21-Aug-2020 12:00 AM
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देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी इस समय जिस समस्या से जूझ रही है उससे उबरने के लिए पार्टी को कामराज योजना अपनाना चाहिए। यह तभी हो पाएगा, जब पार्टी में के कामराज जैसा कोई दमदार नेता होगा।
कांग्रेस ऊहापोह में है। देश की सबसे पुरानी इस राजनीतिक पार्टी में पुराने और नए नेताओं के बीच गहरी खाई बन गई है। युवा तुर्क विद्रोह के मूड में हैं और उन्हें संभालने तथा राज्यों में पार्टी को मजबूत करने के लिए कोई कोशिश नहीं हो रही है। या ये युवा नेता जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी हो गए हैं। आज के माहौल में, जबकि कांग्रेस की एक विपक्ष के रूप में देश में सबसे ज्यादा जरूरत है; यह पार्टी व्यापक जनाधार होते हुए भी एक तरह से अजीब-सी शून्यता की तरफ बढ़ रही है। कांग्रेस के भीतर मंथन का यह दौर क्या देश के सामने एक नई और ऊर्जावान कांग्रेस ला पाएगा? या यह पार्टी एक इतिहास बनकर रह जाएगी? क्या कांग्रेस की ओवरहॉलिंग की जबरदस्त जरूरत है?
यह 1998 की बात है, युवा नेता (तब) ममता बनर्जी कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री थीं। वह इस बात से बहुत खफा थीं कि कांग्रेस उनके गृह राज्य पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों की बी टीम जैसी हालत में है और नेतृत्व कुछ नहीं कर रहा। विद्रोही ममता चाहती थीं कि कांग्रेस एक पार्टी के रूप में वामपंथियों से लड़े और अपना मजबूत वजूद बनाए रखे। जब ऐसा नहीं हुआ, तो उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहकर अपनी अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस बना ली और वामपंथियों का मजबूत राजनीतिक विरोध करते हुए आज सत्ता में हैं। ममता की इस कहानी में ही कांग्रेस की वर्तमान हालत की दास्तां छिपी है। कांग्रेस ने राज्यों में खुद को बहुत कमजोर कर लिया है। जो राज्य कांग्रेस के हाथ में हैं, वो भी राजनीतिक षड्यंत्रों में उसके हाथ से निकल रहे हैं। मध्यप्रदेश और राजस्थान की घटनाएं वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच बनी गहरी खाई का इशारा करती हैं। ऐसे में सहज ही यह सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस को एक और कामराज योजना की जरूरत है?
बता दें करीब 57 साल पहले दिग्गज कांग्रेस नेता कुमारस्वामी कामराज ने सरकार के पद त्यागकर संगठन को तरजीह देने का फार्मूला (जिसे कामराज योजना के नाम से जाना जाता है) सामने लाए; जिसने कांग्रेस को एक संगठन के रूप में मजबूत किया था। आज परिस्थितियां उसके विपरीत हैं और कांग्रेस न तो केंद्र की सत्ता में है, न उसके सामने की प्रतिद्वंद्वी पार्टी कमजोर है। लेकिन एक संगठन के रूप में कांग्रेस को जिंदा रखने के लिए निश्चित ही एक और कामराज योजना की आज सख्त जरूरत है, जिसमें नेता कमजोर संगठन को मजबूत करें। निश्चित ही कुर्सियों का लालच छोड़ नेताओं को संगठन की मजबूती के लिए काम करना होगा।
कामराज ने उस समय एक और अहम बात कही थी। उन्होंने कहा था कि कठिनाइयों का सामना करो, इससे भागो मत, समाधान खोजिए, भले ही वह छोटा हो, यदि आप कुछ करते हैं, तो लोग संतुष्ट होंगे। लेकिन आज कांग्रेस में यही सब नहीं हो रहा है। और इसका कारण कांग्रेस के भीतर ही है। वरिष्ठ और युवा नेता विपरीत ध्रुवों पर खड़े दिख रहे हैं। वर्चस्व की यह जंग पार्टी में जमीनी स्तर की इकाइयों तक पहुंच गई है।
राजस्थान में सचिन पायलट और उससे पहले मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जैसा संकट कांग्रेस के सामने पैदा किया, वह बताता है कि युवा नेताओं का पार्टी से मोहभंग हो रहा है। दिल्ली में कांग्रेस से चार दशक तक जुड़े रहे एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि निश्चित ही कांग्रेस की ओवरहॉलिंग (पुनर्गठन) का वक्त आ गया है और युवाओं की एक मजबूत टीम बनाने की जरूरत है, जिसमें कुछ ऐसे वरिष्ठ नेताओं की भी भागीदारी हो; जो संगठन के लिहाज से सक्रिय हैं।
