27 सीटों पर होने वाला उपचुनाव भाजपा के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। इन 27 सीटों में से मात्र 1 सीट आगर भाजपा के कब्जे वाली है, बाकी पर 2018 में कांग्रेस के विधायक जीते थे। वैसे तो भाजपा को सरकार में बने रहने के लिए मात्र 9 सीटों की जरूरत है, लेकिन पार्टी आलाकमान ने सभी 27 सीटें जीतने का टारगेट प्रदेश सरकार और संगठन को दिया है।
चुनावी तैयारी, संगठन व सरकार की सक्रियता, मैदानी जमावट और लोकप्रिय नेताओं की सूची देखें तो भाजपा उपचुनाव वाली सभी 27 सीटें जीतती नजर आ रही है। लेकिन पार्टी आलाकमान किसी भी खुशफहमी में नहीं रहने वाला है। इसलिए विगत दिनों पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष भोपाल पहुंचे और दो दिनों के मंथन के दौरान मंत्रियों, विधायकों, वरिष्ठ नेताओं, संगठन पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को सख्त लहजे में संदेश दे गए कि हार बर्दाश्त नहीं होगी। संगठन महामंत्री के सख्त रवैए के बाद सरकार के साथ पूरा संगठन चुस्त-दुरुस्त होकर मैदानी मोर्चा संभाल चुका है।
पार्टी के पदाधिकारी जहां चुनावी क्षेत्रों में मतदाताओं के बीच सक्रिय हैं, वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया विधानसभावार सभाएं कर सौगात बांट रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने 15 तो बसपा ने 8 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी हैं। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी आगर-मालवा से कांग्रेस के चुनावी प्रचार का शंखनाद कर दिया है। इसलिए इस बार उपचुनाव रोचक मोड़ पर आ गया है।
यह उपचुनाव भाजपा के साथ ही शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। इसलिए केंद्रीय नेतृत्व भी इस चुनाव को लेकर चिंतित है। इसीलिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गत दिनों बीएल संतोष को चुनावी स्थिति जानने के लिए भोपाल भेजा था। उपचुनाव की 27 सीटों का रिव्यू करने आए भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने मंत्रियों के रवैए पर कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने साफ कर दिया कि जिस भी मंत्री के क्षेत्र में हारे, उसकी माइनस मार्किंग होगी। जिताने पर सम्मान मिलेगा और जहां भी हार हुई तो उसके कारण सामने आने के बाद गाज भी गिर सकती है। मंत्री ही हार के लिए जिम्मेदार माने जाएंगे।
चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक व मंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि बीएल संतोष के सानिध्य में दायित्वों की समीक्षा हुई है। मंत्रियों से कहा गया है कि वे विजय दिलाने का प्रयास करें। बहरहाल, संतोष ने अलग-अलग बैठकों में यह भी साफ किया कि 27 सीटों में 9 दलित वर्ग की सीटें हैं। पिछली बार यहां वोट घटे थे। इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए। फोकस इन सीटों पर भी ज्यादा रखें।
कुछ जगहों से प्रत्याशियों व विधानसभा प्रभारियों की तरफ से संकेत मिले थे कि कुछ नेता काम नहीं कर रहे। इस पर राष्ट्रीय संगठन महामंत्री ने साफ कर दिया कि शिवराज सरकार मजबूती से चलाने का यह चुनाव है। इसमें प्रत्याशी गौण है, पार्टी प्रमुख है। चर्चा के दौरान यह भी सामने आया कि अनूपपुर में रामलाल रौतेल समेत कुछ जगहों पर वे नेता काम नहीं कर रहे हैं, जो खुद चुनाव लड़ सकते थे। इसे भी पार्टी ने गंभीरता से लिया है। सूत्र बताते हैं कि अपनी यात्रा के दौरान बीएल संतोष ने भाजपा के साथ ही संघ के पदाधिकारियों से भी फीडबैक लिया।
