प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों दो किताबें चर्चा में हैं। इनमें से एक किताब है 2009 बैच के आईएएस अधिकारी तरुण पिथोड़े और दूसरे हैं इसी बैच के आईएएस अभिषेक सिंह। पिथोड़े की पुस्तक ‘द बैटल अगेंस्ट कोविड-डायरी ऑफ ए ब्यूरोक्रेट’ इस सदी की सबसे बड़ी आपदा पर आधारित है। वहीं अभिषेक सिंह की किताब 'स्याही के रंग’ पूरी तरह साहित्यिक है। इस किताब में उन्होंने कविताओं के माध्यम से जीवन के विभिन्न आयामों में शब्दों का रंग भरा है। इन दोनों प्रशासनिक अधिकारियों की किताबें खूब पढ़ी जा रही हैं और उन पर चर्चाएं भी हो रही हैं।
गौरतलब है कि एक चुस्त-दुरुस्त प्रशासनिक अधिकारी के साथ ही पिथोड़े लेखक और विचारक भी हैं और इनकी कई मोटिवेशनल किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। शहर और गांव के सतत् विकास के प्रति संवेदनशीलता रखने वाले पिथोड़े ने सीहोर कलेक्टर रहते हुए देहदान करने का संकल्प भी लिया था। यही नहीं वह एक मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। युवाओं को मोटिवेट करने के लिए भी वह जाने जाते हैं।
तरुण पिथोड़े दरअसल एक संवेदनशील व्यक्ति हैं। वे लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त करते रहते हैं। तरुण पिथोड़े द्वारा लिखित 250 पन्नों की इस किताब में देश के विभिन्न शहरों में पदस्थ आईएएस ऑफिसर्स के कोरोनाकाल के दौरान के अनुभवों को साझा किया गया है। किताब के लेखक तरुण कुमार पिथोड़े ने इस किताब के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि हम सभी लोगों की मदद से ही यह संसार चलता है। कोविड की लड़ाई तो केवल एक मुद्दा था, जिसने हमें यह अहसास कराया कि यह जीवन एक-दूसरे की मदद से चल रहा है।
इस किताब का पब्लिकेशन ब्लूम्सबैरी ने किया है। इस किताब में कोविड महामारी से हुई तबाही का चित्रण किया है। कोविड के खिलाफ लड़ाई में पिथोड़े ने अपने अनुभवों, संघर्षों और विभिन्न राज्यों में अपने सहयोगियों के जरिए पहली और दूसरी लहर के दौरान प्रबंधन करने वालों के अनुभवों को बताया है। उन्होंने इस किताब में जानलेवा वायरस को समझने और इसके प्रसार को रोकने के लिए विभिन्न अधिकारियों द्वारा बनाई गई रणनीति की रूपरेखा का भी खुलासा किया है। इस किताब में उन प्रवासी कामगारों के कष्टों का भी विवरण है, जिन्होंने घर वापसी के लिए हजारों किलोमीटर की दूरी पैदल तय की। इस किताब में डॉक्टरों, पुलिस अधिकारियों, प्रशासकों और नागरिकों की वीरता की कहानियां भी हैं, जिन्होंने लोगों को बचाने में अपनी जान की बाजी लगा दी।
दरअसल, ये किताब परदे के पीछे कोविड के खिलाफ लड़ाई का अमूल्य रिकॉर्ड है कि कैसे नौकरशाही ने हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करने वाले संकट का प्रबंधन किया है। कोरोना संक्रमण के दौरान और उसके बाद कई किताबें लिखी गईं। लेकिन वे किताबें किसी कोने में बैठकर आपदा के दंश की कल्पना कर लिखी गई हैं। जबकि तरुण पिथोड़े की यह किताब पूरी तरह आंखों देखी दास्तान कहती है। आपदा के दौरान ये भोपाल कलेक्टर भी रहे और उस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना संक्रमण के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। इसलिए उनकी यह किताब पूरी तरह वास्तविकता पर आधारित है। उन्होंने कोविड त्रासदी को न केवल आंखों से देखा बल्कि महसूस भी किया है। इसका पूरा चित्रण 'द बैटल अगेंस्ट कोविड- डायरी ऑफ ए ब्यूरोक्रेट’ में मिलता है।
सत्य का साक्षात्कार है 'स्याही के रंग’
आईएएस अभिषेक सिंह का कविता संग्रह स्याही के रंग में कवि ने सत्य का साक्षात्कार कराया है। कई कविताएं ऐसी हैं जिन्हें पढ़ने के बाद ऐसा लगता है जैसे यह कल्पना नहीं सत्य है। इससे ऐसा लगता है, कवि ने अपने साथ घटित घटनाओं और आंखों देखी को शब्दों में पिरोकर कविता का रूप दिया है। प्रकृति, प्रेम, परिवार और परिदृश्यों का ऐसा चित्रण किया गया है, जिसमें अपनापन झलकता है। भावों, विचारों और सोच का अद्भुत सामंजस्य स्याही के रंग को स्वर्णिम बना रहे हैं। अभिषेक की कविताओं में मन में हिलोरें लेने वाले जज्बात, जेहन में उठने वाले ख्याल महसूस किए जा सकते हैं। अतुकांत होने के बाद भी इन कविताओं में एक लय है, भावों की लय, जो पाठक को इनसे बांधे रखती है। अभिषेक सिंह की कविताएं अन्याय का प्रतिरोध करती हैं और पीड़ित के साथ गहरा तादात्म्य स्थापित करती हैं। कवि ने समाज, ब्यूरोक्रेसी, नेताओं में फैली बुराइयों पर भी कड़ा प्रहार किया है, वहीं कोरोना महामारी के माध्यम से समाज में फैली बुराइयों को रोकने का आव्हान किया है। कवि ने कोरोना के निराशा के घने अंधकार में भी आस का एक नन्हा दीया जलाकर रखा है। बहरहाल, भावनाओं के अलावा काव्य सृजन के मामले में भी कविताएं उत्कृष्ट हैं। कविता की भाषा में प्रवाह है, एक लय है। कवि ने कम से कम शब्दों में प्रवाहपूर्ण सारगर्भित बात कही है। कविताओं में शिल्प सौंदर्य है। कवि को अच्छे से मालूम है कि उसे अपनी भावनाओं को किन शब्दों में और किन बिम्बों के माध्यम से प्रकट करना है और यही बिम्ब विधान पाठक को स्थायित्व प्रदान करते हैं। कविता में चिंतन और विचारों को सहज और सरल तरीके से पेश किया गया है जिससे कविता का अर्थ पाठक को सहजता से समझ आ जाता है। पुस्तक का आवरण सूफियाना है, जो इसे आकर्षक बनाता है। काव्य प्रेमियों के लिए यह एक अच्छा कविता संग्रह है।
कुमार राजेंद्र