हालत यह है कि केंद्र की मोदी सरकार की नाकामियों को भी जनता के सामने लाने के लिए पार्टी नेता उत्सुक नहीं हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी नरेंद्र मोदी के खिलाफ भले मुखर हों, वरिष्ठ नेता उनके इस मोदी विरोध को ताकत देने के लिए कहीं भी साथ खड़े नहीं दिखते। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आसपास बुजुर्ग नेताओं का ऐसा गठजोड़ बन गया है, जो भले ही राजनीति में निपुण हों, लेकिन वे इसका इस्तेमाल विरोधी भाजपा से टक्कर लेने के लिए नहीं, बल्कि अपनी ही पार्टी के भीतर युवा नेतृत्व के उभरने में रोड़े अटकाने के लिए कर रहे हैं। इस नीति ने कांग्रेस को खोखला करना शुरू कर दिया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद इस आरोप से सहमत नहीं हैं कि वरिष्ठ नेताओं ने कोई कोठरी बना रखी है। एक इंटरव्यू में आजाद ने कहा कि ऐसा कहना बिल्कुल गलत है। संगठन में युवाओं की भरमार है और वे कई जगह पार्टी को नेतृत्व भी दे रहे हैं। क्योंकि हम लगातार दो बार से सत्ता में नहीं हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि कांग्रेस कमजोर हो गई है; लेकिन यह सच्चाई नहीं है। कांग्रेस ही देश में एक ऐसा राजनीतिक दल है, जो सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है।
आजाद कहते हैं कि मोदी सरकार कोरोना से लेकर चीन तक के मुद्दे पर एक्सपोज हुई है। अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है। महामारी को ठीक से नहीं संभाल पाने के कारण करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं और जनता में मोदी नीत केंद्र सरकार के प्रति गहरी निराशा और नाराजगी है। लेकिन भाजपा चुनी हुई सरकारें गिराने में लगी है। हाल के कई विधानसभा चुनावों में जनता ने उसे बुरी तरह नकार दिया है। जनता से समर्थन नहीं मिलने के बावजूद वह पैसे के जोर पर कांग्रेस की राज्य सरकारें तोड़कर अपनी सरकारें बना रही है।
नाम जाहिर न करने की शर्त पर एक राष्ट्रीय युवा कांग्रेस नेता ने कहा कि निश्चित ही पार्टी में युवाओं के मन में नाराजगी है। राहुल गांधी को जब अध्यक्ष बनाया गया, तब उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने तीन राज्यों में सरकारें बनाईं। राफेल, अर्थव्यवस्था, रोजगार, युवाओं और किसानों से लेकर तमाम मुद्दों पर राहुल ने प्रधानमंत्री मोदी से अकेले लोहा लिया। लेकिन लोकसभा के चुनाव में वरिष्ठ नेताओं ने निष्क्रियता दिखाई। वे कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ा नहीं होने देते; क्योंकि इससे उन्हें अपने अप्रासंगिक होने का डर सताने लगता है।
इस युवा नेता की यह बात कांग्रेस के भीतर युवा नेताओं और वरिष्ठों के बीच बन चुकी गहरी खाई की तरफ इशारा करती है। यदि हाल की घटनाओं की तरफ देखें, तो जाहिर हो जाता है कि पार्टी के भीतर युवा नेता इन बुजुर्ग हो चुके नेताओं से मुक्ति चाहते हैं।
सचिन पायलट के भाजपा से साठगांठ करने के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आरोप के बाद पार्टी के बीच युवा नेताओं ने एक के बाद एक जिस तरह पायलट के समर्थन में सुर मिलाए, वह इस बात का संकेत है कि वरिष्ठ नेताओं और उनके बीच कितनी दूरी बन चुकी है। हालांकि यह भी सच है कि आवाज उठाने वाले इन नेताओं में ज्यादातर राजनीतिक परिवारों की ही पीढ़ी के नेता है, जिन्हें काफी कम उम्र में ही सत्ता में हिस्सा मिला है। आम युवा नेता तो खामोशी से हालात पर नजर जमाए हैं, जो यह तो मानते हैं कि युवाओं को ज्यादा अवसर मिलना चाहिए, लेकिन साथ ही इस बात पर भी जोर देते हैं कि वरिष्ठ नेताओं का नेतृत्व भी साथ में ही चलना चाहिए। जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव युवा नेता नीरज गुप्ता ने कहा कि यदि हाल की घटनाओं को देखें, तो पता चलेगा कि कथित विद्रोह वे युवा नेता कर रहे हैं, जिन्हें छोटी उम्र में ही पार्टी ने सब कुछ दे दिया। यह नेता जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी हो गए हैं; जिनमें ज्योतिरादित्य और पायलट भी शामिल हैं। जमीन पर हम जैसे युवा नेता वैसा नहीं सोचते, जैसा पायलट आदि कर रहे थे। खैर अभी राजस्थान में पायलट वापस कांग्रेस में लौट आए हैं।