उपचुनाव जीतने के लिए भाजपा ने कमर कस ली है और मुख्यमंत्री का यह कहना है कि केवल लेटरहेड पर नाम से ही काम नहीं चलेगा बल्कि सबको मेहनत करना होगी। इसका मतलब साफ है कि सत्ता और संगठन में बैठे लोगों के लिए यह जरूरी होगा कि वह उपचुनाव में अपनी परफॉर्मेंस दिखाएं। विष्णु दत्त शर्मा ने 5 महामंत्रियों की घोषणा की है वह पद तो पा गए हैं अब उन्हें अपनी उपादेयता भी चुनावी चुनौती के बीच साबित करना होगी। पांच नए महामंत्री ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड, विंध्य अंचल, भोपाल और मालवा का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रादेशिक फलक पर इन्हें अभी अपनी छाप छोड़ना बाकी है। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनको शायद पूरे प्रदेश में लोग ना जानते पहचानते हों पर उन्हें अब अपनी पहचान बनाने के साथ ही पार्टी ने जिस भरोसे उन्हें जिम्मेदारी सौंपी है, उस पर खरे उतरने की चुनौती का भी सामना करना है।
रणवीर सिंह रावत भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं, इस कारण प्रदेश में किसानों के बीच वह एक जाना पहचाना नाम हैं। शिवपुरी जिले के करेरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी रह चुके हैं तथा पिछड़ा वर्ग से आते हैं और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के काफी नजदीकी हैं। उपचुनाव की चुनौती को देखते हुए उन्हें संगठन में महत्वपूर्ण माने जाने वाला महामंत्री का पद दिया गया है। एक ओबीसी चेहरा होने के कारण और किसान मोर्चे में उनकी सक्रियता को देखते हुए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई है। हरिशंकर खटीक पहले राज्यमंत्री रह चुके हैं और हाल के विस्तार में मंत्री बनते-बनते रह गए थे, उन्हें पार्टी में महामंत्री बनाकर बुंदेलखंड अंचल का प्रतिनिधित्व दिया गया है। वह अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं। शरदेंदु तिवारी उस समय प्रदेश में सुर्खियों में आए जब उन्होंने चुरहट विधानसभा क्षेत्र में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को पराजित किया। वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नजदीकी माने जाते हैं और एक युवा ब्राह्मण चेहरा हैं। उनकी लंबी राजनीतिक पृष्ठभूमि है। उनके दादा चंद्र प्रताप तिवारी खाटी समाजवादी नेता थे और कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे। विंध्य की राजनीति में विधायक तिवारी नया नाम नहीं और न ही अनजान चेहरा हैं लेकिन संगठन में उन्हें सीधे महामंत्री का जो पद मिला है उस कसौटी पर उनका कसा जाना अभी बाकी है। कविता पाटीदार सुंदरलाल पटवा सरकार में कद्दावर मंत्री और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष भेरूलाल पाटीदार की पुत्री हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की समर्थक होने के साथ ही साथ महिला होने के नाते संगठन में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिली है। संगठन में वे प्रदेश मंत्री और इंदौर जिला जनपद पंचायत की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। वह भी ओबीसी हैं तथा इंदौर-उज्जैन संभाग में पाटीदार मतदाताओं की बड़ी संख्या है और कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक भी रहती हैं इसलिए उपचुनाव की दृष्टि से उन्हें यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है। भगवानदास सबनानी सिंधी समुदाय से आते हैं और भोपाल जिला भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं तथा उमा भारती के कट्टर समर्थक हैं। वह अच्छे संगठक भी हैं। सबनानी उमा भारती के साथ भाजपा छोड़कर जनशक्ति पार्टी में गए और बाद में भाजपा में लौट आए।
उधर, उपचुनाव वाले जिलों में सरकार ने 6 दिन के अंदर 1600 करोड़ रुपए से अधिक की सौगात बांटकर मतदाताओं को गदगद कर दिया है। आगर मालवा, हाटपिपल्या, दिमनी, अम्बाह, मेहगांव, डबरा, भांडेर, पोहरी, सुमावली, जौरा, करैरा, गोहद, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर, मांधाता, नेपानगर का दौरा कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यह सौगात बांटी है। इस दौरान इन नेताओं ने जनता से साफ-साफ शब्दों में कहा कि पिछली सरकार ने आपके साथ जो छलावा और धोखेबाजी की है, उसे भाजपा सरकार दुरुस्त करेगी। भाजपा के रणनीतिकारों का कहना है कि सरकार और संगठन के संयुक्त प्रयास से पार्टी सभी 27 सीटें जीतने की स्थिति में है, वहीं कांग्रेस का कहना है कि भाजपा को जनता सबक सिखाएगी।
