केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना को किस तरफ पलीता लगाया जा रहा है, इसका नजारा भोपाल में देखा जा सकता है। राजधानी में स्मार्ट सिटी का क्षेत्र आज भी खंडहर बना हुआ है। योजनाएं आधी-अधूरी पड़ी हुई हैं, लेकिन करामाती अफसरों ने कागजों पर स्मार्ट सिटी को चकाचक बना दिया है। स्मार्ट सिटी मिशन को लेकर केंद्र सरकार की वेबसाइट पर भरोसा किया जाए तो भोपाल में टीटी नगर स्मार्ट सिटी एबीडी का काम पूरा हो चुका है। लेकिन हकीकत यह है कि स्मार्ट सिटी योजना भोपालवासियों के लिए अभिशाप बन गई है। आज सात साल बाद भी जमीनी हकीकत बदहाल है।
सरकार के दावे अनुरूप स्मार्ट सिटी मिशन के परिणाम अभी भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। सात साल पहले स्मार्ट सिटी मिशन लांच करते वक्त लोगों को जीवन स्तर में सुधार लाने, रोजगार के अवसर बढ़ाने और शहर के समग्र विकास को बढ़ावा देने के जो सपने दिखाए थे वो अधूरे हैं। अफसर जिन योजनाओं को पूरा होना बता रहे हैं उनकी जमीनी हकीकत जुदा है। कंपनी ने ऐसे कई कार्य करवा लिए हैं जो ड्राफ्ट में शामिल ही नहीं थे। ड्राफ्ट में शामिल कई परियोजनाओं पर काम ही नहीं हुआ है। स्मार्ट सिटी मिशन को लेकर केंद्र सरकार की वेबसाइट पर भरोसा किया जाए तो भोपाल में टीटी नगर स्मार्ट सिटी एबीडी का काम पूरा हो चुका है। कोलार डैम से सप्लाई वाले इलाकों में 24 घंटे सातों दिन पानी मिल रहा है। ज्योति टॉकीज से बोर्ड ऑफिस चौराहे पर टेक्टिकल अर्बनिज्म एंड प्लेस मेकिंग का प्रोजेक्ट भी पूरा हो गया है। इन तीनों प्रोजेक्ट की लागत 3093.52 करोड़ रुपए बताई गई है, जबकि जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। एबीडी एरिया उजाड़ है। शहर में पानी सप्लाई का कोई ठिकाना नहीं है और ज्योति टॉकीज पर केवल शेड लगे दिखते हैं। नई कोलार लाइन का काम प्रोजेक्ट अमृत के तहत 130 करोड़ से हुआ है। लेकिन वेबसाइट बताती है कि 100 प्रतिशत घरों में मीटर लगाए जा चुके हैं। स्काडा भी लगाया गया है। जबकि स्काडा का काम शुरू ही नहीं हुआ है। एबीडी डेवलपमेंट की लागत 3000 करोड़ रुपए बताई गई है और इसे भी कम्प्लीटेड प्रोजेक्ट में दिखाया गया है। जबकि यहां केवल एक बुलेवर्ड स्ट्रीट के अलावा कोई भी निर्माण पूरा नहीं हुआ है। हाट बाजार का काम भी अधूरा है।
कॉर्पोरेशन ने केंद्र सरकार से दावा किया था कि पांच साल में नॉर्थ और साउथ टीटी नगर की 333 एकड़ जमीन पीपीपी मोड पर विकसित की जाएगी। प्रोजेक्ट और जमीनें बेचकर 6644 करोड़ की आमदनी होगी, जबकि डेवलपमेंट कॉस्ट 3444 करोड़ आएगी। टीटी नगर में नॉलेज हब, एजुकेशन हब, एनर्जी हब, हेल्थ हब, इनोवेशन सेंटर सहित रेसीडेंस एवं कमर्शियल कैंपस बनाकर आधुनिक सुविधाएं देने का सपना दिखाया गया था। ठीक 7 साल पहले 25 जून 2015 को प्रधानमंत्री ने स्मार्ट सिटी मिशन की घोषणा की थी। भोपाल उन पहले 10 शहरों में शामिल था, जिन्हें स्मार्ट सिटी मिशन के लिए चुना गया। आज भी केंद्र की रैंकिंग में कामकाज के आधार पर भोपाल की रैंकिंग अव्वल शहरों में है। आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के