मोदी के 8 साल में भारत ऐसे देश के रूप में उभरा है, जिसमें अपने लिए ज्यादा महत्वाकांक्षाएं हैं, और जिसे उम्मीदों को साकार करने की अपनी क्षमता पर भरोसा है। सुधार के साथ एक राजनीतिक चुनौती है- नया भारत और भारतवासी ज्यादा देर तक 'फ्री-बीÓ और लुभावने नारों से संतुष्ट नहीं रहेंगे। उन्हें बेहतर, सस्टेनेबल भविष्य की आकांक्षा है। नरेंद्र मोदी ने सही मायने में उन महर्षि अरविंद के दर्शन को जमीन पर उतारा है, जिनका यह मानना था कि कांग्रेस को भारत की अपनी पारंपरिक राज्य व्यवस्था साकार करनी चाहिए, क्योंकि पश्चिमी तौर-तरीकों से देश का कभी भला नहीं होने वाला।
देशों में ऐतिहासिक परिवर्तन और उत्थान पेचीदा होता है। इसको समझने के लिए बड़ी घटनाओं को वैश्विक संदर्भ, नेतृत्व, परिवर्तन के स्थायित्व वगैरह को साथ जोड़ना आवश्यक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 साल भारत के उत्थान का महत्वपूर्ण दौर है- एक 'नयाÓ भारत उभर रहा है जो महत्वाकांक्षी उम्मीदों से लबरेज है और जहां आत्मविश्वास खिताब की तरह धारण किया जाता है।
आजादी के बाद, लुई माउंटबेटन की गवर्नर जनरल पद पर नियुक्ति से लेकर अधिकतर प्रशासनिक एवं राजनीतिक व्यवस्था में निरंतरता रही है। नेतृत्व निर्विवादित रूप से कांग्रेस के हाथ में रहा। जवाहरलाल नेहरू के देहांत के बाद सरकारी प्रणाली के शिकंजे देश और जनता पर कस गए और 1947 का वह जोशो-खरोश कम होता रहा। यह शिकंजा इमरजेंसी ले आया और हमें राहत जयप्रकाश नारायण और 1977 में जनता पार्टी की जीत की वजह से मिली। राजीव गांधी ने लाइसेंस राज को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू की पर समय कम था। असली क्रांतिकारी बदलाव पीवी नरसिंह राव के तहत आया। निजी उद्यमियों के जज्बे को उड़ान का मौका मिला और भारत सरकारी शिकंजे से निकलना शुरू हुआ। राव की विरासत मुख्यत: बाजार संचालित अर्थव्यवस्था है, जिसके अपने नफा-नुकसान हैं। 1947 में राजनीतिक आजादी मिली तो राव के सुधारों ने अर्थव्यवस्था को खोला।
मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने। कोविड-19 जैसी महामारी की भयावह चुनौती के बावजूद उनके 8 साल में जन धन खाते, आयुष्मान भारत (राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना) जैसी गेम चेंजिंग योजनाएं दिखीं। सुर्खियों से अलग शायद सबसे अहम यह है कि मोदी के 8 साल भारत के उत्थान में निर्णायक दौर साबित हो रहा है। भारत और भारतीयों ने आत्मविश्वास के साथ विश्व मंच के हर क्षेत्र में कदम रखने शुरू किए।
मोदी-पूर्व भारत यथास्थिति को कबूल कर बैठा था, अपने को परिस्थितियों का बंदी समझकर जैसे हिंदू प्रगति दर से संतुष्टि, गांवों में गरीबी को स्वीकारना, बार-बार प्राकृतिक आपदाओं में भारी जनहानि का होना। हम घटनाओं से नियंत्रित होते रहे और 'माई-बाप सरकारÓ पर अति-आश्रित थे। मोदी के तहत यह बदल गया और सक्रियता और पूर्वाकलन से काम का दौर शुरू हुआ। कोविड से निपटना मिसाल बना। जिस समय कई देश दुविधा में फंसे थे, पहले लॉकडाउन का आदेश दिया गया। हालांकि बहुत से लोगों, खासकर प्रवासी मजदूरों को तकलीफें उठानी पड़ीं, लाखों जानें बचाई जा सकीं। फिर टीकाकरण मुहिम शुरू हुई।
विकसित देश टीकाकरण नीति के छोटे घटकों पर बहस करते रहे, इसी दौरान भारत में 194 करोड़ से ज्यादा टीका लगाए गए। इसका एक नजरिया पेश करें तो यह भारत के बाद 10 सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों की जनसंख्या के योग के बराबर है।
