गरीबी में आटा गीला
07-Oct-2020 12:00 AM 948

 

मप्र लगातार कर्ज के बोझ तले दबता चला जा रहा है। आलम यह है कि विकास योजनाओं के लिए सरकार को लगातार कर्ज लेना पड़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ कोरोना के कारण आर्थिक तंगी झेल रही मध्यप्रदेश सरकार की मुश्किलें आने वाले दिनों में और बढ़ने वाली हैं। दरअसल सरकार के आंकलन के अनुसार राज्य सरकार को केंद्र और राज्य करों में करीब 35 हजार करोड़ से अधिक के नुकसान का अंदेशा है। निकट भविष्य में प्रदेश की विकास योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों पर इस नुकसान का असर दिखाई दे सकता है। प्रदेश सरकार के ताजा अनुमान के मुताबिक अब राज्य सरकार को करीब 16,972 करोड़ 89 लाख रुपए का नुकसान झेलना पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार को पिछले वर्ष राज्य कर से 65,273 करोड़ 74 लाख रुपए मिले थे लेकिन इस बार वित्तीय वर्ष में यह राशि घटकर महज 47,801 करोड़ रुपए तक ही सीमित होने की संभावना है। यानी सरकार को पिछले वर्ष के मुकाबले बड़ी राशि का नुकसान इस बार झेलना पड़ेगा।

प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर इस समय उपचुनाव भी होना है। ऐसे में गरीब, किसान और युवा मतदाताओं को लुभाने राज्य सरकार ताबड़तोड़ घोषणाएं कर रही है। कई कार्यों के भूमिपूजन का सिलसिला भी जारी है। साथ ही विधानसभा उपचुनाव से पहले गरीब कल्याण सप्ताह में सरकार पूरी उदारता दिखा रही है। हर वर्ग को साधने की कोशिश की जा रही है। एक तरफ कोरोना के चलते सरकार की आय के स्रोत सुस्त पड़े हैं। हर विभाग में नुकसान देखने मिल रहा है। दूसरी ओर राज्य सरकार द्वारा लगातार खातों में पैसा डालने का काम चल रहा है। इससे राज्य सरकार पर वित्तीय अनुशासन का दबाव बढ़ना स्वाभाविक है। आने वाले दिनों में खासतौर से विधानसभा उपचुनावों के बाद प्रदेश की योजनाओं और कार्यक्रमों पर इसका सीधा असर भी देखने को मिलेगा। उम्मीद जताई जा रही है कि इसी सप्ताह चुनाव आयोग प्रदेश के 28 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव के लिए कार्यक्रम घोषित कर सकता है। इस कारण सरकार के पास समय कम बचा है। ऐसे में सभी वर्गों को साधने की कोशिश अंतिम चरणों में है। बता दें, कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद राज्य सरकार ना तो कोई भूमिपूजन कर पाएगी और ना ही लोकार्पण के कार्यक्रम। इतना ही नहीं आचार संहिता लागू होने के बाद सरकार कोई नीतिगत निर्णय भी नहीं ले सकेगी। यही वजह है कि बड़े पैमाने पर घोषणाएं और भूमिपूजन के कार्यक्रम उपचुनाव वाले क्षेत्रों में किए जा रहे हैं।

प्रदेश में राजस्व में आई कमी का असर दिखने भी लगा है। पिछले माह के अंत तक राज्य सरकार को मिलने वाले टैक्स में ही लगभग साढ़े सात हजार करोड़ रुपए नुकसान होने का अनुमान है। सरकार की आय के मुख्य स्रोत वाले विभाग आबकारी, खनिज और परिवहन में बड़ा घाटा हुआ है। अप्रैल से जुलाई की अवधि में करीब 3200 करोड़ रुपए का नुकसान एसजीएसटी और आईजीएसटी में झेलना पड़ा था। यह राशि पिछले वर्ष के मुकाबले 45 फीसदी से कम है। इसी तरह सरकार को खनिज से होने वाली आय में भी नुकसान हुआ है। बसों का संचालन शुरू नहीं होने से भी सरकार को बड़ी राशि का नुकसान झेलना पड़ा। एक आंकलन के मुताबिक सरकार को चार महीने में लगभग 46 हजार करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है। राज्य सरकार को अब तक की स्थिति में प्रत्येक माह एक हजार से ग्यारह सौ करोड़ रुपए तक का नुकसान झेलना पड़ रहा है। वित्त विभाग के अनुसार राज्य कर की तरह केंद्रीय करों में भी राज्य सरकार को इस बार भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। केंद्रीय करों से राज्य को मिलने वाला हिस्सा इस बार 50 हजार करोड़ से नीचे ही रहने का अनुमान है। मध्यप्रदेश को इस बार वित्तीय वर्ष में केंद्रीय करों से जो राशि मिलेगी वह पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम होगी। एक अनुमान के मुताबिक राज्य सरकार को लगभग 18 हजार रुपए का नुकसान झेलना पड़ेगा। इस तरह अब राज्य और केंद्रीय करों को मिलाकर मप्र को करीब 35 हजार करोड़ से अधिक का राजस्व नुकसान सहन करना पड़ सकता है। जिसका सीधा असर राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति पर पड़ेगा।

मप्र में वित्तीय वर्ष का कर्ज अब 9 हजार करोड़ पहुंचा

प्रदेश सरकार की आर्थिक तंगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अप्रैल से अगस्त तक राज्य सरकार बाजार से सात बार कर्ज ले चुकी है। भाजपा सरकार जबसे बनी है उसने साढ़े 5 माह के कार्यकाल में 7 हजार करोड़ रुपए कर्ज लिया। इस तरह नई सरकार बनने के बाद प्रतिमाह औसतन 1200 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज लिया जा चुका है, हालांकि अब इसमें और इजाफा होने की उम्मीद है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार द्वारा 12 अगस्त को लिया गया कर्ज लगातार सातवां कर्ज था। 13 सितंबर के पहले सप्ताह में जो कर्ज लिया गया वह इस सरकार का आठवां कर था। हाल ही में सितंबर माह की शुरुआत में लिए गए कर्ज से मध्यप्रदेश पर कर्ज का आंकड़ा बढ़कर 8 हजार करोड़ रुपए हो गया था, जबकि अब यह बढ़कर 9 हजार करोड़ रुपए हो गया है। बता दें कि राज्य सरकार प्रदेश की अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने और अनेक कल्याणकारी नीतियों के क्रियान्वयन के नाम से यह कर्ज भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से लेती है। राज्य सरकार को इस समय विकास कार्य के बजाय जरूरी खर्च चलाने के लिए नगद राशि की आवश्यकता है। प्रदेश में कर्ज का ग्राफ लगातार बढ़ने से इस वित्तीय वर्ष में लगातार कर्ज लेने का सिलसिला बना हुआ है। जानकारी के अनुसार ऐसा कोई महीना नहीं बीता जब सरकार को कर्ज लेने के लिए बाजार का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़ा हो। कोरोनाकाल में प्रदेश की आमदनी पर बड़े वित्तीय प्रभाव का असर है कि अब सरकार माह में दो से तीन बार कर्ज लेने के लिए निवेशकों के पास जा रही है। गत दिनों ही शिवराज सरकार ने करीब 22 लाख से ज्यादा किसानों के खाते में फसल बीमा के 4686 करोड़ रुपए डाले हैं।

- सुनील सिंह

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