स्मार्ट सिटी पोर्टल पर हर शहर के पूरे हो चुके प्रोजेक्ट की लिस्ट दी गई है। भोपाल की इस लिस्ट को देखकर कोई भी चौंक जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि केवल भोपाल ही नहीं, पूरे देश में यही हाल है। दुनिया के बेस्ट लिवेबल सिटी की लिस्ट आई है। इसमें भारत के शहर ढूंढने पर भी नहीं मिल रहे हैं। होना यह चाहिए कि प्रोफेशनल प्लानर डेवलपमेंट प्लान बनाएं और प्रशासनिक अधिकारी व राजनीतिज्ञ उसे मिलकर लागू करें। लेकिन हमारे यहां इसके उलट होता है। प्लानर्स को कहा जाता है कि ऐसा प्लान बनाकर लाओ। स्मार्ट सिटी मिशन में भी कागज कुछ भी कहें लेकिन सच यही है कि न तो जनता की भागीदारी है, न प्लानर्स को शामिल किया गया है और जो बड़े-बड़े प्रोजेक्ट दिखाए गए हैं उनके हिसाब से बजट भी नहीं है।
भोपाल और इंदौर का तो 'स्मार्टÓ होने लायक बजट भी लगभग खत्म हो गया है। एरिया बेस्ड डेवलपमेंट (एबीडी) हो या पैन सिटी प्रोजेक्ट दोनों में ही कोई भी ऐसा प्रोजेक्ट नजर नहीं आता, जिससे यह कहा जा सके कि यहां लोगों की जिंदगी स्मार्ट हो गई है। इन 7 शहरों में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 650 प्रोजेक्ट पूरे होने थे। अब तक 386 ही पूरे हो पाए। 257 का काम जारी है। बाकी 7 अभी कागजों में हैं। ये प्रोजेक्ट दिसंबर 2020 में पूरे होने थे, लेकिन अब केंद्र ने डेडलाइन बढ़ाकर 2023 कर दी है। काम की जो रफ्तार है, उस हिसाब से इनका डेडलाइन तक पूरा होना मुश्किल लग रहा है। बता दें कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट इस दावे के साथ शुरू हुआ था कि शहरों को उनकी समस्याओं के इको फे्रंडली हाईटेक सॉल्यूशन मिलेंगे। भोपाल, इंदौर और जबलपुर तो उन 20 शहरों में शामिल हैं जिन्हें 20 शहरों की पहली सूची में शामिल किया गया था।
अधूरे और लेट हुए प्रोजेक्ट्स की लिस्ट लंबी है...
27 करोड़ की स्मार्ट रोड पर डेडलाइन बीतने के 3 साल बाद ट्रैफिक शुरू हो गया, लेकिन फुटपाथ व साइकिल ट्रैक पर अतिक्रमण है। 40 करोड़ की बुलेवर्ड स्ट्रीट डेडलाइन से दो साल बाद शुरू हो पाई। यहां दूसरी सड़कों से आधा ही ट्रैफिक है। 175 करोड़ रुपए से 18 किमी की अन्य सड़कों का निर्माण धीमी गति से चल रहा है। ये सितंबर 2020 तक बन जाना थीं। 42 करोड़ के अधूरे कमर्शियल कॉम्प्लेक्स को स्मार्ट सिटी कंपनी बेचना चाहती है, लेकिन कोई खरीदार नहीं मिल रहा। 39 करोड़ के आर्च ब्रिज के लिए कंपनी के बजट से भुगतान हुआ। ट्रैफिक शुरू होने के बाद किलोल पार्क पर जाम की समस्या। 200 करोड़ के गवर्नमेंट हाउसिंग फेज-1 प्रोजेक्ट का 6वां टॉवर नाले को डायवर्ट करके बनाया जा रहा है। 525 करोड़ के गवर्नमेंट हाउसिंग प्रोजेक्ट फेज-2 और फेज-3 का काम ठप हो गया है। इसे सितंबर 2020 में पूरा होना था। 180 करोड़ से महालक्ष्मी परिसर बीडीए के 551 फ्लैट तैयार, लेकिन अभी अलॉटमेंट का इंतजार। 31 करोड़ की लागत से स्मार्ट दशहरा मैदान नवंबर 2019 में पूरा होना था, पर काम बहुत धीमी गति से चल रहा है। 41 करोड़ के वाटर स्काडा सिस्टम को बजट की कमी के कारण केवल नर्मदा प्रोजेक्ट तक सीमित किया जा रहा है।
-अरविंद नारद