केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केन-बेतवा नदी को जोड़ने वाले प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है। इस प्रोजेक्ट में 44,605 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। खास बात यह है कि इसका 90 प्रतिशत खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी। इसके तहत 176 किलोमीटर की लिंक कैनाल का निर्माण किया जाएगा, जिससे दोनों नदियों को जोड़ा जा सके। प्रोजेक्ट के अस्तित्व में आने के बाद मप्र के सागर-विदिशा सहित 12 जिलों को पानी मिलेगा। इसके साथ ही 10 लाख हैक्टेयर में सिंचाई होगी। बताया जाता है कि यह प्रोजेक्ट 8 साल में पूरा कर लिया जाएगा। 16 साल पिछड़ने से परियोजना की लागत भी बढ़ गई है। करीब 8 हजार करोड़ रुपए की नदी जोड़ो परियोजना अब 44 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की हो गई है। जबकि वर्ष 2015 में परियोजना की लागत 37 हजार करोड़ आंकी गई थी। लागत में भारी भरकम इजाफा 16 साल की देरी के साथ जीएसटी लगने से भी हुआ है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि उप्र में चुनाव से पहले नदी जोड़ो अभियान के तहत देश की पहली केन-बेतवा लिंक परियोजना की आधारशिला रखी जाएगी। इसका भूमिपूजन अगले महीने झांसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों कराने की तैयारी है। इससे पहले मोदी कैबिनेट ने दोनों राज्यों और केंद्र के बीच हुए समझौते के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट से नॉन मानसून सीजन (नवंबर से अप्रैल के बीच) में मप्र को 1834 मिलियन क्यूबिक मीटर व उप्र को 750 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी मिलेगा। इस योजना से सागर-विदिशा समेत मप्र के 8 जिलों को पानी पहुंचाना है। बता दें कि इसे लेकर मप्र और उप्र के बीच चल रहा विवाद केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद 8 महीने पहले सुलझ गया था। इसी साल, विश्व जल दिवस पर 8 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिए मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस एमओयू पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हस्ताक्षर किए। इस परियोजना में 90 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार देगी, जबकि शेष 5-5 प्रतिशत हिस्सेदारी मप्र व उप्र वहन करेंगे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय वर्ष 2002 में केन और बेतवा नदी को जोड़ने की रूपरेखा बनी थी। अगस्त 2005 में उप्र और मप्र सरकार के बीच इसको लेकर पहला समझौता हुआ। इसमें केन नदी को पन्ना जिले में प्रस्तावित ढोढ़न बांध से लगभग 221 किमी लंबी केन-बेतवा लिंक नहर के जरिए झांसी के बरुआसागर के पास बेतवा नदी से जोड़ा जाना था। उस दौरान इसकी लागत 8 हजार करोड़ रुपए आंकी गई थी। सबसे अधिक खर्च पुनर्वास पर किया जाना था। डूब के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क को स्थानांतरित किया जाना था। लेकिन परियोजना पर काम शुरू होने के बजाय उप्र एवं मप्र के बीच जल बंटवारे को लेकर विवाद शुरू हो गया। विवाद के चलते परियोजना लगातार पीछे खिसकती गई। इस वजह से पुनर्वास लागत भी बढ़ती गई। 2015 में जब एक बार फिर दोनों राज्य परियोजना को लेकर सहमत होने लगे तब इसकी लागत बढ़कर 37 हजार करोड़ तक पहुंच चुकी थी। लेकिन उसके बाद भी परियोजना जल बंटवारे को लेकर 6 साल उलझी रही।
प्रोजेक्ट के पहले फेज में केन नदी पर ढोढ़न गांव के पास बांध बनाकर पानी रोका जाएगा। यह पानी नहर के जरिया बेतवा नदी तक पहुंचाया जाएगा। वहीं, दूसरे फेज में बेतवा नदी पर विदिशा जिले में 4 बांध बनाए जाएंगे। इसके साथ ही बेतवा की सहायक बीना नदी जिला सागर और उर नदी जिला शिवपुरी पर भी बांधों का निर्माण किया जाएगा। प्रोजेक्ट के दोनों फेज से सालाना करीब 10.62 लाख हैक्टेयर जमीन पर सिंचाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। साथ ही, 62 लाख लोगों को पीने के पानी के साथ 103 मेगावॉट हाइड्रो पावर भी पैदा किया जाएगा। केन-बेतवा लिंक परियोजना में दो बिजली प्रोजेक्ट भी प्रस्तावित हैं, जिनकी कुल स्थापित क्षमता 72 मेगावॉट है। परियोजना से बुंदेलखंड के उप्र और मप्र के 12 जिलों को पानी मिलेगा। मप्र के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी को पानी मिलेगा। वहीं, उप्र के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिलों को राहत मिलेगी।
केंद्र सरकार के दखल के बाद 22 मार्च 2021 को आखिरकार उप्र एवं मप्र की राज्य सरकारें पानी के बंटवारे को लेकर सहमत हो गई। अब परियोजना पर काम शुरू होने का समय आ गया है। ऐसे मेें सिंचाई विभाग के इंजीनियरों ने परियोजना की लागत का फिर से आंकलन किया जा रहा है, जो अब 75 हजार करोड़ रुपए होने का अनुमान है। लागत बढ़ने की वजह जीएसटी को भी माना जा रहा है। जो परियोजना पर 18 फीसदी जोड़ा गया है। वहीं, पुनर्वास खर्च में बढ़ोतरी हो गई। ऐसे में लागत का करीब 30 फीसदी बढ़ना तय है हालांकि अभी लागत पूरी तरह तय नहीं हुई है। लागत को लेकर परीक्षण का काम चल रहा है। परियोजना की कुल लागत का 90 फीसदी बजट केंद्र सरकार को देना है, जबकि शेष 10 प्रतिशत बजट उप्र एवं मप्र सरकार अपने-अपने पानी के अनुपात में वहन करेंगे। इस लिहाज से दोनों ही राज्यों को इस परियोजना में काफी कम लागत खर्च करनी होगी। लेकिन बढ़ी लागत के अनुसार केंद्र का खर्च बढ़ गया है।
2005 में गौर-मुलायम ने किए थे हस्ताक्षर
परियोजना में पानी के बंटवारे को लेकर 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की मौजूदगी में दोनों प्रदेशों के बीच अनुबंध हुआ था। मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। तब परियोजना का डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार नहीं हुआ था। अब डीपीआर तैयार है। इस कारण पानी की भराव क्षमता में कुछ बदलाव हुआ है। इस कारण से तीनों सरकारों के बीच संशोधित एमओयू पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं। 2005 में उप्र को रबी फसल के लिए 547 एमसीएम और खरीफ फसल के लिए 1153 एमसीएम पानी देना तय हो गया था। 2018 में उप्र की मांग पर रबी फसल के लिए 700 एमसीएम पानी देने पर सहमति बन गई थी। केंद्र सरकार ने उप्र को 788 एमसीएम पानी देना तय कर दिया था, लेकिन उप्र सरकार ने जुलाई 2019 में 930 एमसीएम पानी मांग लिया था, जिसे मप्र ने इनकार कर दिया था।
- जितेंद्र तिवारी