रक्षा क्षेत्र में भी सक्रियता से बदलाव आया है। हमारी दुखती रग थी खरीद प्रक्रिया का अति लंबा और पेचीदा होना, एवं सुरक्षा दलों के बीच तालमेल। मोदी ने बिपिन रावत को पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) नियुक्त किया। जनरल रावत की मौत के पहले खरीद प्रक्रिया को दुरुस्त करने और सेना के तीनों अंगों में तालमेल में काफी सुधार हुआ। कश्मीर के लोगों को कृत्रिम तरीके से देश की प्रगति से बाहर रहना तकलीफदेह मुद्दा था। जैसे अलेक्जेंडर ने गॉर्डन नॉट काट डाली, मोदी ने अनुच्छेद 370 को रद्द कर दिया गया। निहित स्वार्थ द्वारा हिंसा सहित सभी तरकीबों के इस्तेमाल के बावजूद, जम्मू-कश्मीर का भारत से जुड़ाव अब अपरिवर्तनीय है।
मोदी ने यह आस्था भरी कि हम पक्के तौर पर अपनी तकदीर के स्वामी हो सकते हैं। आज हमें राजनीतिक नेतृत्व से भी ऊंची उम्मीदें हैं। महेंद्र सिंह धोनी के उभार ने बड़े शहरों से बाहर क्रिकेट का प्रसार संभव बनाया, इसका संकेत आईपीएल में बड़ी संख्या में प्रतिभाओं की आमद से मिलता है। मोदी राजनीतिक नेतृत्व को शहरी-एलीट वर्ग से बाहर ले आए। हालांकि चंद्रशेखर, एचडी देवेगौड़ा और चरण सिंह जैसे गैर-शहरी पृष्ठभूमि के प्रधानमंत्री हुए हैं, मगर वे दिल्ली दरबार के दबदबे में आ गए या उसमें घुलमिल गए। मोदी अपने उभार के लिए 'लुटियन दिल्लीÓ के कर्जदार नहीं रहे। इसलिए उनके निर्णय प्रणाली में ताजगी है, और राज्यों एवं क्षेत्रों से नीतियों में आदान हुआ है और पदाधिकारी बुलाए गए हैं। मनोहर पर्रिकर जैसे राज्यों के नेताओं को आगे लाया गया। दूसरा पहलू निजी निष्ठा की उम्मीद है। मोदी ने अपने कामकाज की नेकनीयती से रिकॉर्ड स्थापित किया। उनके परिवार के लोगों का मध्यवर्गीय जीवन इसका सबूत है।
उम्मीदों को असलियत में बदलने के लिए मोदी का नीतियों पर रवैया भी अलग है। सबसे ज्यादा दिखता है शार्ट-कट के बदले प्रक्रिया और नीतियों के अमल पर ध्यान। चाहे वह जन धन हो, स्वच्छता या बिजली कनेक्शन, हर योजना पर विचार कर पहल की गई और परियोजना की तरह अमल किया गया। टाइमलाइन तय करके अमल की गई और फायदे पहचाने गए और उसे साकार किया गया। नीतियों में 'स्केलÓ था- 45 करोड़ जन धन खाते एक मिसाल हैं।
मोदी ने नीति-निर्माण में दकियानूसी या अहं-केंद्रीत बातों को दरकिनार किया। 'आधारÓ को बढ़ावा दिया और जीएसटी पर अमल हुआ। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, घरेलू आलोचनाओं के बावजूद, मोदी ने विरासत के बोझ से प्रभावित हुए बगैर पड़ोसियों की ओर हाथ बढ़ाया। वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी धमक में नहीं आए, जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप को हार्ले-डेविडसन की लॉबीइंग करते वक्त एहसास हुआ। मोदी बदलाव में सहजता महसूस करते हैं। अक्षय ऊर्जा पर जोर, योजना आयोग की जगह नीति आयोग या स्टार्टअप, हर मामला यही बताता है कि विकास की तेज छलांग के लिए के लिए कुछ नया खड़ा करना जरूरी है। दूसरों से सीखने के लिए भी खुलापन है। रक्षात्मक मुद्रा अपनाने या महज तारीफ करने की जगह भारत में दुनिया की बेहतरीन प्रथाओं को अपनाने की भूख है। नीतियों के जरिए ही मोदी के नेतृत्व में भारत उत्थान के नए चरण पर पहुंचा है।
