भोपाल के हमीदिया अस्पताल के नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में शार्ट सर्किट से आग लगने से मासूमों की मौत ने पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है। शासन से लेकर स्थानीय प्रशासन तक कटघरे में है। प्रशासन ने आग की घटना में सिर्फ चार नवजात बच्चों की मौत की पुष्टि की है, लेकिन तथ्य तो इसके दोगुना से अधिक बच्चों के मरने के हैं। उनके माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल है। सरकार ने पूरे मामले की गहराई से जांच कराने का ऐलान किया है और इसके लिए स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) मोहम्मद सुलेमान को जिम्मेदारी दी है लेकिन विपक्षी कांग्रेस इससे संतुष्ट नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एसीएस को जांच का जिम्मा देने पर यह कहकर सवाल उठाया है कि हादसे के लिए जो जिम्मेदार हैं वे ही जांच कैसे कर सकते हैं। जाहिर कांग्रेस इसमें अपनी राजनीति का नया रास्ता भी देख रही है। उसने सरकार पर सच छुपाने का आरोप लगाते हुए यह भी कहा है कि पिछले 48 घंटे में हमीदिया अस्पताल में 14 बच्चों की मौत हुई है। हालांकि घटना के तीसरे दिन सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ. लोकेंद्र दवे, गांधी मेडिकल कालेज के डीन डॉ. जीतेन शुक्ला, कमला नेहरू अस्पताल के संचालक केके दुबे को उनके पद से हटा दिया है जबकि राजधानी परियोजना प्रशासन की विद्युत शाखा के उपयंत्री अवधेश भदौरिया को निलंबित कर दिया है। फौरी तौर पर सरकार ने संदेश दिया है कि दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से वह हिचकेगी नहीं।
फिलहाल सरकार इसे हादसा मान रही है, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार लोगों को चिन्हित करना अभी शेष है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है घटना के पीछे लापरवाही की परतें भी खुलती जा रही हैं। यह कम चौंकाने वाला तथ्य नहीं है कि राजधानी के इस महत्वपूर्ण अस्पताल का फायर सेफ्टी ऑडिट नहीं हो रहा था। जबसे अस्पताल का भवन बना है तब से लेकर आज तक फायर एनओसी ही नहीं ली गई। जिस वार्ड में हादसा हुआ वहां वेंटीलेटर के प्लग लगाने के लिए पावर शाकेट नहीं लगे थे। वेंटीलेटर भी 8 साल पुराना था। इसके लिए चाहे जो तर्क दिए जाएं लेकिन सच यह है कि ऊपर से नीचे तक सुरक्षा से जुडे विषयों को गंभीरता से नहीं लिया गया। यह भी कम चौंकाने वाली बात नहीं है कि लगभग एक साल पूर्व इसी अस्पताल का निरीक्षण करने गए चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के सामने भी व्यवस्थागत लापरवाही की पोल खुली थी। वह हमीदिया के नए ओपीडी भवन में कोरोना मरीजों के लिए बनाए 20 बिस्तर के वार्ड में सुविधाओं का जायजा लेने पहुंचे थे। फायर कंट्रोल सिस्टम में उन्होंने बाहर से जंग लगा पाया था। मंत्री को सिस्टम के बंद होने की आशंका हुई तो उन्होंने अधिकारियों से इसे चालू करके दिखाने के निर्देश दिए। इसके बाद अधिकारी मोटर पंप कनेक्शन के स्विच वाले बाक्स में लगे ताले की चाबी खोजने लगे। 30 मिनट तक खोजबीन चली और मंत्री इंतजार करते रहे। आखिरकार चाबी नहीं मिली थी। तब मंत्री नाराज हुए थे और कहा था कि अनहोनी होने पर इसी तरह जब चाबी नहीं मिलेगी तो कितना बड़ा नुकसान होगा। मंत्री ने अधीक्षक, डीन और अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई थी और अस्पताल परिसर के सभी फायर कंट्रोल सिस्टम के ऑडिट के निर्देश दिए थे। इस निर्देश पर कितना काम हुआ, यह हमीदिया में हुए हादसे से पता चलता है। सवाल यह भी है कि हमीदिया में फायर सिस्टम को दुरुस्त करने का मंत्री ने निर्देश दिया था तो इस पर अमल क्यों नहीं हुआ। अस्पताल प्रबंधन सोता रहा तो शासन ने क्या किया। आखिर मंत्री को अपने ही निर्देश की याद क्यों नहीं आई! समय रहते यदि कदम उठाए गए होते तो शायद शिशु वार्ड में आग की इतनी बड़ी घटना से बचा जा सकता था।
जिस शिशु गहन चिकित्सा कक्ष में शार्ट सर्किट से आग लगी, वहां 24 घंटे डॉक्टर, नर्स एवं अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की ड्यूटी लगाई जाती है। इतने लोगों की मौजूदगी वाले इस संवेदनशील कक्ष में आखिर आग इतनी जल्दी कैसे फैल गई। जाहिर है वहां कोई देखने वाला नहीं था। सबकी नजर तब पड़ी जब सब कुछ बर्बाद हो गया था। प्रदेश में इसके पहले भी अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं होती रही हैं। जांच दल बनाए जाते रहे हैं। रिपोर्ट भी तैयार होती रही है। सुधार के लिए सिफारिशें होती रही हैं, लेकिन जिम्मेदारों को जितनी गंभीरता दिखानी चाहिए उतनी नहीं हो सकी है।
एक साल से मिल रहे थे हादसे के संकेत
अपने जिन शिशुओं को लेकर माता-पिता ने तरह-तरह के सपने बुने थे। अभी उन्हें जी भर देखा तक नहीं था, गले लगाने की बात तो दूर थी। लापरवाह व्यवस्था के चलते उन मासूमों का शव कांपते हाथों में उठाना पड़ा। अस्पताल में कागजों में व्यवस्थाएं दुरुस्त रहीं, पर हकीकत में मरम्मत के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए। राजधानी परियोजना प्रशासन (सीपीए) ने मरम्मत के कामों में किस कदर लापरवाही की, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले वर्ष जनवरी में नवजात शिशु वार्ड की पूरी वायरिंग बदली गई थी, इसके बाद भी घटना के दिन प्लग लगाते वक्त शार्ट सर्किट हुआ। मरम्मत का काम पुख्ता नहीं होने का दूसरा उदाहरण यह है कि पिछले साल जनवरी से लेकर अब तक शिशु रोग विभाग की तरफ से नौ पत्र लिखे गए। 24 अगस्त 2020 को सीपीए को भेजे पत्र में साफ तौर पर इस बात का जिक्र था कि प्लगों में स्पार्किंग हो रही है। विभाग के पत्र के बाद सीपीए ने मरम्मत का काम तो किया, पर इसके बाद भी जनवरी से अक्टूबर तक नौ पत्र विभाग द्वारा वायरिंग मरम्मत के लिखा जाना इसका स्पष्ट प्रमाण है कि मरम्मत का काम तय मापदंडों के अनुरूप नहीं किया गया था।
- जितेंद्र तिवारी