कर्ज के सहारे सरकार
03-Mar-2020 12:00 AM 547

केंद्र सरकार के असहयोग के कारण प्रदेश सरकार वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही है। इसलिए प्रदेश सरकार को लगातार कर्ज लेना पड़ रहा है। 25 फरवरी को एक बार फिर बाजार से एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज सरकार को लेना पड़ा। इस राशि का उपयोग विकास परियोजनाओं और वित्तीय गतिविधियों में किया जाएगा। गौरतलब है कि मार्च में सरकार मप्र का बजट पेश करेगी। ऐसे में सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ है।

विगत दिनों मुख्यमंत्री निवास पर बजट को लेकर बैठक आयोजित की गई। बैठक में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि बजट में आम जनता विशेष तौर पर ग्रामीणों से संबंधित योजनाओं को शामिल कर वचन पत्र में किए गए वादों को पूरा करने पर फोकस किया जाए। लेकिन अफसरों के सामने चुनौती यह है कि वह आर्थिक बदहाली के इस दौर में काम कैसे करें।  प्रदेश में करीबन 15 लाख कर्मचारियों और पेंशनर्स का महंगाई भत्ता और राहत राशि पांच प्रतिशत बढ़ाने का फैसला अभी तक नहीं हो पाया है। वहीं, धनराशि नहीं होने से विभागों के बजट में बड़ी कटौती भी करनी पड़ी है। इस मामले पर मिली सूचना के अनुसार केंद्रीय करों में 14 हजार 233 करोड़ रुपए की कटौती होने के पश्चात सरकार का वित्तीय प्रबंधन गड़बड़ा चुका है।

बता दें सरकार द्वारा पहले भी सालभर में 20 हजार 600 करोड़ रुपए का कर्ज लिया जा चुका है। सरकार ने कई खर्चों पर वित्त विभाग ने रोक लगा दी है। जिस कारण से प्रगतिरत काम में वित्तीय संकट के कारण रुकावट आ सकती है। इस तरह की रुकावट न हो, इसलिए यह कर्ज लेने का फैसला लिया गया है। यह कर्ज भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से बाजार से दस साल के लिए लिया जा रहा है। वित्त विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम में तय सीमा के दायरे में रहते हुए कर्ज किया जा रहा है। यह राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 3.5 फीसदी तक कर्ज लिया जा सकता है। वित्त विभाग के अनुसार बेहतर वित्तीय प्रबंधन के चलते मप्र को राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 प्रतिशत तक कर्ज लेने का अधिकार है। इस हिसाब से मध्य प्रदेश राज्य 28 हजार करोड़ रुपए तक का कर्ज ले सकता है। अधिकारियों का कहना है कि राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम में तय सीमा के दायरे में रहते हुए कर्ज ले रहे हैं। यदि जरूरत पड़ी तो और कर्ज भी लिया जा सकता है।

सूत्रों के मुताबिक किसानों की कर्जमाफी और विकास कार्यों के लिए सरकार को बड़ी राशि की जरूरत है। गत दिनों वित्त विभाग द्वारा तैयार किए गए प्रस्तावों के बारे में भी सीएम को अवगत कराया गया। कमेटियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग विभागों की एक जैसी योजनाओं का मर्जर किया जा सकता है। इन सभी योजनाओं को एक अंब्रेला स्कीम के नाम पर संचालित किया जा सकता है। इसके साथ ही जो योजनाएं अनुपयोगी हो गई हैं, उन्हें बंद करने के लिए कहा गया है। साथ ही यह सुझाव भी सामने आए हैं कि जो स्कीम नॉमिनल बजट वाली हैं और उनमें हर साल मामूली प्रावधान कर उन्हें संचालित किया जा रहा है, उन्हें या तो बंद कर दिया जाए या फिर उनकी री स्ट्रक्चरिंग कर मौजूदा परिस्थितियों के हिसाब से उपयोगी बनाया जाए। गौरतलब है कि जीएडी द्वारा ऊर्जा, अधोसंरचना, कृषि और सहयोगी क्षेत्र, सामाजिक क्षेत्र, शिक्षा और स्वास्थ्य, अतिरिक्त राजस्व उपार्जन के उपाय के लिए पांच अपर मुख्य सचिवों की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर रिपोर्ट मांगी गई थी। एसीएस एम गोपाल रेड्डी, मनोज श्रीवास्तव, इकबाल सिंह बैंस, केके सिंह और अनुराग जैन की अध्यक्षता वाली अलग-अलग कमेटियों ने वित्त विभाग को रिपोर्ट सौंप दी थी।

अभी जो स्थिति है, उसमें विभाग के हिसाब से हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए स्कीम तैयार की गई है। ऐसे में हितग्राही वर्ग एक होने के बाद भी विभाग अलग-अलग हैं। ऐसे में अब सरकार इस कोशिश में लगी हुई है कि एक जैसी योजनाओं को मर्ज किया जाए, ताकि आर्थिक चुनौती का सामना किया जा सके।

37 हजार करोड़ के विकास कार्य अटके

गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही प्रदेश सरकार कई योजनाओं को शुरू करने के लिए कर्ज का इंतजार कर रही है। इन योजनाओं के लिए कर्ज पाने के लिए सरकार द्वारा कई संस्थाओं से बातचीत की जा रही है। यह कर्ज बिजली के क्षेत्र में डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम सुधार, राशन दुकानों को इंटीग्रेडेट बनाने, युवाओं के रोजगार के अवसर बढ़़ाने, मल्टी वेलेज ग्रामीण वॉटर सप्लाई करने, विभिन्न शहरों में आरओबी का निर्माण सहित सड़कों का जाल बिछाने के अलावा पर्यटन के क्षेत्र में नए-नए कार्य विकसित करने के लिए तैयारी की जा रही है। इन पर करीब 37 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। यह कर्ज वल्र्ड बैंक, केएफडब्ल्यू बैंक, जापान फंड तथा एडीबी सहित एनडीबी से लेने की तैयारी की जा रही है। इनमें से कई प्रोजेक्ट शिवराज सरकार के समय से लंबित हैं। अब इनमें से कुछ पर कमलनाथ सरकार ने भी काम करना शुरू कर दिया है। बिजली व्यवस्था में सुधार के लिए ऊर्जा विभाग 1400 करोड़ की लागत वाला प्रोजेक्ट बनाया है। इसके तहत स्मार्ट मीटर लगाने डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम ठीक करने, चिन्हित शहर में इंवेस्टमेंट बढ़ाने के प्रोजेक्ट पर काम प्रारंभ किया है, परंतु इसमें फंड का अभाव रोड़ा बना हुुआ है। इसके लिए सरकार एफडब्ल्यू बैंक से लोन लेने के प्रयास में लगी है। इसी तरह से टारगेट व्यक्तियों को राशन सप्लाई की सिस्टम को सुधारने के लिए 96 करोड़ की राशि खर्च की जानी है। ग्रामीण क्षेत्रों में वाटर सप्लाई के लिए 3 हजार करोड़ की राशि का प्रोजेक्ट जून 2013 से लंबित है। इसके लिए जाइका से कर्ज की बात हो रही है। इसके अलावा मल्टी वेलेज ग्रामीण वाटर सप्लाई फेस-टू का प्रोजेक्ट 4500 करोड़ का लंबित है। साथ ही मल्टी वेलेज ग्रामीण वाटर सप्लाई फेस-थ्री के लिए एक हजार करोड़ की राशि खर्च होनी है और इसके लिए न्यू डेवलपमेंट बैंक से लोन लेने की बात हुई है, मगर सरकार के प्रयास सफल नहीं हुए।

-  बृजेश साहू

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^