अपनी कल्याणकारी नीतियों में मोदी, महात्मा गांधी के सर्वोदय से प्रभावित है। साथ-साथ योजनाओं का महत्वपूर्ण पहलू है उनको लोगों तक पहुंचाना (टेक्नोलॉजी के जरिए हो; जाति, धर्म, क्षेत्र के प्रति 'अंधाÓ हो) सबको लाभ मिले, और लाभार्थी दलालों से मुक्त हो। प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण (डीबीटी), राशन वितरण, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच हो, सभी टेक्नोलॉजी के जरिए होते हैं और बिचौलियों की भूमिका कम करते हैं। यहां तक कि वापस लिए गए कृषि विधेयक भी किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए विकल्प मुहैया और बिचौलियों से छुटकारा दिलाने के लिए था। 'सबका प्रयासÓ पर जोर दिया गया। हजारों परिवारों ने एलपीजी सब्सिडी छोड़ दी।
सतत् विकास के लिए कल्याणकारी कार्यों के साथ-साथ नीतियों में विश्वास की आवश्यकता है। मोदी आम नागरिक और उद्योग के लिए अवसर पैदा करने का माहौल बना रहे हैं, ताकि वे कामयाब हों और दुनिया में चैंपियन बनें। स्किल इंडिया और स्टार्ट अप इंडिया जैसे पहल से देश के युवाओं का दृष्टिकोण एवं मानसिकता में बदलाव आया है। सरकारी नौकरियों की तरफ देखने के बदले, देश में उद्यमी संस्कृति फल-फूल रही है, और इससे रोजगार पैदा होता है। महामारी के दौरान शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान भारतीय कारोबार को पटरी पर लौटाने और भविष्य में प्रगति की राह पर ले जा रहे हैं। उत्पादन केंद्रित प्रोत्साहन योजना से देश में उत्पादन क्षमता की संभावनाएं खुलेंगी। आश्चर्य नहीं कि 2021 में 40 से ज्यादा यूनिकॉर्न तैयार हुए।
आत्मनिर्भरता की बात पर लोगों का भरोसा
कोरोना महामारी से जब देश-दुनिया त्रस्त थी, तब मोदी देशवासियों को आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा रहे थे। प्रतिक्रियावादी मजाक उड़ा रहे थे, लेकिन मोदी ने उनकी परवाह नहीं की। इस दौरान वह पारंपरिक चिकित्सा को एक नई पहचान दिलाने में सफल रहे, जिसका व्यापार करीब 6 गुना बढ़ गया है। उद्योग के क्षेत्र में नैनो यूरिया खाद एक अभूतपूर्व पहल है। कुछ दिन पहले उन्होंने गुजरात के गांधीनगर में नैनो यूरिया प्लांट का उद्घाटन किया। यह खाद तरल होगी और एक बोतल से एक बोरी यूरिया की ताकत मिलेगी। उप्र समेत देश के कई राज्यों में इस तरल खाद के प्लांट लगाए जाएंगे, जो कृषि क्षेत्र में सचमुच एक ऐतिहासिक क्रांति होगी। अभी तक यूरिया खाद आयात करनी पड़ती थी। सरकार को करीब 2 लाख करोड़ रुपए सब्सिडी के रूप में खर्च करने पड़ते थे। अब यह खर्चा बचेगा। अगले कुछ वर्षों में देश खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा। डिफेंस कॉरिडोर भी इस कड़ी में एक अहम कड़ी है।
8 साल में भरपूर विकास
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, भारत माला परियोजना और पर्वत माला परियोजना के माध्यम से सारा भारत सड़कों से जुड़ गया है। इन 8 वर्षों में पहली बार पूर्वोत्तर के कई राज्य रेलवे से जुड़े हैैं। देश के जनमानस को स्वावलंबी बनाने के लिए मुद्रा योजना, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप और ग्राम उदय से लेकर भारत उदय जैसे अभियानों की शुरुआत हुई। हुनर हाट जैसी गतिविधियों के जरिए देश की स्थानीय कारीगरी, कला और कौशल को उचित सम्मान मिला। केंद्र सरकार ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान, मुस्लिम महिलाओं को तत्काल तीन तलाक से मुक्ति और हर क्षेत्र में महिला भागीदारी सुनिश्चित करने की भी सकारात्मक पहल की है। डिजिटलीकरण और एक राष्ट्र-एक टैक्स यानी जीएसटी देश के इतिहास में एक भारत-श्रेष्ठ भारत की दिशा में एक नया अध्याय है। इसी प्रकार सैन्य शक्ति को मजबूत करते हुए आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड का पुनर्गठन किया गया। भारत ने राफेल लड़ाकू विमान और 48,000 करोड़ रुपए से 83 स्वदेशी तेजस विमान खरीदे।
- इन्द्र कुमार