04-Feb-2020 12:00 AM
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मप्र में कमलनाथ के ऊपर पिछले 13 महीने से दोहरी जिम्मेदारी है। एक तो वह प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं। कमलनाथ का सारा ध्यान सरकार में लगा हुआ है। इस कारण वे संगठन को पूरा समय नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति का मामला बार-बार उठता रहता है। पिछले एक साल से हर महीने नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति का मामला उठता है और शांत हो जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस को फुलटाइम अध्यक्ष कब मिलेगा? मप्र कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन होगा और उसे कब नियुक्त किया जाएगा इस पर लगातार बहस चल रही है। अभी हाल ही में पीडब्ल्यूडी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा था कि नए पीसीसी अध्यक्ष का ऐलान 15 दिन के अंदर हो जाएगा। वहीं अब खेल मंत्री जीतू पटवारी कह रहे हैं कि प्रदेश में निकाय चुनाव मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। वहीं दूसरी तरफ इस पद के लिए समर्थक लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया का दावा जता रहे हैं लेकिन पार्टी खामोश है। लोकसभा चुनाव के बाद सीएम कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोडऩे की बात कही थी। कमलनाथ ने कहा था कि सरकार और संगठन का काम एक साथ नहीं किया जा सकता है। ऐसे में पार्टी को नए अध्यक्ष के बारे में सोचना चाहिए। युवा नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सबसे आगे माना जा रहा है। हालांकि इसके साथ ही उमंग सिंघार, जीतू पटवारी और प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन का नाम भी इस रेस में माना जा रहा है। हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया और सोनिया गांधी के बीच मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के बाद सिंधिया मध्यप्रदेश दौरे पर आए थे। इस दौरान सिंधिया ने पार्टी के सभी विधायकों और सभी खेमे के नेताओं से मुलाकात की थी। सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी के निर्देश के बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश में सक्रिय हुए हैं। उधर, प्रदेश कैबिनेट के विस्तार की भी अटकलें लगाई जा रही हैं। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ मंत्रियों की परफॉर्मेंस के आधार पर उनके कद में कटौती और बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। साथ ही कुछ नए नाम भी मंत्रिमंडल में शामिल किए जा सकते हैं। लेकिन यह सब करने से पहले नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति तय मानी जा रही है। वहीं पार्टी में निगम मंडलों में राजनीतिक कुर्सी के लिए भी होड़ मची है। सूत्र बताते हैं कि प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने निगम मंडलों में नियुक्ति के लिए गाइडलाइन बनाई है। लेकिन उस गाइडलाइन पर अभी तक मुख्यमंत्री की सहमति नहीं बन पाई है। उधर, पिछले एक साल से निगम मंडलों में नियुक्ति की आस लगाए बैठे नेताओं में निराशा का भाव पनप रहा है। इस कारण अक्सर कोई न कोई नेता या विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ बोलने से चूकता नहीं है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि जल्द ही सरकार असंतोष दूर करने के लिए निगम मंडलों में नेताओं की नियुक्ति कर सकती है। इस बीच पार्टी में बार-बार सामने आने वाले असंतोष को दूर करने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने समन्वय का फॉर्मूला लागू कर दिया है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में जबसे कांग्रेस सत्ता में आई है। उसके बाद से ही संगठन और सरकार में तालमेल बैठाने की कोशिश हो रही है। मगर नेताओं की गुटबाजी की वजह से आज तक यह सफल नहीं हो पाया है। ऐसे में कांग्रेस शासित प्रदेशों के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया ने एक नया फॉर्मूला अपनाया है। इसके