44605 करोड़ बजट वाली केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना बुंदेलखंड की उजड़ी तस्वीर में खुशहाली के रंग भरेगी। मप्र के आठ और उप्र के चार जिलों के सूखे खेतों को पानी मिलने के साथ 103 मेगावाट जल विद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा बनाई जाएगी। इससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलेगा। देश के कई हिस्सों में जल संकट की समस्या का समाधान करने के लिए केंद्र सरकार नदियों को जोड़ने वाली एक महत्वाकांक्षी परियोजना लेकर आई है। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) के तहत परिकल्पित केन-बेतवा लिंक परियोजना देश में कार्यान्वित होने वाली नदियों को जोड़ने की पहली परियोजनाओं में से एक होगी। परियोजना को बहुउद्देश्यीय परियोजना के रूप में नियोजित किया गया है।
दरअसल, बुंदेलखंड क्षेत्र बार-बार सूखे की स्थिति का सामना करता है, जिसने क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रभावित किया है। कठोर चट्टान और सीमांत जलोढ़ इलाके के कारण यह क्षेत्र भूजल में समृद्ध नहीं है। ऐसे में यह परियोजना मानसून के दौरान बाढ़ के पानी के उपयोग में मदद करेगी और कम बारिश वाले महीनों के दौरान पानी की उपलब्धता स्थिर करेगी, खास तौर पर सूखे के हालात में इस परियोजना से जिन जिलों को लाभ होगा उनमें मप्र के छतरपुर, टीकमगढ़, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी, रायसेन, पन्ना और उप्र के झांसी, महोबा, बांदा और ललितपुर जिले प्रमुख रूप से शामिल हैं। छतरपुर जिले के ढोढन में बांध बनाकर यहां से जो 220 किमी लंबी नहर निकाली जाएगी वह छतरपुर, टीकमगढ़ जिले से उप्र के महोबा जिले से गुजरेगी, अंत में झांसी जिले के बरुआसागर तालाब में केन के अतिरिक्त पानी को पहुंचाएगी। यहां से यह पानी 20 किमी आगे पारीछा बांध में पहुंचाया जाएगा। परियोजना के दूसरे फेज में बेतवा नदी पर विदिशा जिले में 4 बांध, बेतवा की सहायक बीना नदी जिला सागर और उर नदी जिला शिवपुरी पर भी बांधों का निर्माण किया जाएगा।
प्रोजेक्ट के दोनों फेज से सालाना करीब 10.62 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 62 लाख लोगों को पीने के लिए पानी मिलेगा और 103 मेगावाट जल विद्युत का उत्पादन किया जाएगा। केन-बेतवा लिंक परियोजना में 72 मेगावाट के दो बिजली प्रोजेक्ट भी तैयार होंगे। मप्र और उप्र के लिए महत्वाकांक्षी इस परियोजना पर दोनों प्रदेशों की सरकारों के साथ केंद्र सरकार से स्वीकृति से उम्मीद बंध गई है कि अब इस परियोजना के सुखद परिणाम सामने आने में देर नहीं है। अगर यह प्रयोग कामयाब रहा तो देश की अलग-अलग क्षेत्रों की नदियों को आपस में जोड़ने की 30 योजनाओं का रास्ता साफ होगा।
जल संसाधन छतरपुर संभाग के कार्यपालन यंत्री एमके रूसिया ने बताया कि वन पर्यावरण मंत्रालय से दोनों चरणों में स्वीकृति के बाद इस बड़े प्रोजेक्ट का कार्य तेजी से शुरू हो जाएगा। अभी प्रथम स्टेज की मंजूरी मिल गई है, अब नोटिफिकेशन के अनुसार द्वितीय स्टेज की मंजूरी लेने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। इसके बाद ही प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण का काम शुरू हो जाएगा। उन्होंने बताया कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना में मप्र के हिस्से में 7 बांध बनाए जाएंगे। पहले फेज में छतरपुर जिले की केन नदी पर ढोढ़न गांव के पास बांध बनाकर पानी रोका जाएगा। यह पानी नहर के जरिए बेतवा नदी तक पहुंचेगा। केन-बेतवा नदियों को जोड़ने से जिले की 3,11,151 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी। इससे जिले के राजनगर, बिजावर, लवकुशनगर, नौगांव अनुभाग के ज्यादा हिस्से की भूमि सिंचित होगी। अभी जिले की भूमि पर फिलहाल जौ, बाजरा, दलहन, तिलहन, गेहूं, मूंगफली, चना जैसी फसलें पैदा होती हैं, इन फसलों में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। ये नदियां जुड़ जाने से पूरे इलाके में अधिक पानी वाली और गन्ने की फसलें भी पैदा हो सकेंगीं। इसके साथ ही बुंदेलखंड क्षेत्र में 4,000 से अधिक तालाबों को पानी से बारह माह भरा जा सकेगा। कुल मिलाकर इन नदियों के जुड़ जाने से जिले की पूरी आबादी खुशहाल होगी।
इस परियोजना में यमुना नदी की सहायक नदियों सहित मप्र के पन्ना जिले में केन नदी और उप्र में बेतवा नदी को जोड़कर जल संकट से निपटने के लिए अतिरिक्त पानी वाले नदी के बेसिन से कम पानी वाले बेसिन तक पानी पहुंचाया जाएगा। यह कार्य 8 वर्षों में दो चरणों में पूरा होगा। पहले चरण में छतरपुर जिले के ढोढन बांध बनाकर उससे जुड़ी निम्न स्तरीय सुरंग, उच्च स्तरीय सुरंग, 221 किमी लंबी केन-बेतवा लिंक नहर और बिजलीघर बनाए जाएंगे। दूसरे चरण में लोअर बांध, बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना और कोटा बैराज के लिए विकास कार्य शुरू किए जाएंगे।
पर्यावरण पर प्रभाव को लेकर जताई चिंता
जहां एक ओर केन-बेतवा नदी को जोड़ने की परियोजना से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल संकट की समस्या का समाधान होने की उम्मीद है, वहीं कई कुछ पर्यावरणविदों ने इससे पर्यावरण व वन्य जीवों को नुकसान की आशंका व चिंता जताई है। पर्यावरण विशेषज्ञ अनुपम मिश्र ने पन्ना टाइगर रिजर्व पर इसके दुष्प्रभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि राष्ट्रीय उद्यान के अंदर निर्माण कार्य की वजह से 46 लाख से अधिक पेड़ काटे जाने की संभावना है। टाइगर रिजर्व कई गंभीर रूप से लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियों का घर है, इसके अलावा, केन-बेतवा नदी को जोड़ने की परियोजना के विकास से परियोजना के ढोढन बांध के तहत 6,017 हेक्टेयर वन भूमि के जलमग्न होने का भी खतरा है। वहीं इस बड़ी परियोजना में यहां 9,000 हेक्टेयर के जलाशय में पानी रोके जाने से जलाशय क्षेत्र में छतरपुर जिले की बिजावर तहसील के 10 आदिवासी बहुल वनग्राम सुकवाहा, भोरकुवां, घुघरी, बसुच्च, कुपी, शाहपुरा, ढोढन, पिलकोहा, खरयानी और मनियारी पूरी तरह से जलमग्न हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को उठाने वाले भोपाल के पर्यावरण कार्यकर्ता अजय कुमार दुबे कहते हैं कि वैसे भी पन्ना टाइगर रिजर्व एक बार पहले भी अपने सारे बाघ खो चुका है और वहां अब नए सिरे से बाघों को बसाया जा रहा है। वर्तमान में यहां करीब 70 से अधिक बाघ हैं।
- सिद्धार्थ पांडे