कभी मप्र की राजनीति में सबसे चमकदार चेहरा रहे प्रहलाद पटेल भले ही केंद्र में मंत्री हैं, लेकिन एक तरह से हाशिए पर हैं। इसलिए पटेल एक बार फिर से मप्र में अपनी जगह तलाश रहे हैं।
दिल्ली की गुलाबी ठंड के बीच गत दिनों जनपथ स्थित एक कोठी में हुई दावत मप्र के राजनीतिक पंडितों का ध्यान खींच रही है। चुनिंदा लोगों की इस पार्टी में मूंग दाल के हलवे से लेकर जलेबी तक परोसी गई, लेकिन चर्चा मप्र के नरसिंहपुर जिले के गुड़ की ही रही। केंद्रीय राज्यमंत्री और मप्र के वरिष्ठ नेता प्रहलाद सिंह पटेल ने मीडिया में दखल रखने वाले मप्र से जुड़े लोगों को अपने घर दिवाली मिलन पर बुलाया था। प्रहलाद की पार्टी के मायने निकाले जा रहे हैं कि कहीं वे दिल्ली छोड़कर मप्र के पटेल तो नहीं बनने जा रहे। क्योंकि राजधानी भोपाल में लंबे समय से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विदाई और किसी नए चेहरे की मुख्यमंत्री के रूप में आमद की चर्चाएं जोरों पर चल रही हैं।
पार्टी में शामिल हुए लोगों को बतौर उपहार मप्र के नरसिंहपुर जिले का गुड़ भी भेंट किया गया। उपहार के पैकेट पर केंद्रीय मंत्री के भाई और प्रदेश से विधायक जालम सिंह पटेल का नाम लिखा था। प्रहलाद पटेल भाजपा के लिए लंबे समय तक संगठन का काम कर चुके हैं। मप्र के कद्दावर नेता पटेल ने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के साथ भाजपा छोड़ी थी। बाद में वापसी हुई तो अब दिल्ली में मोदी-शाह के करीबी माने जाते हैं। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में कयास तेज हैं कि मप्र के नए मुख्यमंत्री के रूप में पटेल की दावेदारी भी खासी मजबूत है। हाईकमान उन पर भरोसा भी जता सकता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं और पटेल भी ओबीसी से हैं। ऐसे में शिवराज सिंह को हटाकर पटेल को बैठाने से वह वर्ग भी नाराज नहीं होगा। नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को दिवाली मिलन की इस दावत ने खासा बल दे दिया है। बात इसलिए भी दूर तक जा रही है क्योंकि आमतौर पर पटेल अब तक ऐसी दावतों से दूर रहते ही नजर आते थे।
मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने कुछ दिन पहले भाजपा के दो नेताओं का नाम मुख्यमंत्री की दौड़ के लिए सबसे आगे बताया था। सिंह ने जुलाई में ट्वीट कर कहा था अब मप्र भाजपा में मुख्यमंत्री के लिए केवल दो ही उम्मीदवार दौड़ में रह गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के उम्मीदवार हैं प्रहलाद पटेल और संघ के उम्मीदवार हैं वीडी शर्मा। बाकी उम्मीदवारों के प्रति मेरी सहानुभूति है। मामू का जाना तय।
उत्तराखंड, कर्नाटक, गुजरात के बाद मप्र में कांग्रेस लगातार शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बने रहने पर सवाल उठा रही है और मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने को लेकर लगातार सोशल मीडिया पर कैंपेन चला रही है। पेगासस लिस्ट में विपक्ष के नेताओं के साथ मोदी कैबिनेट के दो मंत्रियों के नाम भी सामने आए थे। उनमें केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रहलाद सिंह पटेल शामिल थे। लिस्ट में नाम आने के बाद केंद्रीय राज्यमंत्री पटेल ने इस पर हैरानी जताते हुए कहा था, मैं इतना बड़ा आदमी नहीं हूं कि मेरी जासूसी की जाए।
केंद्रीय राज्यमंत्री पटेल का राजनीतिक कैरियर छात्र नेता के तौर पर शुरू हुआ था। उन्होंने मप्र के जबलपुर विश्वविद्यालय में छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव जीतकर सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा था। इसके बाद उन्होंने राजनीति में पलटकर नहीं देखा और लगातार आगे बढ़ते गए। पटेल उन गिने-चुने राजनेताओं में से हैं जिन्होंने नर्मदा परिक्रमा की है। पटेल चार बार सांसद रह चुके हैं। पहली बार वे 1989 में सांसद बने थे। इसके बाद 1996, 1999, 2014 और 2019 में भी सांसद बने। पटेल वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में भी मंत्री रहे हैं। साल 2003 उमा भारती की अगुवाई में दिग्विजय सिंह की एक दशक पुरानी कांग्रेस सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था, तो पटेल को राज्य स्तर पर पहचाना मिली। अपनी तेज-तर्रार छवि के चलते ही वह अटल बिहारी वाजपेयी के पसंदीदा नेताओं में शुमार होने लगे और बाद में उन्हें वाजपेयी सरकार में कोयला मंत्री बना दिया गया। यहां से वह राज्य से निकलकर केंद्र की तरफ बढ़ चले।
प्रहलाद पटेल का केंद्रीय मंत्रिमंडल में घटा कद
जुलाई में हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में प्रहलाद पटेल का कद कम कर दिया गया। पटेल से पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय स्वतंत्र प्रभार छीनकर उन्हें जलशक्ति व खाद्य प्रसंस्करण का राज्यमंत्री बनाया गया है। पटेल का मंत्रालय बदलने और उनके अधिकार सीमित किए जाना उनकी कार्यशैली और दमोह उपचुनाव में मिली भाजपा की करारी हार से जोड़कर देखा जा रहा है। प्रहलाद पटेल को शिवराज विरोधी खेमे का नेता भी माना जाता है। साल 2005 में जब उमा भारती पर दंगों के आरोप लगे तो पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दे दी। इसके बाद उमा भारती ने साल 2005 में अपना राजनीतिक दल भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाया। पटेल ने बगावती तेवर दिखाते हुए उमा भारती का साथ दिया। उनके इस कदम के बाद से वह शिवराज विरोधी माने जाने लगे। कुछ ही समय के बाद पटेल ने पार्टी छोड़ दी और 2009 में फिर से भाजपा में लौट आए। साल 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में दमोह लोकसभा सीट से चुनाव जीता और 2019 में भी अपनी सीट बरकरार रखी।
- जितेंद्र तिवारी