जरिए सरकार और संगठन में समन्वय बनाने की कोशिश की है। दरअसल, सोनिया गांधी ने मध्यप्रदेश में सरकार और संगठन के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए एक कमेटी गठित की है। इस कमेटी में सात लोगों को जगह मिली है। कमेटी का अध्यक्ष कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया को बनाया है। इसके साथ ही सीएम कमलनाथ, दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मंत्री जीतू पटवारी, पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव और मीनाक्षी नटराजन आदि भी समिति के सदस्य हैं। इनके कंधों पर सरकार और संगठन के बीच समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस कई गुटों में बंटी है। हर गुट पॉवर कॉरिडोर में अपनी स्थिति मजबूत चाहती हैं। ऐसे में सबके तकरार भी सामने आते रहते हैं। दरअसल, प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया का एक अलग खेमा है। सीएम कमलनाथ का गुट भी अलग है। वहीं दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी अपने अलग-अलग गुट हैं। सरकार और संगठन में चारों पकड़ चाहते हैं। इस वजह बीच-बीच में खटपट सामने आते रहती है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद दिग्विजय सिंह और सिंधिया के पास संगठन और सरकार में कोई जिम्मेदारी नहीं थी। ऑफिसियली पहली बार दोनों समन्वय की जिम्मेदारी दी गई। हालांकि दोनों ही नेताओं ने सरकार में अपने गुट के लोगों को जरूर शामिल करवाएं है। उनके जरिए ही सरकार में दखलअंदाजी रखते हैं। सोनिया गांधी के द्वारा बनाई गई इस कमेटी में सभी लोग पार्टी के कद्दावर नेता हैं। सोनिया गांधी द्वारा गठित कमेटी के मुखिया दीपक बावरिया की पकड़ दिल्ली दरबार में मजबूत है और वह सोनिया गांधी के करीबी माने जाते हैं। प्रदेश में सार्वजनिक रूप से वह अपने इरादे स्पष्ट करते रहे हैं। प्रदेश प्रभारी रहते हुए वह पार्टी के अलग-अलग गुट को साथ लाने में कामयाब नहीं हुए। सियासी जानकारों के बीच चर्चा यह भी है कि सीएम कमलनाथ के साथ ही हाल के दिनों में उनकी ठन गई। वजह निगम और मंडलों में नियुक्तियों को लेकर भी है। ऐसे में सरकार और संगठन के बीच में समन्वय स्थापित करना उनके लिए आसान नहीं हैं। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के साथ-साथ संगठन के भी मुखिया हैं। गुटबाजी के चलते विरोधियों से ज्यादा अपने ही उनके लिए मुसीबत खड़ी करते हैं। कभी सरकार के खिलाफ कोई विधायक उतर आता है तो कभी मंत्री कहने लगते हैं कि अफसर हमारी सुनते नहीं। यही नहीं इनके गुट के लोग दूसरे खेमे के नेताओं को टारगेट करते हैं। समन्वय समिति के ही सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया की सरकार से बेरुखी कई बार सुर्खियां बनीं। ऐसे में दूसरे खेमे के साथ तालमेल बैठाना सीएम के लिए आसान नहीं हैं। क्यों सरकार गठन के एक साल बीत जाने के बाद भी कमलनाथ पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाए हैं। मध्यप्रदेश कांग्रेस में दिग्विजय सिंह का एक अलग गुट है। उनके ऊपर प्रदेश के मंत्री यह आरोप लगाते रहे हैं कि पर्दे के पीछे से सरकार वहीं चला रहे हैं। दिग्विजय सिंह बीच-बीच में चिट्ठी लिखकर सरकार को नसीहत भी देते रहते हैं। ऐसे में कयास लगाए जाते हैं कि सीएम के साथ उनका कम्युनिकेशन गैप है। ऐसे में दिग्विजय सिंह के लिए पहली चुनौती तो समन्वय समिति के बाकी दिग्गज नेताओं के बीच ही समन्वय स्थापित करने की होगी। क्योंकि समिति में शामिल चारों नेताओं की राह अलग-अलग है। कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश में पावर के लिए लगातार दिल्ली से लेकर भोपाल तक संघर्ष कर रहे हैं। मध्यप्रदेश कांग्रेस का कोई खेमा नहीं चाहता कि सिंधिया को कोई बड़ी जिम्मेदारी मिले। ऐसे में नए समीकरण के जरिए प्रदेश में वह सभी को साधने में लगे हैं। दूसरे गुट के नेताओं के साथ भी वह हालिया भोपाल दौरे के दौरान सक्रिय रहे और विरोधियों को भी साधने में लगे रहे। ऐसे में सवाल यह है कि सोनिया गांधी के समन्वय का यह फॉर्मूला क्या मध्यप्रदेश