मप्र के सरकारी स्कूलों में कहीं शिक्षक नहीं हैं तो कहीं शौचालय व बिजली कनेक्शन का अभाव है। ऐसे में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना मुश्किल है। प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। यहां के स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं नहीं के बराबर हैं। बता दें कि प्रदेश में करीब 1 लाख 20 हजार सरकारी स्कूल हैं। मूलभूत सुविधाओं में मप्र के स्कूल 17वें स्थान पर मप्र के 67 हजार प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों में बिजली कनेक्शन तो 50 हजार में चारदीवारी नहीं है। 1900 स्कूलों का अपना भवन ही नहीं है। करीब 6 हजार स्कूल एक-दो कमरों में चल रहे हैं। इसका खुलासा मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने फरवरी में एक परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स में किया था। इसमें मप्र के स्कूलों को ग्रेड-2 में रखा गया था और मूलभूत सुविधाओं में देश में 17वें स्थान पर था। गोवा पहले, चंडीगढ़ दूसरे और दिल्ली तीसरे स्थान पर था।
प्रदेश के प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों में तीन साल पहले बालक-बालिका के लिए अलग-अलग शौचालयों का निमार्ण किया जाना था। इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से शौचालय बनाने के लिए राशि भी स्वीकृत की गई। अब विभाग को बालिकाओं के लिए प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बने करीब डेढ़ हजार शौचालयों की जानकारी ही नहीं है। प्रदेश में पंचायती राज संचालनालय की स्वीकृति से सितंबर 2018 में ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में बालकों के लिए 2285 एवं बालिकाओं के लिए 1591 शौचालय स्वीकृत किए गए थे, लेकिन बनने के तीन साल बाद भी 1591 बालिका शौचालयों के निर्माण के लिए एजेंसियों को भुगतान नहीं हुआ है। अब स्कूल शिक्षा विभाग यह पता कर रहा है कि यह शौचालय किस मद या योजना के तहत बनाए गए थे और इनकी वर्तमान स्थिति क्या है। जिससे बजट को तलाशकर निर्माण एजेंसियों को भुगतान किया जा सके।
राज्य शिक्षा केंद्र के आयुक्त धनराजू एस ने इस पुरानी फाइल को निकालकर इस पर जिले के कलेक्टर्स से तीन दिन में जवाब मांगा है। अब राज्य शिक्षा केंद्र ने कलेक्टर्स को पत्र जारी करके इन शौचालयों के निर्माण, किस मद से, किस योजना के तहत बनाए गए। इसकी जानकारी मांगी है। मप्र में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं। शिक्षा के स्तर सकारात्मक बदलाव के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारी और खुद मंत्री विदेशों के दौरे कर रहे हैं। लेकिन, प्रदेश के स्कूलों की तस्वीर कुछ और ही हकीकत बयां करती है। राजधानी भोपाल के शासकीय माध्यमिक शाला स्कूल में पिछले तीन साल से शौचालय नहीं है। शौचालय के लिए छात्र-छात्राओं को पास ही स्थित सुलभ कॉम्पलेक्स में जाना पड़ता है। छात्राएं स्कूल तो आना चाहती हैं, लेकिन स्कूल में शौचालय नहीं होना छात्राओं के लिए परेशानी का सबब बन रहा है।
राजधानी भोपाल जहां प्रदेश के तमाम मंत्री बैठते हैं। खुद शिक्षा मंत्री और शिक्षा विभाग के तमाम आला अधिकारी भी भोपाल में जमे रहते हैं। लेकिन, यहां के स्कूल की छात्राओं की जरूरत से अनजान बने हुए हैं। स्कूल की शिक्षिका का कहना है कि शौचालय नहीं होने की वजह से बच्चियों को बहुत परेशानी होती है। हमें बच्चियों की सुरक्षा की भी चिंता होती है। शौच के लिए बाहर गई बच्चियों को लेकर हमेशा मन में डर बना रहता है कि कहीं अगर कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा। शिक्षिका ने बताया कि पिछली सरकार से लेकर तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री तक से गुहार लगा चुकी हैं। लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि 'हम शिक्षिकाओं को भी सुलभ कॉम्पलेक्स में ही शौच के लिए जाना होता है। वहीं छात्राओं का कहना है कि स्कूल से सुलभ कॉम्पलेक्स तक यूनिफॉर्म में जाने पर शर्म आती है। सड़क पर आने-जाने वाले सभी लोगों की नजरें हम पर ही टिकी होती हैं।
पंचायती राज संचालनालय ने 2018 में बालकों के लिए 2285 एवं बालिकाओं के लिए 1591 शौचालय मिलाकर कुल 3 हजार 876 शौचालयों के लिए 52 करोड़ रुपए स्वीकृत किए थे। इन शौचालयों का निर्माण ग्राम पंचायतों द्वारा किया जाना था। गांवों में शौचालयों के निर्माण के बाद बालकों के 2285 निर्माण के लिए तो राशि जारी हुई, लेकिन बालिका शौचालयों के लिए राशि जारी नहीं हुई। इस संबंध में 2019 में भी विभाग ने पता किया, लेकिन जानकारी नहीं मिल सकी।
- नवीन रघुवंशी