गुप्ता ने कहा कि यह ठीक है कि वरिष्ठ नेताओं को चाहिए कि वे युवाओं को प्रोत्साहित करें। युवाओं को अवसर भी मिलने चाहिए; लेकिन साथ ही यदि हम जैसे युवा नेता वरिष्ठों का अनादर करने लगें, तो यह भी गलत है। आखिर इन वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के लिए अपना सब कुछ खपा दिया है। कांग्रेस में राजनीतिक परिवारों के लोग बहुतायत में हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इन युवा नेताओं को ही सत्ता में दूसरों के मुकाबले कहीं ज्यादा हिस्सा मिला है और विरोध के तेवर भी इन नेताओं ने ही दिखाए हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि क्या यह युवा नेता जरूरत से ज्यादा ख्वाहिशें पाल बैठे हैं? वरिष्ठ पत्रकार और कांग्रेस मामलों के जानकार एसपी शर्मा ने कहा कि पायलट के उदाहरण से तो यही लगता है कि उन्हें सब कुछ सही मिल रहा था और कुछ साल में मुख्यमंत्री भी बन जाते। लेकिन उन्होंने अति महत्वाकांक्षा या बहकावे में आकर एक पल के लिए सब कुछ गंवा दिया था।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कांग्रेस को अब ऐसे युवाओं की एक टीम तैयार करनी चाहिए, जिसे राजनीतिक समझ होने के साथ-साथ विरोधी पार्टी की गतिविधियों पर नजर रखकर जवाब देने की क्षमता हो। विरोधी पार्टी के हर हमले का जवाब दे सके। उसकी गलत नीतियों पर घेर सके और जनता को सच्चाई से रू-ब-रू करा सके। कांग्रेस ऐसी टीम में चुने हुए विद्वान और हर क्षेत्र की समझ रखने वाले युवाओं को मौदान में उतारकर हर राज्य में रैलियां आयोजित करे, सत्ताधारी दल की जन-विरोधी नीतियों पर खुले मंच पर बहस का निमंत्रण दें और लोगों को उनके हित-अहित की सही जानकारी दें। अगर कांग्रेस ऐसा करती है, तो वह दिन दूर नहीं, जब लोगों को अपने हितों की फिक्र होने लगेगी और वे जागरूक होकर सत्ताधारी सरकारों से हिसाब मागने लगेंगे।
आलाकमान का सख्त रुख
यदि हाल के वर्षों की घटनाएं देखें, तो पहली बार कांग्रेस आलाकमान का रुख बदला हुआ दिखा है। पायलट वाले मामले में कार्रवाई को लेकर कांग्रेस इंदिरा गांधी के जमाने वाली सख्त कांग्रेस दिखी है। प्रदेशों में जब कांग्रेस को अपनी सरकारों की सबसे ज्यादा जरूरत है, उसने सख्त रुख दिखाते हुए और राजस्थान में गहलोत सरकार की परवाह किए बगैर पायलट के खिलाफ फौरी तौर पर कार्रवाई की थी, जबकि महज तीन महीने पहले ही मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया वाले मामले में कांग्रेस आलाकमान निष्क्रिय-सी दिखी थी। निश्चित की आलाकमान के इस सख्त रुख से देशभर के कांग्रेस नेताओं में साफ संदेश गया है। यही कि अब नरमी नहीं बरती जाएगी और इस तरह की अनुशासनहीनता को अब स्वीकार नहीं किया जाएगा। एआईसीसी में पदाधिकारी एक कांग्रेस नेता ने बताया कि पार्टी नेतृत्व को गारंटी मान लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
कामराज योजना की जरूरत
कांग्रेस जिस दौर में है, उसे आज एक और कामराज योजना की सख्त जरूरत है। दिग्गज कांग्रेस नेता कुमारस्वामी कामराज ने तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बाद 2 अक्टूबर, 1963 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की बात कही। उनका कहना था कि कांग्रेस के सब बुज़ुर्ग नेताओं में सत्ता लोभ घर कर रहा है और उन्हें वापस संगठन में लौटना चाहिए और लोगों से जुड़ना चाहिए। उस समय देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को कामराज की यह योजना इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे पूरे देश में कांग्रेस पार्टी में लागू करने का मन बनाया। भारतीय राजनीति में यह योजना कामराज प्लान के नाम से मशहूर हुई। कामराज योजना लागू करने के नेहरू के फैसले का नतीजा यह निकला कि उनके मंत्रिमंडल के 6 मंत्रियों और 6 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को त्याग-पत्र देना पड़ा। कैबिनेट मंत्रियों में भी तमाम दिग्गज शामिल थे। इनमें मोरारजी देसाई, लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम और एसके पाटिल शामिल थे। मुख्यमंत्रियों में चंद्रभानु गुप्त, मंडलोई और बीजू पटनायक जैसे दिग्गज शामिल थे। इस सफल प्रयोग के बाद कामराज को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। इस योजना को देखें, तो 2014 में नरेंद्र मोदी के उदय के बाद भाजपा ने भी कमोबेश इसी तर्ज पर मार्गदर्शक मंडल बनाया और लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों को इसमें डाल दिया। हां, कामराज योजना के विपरीत भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेताओं को सरकार ही नहीं, एक तरह संगठन से भी बाहर कर दिया, जबकि कांग्रेस ने अपने नेताओं को तब संगठन और जनता से संपर्क का जिम्मा दिया था। इस लिहाज से देखें तो कांग्रेस की कामराज योजना कहीं बेहतर और सम्मानजनक थी।
- इन्द्र कुमार