में कामयाब होगा। क्योंकि कमेटी में जिन चार नेताओं को उन्होंने समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी है, उनके बीच आपसी समन्वय की कमी है। ऐसे में पहले तो इन नेताओं के बीच तालमेल सही हो। तभी मध्यप्रदेश में सोनिया गांधी का यह फॉर्मूला सफल होगा। अब सभी को समन्वय समिति की पहली बैठक का इंतजार है, जिससे बहुत कुछ साफ होगा। मध्यप्रदेश में जबसे कांग्रेस की सरकार बनी है, उसके बाद से ही यह शिकायत मिलती रहती है कि ज्यादातर मंत्री कार्यकर्ताओं की नहीं सुनते हैं। सार्वजनिक मंच से भी कई बार पार्टी के विधायक भी यह सवाल उठा चुके हैं। हाल ही में सरकार की कुछ नीतियों को लेकर कांग्रेस के विधायकों ने ही विरोध किया था। ऐसे ही विवादों को सुलझाने के लिए यह कमेटी बनी है। अब यह देखना है कि पिछले 13 महीने से बात-बात पर कांगे्रस में हो रहे विवाद पर यह समिति किस प्रकार अंकुश लगाती है। पचौरी-अजय किनारे क्यों...? सत्ता और संगठन के बीच संतुलन बनाने के लिए कांग्रेस ने तीन दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव व पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन को क्यों चुना, यह सवाल हर कोई पूछ रहा है। सरकार बनने के बाद बड़े नेताओं के बीच तनातनी को काबू में करने का रास्ता पार्टी हाईकमान ने तलाशा, तो वह भी विवाद की श्रेणी में आ गया। सात सदस्यीय समिति को देखकर साफ है कि गुटीय संतुलन पूरी तरह से नहीं बनाया जा सका है। यही वजह है, बड़े नेता होने के नाते इसमें मुख्यमंत्री नाथ के अलावा दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया को तो जगह मिली लेकिन पचौरी, भूरिया व अजय को दूर रखा गया। एक और बड़े नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी भी समिति से बाहर हैं। चतुर्वेदी को अपने बेटे को सपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ाने का खामियाजा भुगतना पड़ा। समिति में शामिल कमलनाथ, दिग्विजय सिंह तथा सिंधिया के बाद प्रदेश में सबसे ज्यादा पकड़ अजय सिंह की मानी जाती है। अजय सिंह को शामिल न करने पर चर्चा चल पड़ी है कि बड़े नेताओं के अलावा समिति में शामिल मीनाक्षी, जीतू पटवारी एवं अरुण यादव पर पार्टी को भरोसा है और इनमें से किसी नेता को ही प्रदेश अध्यक्ष की जवाबदारी सौंपने के कयास लगाए जाने लगे हैं। वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव सहित पार्टी के कुछ नेता सरकार के कामकाज को लेकर नाराजगी या असंतोष व्यक्त करते रहे हैं। कुछ विधायकों ने बीच-बीच में मोर्चा भी खोला है। लेकिन सुरेश पचौरी एवं अजय सिंह सार्वजनिक तौर पर सरकार के खिलाफ कभी सामने नहीं आए। फिर भी नाराज चल रहे सिंधिया और यादव को समन्वय समिति में शामिल कर लिया गया और पचौरी व अजय रह गए। पांच महीने बाद सिंधिया को प्रदेश में जिम्मेदारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को पांच महीने बाद कोई बड़ी जिम्मेदारी मिली है। 22 अगस्त, 2019 को कांग्रेस ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को जिम्मेदारी दी थी। उन्हें स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। जबकि 23 जनवरी, 2019 को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था। लोकसभा चुनाव में उनके पास पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभार था। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस महासचिव पद से इस्तीफा दिया था। लेकिन उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया था वो अभी भी पार्टी के महासचिव हैं। जानकारों का कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को समन्वय समिति में शामिल करने की सबसे बड़ी वजह है उनकी नाराजगी को लेकर आ रही खबरें। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाराजगी की खबरें आ रही थीं और उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की भी मांग की जी रही थी। लेकिन अब समन्वय समिति में शामिल होने के बाद सिंधिया सत्ता और संगठन दोनों के बीच समन्वय बनाएंगे। - अरूण दीक्षित