सूखा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (डीईडब्ल्यूएस) द्वारा जारी हालिया आंकड़ों को देखें तो भारत का पांचवां हिस्सा (21.6 फीसदी भू-भाग) सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहा है। देखा जाए तो सूखे का सामना करने वाला यह क्षेत्र पिछले साल की तुलना में करीब 62 फीसदी ज्यादा है। गौरतलब है कि पिछले वर्ष इस अवधि के दौरान देश का करीब 7.86 फीसदी हिस्सा सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहा था। आंकड़ों के अनुसार देश का जो 21.6 फीसदी हिस्सा सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहा है, वहां कहीं सूखे की स्थिति मध्यम और कहीं काफी गंभीर है। जहां 1.63 फीसदी क्षेत्र अत्यधिक शुष्क परिस्थितियों का सामना कर रहा है, वहीं 1.73 फीसदी भू-भाग असाधारण रूप से शुष्क है। 2.17 फीसदी गंभीर रूप से शुष्क है जबकि 8.15 फीसदी हिस्सा मध्यम रूप से शुष्क है। 16 अगस्त, 2021 को जारी नवीनतम इन आंकड़ों के अनुसार देश की करीब 7.38 फीसदी भूमि असामान्य रूप से शुष्क है।
पिछले कुछ समय से देश के उत्तरी, मध्य और पूर्वी राज्यों में सूखे जैसी स्थिति बानी हुई है। वहीं पिछले दो महीनों में हुई बारिश के पैटर्न के आधार पर लगाए गए अनुमान के अनुसार राजस्थान, गुजरात, ओडिशा और नागालैंड जैसे कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों में सूखे की गंभीर से असाधारण स्थिति बनी हुई है। हाल ही में मिली जानकारी से पता चला है कि पश्चिमी राजस्थान में तो सूखे की स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि वहां पाली जिले में जल संकट को दूर करने के लिए प्रशासन ट्रेन से पानी की सप्लाई पर विचार कर रहा है। इस जिले में सामान्य से 37 फीसदी कम बारिश हुई है और पूरे जिले को पानी की आपूर्ति करने वाले बांध में केवल एक माह का पानी शेष बचा है। इस बारे में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के एसोसिएट प्रोफेसर विमल मिश्रा ने जानकारी दी है कि दक्षिणी राजस्थान, उत्तरी महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा और छत्तीसगढ़ मुश्किल वक्त का सामना कर रहे हैं। यदि इन क्षेत्रों में मानसून के शेष भाग के दौरान वर्षा नहीं होती है, तो स्थिति और खराब हो सकती है। अनुमान है कि मौजूदा स्थिति के लिए वर्षा का असमान वितरण और मानसून का विफल होना मुख्य वजहों में से है।
भारतीय मौसम विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इनमें से अधिकांश राज्यों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है। 19 अगस्त तक जारी आंकड़ों के अनुसार गुजरात में सामान्य से 48 फीसदी कम बारिश हुई है, वहीं ओडिशा में यह आंकड़ा 29 फीसदी है। वहीं नागालैंड और पंजाब दोनों राज्यों में सामान्य से 22 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है, जबकि छत्तीसगढ़ में 11 फीसदी और राजस्थान में सामान्य से चार फीसदी बारिश कम हुई है। पिछले एक महीने के दौरान मिट्टी में मौजूद नमी से जुड़े सूचकांक पर आधारित अनुमानों के अनुसार ओडिशा के कई जिले सूखे की चपेट में है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो खरीफ फसल को बचाने के लिए राज्य सरकार पहले ही कृषि विभाग को आकस्मिक योजना तैयार करने का निर्देश दे चुकी है।
जलवायु मॉडल के अनुमानों से पता चलता है कि ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) की बढ़ती मात्रा के तहत सूखा कई क्षेत्रों को प्रभावित करेगा। शुष्क भूमि के वातावरण को देशों और क्षेत्रों के द्वारा साझा किया जाता है। लेकिन इन पारिस्थितिक तंत्रों का प्रबंधन अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीके से होता है। साथ ही, एशियाई शुष्क भूमि के लिए सीएमआईपी 6 आंकड़ों पर आधारित अध्ययनों का अभाव है। शोध के परिणामों से पता चला है कि विभिन्न प्रकार के सामाजिक-आर्थिक मार्गों के तहत, भविष्य में दुनियाभर में स्थलीय सूखे की बढ़ती प्रवृत्ति में आशंका जताई गई। बढ़ते सूखे की आशंका शेयर्ड सोसिओ-इकोनॉमिक पाथवेज (एसएसपी) 126, एसएसपी 245 और एसएसपी 585 के तहत दिखाई दी है। इन तीनों के आधार पर सूखे का अनुपात क्रमश: 36.2 फीसदी, 53.3 फीसदी और 68.3 फीसदी पाया गया। इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने पाया कि भविष्य में सूखा कम बार पड़ेगा, लेकिन सूखे की अवधि लंबी और अधिक तीव्र होगी। भविष्य में सूखे की यह अवधि 2021 से 2060 और 2061 से 2100 की अवधि क्रमश: 10.8 महीने और 13.4 महीने होगी, जबकि ऐतिहासिक अवधि 1960 से 2000 की अवधि 6.6 महीने तक की थी। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक भारत में अधिकांश सूखे की घटनाएं मानसून के मौसम के दौरान हुईं हैं। विशेष रूप से सूखे की घटनाएं देश के मध्य, उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व के इलाकों में देखी गई। ये घटनाएं 1980 से 2015 के बीच मई से लेकर सितंबर के दौरान हुईं थीं। मौसम संबंधी अचानक सूखे की घटना के विश्लेषण से पता चला है कि ये क्षेत्र मानसून के मौसम की शुरुआत में अपनी चरम सीमा का अनुभव करते हैं। अचानक होने वाली सूखे की घटनाओं का बार-बार होना मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई गई।
एशियाई देशों में बढ़ सकती है सूखे की त्रासदी
एशिया में दुनिया के सबसे बड़े शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र है, यह 1,145 वर्ग किलोमीटर तक फैले हैं। इसलिए एशियाई शुष्क इलाकों में भविष्य में पड़ने वाले सूखे का समय पर मूल्यांकन करना बहुत जरूरी है। हाल के वर्षों में बार-बार आने वाले रेत के तूफानों को लेकर भी यह और महत्वपूर्ण हो जाता है। शुष्क क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन और जलवायु के चरम सीमाओं का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। एशिया में शुष्क क्षेत्र पश्चिम में कैस्पियन सागर से पूर्व में मंचूरिया तक फैला हुआ है। इसमें मंगोलिया गणराज्य और उत्तर पश्चिमी चीन के साथ पांच मध्य एशियाई देश शामिल हैं। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक भारत में भी मौसम संबंधी सूखे की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गई है। सूखे की वजह से स्थानीय कृषि, जल संसाधनों और पारिस्थितिक पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के चलते भविष्य में सूखे की वजह से होने वाले बदलावों के बारे में सटीक पूर्वानुमान लगाना महत्वपूर्ण है।
- राजेश बोरकर