असंतुष्ट बिगाड़ेंगे खेल
बैठक में यह बात भी सामने आई कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने से भाजपा के पुराने नेताओं में असंतोष है। खासकर उन नेताओं में ज्यादा रोष है, जो पिछले विधानसभा में चुनाव हार गए थे। उन सीटों पर उपचुनाव में सिंधिया के लोगों को ही टिकट मिलेगा। ऐसे में इन सीटों से कभी भाजपा के उम्मीदवार रहे लोग अपने सियासी कैरियर को लेकर चिंतित हैं। ग्वालियर पूर्व से भाजपा के उम्मीदवार सतीश सिकरवार ने पार्टी छोड़ भी दी है। इसके बाद भाजपा खेमे में खलबली मच गई है। बगावत की आहट को देखते हुए राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष मप्र में एक्टिव हो गए हैं। क्योंकि भाजपा प्रदेश में अभी अंदरूनी कलह से जूझ रही है। बीएल संतोष ने उपचुनाव की तैयारियों को लेकर जमीनी स्तर पर भी लोगों से फीडबैक लिया। इस दौरान संगठन महामंत्री ने असंतुष्टों और पिछले विधानसभा के हारे हुए प्रत्याशियों और उनकी मौजूदा सक्रियता के बारे में बात की। गौरतलब है कि सबसे ज्यादा असंतोष ग्वालियर-चंबल संभाग में है। भाजपा को झटका भी उसी इलाके में लगा है।
आरक्षित 9 सीटें बनेंगी भाजपा के लिए चुनौती
प्रदेश में 27 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस की नजर उन 9 सीटों पर है जो एससी और एसटी कोटे की हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग बहुल वाली इन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस ने फोकस बढ़ा दिया है। 2018 के चुनाव में ये सीटें भाजपा के लिए हानिकारक साबित हुई थीं। लेकिन इस बार पार्टी 27 सीटों में इन 9 सीटों पर सबसे ज्यादा फोकस कर रही है। गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित अम्बाह, गोहद, डबरा, भांडेर, अशोकनगर, सांची, सांवेर के साथ ही अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित अनूपपुर और नेपानगर में हार का सामना करना पड़ा था। इन सीटों पर कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर जीतने वाले नेता अब भाजपा में आ चुके हैं। उपचुनाव में इनको भाजपा की ओर से टिकट मिलना तय है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के लिए ये सीटें जीतना चुनौतीपूर्ण हैं। भाजपा नेता लालसिंह आर्य के मुताबिक पिछले चुनाव में जिन अनुसूचित जाति वाली सीटों पर भाजपा को नुकसान हुआ था। इस बार ऐसा नहीं होगा। अनुसूचित जाति का वोट भाजपा के पक्ष में आएगा। सरकार के हर वर्ग को लेकर लिए जा रहे फैसलों से इस बार का माहौल बदला हुआ है। उपचुनाव से पहले भाजपा की दलित वोटों की चिंता पर कांग्रेस ने पलटवार बोला है। भाजपा प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता ने कहा है कि उपचुनाव आते ही भाजपा को दलित वोटों की चिंता सताने लगी है। लेकिन प्रदेश की सत्ता में भाजपा की वापसी के साथ ही दलित अत्याचार तेजी के साथ बढ़े हैं और अब किसी भी सरकारी सेवा के जरिए दलित वोटों को रिझाया नहीं जा सकता है। दरअसल 27 सीटों के उपचुनाव में भाजपा का टेंशन अनुसूचित वर्ग की सीटों को लेकर है। जो 2018 में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाली साबित हुई थीं। इनमें ग्वालियर चंबल संभाग की सीटों पर भाजपा और कांग्रेस का सबसे ज्यादा फोकस हो गया है। दरअसल 4 साल पहले एट्रोसिटी एक्ट का सबसे ज्यादा विरोध ग्वालियर-चंबल संभाग में हुआ था। यहां 9 सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित होने के कारण सभी सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। और यही कारण है कि अब पार्टी इन 9 सीटों पर अपने चेहरों को बदलने के साथ ही दलित वोटों को साधने पर नजर टिकाए हुए हैं। जानकारी के मुताबिक पार्टी संबल योजना के जरिए एससी वर्ग को सरकार की योजनाओं से जोड़कर अच्छे दिनों का एहसास कराने की कोशिश में है।
- कुमार राजेन्द्र