समय पर पर्दाफाश होता और उन्हें मिलने वाली मदद, साजो-सामान को रोकने में कामयाबी मिल सकती थी। जबकि नक्सली इस मामले में अभी आगे देखे जा रहे हैं। जब तक सरकारें इन कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने का प्रयास नहीं करेंगी, इस समस्या पर काबू पाना कठिन ही बना रहेगा। कब तक सुकमा नक्सलियों का अखाड़ा बनता रहेगा? कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? ये कुछ सवाल हैं जो वर्षों से देशवासियों को असहनीय वेदना दे रहे हैं। इसलिए अब हम कह सकते हैं कि नक्सलियों के क्रूर इरादों को कुचलने का वक्त आ गया है। सरकार के एक आदेश से भारतीय सेना कुछ ही दिनों में छत्तीसगढ़, उड़ीसा सहित समस्त राज्यों से नक्सलवाद को सदा के लिए निस्तनाबूत कर सकती है। जो भारतीय सेना कुछ घंटों में ही दुश्मन मुल्क में सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकती है, वह नक्सलियों का क्या हश्र कर सकती है, इसका अंदेशा शायद ही हमें हो। अत: नक्सलियों से निपटने के लिए सरकार को साहसिक फैसले लेने की जरूरत है।

छत्तीसगढ़  में नक्सल हिंसा से जुड़ी घटनाओं के आंकड़े लोकसभा के बजट सत्र में पेश किए गए हैं। बस्तर सांसद दीपक बैज के एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नक्सल समस्या के लिए जारी राशि का ब्यौरा दिया है। इसमें पिछले तीन सालों में नक्सली हिंसा से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ राज्य सरकार को 706 करोड़ 78 लाख रुपए देने का दावा किया है। यह राशि अलग-अलग योजनाओं के तहत वित्तीय वर्ष 2017-18 से सत्र 2019-20 के बीच जारी की गई है। लोकसभा में पेश एक अन्य सवाल के जवाब में नक्सली हिंसा की वारदातों और उसमें हुई जनहानि के आंकड़े भी पेश किए गए हैं। इसके तहत छत्तीसगढ़ में तीन सालों में 1 हजार 28 नक्सली वारदातें हुईं। इनमें 284 नक्सली मारे जाने का दावा किया गया है। जबकि इन सालों में 137 जवानों की शहादत हुई है। इतना ही नहीं 223 आम लोगों को भी इन नक्सली वारदातों में अपनी जान गंवानी पड़ी है। बस्तर सांसद दीपक बैज के सवाल के जवाब में बताया गया है कि सत्र 2014-15 से सत्र 2016-17 के बीच नक्सल समस्यायों से निपटने के लिए राज्य सरकार को 224.63 करोड़ रुपए जारी किए गए थे।

इस साल कम हुई घटनाएं

लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में नक्सली हिंसा की घटनाएं पिछले तीन सालों की तुलना में कम हुई हैं। आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में कुल 373 नक्सली वारदातें हुईं। इनमें 70 आम लोगों की जान गई। सुरक्षा बलों के 60 जवान शहीद हुए। जबकि 80 नक्सलियों को मारे व 796 को गिरफ्तार करने का दावा किया जा रहा है। साल 2018 में कुल 392 नक्सली वारदातें हुईं। इनमें 98 आम लोगों की जानें गईं। सुरक्षा बलों के 55 जवान शहीद हुए। जबकि 125 नक्सलियों को मारे व 931 को गिरफ्तार करने का दावा किया जा रहा है। जबकि बीते साल 2019 में कुल 263 नक्सली वारदातें हुईं। इनमें 55 आम लोगों की जानें गईं। सुरक्षा बलों के 22 जवान शहीद हुए। जबकि 79 नक्सलियों को मारे व 367 को गिरफ्तार करने का दावा किया जा रहा है। 

-  रायपुर से टीपी सिंह 

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